मित्रों ! प्रणाम जीवन की गति बहुत अदभुत है | कोई नहीं जानता कब? कहाँ?क्यों? हमारा जीवन अचानक ही बदल जाता है ,कुछ खो जाता है ,कुछ तिरोहित हो जाता है |हम एक आशा की प्रतीक्षा में खड़े रह जाते हैं और हाथ मलते रह जाते हैं | ईश्वर प्रत्येक मन में विराजता है ,उसने सबको एक सी ही संवेदनाएँ प्रदान की हैं |प्रत्येक प्राणी के मन में प्रेम,ईर्ष्या,अहंकार करुणा जैसी संवेदनाओं को प्रतिष्ठित किया है |वह चाहे कोई भी जीव-जन्तु हो अथवा मनुष्य ईश्वर ने तो सबको एक समान ही निर्मित किया है | उसने

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उजाले की ओर ---संस्मरण - मैं कहाँ कवि हूँ ?(SANSMARAN)

मैं कहाँ कवि हूँ ? --------------------- उम्र के ऊपर-नीचे गुज़रते मोड़ों पर ? किसने ?रोक लगा दी है साहब ! वो तो बस जैसे समय आता है ,गुज़र ही तो जाती है न कोई पता,न ठिकाना --बस जो ,जैसा आए उसमें से गुज़रते रहना अक़्सर सोचा हुआ होता कहाँ है इंसान का ,बस उसे उस रास्ते से गुज़र जाना ही होता है जो उसके सामने आता है विवाह के चौदह वर्ष बाद दुबारा पढ़ने का भूत सवार हुआ दो छोटे बच्चों व घर-गृहस्थी के साथ पढ़ने का एक अलग ही अनुभव ! ...और पढ़े

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उजाले की ओर

1-उजाले की ओर ----------------- मित्रों ! प्रणाम जीवन की गति बहुत अदभुत है | कोई नहीं कब? कहाँ?क्यों? हमारा जीवन अचानक ही बदल जाता है ,कुछ खो जाता है ,कुछ तिरोहित हो जाता है |हम एक आशा की प्रतीक्षा में खड़े रह जाते हैं और हाथ मलते रह जाते हैं | ईश्वर प्रत्येक मन में विराजता है ,उसने सबको एक सी ही संवेदनाएँ प्रदान की हैं |प्रत्येक प्राणी के मन में प्रेम,ईर्ष्या,अहंकार करुणा जैसी संवेदनाओं को प्रतिष्ठित किया है |वह चाहे कोई भी जीव-जन्तु हो अथवा मनुष्य ईश्वर ने तो सबको एक समान ही निर्मित किया है | उसने ...और पढ़े

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उजाले की ओर - 2

उजाले की ओर-2 ----------------- बात शुरू करती हूँ इस अजीबोग़रीब समय से न किसी ने आज तक देखा ,न सुना ,न जाना ,न पहचाना --बस ,एक साथ ही जैसे प्रकृति का आक्रोश पूरे विश्व पर आ पड़ा | गाज गिर गई जैसे --- आज प्रकृति ने सोचने को विवश कर दिया कि भाई ,मत इतराओ ,मत एक-दूसरे पर लांछन लगाओ | मैं पूरी सृष्टि की माँ हूँ ,यदि सम्मान नहीं करोगे तो कभी न कभी ,किसी न किसी रूप में मैं तुम्हें सिखाऊंगी तो हूँ ही कि सम्मान किसे कहते हैं ? और यह कितना ज़रूरी है | ...और पढ़े

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उजाले की ओर - 3

उजाले की ओर -- 3 ------------------ स्नेही एवं प्रिय मित्रों सभीको नमन यह संसार एक बहती नदिया है जिसमें सभीको हिचकोले खाने हैं ,कोई तैर जाता है तो कोई लहरों से टकराता रहता है ,कोई डूब भी जाता है |किन्तु डूबने के भय से हम तैरना तो नहीं छोड़ सकते ! हमें अपने –अपने कर्मों के अनुसार कार्यरत रहना ही होता है,जीवन के समुद्र में तैरना ही होता है | जीवन की इस यात्रा में न जाने कितने ऊबड़-खाबड़ मार्ग आते हैं ,सदा सीधा ही मार्ग हो ऐसा जीवन में कहाँ होता है? जब हम ...और पढ़े

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उजाले की ओर - 4

उजाले की ओर--4 ------------------ आ. स्नेही व प्रिय मित्रों नमस्कार हम मनुष्य हैं ,एक समाज में रहने वाले वे चिन्तनशील प्राणी जिनको ईश्वर ने न जाने कितने-कितने शुभाशीषों से नवाज़ा है ! इस विशाल विश्व में न जाने कितने समाज हैं जिनकी अपनी-अपनी परंपराएँ,रीति-रिवाज़,बोलियाँ,वे श-भूषा हैं किन्तु फिर भी एक चीज़ ऎसी है जिससे सभी एक-दूसरे से जुड़े हैं और वह है संवेदना ! कभी-कभी हम न एक-दूसरे से परिचित होते हैं ,न ही हमने एक–दूसरे को कभी देखा होता है किन्तु ऐसा लगता है कि हम एक-दूसरे से वर्षों से परिचित हैं|यही संवेदनशीलता हमें मनुष्य ...और पढ़े

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उजाले की ओर - 5

उजाले की ओर-5 ---------------- आ.व स्नेही मित्रो नमस्कार बहुत सी बार लोगों को लगता है कि अधिक बहस न करने वाला तथा बात को चुप्पी में दबाकर रखने वाला मनुष्य सरल,सहज नहीं मूर्ख होता है | मित्रो !यह बात सही है क्या?मुझे लगता है कि वह सरल,सहज होता है किन्तु संवेदनशील होने के कारण किसीको ग़लत बातों से नहीं नवाज़ता | वह सब समझते हुए भी चुप्पी को ही ढाल बना लेता है | वह सोचता है कि यदि मूर्ख बने रहना शांति बनाए रखने में सहायक होता है तो मूर्ख बने रहने में ही सबका लाभ ...और पढ़े

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उजाले की ओर - 6

उजाले की ओर--6 ----------------- प्रिय एवं स्नेही मित्रों सस्नेह नमस्कार मनुष्य के स्वभाव में अनेक शक्तियों के साथ ही एक भरोसा करने की शक्ति भी निहित है |वह कई बार अपने से जुड़े हुओं पर बहुत अधिक भरोसा कर बैठता है ,विश्वास कर बैठता है किन्तु जब कभी उसके विश्वास को ठेस लगती है तब वह बिखरने की स्थिति में हो जाता है और इसीलिए जब कभी उसे काँटा चुभता है और वह बेदम होने लगता है तब दूसरी बार वह भरोसा करने से भयभीत होने लगता है ,हिचकिचाने लगता है |जब मनुष्य किसी व्यक्ति अथवा वस्तु को ...और पढ़े

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उजाले की ओर - 7

उजाले की ओर--7 --------------- आ. स्नेही व प्रिय मित्रों नमस्कार इस छोटी सी ज़िंदगी में न जाने कितने किरदार ऐसे मिल जाते हैं जो हमारी ज़िंदगी का भाग बन जाते हैं| कुछ ऐसे लोग होते हैं जो अपने गुणों के कारण हमारे मनो-मस्तिष्क पर एक सकारात्मक गहरी छाप छोड़ जाते हैं तो कुछ ऐसे भी होते हैं जो अपने ग़लत व्यवहार के कारण एक नकारात्मक छाप छोड़कर जाते हैं और हमारे जीवन में सदा के लिए एक नकारात्मकता को जन्म दे जाते हैं | यह बिलकुल सत्य है कि मनुष्य के ऊपर अच्छी चीजों ...और पढ़े

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उजाले की ओर - 8

उजाले की ओर--8 --------------------- आ. स्नेही एवं प्रिय मित्रों नमन ज़िंदगी की राहों में अनगिनत फूल खिलते हैं ,साथ ही काँटे भी |हम मनुष्य बहुधा इस गफलत में फँस जाते हैं | हम फूल तो चुन लेते हैं किन्तु काँटों की चुभन को सह पाना हमारे लिए कठिन हो जाता है | जिस प्रकार से रात-दिन,अँधियारा-उजियारा है उसी प्रकार से यह प्रसन्नता व पीड़ा भी है |इससे कोई भी नहीं बच सका है |किसी भी मनुष्य का जीवन एक सपाट मार्ग पर नहीं चल सकता ,उसे सपाट मार्ग के साथ ऊबड़-खाबड़ मार्ग पर भी चलना ही होता है | प्रश्न यह उठता ...और पढ़े

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उजाले की ओर - 9

उजाले की ओर--9 ------------------ स्नेही मित्रो भाषण देना जितना सरल है निर्वाह करना उतना ही कठिन ! ज़िन्दगी हिचकोलों में डूबती-उतरती हुई हमें अपनी ही सोच पर चिंतन करने के लिए बाध्य करती है | वास्तव में ज़िंदगी है क्या? चार दिन की चाँदनी ? सत्य है न ?लेकिन इसी चाँदनी को पीना पड़ता है,इसीमें नहाना पड़ता है ,इसीके साथ जीना पड़ता है |फिर चाँदनी सूर्य के तेज़ में परिवर्तित हो जाती है इसमें भी मनुष्य को रहना पड़ता है,जीना पड़ता है |तात्पर्य है कि कोई भी परिस्थिति क्यों न हो ,दिन हो अथवा रात हो ,मनुष्य ...और पढ़े

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उजाले की ओर - 10

उजाले की ओर --10 ------------------------ आ.एवं स्नेही मित्रो नमस्कार एक नवीन दिवस का आरंभ ,एक नवीन चिंतन का उदय हमें परमपिता को प्रत्येक पल धन्यवाद अर्पित करने का अवसर प्रदान करता है |हम करते भी हैं ,कितना कुछ प्रदान किया है उसने जिसने ज़िन्दगी जैसी अनमोल यात्रा का अनुभव कराया है |लेकिन हम कहीं न कहीं चूक जाते हैं ,हम अपने वर्तमान में रहकर भी वर्तमान में नहीं रह पाते |हम वर्तमान में रहकर भी न जाने कहाँ कहाँ भटकते रहते हैं |यह मस्तिष्क का स्वभाव है ,वह कभी शांत तथा स्थिर नहीं रह पाता | जीवन में ...और पढ़े

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उजाले की ओर - 11

उजाले की ओर--11 --------------------------- स्नेही मित्रो आप सबको नमन जीवन की आपाधापी कभी कभी हमें इतना निराश कर देती है कि हम उसमें उलझकर रह जाते हैं हम ईश्वर के द्वारा प्रदत्त सुंदर शुभाशीषों को भी अनुभव नहीं कर पाते त्रुटियाँ मनुष्य से होना स्वाभाविक है जिनके लिए ईश्वर हमें अवसर भी प्रदान करता है कि हम उनमें सुधार कर सकें किन्तु हम उन्हें सुधारने की अपेक्षा उन्हें और भी अधिक जटिल बना देते हैं एवं अनेकों उतार-चढावों में भटकते रह जाते हैं जीवन के ये उतार-चढ़ाव हमें किसी न किसी पर दोष ...और पढ़े

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उजाले की ओर - 12

उजाले की ओर --12 ------------------------ स्नेही मित्रो नमस्कार प्रभातकालीन बेला,पक्षियों का चहचहाना ,पुष्पों का खिलखिलाना फिर भी मानव मन का उदास हो जाना बड़ी कष्टदायक स्थिति उपस्थित कर देता है | हम यह भूल ही जाते हैं कि प्रकृति हमारे लिए है और हम प्रकृति के लिए |क्या प्रभु प्रतिदिन विभिन्न उपहार लेकर हमें प्रसन्न करने नहीं आते ? कभी सूर्य की उर्जा के रूप में तो कभी प्राणदायी वायु के रूप में ,कभी वर्षा की गुनगुनाती तरन्नुम लेकर तो कभी चंदा,तारों की लुभावनी तस्वीर लेकर| प्रकृति के तत्वों से बना यह शरीर जब अपनी मानसिक ...और पढ़े

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उजाले की ओर - 13

उजाले की ओर--12 -------------------- प्रिय एवं स्नेही मित्रो आप सबको आज एक कहानी याद आ रही है | सोचा ,आपसे साँझा की जाए |एक बहुत समृद्ध मनुष्य था जिसने बहुत श्रम से यत्नपूर्वक अपने आपको बहुत बड़े उद्योगपति के रूप में स्थापित किया था |उसका नाम शहर के सर्वश्रेष्ठ अमीरों में गिना जाने लगा |अपने श्रम व बुद्धि से एकत्रित की जाने वाली संपत्ति को वह बहुत सोच समझकर व्यय करता |उसकी इच्छा होती कि वह उन लोगों की सहायता कर सके जो वास्तव में ज़रूरतमंद हैं | लेकिन यह सदा होता आया है कि पिता ...और पढ़े

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उजाले की ओर - 14

उजाले की ओर --13 --------------------- आ.स्नेही एवं प्रिय मित्रो मन न जाने कहाँ कहाँ पंछी की भांति उड़कर पुन: मन की भीतरी न जाने कौनसी शाख़ पर आ बैठता है |शाख़ का ही पता नहीं चलता कौनसी है जिस पर मन जा बैठता है कि उसे पकड़कर तुरत लाया जा सके |मुझे लगता है हमारे मन के वृक्ष में न जाने कितनी अनगिनत शाखाएं हैं जिन पर मन का पंछी उड़-उड़कर जा बैठता है ,उसे पकड़ने का प्रयास करो तो हाथ ही नहीं आता ,वह तो कहीं और जा बिराजता है |खैर छोड़ें ,हम जानते भी तो ...और पढ़े

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उजाले की ओर - 15

उजाले की ओर --13 --------------------------- आ.स्नेही एवं प्रिय मित्रो सादर,सस्नेह नमन कई बार मन सोचता है कि हम आखिर हैं क्या?जीवन में उगे हुए ऐसे फूल जो शीघ्र ही मुरझा जाते हैं |किसी छोटी सी विपत्ति के आ जाने पर हम कुम्हला जाते हैं ,टूटने लगते हैं ,बिखर जाते हैं |वास्तव में यदि दृष्टि उठाकर अपने चारों ओर देखें तो पाएंगे कि हमारे चारों ओर लोग कितनी परेशानियों से घिरे हैं|जब हम उनकी परेशानियों को देखते हैं तब हम ऊपर वाले के प्रति कृतज्ञ होते हैं ,उसका धन्यवाद अर्पण करते हैं कि उसने तो हमें कितना कुछ दिया है ...और पढ़े

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उजाले की ओर --16

----------------------- आ,स्नेही व प्रिय मित्रो ताने-बानों से घिरी ज़िन्दगी में क्षण सुकून के मिल जाएं तो बहुत बड़ी बात होती है वरना आजकल की ज़िंदगी न जाने कितने-कितने झंझावातों से घिरी रहती है एक परेशानी का समाधान तो पूरी तरह प्राप्त हुआ नहीं कि दूसरी मुह बाए खड़ी हो जाती है कुछ तो प्राकृतिक आपदाएं ही मनुष्य के जीवन में उसे जीने नहीं देतीं और कुछ वह स्वयं ही आपदाओं को गले लगाता रहता है आज मनुष्य ने पेड़ काट-काटकर अपने लिए एक बड़ी समस्या खड़ी कर ली है इसीलिए शनै:शनै: पूरे संसार का ...और पढ़े

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उजाले की ओर - 17

------------------------ आ. स्नेही एवं प्रिय मित्रों नमस्कार हम उलझे रहे अच्छे-बुरे तथा कम-अधिक और भी न जाने कितनी –कितनी आज की समसामयिक समस्याओं को ओढ़े घूमते रहे | किन्तु इन सबसे ऊपर आज जब अचानक ही मुझे अपनी एक मित्र का लेख प्राप्त हुआ मैं चौंक गई |हमने आज तक जिस विषय पर सोचा तक न था ,उन्होंने उस विषय पर शोध करके लेख के माध्यम से जहाँ तक हो सके इस गंभीर समस्या को उठाने का प्रयत्न किया था | उनसे बात करने के बाद मुझे लगा था कि महिलाओं ...और पढ़े

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उजाले की ओर - 18

उजाले की ओर ------------------- स्नेही मित्रों नई सुबह का सुखद नमन इस गत वर्ष को 'बाय' करते हुए मन न जाने कितनी-कितनी बातों में उलझा हुआ है पूरे विश्व में एक अजीब सा भय फैलाने वाले इस बीते वर्ष ने बहुत सी बातें सोचने के लिए मज़बूर कर दिया है ज़रुरी भी है कि हम अपनी कार्य-प्रणाली पर ध्यान दें और यदि कुछ नहीं कर सकते तो कम से कम अपने लिए व अपनों से जुड़ों के लिए एक सुरक्षा-कवच अवश्य बनाने की चेष्टा करें नव-वर्ष बाध्य करता है सोचने के लिए कि गत ...और पढ़े

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उजाले की ओर - 19

------------------------ आ,स्नेही एवं प्रिय मित्रो सादर ,स्नेह नमस्कार लीजिए आ गया एक और नया दिन ...पता ही नहीं चलता कब सात दिन उडनछू हो जाते हैं और ऐसे ही माह,वर्ष और फिर पूरी उम्र ! जैसे पल भर में पवन न जाने कहाँ से कहाँ पहुंच जाती है हम पलक झपकते ही रह जाते हैं और समय ये गया-–--वो गया पीछे मुड़कर एक बार देखता भी नहीं है यह समय!कभी कभी तो लगता है ‘कितना निष्ठुर है न समय !’हम उसके पीछे दौड़ते हैं,पुकारते हैं किन्तु उसे हाथ नहीं आना है सो वह ...और पढ़े

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उजाले की ओर - 20

----------------------- आ. एवं स्नेही मित्रो नमस्कार हमारी दुनिया में प्रकार के जीव हैं जिनका आकार-प्रकार भिन्न है,रहन-सहन भिन्न है किसी भी प्राणी का बिलकुल एक जैसा व्यवहार व शक्लोसूरत नहीं है कुछ ऎसी मान्यता भी है कि दुनिया में कुछ लोगों की शक्लोसूरत एक सी होती है ,कभी-कभी इसके प्रमाण देखने में भी आते हैं किन्तु उनमें भी कहीं न कहीं,कोई न कोई थोड़ी-बहुत असमानता तो अवश्य होती ही है चाहे वह सूरत में हो अथवा व्यवहार में ! मनुष्य एक सचेत प्राणी है,उसमें चिंतनशीलता का गुण प्रमुख है ,वह अपने कार्यों को सोच-समझकर कर सकता ...और पढ़े

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उजाले की ओर - 21

उजाले की ओर ------------------- आ.स्नेही एवं प्रिय मित्रो नमस्कार प्रतिदिन घर के मुख्य द्वार पर खटखट होती है कोई निश्चित समय नहीं ,सुबह-सवेरे ,दोपहर अथवा शाम व कभी कभी रात को भी लगभग दस बजे तक न जाने कोई कुरियर हो,कोई मिलने आया हो अथवा कोई किसी महत्वपूर्ण कार्य से आया हो अत: उठकर तो जाना ही पड़ता है दिन में दो-चार बार तो कम से कम ऐसे लोग होते ही हैं जो मन का पूरा स्वाद कसैला कर जाते हैं वे आपके व हमारे सभी के द्वार पर पहुँच जाते हैं आजकल फ़्लैट बनने लगे ...और पढ़े

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उजाले की ओर - 22

उजाले की ओर -------------- आ. एवं स्नेही मित्रो नमस्कार आजकल गायों के बारे में बहुत संवेदनशील हो गए हैं लोग ! गाय माता है दूध देकर हमारा पोषण करती है,उनको किस प्रकार बचाया जाय ? अनेकों प्रश्न ,अनेकों चर्चाएँ ,अनेकों बहस !लेकिन परिणाम ?? गाय को कोई आज ही माता का नाम नहीं दिया गया है ,गाय को माता प्रारंभ से ही पुकारा जाता रहा है और इसका कारण भी है कि दूध देकर यह हमारे शिशुओं को बड़ा करती है,गाय से जुड़ी अनेकों पौराणिक कथाएँ प्रचलित हैं , हम भारतीय गाय को पूज्य मानते रहे ...और पढ़े

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उजाले की ओर - 23

उजाले की ओर --------------------- आ. एवं स्नेही मित्रों ! सादर ,सस्नेह सुप्रभात जीवन की धमाचौकड़ी पूरे जीवन भर चलती रहती है|हम नाचते रहते हैं कठपुतली के समान इधर से उधर ,उधर से इधर |जीवन में कुछ न कुछ ऊँचा-नीचा होता ही रहता है |हम कब कुछ ग़लत कर बैठते हैं हमें इसका आभास भी नहीं होता,होता तब है जब हम अपने किए हुए का परिणाम देखते हैं |स्वाभाविक है, बबूल का पेड़ बोने से हमें स्वादिष्ट आम का आनन्द तो प्राप्त हो नहीं सकता किन्तु हमें यह पता ही नहीं चलता कि हमने आखिर यह बबूल का पेड़ ...और पढ़े

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उजाले की ओर - 24

उजाले की ओर ------------------- स्नेही व प्रिय मित्रो प्रणव भारती का सादर वन्दन घटना वर्षों पूर्व की है किन्तु कभी-कभी लगता है मानो आज और अभी मेरे नेत्रों के समक्ष चित्रित हुई हो |मेरे दोनों बच्चे बहुत छोटे थे ,यही कोई चार-पाँच वर्ष के |मैं उन दिनों अपनी एम.ए अंग्रेज़ी की परीक्षा में सम्मिलित होने माँ के पास गई हुई थी |एम.ए का आखिरी ‘सिमेस्टर’ था और विवाह हो जाने के कारण मेरा वह सिमेस्टर छूट गया था |किसी प्रकार विश्वविद्यालय से आज्ञा मिली और मैं अपना एम.ए पूरा करने के लिए पढ़ाई में जुट गई | ...और पढ़े

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उजाले की ओर - 25

उजाले की ओर ------------------ " समीर ! सॉरी तुम्हें तकलीफ़ दे रही हूँ ,मुझे दूध लेना ,कोई दुकान दिखाई दे --तो " विभा ने झिझकते हुए समीर से कहा ,बेचारे एक तो ये युवा लड़के उसे ढोकर ले जाते हैं ऊपर से अपने घर के काम भी वह इस तरह रुककर करने लगे तो ---ठीक तो नहीं है न ! बिटिया बड़ी नाराज़ होती है उसकी इस तरह की बातों पर लेकिन उसको कहीं कुछ बुरा नहीं लगता | हाँ,वह यह ज़रूर समझने की कोशिश करती है कि अगले को कोई ऐसा काम तो नहीं कि उसके ...और पढ़े

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उजाले की ओर - 26

उजाले की ओर ------------------- आ.,स्नेही एवं प्रिय मित्रों आप सबको प्रणव का नमन जीवन अनमोल है लेकिन हमारी कितनी ही क्रियाएँ बस गोलमगोल हैं हम जानते हैं कि छोटा सा जीवन है,जैसे-जैसे उम्र के दौर गुज़रते रहते हैं हमें यह संवेदना बहुत गहराई से कचोटने लगती है कि हमारा जीवन कम होता जा रहा है हमारे संगी-साथी शनै:शनै: साथ छोड़ने लगते हैं और सदा के लिए गुम हो जाते हैं ऐसे समय में हममें कुछ समय का वैराग्य उत्पन्न होने लगता है किन्तु कुछ समय पश्चात वही ढ़ाक के तीन पात ! कभी-कभी हम जान-बूझकर सही-गलत ...और पढ़े

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उजाले की ओर - 27

उजाले की ओर ------------------ आ. स्नेही व प्रिय मित्रो ! सस्नेह सुप्रभात शीत का मौसम ! ठंडी पवन के झकोरे ,गर्मागर्म मूँगफलियों का स्वाद ,अचानक ही इस मौसम के साथ जुड़ जाता है वैसे जिस प्रदेश में मैं रहती हूँ ‘गुजरात में’ वहाँ इतनी न तो सर्दी पड़ती है और न ही यहाँ ‘मूँगफली ले लो,करारी गर्मागर्म मूँगफली’ का सुमधुर स्वर सुनाई देता है चाहे बेचारे बेचने वाले के स्वर में कितनी ही सर्दी की कंपकंपी क्यों न हो ,उस बेचारे को तो पेट पालने के लिए गर्म बिस्तर में घुसे हुए लोगों के पेटों में अपनी सर्दी ...और पढ़े

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उजाले की ओर - 28

उजाले की ओर ------------------ स्नेहिल मित्रो सस्नेह नमस्कार दुनिया रंग-बिरंगी भाई ,दुनिया रंग-बिरंगी ! सच है न रंग-बिरंगी तो है ही साथ ही एक गुब्बारे सी नहीं लगती ?जैसे अच्छा-ख़ासा मनुष्य अचानक ही चुप हो जाता है ,जैसे अचानक ही कोई तूफ़ान उभरकर कुछ ऐसा सामने आ जाता है कि पता ही नहीं चलता कब ,क्या हो रहा है ? फिर भी हम न जाने किस पशोपेश में रहते हैं,किस गुमान में रहते हैं,हमें लगता है कि हम अमर हैं और सदा ही दुनिया में बसने के लिए आए हैं|यहीं हम गलती कर जाते हैं और आँखें बंद करके ...और पढ़े

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उजाले की ओर - 29

उजाले की ओर ------------------ आ, एवं स्नेही मित्रो स्नेहिल नमस्कार मुझे भली प्रकार याद है जब हम छोटे थे तब हमारे यहाँ प्रतिदिन ही कोई न कोई मेहमान आया ही रहता था |माता-पिता ’अतिथि देवो भव’का पाठ पढ़ाते थे | कई बार ये अतिथि यानि मेहमान कोई एक-दो घंटे अथवा एक-दो दिन के नहीं बल्कि हफ़्तों तक रहने वाले होते थे जिनकी खातिरदारी की ज़िम्मेदारी बच्चों पर भी सौंपी जाती थी!इनके अतिरिक्तपास-पड़ौस के गाँव से किसी वर्ष कोई चाचा की लड़की आ रही है तो किसी मौसी की लड़की ने शहर में किसी स्कूल में प्रवेश ले ...और पढ़े

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उजाले की ओर - 30

उजाले की ओर ------------------- नमस्कार स्नेही मित्रों कई बार हम दुविधा में जाते हैं ,कई बार क्या अक्सर ! कभी कोई गंगा से आ रहा है ,हमारे लिए गंगाजल की बोतल लेकर तो कभी कोई जमुना किनारे से आ रहा है हमारे ऊपर जमुना-जल के छींटे डालने और कभी तो कोई हाथी पर चढ़कर सीधा स्वराष्ट्र से आ जाता है ,हमें गजराज के दर्शन कराने ! अब भैया ! ये तो सोचो ज़रा कि सामने वाले बंदे के पास समय भी है दर्शन करने का या नहीं ? अब नहीं है तो --- ? गजराज को सामने ...और पढ़े

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उजाले की ओर --------------- स्नेही मित्रो प्रणव भारती का नमस्कार मुझे याद आ रहा है अपना बचपन जब मैं उत्तर-प्रदेश के एक शहर में रहती थी | जैसे ही जाड़ों का मौसम आता गाड़ियाँ भर-भरकर गन्ने (ईख) कोल्हू पर अथवा ‘शुगर मिलों’में जाने लगतीं|कोल्हू तो बाद में कम ही हो गए थे ,मिलें खुलने के बाद ये ईख मिलों में ही जाती जहाँ मशीनों सेगुड़,शक्कर और चीनी बनाई जाती | कभी कभी तो पूरी-पूरी रात भर ये गन्ने की गाड़ियाँ चलती थीं और हम बच्चे रात में भी अपने झज्जे से लटकते हुए गन्ने की गाड़ियाँ लेजाते हुए और ...और पढ़े

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उजाले की ओर - 32

उजाले की ओर ----------------- स्नेही मित्रो सस्नेह नमस्कार हम सब हैं एक ही दुनिया के बाशिंदे किन्तु भिन्न-भिन्न स्थानों में हमने जन्म लिया ,भिन्न-भिन्न परिवेश में हमारी शिक्षा-दीक्षा हुई इसलिए विचारों में भी परिवर्तन आया |किन्तु एक चीज़ जो चाहे किसी भी स्थान की हो ,किसी भी जाति-बिरादरी की हो ,वह सबमें एकसी है ---और वह है हमारी संवेदना ! ये वे संवेदनाएँ हैं जिनसे मनुष्य में इंसानियत की चमक आती है ,वह दूसरों के दुख: दर्द को भी ...और पढ़े

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उजाले की ओर - 33

उजाले की ओर------------------ स्नेही व आद.मित्रो ! नमस्कार ! ज़िन्दगी कभी उथल-पुथल लगती है ,कभी समाधि लगती है ,कभी रौनक से भरपूर प्यारी लगती है तो कभी काँटों भरी फुलवारी लगती है | किन्तु किसी भी परिस्थिति में ज़िंदगी अपनों के साथ न हो तो सूखी सी लगती है |लगता है, अपने मित्र व संबंधी बहुत दूर हैं उनसे मिलना नहीं हो पाता, कभी पास रहते हुए मित्र व संबंधी से भी मिलना दुष्कर हो जाता है| वास्तव में ज़िंदगी का प्रत्येक लम्हा एक नई कहानी लेकर उपस्थित होता है और हमें ...और पढ़े

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उजाले की ओर - 34

उजाले की ओर --------------- स्नेही मित्रो नमस्कार अपने बच्चों को छोटेपन से ही पढ़ाते रहते हैं ,कोई आए तो उसके सामने तमीज़ से पेश आना,मेहमान के सामने रखे हुए व्यंजनों में हाथ मत मारना,पहले ही खा लो जितना खाना है | अब उस समय आपके लाड़लों का खाने का दिल नहीं होता या उनका मन करता है कि वे उन अतिथि विशेष के सामने ही खाएं ,वे भी उनमें सम्मिलित हों तो क्या कर लेंगे भला ? हम उन्हें तहज़ीब सिखाते-सिखाते थक जाते हैं और वे हमारे भाषण सुन सुनकर खीजते रहते हैं और उन विशेष मेहमानों ...और पढ़े

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उजाले की ओर - 35

उजाले की ओर ---श्रद्धांजलि --- -------------------------------- आएँ हैं तो जाएँगे ,राजा-रंक-फकीर --------------------------------- जीवन के इस किनारे पर आकर उपरोक्त पंक्ति का सत्य समझ में आने लगता है और मन जीवन की वास्तविकता को स्वीकार करने लगता है मन में आता है जाने-अनजाने हुई त्रुटियों की सबसे क्षमा माँग ली जाए ,न जाने कौनसा क्षण हो जब -- जब मनुष्य के हाथ में ही कुछ नहीं तो कर क्या लेंगे ? केवल इसके कि परिस्थितियों में विवेकी बनकर रह सकें फिर भी आसान नहीं होता कुछ परिस्थितियों को सहज ही ले लेना कहीं न कहीं बेचेनी ...और पढ़े

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उजाले की ओर -------------- स्नेही मित्रों प्रणव भारती का नमस्कार मनुष्य-जीवन विधाता के द्वारा विशेष प्रयोजन से बनाया गया है जिसमें न जाने कितनी–कितनी संवेदनाएँ भरी हैं जिनके बिना जीवन के टेढ़े-मेढ़े मार्गों से गुज़रना आसान भी नहीं होता | हमारे समक्ष बहुत से मोड़ आते हैं जिनमें से कभी तो हम सहजता से निकल जाते हैं और कभी खो भी जाते हैं | इन मार्गों में जीवन प्रेम के सहारे से ही अपने गंतव्य पर अग्रसर होता है |हम सभी इस तथ्य से परिचित हैं कि स्नेह के बिना जीवन सूखी हुई डाली के समान रूखा रह ...और पढ़े

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उजाले की ओर - 37

उजाले की ओर ------------------ स्नेही मित्रों नमस्कार मानव-मन बहुत दुखी हो जाता है |कोई बात किसीके विपरीत हुई नहीं कि मन उसको अपने ऊपर ढाल लेगा,दुखी हो जाएगा,इतना दुखी कि कई-कई दिनों तक उस मन:स्थिति से बाहर नहीं निकल पाएगा जिसमें येन-केन वह चला गया है अथवा उसे जाना पड़ा है | एक और बात बहुत ही मनोरंजक बात है ,मन को प्रभावित भी करती है और पीड़ा भी देती है कि हम मनुष्य अपना काफ़ी समय किसी न किसीके बारे में बातें करने में गंवा देते हैं |यदि कुछ सकारात्मक बात हो तब भी ...और पढ़े

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उजाले की ओर - 38

उजाले की ओर ------------------ स्नेही मित्रो नमस्कार बहुत बार मनुष्य के मन में यह संवेदना उभरती है कि वास्तव में जीवन है क्या? क्या जीवन यह स्थिति है जो हम सब हर पल ओढ़ते-बिछाते हैं ?अथवा वे पल हैं जिनमें हम सुख-दुःख के भंवरों में से निकलते हैं ?अथवा जो बीत गया है? या फिर जो आने वाला है ? सच्ची—हम कितनी कितनी अपेक्षाओं,उपेक्षाओं के गहरे सागर से होकर गुज़रते हैं |कभी हँसते हुए ,कभी रोते हुए ,कभी उदास होते हुए या कभी बैचेनियों से भरकर भी | हाथ ही तो नहीं लगती जीवन की परिभाषा ---हम ...और पढ़े

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उजाले की ओर (संस्मरण )

उजाले की ओर (संस्मरण ) -------------- जीवन का एक शाश्वत सत्य ! आने वाला का समय लिखवाकर ही अपने साथ इस दुनिया में अवतरित होता है | जीवन और मृत्यु के बीच कितना फ़ासला है ,कोई नहीं जानता लेकिन जाना है यह अवश्य शाश्वत सत्य है | जाने वाला चला जाता है ,छोड़ जाता है अपने पीछे न जाने कितनी-कितनी स्मृतियाँ ! लेकिन उसके जाने के बाद जो दिखावा होता है ,जो व्यवसाय होता है ,वह कभी-कभी बहुत पीड़ा से भर देता है | जिस घर से कोई जाता है ,वह तो वैसे ही अधमरा सा हो जाता ...और पढ़े

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उजाले की ओर - संस्मरण

उजाले की ओर—संस्मरण -------------------------- स्नेही मित्रों सस्नेह नमस्कार हमारे ज़माने में बच्चे इतनी बड़े नहीं हो जाते थे आप कहेंगे ,उम्र तो अपना काम करती है फिर आपके ज़माने में क्या उम्र थम जाती थी ? नहीं ,उम्र थमती नहीं थी लेकिन वातावरण के अनुरूप सरल रहती थी न तरह-तरह गैजेट्स होते थे ,न टी . वी,यहाँ तक कि रेडियो तक नहीं मुझे अच्छी तरह से याद है जब अपने पिता के पास दिल्ली में पढ़ती थी ,उस समय शायद दसेक वर्ष की रही हूंगी तभी हमारे यहाँ रेडियो आया था छोटा सा ...और पढ़े

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उजाले की ओर - संस्मरण

उजाले की ओर ---संस्मरण ------------------------ कई बार बहुत से लोग बहुत सुंदर हैं ,आकर्षित करते हैं ,मित्रता भी हो जाती है किन्तु कुछ दिनों बाद ही उनकी बातों से मन उचाट होने लगता है |इसका कारण सोचना बहुत आवश्यक है | जिनसे हम इतने अभिभूत हुए कि उन्हें अपना मित्र बना लिया ,जिनसे अपने व्यक्तिगत विचार व समस्याएँ साझा कीं ,उनसे ही मन उचाट क्यों होने लगा आख़िर ! मुझे अपनी दिवंगत नानी की कुछ बातें कई बार याद आने लगती हैं ,वो भी कभी जब कोई स्थिति ऐसी उत्पन्न हो जाए जो हमें असहज करने ...और पढ़े

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उजाले की ओर - संस्मरण

उजाले की ओर--संस्मरण ----------------------- कुछ बातें ऐसी कि साझा करनी ज़रूरी लगती नहीं तो कहते हैं न कि असहज हो जाता है मनुष्य ! अरे ! मित्रों ,आप भी महसूस करते हैं न कि अनमना हो उठता है आदमी | सीधे से कहूँ तो नानी के शब्दों में जब तक मन की बात साझा न करो 'पेट में दर्द' होता रहता है | ख़ैर ,यह तो रही मज़ाक की बात जो मुझे अपनी नानी की याद आने से अचानक स्मृति का द्वार खोल घुसपैठ कर बैठी थी | लेकिन सच यह है कि कुछ बातें साझा करनी ...और पढ़े

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उजाले की ओर - संस्मरण

उजाले की ओर---संस्मरण ------------------------ नमस्कार स्नेही मित्रो ! अब बस पुरानी पुरानी बातें ही याद आती हैं | हो सकता है उम्र का तक़ाज़ा हो या फिर दिमाग की कोई खुराफात भी हो सकती है |पता नहीं लेकिन कुछ तो है जो भीतर ही भीतर छलांगें मारता पता नहीं कहाँ पहुँच जाता है | तो आज बात करती हूँ तब की --जब किशोरी थी | कत्थक सीख रही थी ,शास्त्रीय संगीत भी किन्तु गंभीरता कहीं नहीं | लगता जैसे हम बड़े तीसमारखाँ हैं ,अपने जैसा कोई नहीं |पता नहीं लोग भी बड़ी प्रशंस करते रहते ...और पढ़े

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उजाले की ओर - संस्मरण

उजाले की ओर ---संस्मरण -------------------------- वह हवाई-यात्रा बहुत अजीब थी ,अजीब क्या !कभी सोचा न था कि इतने ऊपर आकाश में कोई इस प्रकार की सोच या फ़ीलिंग भी हो सकती है ! बात तो कई वर्ष पुरानी है | अगरतल्ला ,आसाम से एक निमंत्रण आया ,कवि-सम्मेलन का ! ख़ुशी इस लिए भी अधिक हुई कि बहुत दिनों से आसाम देखने का मन था | पति अपने काम से जा चुके थे लेकिन इमर्जैंसी में गए थे | वैसे भी काम से जाने पर कभी मैं उनके साथ नहीं गई थी लेकिन जिन मित्रों ने आसाम देखा ...और पढ़े

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उजाले की ओर - संस्मरण

उजाले की ओर ---संस्मरण -------------------------- मित्रों ! सस्नेह नमस्कार ! बार मैंने आप सबसे कोलकता की उड़ान में बैठकर मेडिटेशन की बात साझा की थी | जीवन में थोड़ा नहीं ,बहुत कुछ ऐसा होता है जो ताउम्र नहीं छूटता | आप वहाँ पर सशरीर उपस्थित न रहते हुए भी उससे जुड़े ही तो रहते हैं | नहीं ,मैंने ऐसा बिलकुल भी नहीं कहा कि हर सामय जुड़े रहते हैं ! मैं कहना चाहती हूँ कि किसी विशेष परिस्थिति में जब भूत का कोई एक भी पृष्ठ खुल जाए तो स्मृतियाँ ऐसे निकलकर मन की ...और पढ़े

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उजाले की ओर - संस्मरण

उजाले की ओर ---संस्मरण ------------------------- स्नेही मित्रो ! सस्नेह नमस्कार बेतरतीब सी ज़िंदगी को तरतीब में लाने के लिए न जाने कितने -कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं ,फिर उन्हें सुखाने पड़ते हैं और फिर सेकने या फिर तलने !तभी तो स्वादिष्ट पापड़ का स्वाद लिया जा सकता है | न--न --दोस्तों मैं आपसे सचमुच इतनी कसरत करने के लिए नहीं कह रही हूँ लेकिन आप सब ही इस बात से भली-भाँति परिचित हैं कि बिना हाथ-पैर,दिमाग हिलाए कुछ नहीं मिलता | यह जीवन का अंदाज़ है यानि शैली !कोई भी मनुष्य --अरे ! मनुष्य ही ...और पढ़े

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उजाले की ओर---संस्मरण

उजाले की ओर---संस्मरण ------------------------ स्नेही मित्रों ! सस्नेह नमस्कार जीवन कहानियों से भरा पड़ा है --नहीं ,केवल मेरा ही नहीं आपका भी --यानि सबका ! उस दिन की बात है --अरे हाँ, ,आपको कैसे पता भला किस दिन की ? मैं बताती हूँ न ,ध्यान से सुनना ! कॉलेज में पढ़ाने वाली अम्मा की कितनी सारी मित्र थीं ,अम्मा को सब खूब स्नेह करतीं कारण था अम्मा का सरल ,सीधा होना उनके पास जो कुछ भी हो ,पहले सबका है ,बाद में उनका उनकी सहेलियाँ जहाँ उनको प्यार करतीं ,वहीं उनसे दुखी ...और पढ़े

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उजाले की ओर---संस्मरण

उजाले की ओर---संस्मरण ------------------------ नमस्कार स्नेही मित्रों ! 'नन्ही-नन्ही बूंदियाँ रे ,सावन का मेरा झूलना ---' हम जब छोटे थे सावन के माह के आते ही उत्तर-प्रदेश के जिस घर में झूले पड़े देखते ,मचल ही तो जाते ,हमारे लिए भी झोला डालो | किसी किसी के घर में तो महीने भर पहले झूले पड़ जाते ,दिन और रात के खाने के बाद परिवार की लड़कियाँ,बहुएँ गीत गाते हुए झूले की पैंग बढ़ातीं | जिस घर के आँगन में या बगीचे में मज़बूत ,विशाल पेड़ होते ,उस घर में उन मज़बूत ...और पढ़े

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उजाले की ओर ---संस्मरण

स्नेही मित्रों ! नमस्कार बरसात का पानी गिरते देखकर कुछ बातें सहसा आने लगती हैं | बचपन की बातें --ज़िद करके नाव बनवाने की फिर उस नाव को बरसात के सहन में गढ़े में भरे पानी में चलाने की और नाव के पिचक जाने के बाद उस गढ़े में छपाछप कूदने की ,कपड़े गंदे करने की फिर भीगे कपड़ों को बदलने के लिए कहे जाने पर उन्हीं गीले कपड़ों में रहकर सड़क पर जाने की ज़िद ! साठ/पैंसठ वर्ष पूर्व लड़कियों को ,वो भी उत्तरप्रदेश की लड़कियों को कहाँ छूट मिलती थी यह सब करने की ...और पढ़े

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उजाले की ओर---संस्मरण

अनेही मित्रों को स्नेहमय नमस्कार आशा है ,सब स्वस्थ,आनंदित हैं | आज आप सबसे एक अलग बात साझा करती हूँ ,लगता है आप मुस्कुराए बिना नहीं रह पाएँगे | घटना लगभग 35/38 वर्ष की है | मैं गुजरात विद्यापीठ से पी.एचडी कर रही थी | उन दिनों हम आश्रम-रोड़ पर ही रहते थे | घर से विद्यापीठ लगभग डेढ़-एक कि .मीटर की दूरी पर होगा | युवावस्था थी,इतना चलने में कोई ख़ास परेशानी न होती | ख़ास इसलिए लिखा कि होती तो थी परेशानी लेकिन युवावस्था के कारण बहुत अधिक नहीं क्योंकि परिवार होने के कारण ...और पढ़े

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उजाले की ओर---संस्मरण

उजाले की ओर ----संस्मरण ------------------------- सस्नेह नमस्कार मित्रों रहे हैं कैसा समय है ! आज के युग में एक हाथ दूसरे पर भरोसा नहीं कर पा रहा | आख़िर क्या कारण है? हम सभी इस दुनिया के बाशिंदे हैं ,हमें इसी समाज में रहना है ,हमें इन्हीं परिस्थितियों में भी रहना है ---फिर ? प्रश्न यह है कि हम सहज क्यों नहीं रह पाते ?क्योंकि एक होड़ हमारे भीतर पनपती रहती है | हम भी दूसरे के दृष्टिकोण से देखने लगते हैं| कोई हर्ज़ नहीं ,दूसरे की बात पर ध्यान देना यानि उसका सम्मान करना ...और पढ़े

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उजाले की ओर ---संस्मरण

उजाले की ओर ---संस्मरण ------------------------ आज़ादी की 75 वीं सालगिरह हम सब बड़े ज़ोर-शोर से झंडे लेकर खड़े हो जाते हैं हर चौराहे पर छोटे-छोटे बच्चों के हाथ में झंडे देखकर उन्हें खरीदकर उनके साथ या केवल झंडे के साथ अपनी तस्वीरें सोशल-मीडिया पर अपलोड करके हम देश भक्त बन जाते हैं लेकिन एक दिन ही क्यों ?हमारा भारत ऐसा हो कि हम हर पल ही आज़ादी को महसूस करें ,उसे जीएँ याद कर सकें अपने उन देश के पहरेदारों को जो हमारी सीमा पर चौबीसों घंटे तैनात रहते हैं जीने और ...और पढ़े

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उजाले की ओर--संस्मरण

उजाले की ओर--संस्मरण ---------------------- नमस्कार स्नेही मित्रों मैं अधिकतर अपने ज़माने यानि 50 60 वर्ष पूर्व की बातें साझा करती हूँ वैसे मैं आज भी हूँ तो ये ज़माना भी हमारा ही हुआ न ! हमारी पीढ़ी ने न जाने कितने-कितने बदलाव देखे जिनके लिए कभी-कभी आज भी आश्चर्य होता है क्योंकि हम स्वयं इसके साक्षी हैं तो स्वाभाविक रूप से तुलना भी हो जाती है और हमारे आश्चर्य को स्वीकारोक्ति भी मिल जाती है हमने अपने बालपन में जिन चीज़ों,बातों की कल्पना की ,वे केवल उड़ान भर थीं लेकिन आज हम उन्हें जी ...और पढ़े

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उजाले की ओर ---संस्मरण

उजाले की ओर ---संस्मरण ------------------------ नमस्कार स्नेही मित्रों ! का काफी बड़ा परिवार है | सब एक-दूसरे के सुख-दुख में शरीक होते | घर में तीन भाई ,एक बहन ,माता-पिता ,संदीप के दादा-दादी ! इतने बड़े परिवार का काम करने में उसकी माँ बुरी तरह थक जातीं किन्तु वे सबकी आवश्यकताएँ पूरी करतीं | उन्हें बड़ी तृप्ति मिलती जब सबको संतुष्ट देखतीं | समय की गति के साथ बच्चे बड़े हुए | बहिन बड़ी थीं ,उनकी शादी हो गई | संदीप के बड़े भाई भी नौकरी पर लग गए | पिता की अपनी निजी ...और पढ़े

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उजाले की ओर----संस्मरण

उजाले की ओर ----संस्मरण ------------------------- नमस्कार स्नेही मित्रों ! ज़िंदगी रूठती,मानती-मनाती चलती है पर,चलती तो रहती ही है न चले तो ज़िंदगी शब्द का अर्थ ही कहाँ रह जाता है ? सपनों की सी डगर पर चलती ज़िंदगी को ताप की वास्तविकता को झेलने के लिए आ खड़ा होता है इंसान ! होता क्या है ,वह मज़बूर होता है,ताप झेलने के लिए क्योंकि मनुष्य का प्रारब्ध उसके साथ बंधा रहता है | मुझे अपने बचपन की बहुत सी बातें याद आने लगती हैं ,ऐसा लगता है मानो अभी सब-कुछ मेरे सामने चित्र की भाँति चल रहा हो ...और पढ़े

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उजाले की ओर --संस्मरण

उजाले की ओर --संस्मरण ----------------------- नमस्कार मित्रों ! झरोखों से झाँकता किसका जीवन किस ओर बहा ले जाए पता ही नहीं चलता | सच ही तो है,हम कहाँ जानते हैं किस डगर पर हैं और न जाने किस डगर पर पहुँच जाते हैं ? दरअसल,हम अपने ही मार्ग में खोने लगते हैं | अटकता,भटकता जीवन झरोखे से झाँककर हमें रोशनी की छाजन सी लकीर दिखाता है | किन्तु हम उसे नज़रअंदाज़ कर जाते हैं | अपने ही मार्ग में भटकते रहते हैं और फिर खो जाते हैं | जीवन की यही बात बड़ी मजेदार है ...और पढ़े

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उजाले की ओर---संस्मरण

उजाले की ओर --संस्मरण ----------------------- नमस्कार मित्रों हमें बहुत कुछ देता है इसमें कोई संशय नहीं है | लेकिन हर देने के पीछे लेना भी तो होता है | जैसे हम समाज में बात करते हैं कि लेना-देना दोनों साथ होते हैं यानि सामाजिक कार्यों में एक ही व्यक्ति नहीं होता जो केवल देता ही रहता है ,वह लेता भी है | और यही जीवन को जीने का तरीका है | हम कोई खरीदारी करने जाते हैं तो वहाँ हम पैसा देते हैं और अपनी इच्छित अथवा अपनी आवश्यकतानुसार वस्तु खरीद लेते हैं| ...और पढ़े

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उजाले की ओर----संस्मरण

स्नेही मित्रों नमस्कार इस ज़िंदगी में हम कितनों से मिलते हैं ,कितनों से हैं | कभी -कभी ऐसा लगता है कि ज़िंदगी एक रेल जैसी है और हम उसके एक कंपार्ट्मेंट में बैठे हुए मुसाफिर ! स्टेशन पर गाड़ी रुकती है ,कुछ यात्री उतरते हैं ,कुछ नए चढ़ते हैं और आगे की यात्रा आरंभ हो जाती है | इसी यात्रा में न जाने कितने अपने बन जाते हैं ,कभी-कभी तो इतने अपने कि लगता है कि हम उनसे और वे हमसे कभी दूर नहीं होंगे | लेकिन ---जीवन तो यात्रा है ,कभी न कभी उसका अंत होना ...और पढ़े

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उजाले की ओर-----संस्मरण

उजाले की ओर-----संस्मरण ---------------------------- सस्नेह नमस्कार स्नेही मित्रों कुछ पाने -खोने का नाम जीवन सिमटने-बिखरने का नाम है जीवन इस जीवन में हम कितनी बार कुछ पाते-खोते हैं ,सिमटते-बिखरते हैं --हमें ही पता नहीं चलता | जैसे कोई पवन उड़ाकर ले जाती है और हम किसी पेड़ की टहनी पर किसी कटी पतंग सी लटके रह जाते हैं | या फिर कोई कॉपी के फटे पन्ने की तरह से अचानक आई आँधी सी पवन सुदूर किसी इलाक़े में उड़ाकर ले जाती है | जहाँ हमें अपना पता ही नहीं लगता ...और पढ़े

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उजाले की ओर --संस्मरण

उजाले की ओर ----संस्मरण ------------------------- नमस्कार स्नेही मित्रों कैसे हैं आप सब बहुत अच्छे होंगे | कभी-कभी लगता है कि आप सबसे परिचित हूँ मैं | जैसे किसी अदृश्य रिश्तों की डोरी से जुड़ जाना और महसूस करना कि कहीं न कहीं हम सब जुड़े हुए हैं | शायद यह प्र्कृति का ही संकेत होता है कि हमें जोड़कर रखती है | दुनिया के एक कोने में कोई होता है ,दूसरे में कोई लेकिन हम जुड़ ऐसे जाते हैं जैसे एक ही पिता की संतानें हों | कहीं न कहीं यह सही भी है ,यदि हम ...और पढ़े

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उजाले की ओर ---संस्मरण

उजाले की ओर ---संस्मरण ------------------------ सस्नेह नमस्कार मित्रों जैसे-जैसे नई-नई चीज़ें ईज़ाद हो रही हैं हम बहुत कुछ नया जान रहे हैं लेकिन पशोपेश में भी पड़ते जा रहे हैं | हम जैसी उम्र के लोग ताउम्र कलम हाथ में लिए रहे या यों कह लें कि माँ शारदा ने हमारे हाथों में कलम पकड़ाए रखी व आशीष दिया | अब लिखा किस स्तर का ,वह तो जो पढ़ता है ,वही बता सकता है |यानि पाठक वर्ग ही न्याय कर सकता है | हर माँ को अपना बच्चा प्यारा लगता है ...और पढ़े

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उजाले की ओर-----संस्मरण

उजाले की ओर --संस्मरण ----------------------- नमस्कार मेरे सभी स्नेही मित्रों को पता है ,जब कभी युवाओं से मुखातिब होते हैं तो हमें लगता है हम फिर से युवा हो गए हैं | किसी भी परिस्थिति में आपके बुज़ुर्गों को आपके साथ की ज़रूरत होती है | चाहे वह सुख हो अथवा दुख ! बुज़ुर्ग अपने युवाओं से कोई भी बात साझा करके बड़े आनंदित होते हैं | उन्हें लगता है कि वे अपने अनुभवों से अपने बाद की पीढ़ी को कुछ दे रहे हैं | साथ ही युवा पीढ़ी से वे बहुत कुछ सीखते हैं और ...और पढ़े

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उजाले की ओर----संस्मरण

उजाले की ओर----संस्मरण ------------------------ नमस्कार स्नेही मित्रों ज़िंदगी गलियों के अनुभव कुछ खट्टे,कुछ मीठे तो कुछ कड़वे भी ! लेकिन हर दिन नए अनुभव होते हैं और वे हमें कुछ न कुछ तो देकर जाते ही हैं | ये अनुभव केवल मेरी ही थाती थोड़े ही हैं ,ये हम सबको मिलते हैं | एक नए दिन के उजाले से दिन की रोशनी धरती से लेकर मन के कोने-कोने में पसरती है और साँझ होते-होते न जाने कितनी घटनाएँ और उनमें छिपे कितने अनुभवों से हमें सराबोर कर जाती है| बात बड़ी ...और पढ़े

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उजाले की ओर ---संस्मरण

उजाले की ओर --संस्मरण ------------------------ स्नेही साथियों सस्नेह नमस्कार मैंने आपसे चर्चा की थी कि अपनी युवावस्था में मैं एक बार अपने ममेरे मामा जी के यहाँ अलीगढ़ गई थी | जहाँ बच्चे हर रोज़ गाँव में जाकर प्रकृति के सानिध्य में खेलते-कूदते | वे पेड़ों पर चढ़कर खूब मस्ती करते और पूरा आनंद लेते | मैं घर पर ही रहती लेकिन एक दिन ऐसा आया जिसको मैं आजीवन नहीं भुला सकूँगी | अलीगढ़ के पास ही कोई स्थान है 'किन्नौर' जहाँ पर गंगा बहती हैं | एक दिन सिंचाई-विभाग में एक्ज़ीक्यूटिव इंजीनियर के पद पर ...और पढ़े

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उजाले की ओर ---संस्मरण

उजाले की ओर ---संस्मरण ----------------------- न जाने क्यों मुझे सदा यही लगता रहा कि हमारा जीवन कहीं न कहीं एक-दूसरे से ऐसे जुड़ा है जैसे नींद व स्वप्न ,बूदें व माटी की महक ! चिड़ियों की चहक ---या कुछ भी वो ,जो एक दूसरे से ऐसे संबंधित है जिनके बिना कोई कल्पना नहीं हो पाती | यूँ ही कोई मिल गया था ,सरे राह चलते-चलते --- बहुत अच्छा गीत है किन्तु इसमें संसारी मुहब्बत है ,प्रीत है |इसमें भी कोई हर्ज़ नहीं ,यह भी जीवन के लिए आवश्यक है | मैं बात कर रही ...और पढ़े

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उजाले की ओर--संस्मरण

उजाले की ओर ---संस्मरण -------------------------- समय अपनी धुरी पर चलता रहता है हमसे कुछ पूछे ,बिना बताए ---अब सोचने की बात है कि हम कितनी चीज़ो पर अपना अधिकार समझते हैं | भाई ! हक है हमारा ,समझना भी चाहिए फिर समय भी तो हमारा है और हमें कुछ भी बिना बताए ,आगे चलता ही रहता है | न जाने कहाँ कहाँ पहुँचा देता है |हम समय के मोड़ों को पहचान कहाँ पाते हैं ? बस,एक फिरकनी बनकर उसके पहिए में चक्कर काटते रह जाते हैं | मित्रों ! सच -सच बताइएगा ,कभी ऐसा ...और पढ़े

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उजाले की ओर----संस्मरण

उजाले की ओर ----संस्मरण ----------------------- नमस्कार मित्रों ! हमारी पीढ़ी वह पीढ़ी है जिसने न जाने कितने बदलाव देखे हैं |हमारे घरों में बिजली भी तब आई थी जब हमारा जन्म हुआ था |पानी के टैप लगे थे ,इससे पहले तो पानी खींचकर पीना पड़ता था |हमारे बचपन में जब टैप लगने शुरू हुए तब भी हाथ के नल लगे ही रहे जिनसे थोड़ा खींचने पर इतना ठंडा और मीठा पानी निकलता था कि वास्तव में प्यासा तृप्त हो जाता था जितनी रेफ्रीजेरेटर के पानी से तृप्ति नहीं होती | मेरे जन्म ...और पढ़े

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उजाले की ओर ----संस्मरण

उजाले की ओर ---संस्मरण ----------------------- नमस्कार स्नेही साथियों चार रास्ते खड़े हुल्लड़ मचाते लड़कों से एक बुज़ुर्ग ने पूछा ; "बेटा ! ये एड्रेस बता पाओगे ?" कुछ अधिक ही सुसंस्कृत ,सभ्य थे वे शायद ,चुपचाप सिगरेट का धुआँ उड़ाते रहे | बुज़ुर्ग ओटोरिक्षा में थे ,रिक्षा वाला भाई भी खासी उम्र का ,बेचारा जगह -जगह अपनी सवारी को घुमा रहा था | मालूम ही नहीं चल रहा था रास्ता ,वह कई स्थानों पर रुककर पूछ रहा था | एक फल बेचने वाला वहाँ से गुज़र रहा था ,वह रुका और पते का ...और पढ़े

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उजाले की ओर ---संस्मरण

उजाले की ओर ---संस्मरण ------------------------- स्नेही साथियों सस्नेह नमस्कार हमारी दुनिया इतने भिन्न प्रकार ले लोगों से भरी पड़ी है | कोई पैसे से अमीर है तो दिल से गरीब ! कोई दिल से अमीर है तो पैसे से मार खा जाता है | मित्रों ! आप सब यह भली प्रकार जानते हैं ,अनुभव करते हैं कि पेट से बड़ी कोई समस्या नहीं | हाँ जी ,ठीक पढ़ रहे हैं आप मैं पेट ही कह रही हूँ जिसमें दाना यानि अन्न न पड़े तो शरीर काम ही नहीं करता | बताइए,कैसी मुसीबत है कि पेट में ...और पढ़े

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उजाले की ओर ---संस्मरण

प्रिय साथियों स्नेह वंदन कुछ यादें परछाईं सी साथ ही लगी रहती चाहे उनसे कितना भी पीछा छुड़ाने का प्रयास करो ,नहीं छुट पातीं | मन में जैसे आलथी-पालथी मारकर बैठ जाती हैं और कभी भी सिर उठाकर खड़ी हो जाती हैं |कुछ यादें प्रसन्नता देती हैं तो मुख पर मुस्कान चिपक जाती है लेकिन वे यादें जो आँखों में पानी भर लाती हैं ,बड़ी सताती हैं | कभी-कभी तो लगता है दम ही घुट जाएगा | स्मृतियों के सिरहाने खड़े दिनों की सिहरन कुछ ऐसी होती है जैसे सर्दी से चढ़कर आया बुखार ! ...और पढ़े

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उजाले की ओर--संस्मरण

नमस्कार स्नेही मित्रों जीवन की गाड़ी अद्भुत --कभी भागे ,कभी खिचर-खिचर चले कभी बिलकुल बंद होकर अड़ जाए | फिर उसे चलाने के लिए मशक्कत करनी पड़ती है और फिर भी वह थोड़ी दूर जाकर ठिठक जाए तो आखिर क्या करे इंसान ! जी,सभी की गाड़ी रुकती,थमती ,ठिठकती चलती है | कभी उसे धक्का मारना पड़ता है फिर गैराज में भेजना पड़ता है | हमारे चिंतन का भाग एक गैराज ही तो है जो हमारे जीवन की ठिठकी हुई गाड़ी को चिंतन से सफ़ाई करके आगे बढ़ने में मदद करता है | कभी कभी जब ...और पढ़े

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उजाले की ओर ----संस्मरण

उजाले की ओर ---संस्मरण ------------------------ नमस्कार स्नेही साथियों इस जीवन -संग्राम में डूबते-उतरते हुए हम कभी निराश होकर टूटने की कगार पर आ जाते हैं | यह जीवन हमें न जाने कितनी बार इस कगार पर ला खड़ा करता है और फिर वहाँ से उठाकर फिर से जूझने के लिए छोड़ देता है | मनुष्य का स्वभाव है ,वह मुड़-मुड़कर देखता है जितना वह पीछे मुड़कर देखता है ,उतना ही अधिक कमज़ोर पड़ता जाता है | कभी परिस्थितियाँ उसे कमज़ोर बना देती हैं और वह अपने सही निर्णय नहीं ले पाता | इसका ...और पढ़े

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उजाले की ओर -----संस्मरण

उजाले की ओर ---संस्मरण ------------------------ नमस्कार स्नेही मित्रों हर दिन एकसा नहीं बीतता न कोई बदलाव ,कोई न कोई समस्या जीवन में न आए ,यह संभव ही नहीं है | इन ऊँचे-नीचे ग्राफ़ पर जीवन की गाड़ी चलती ही रहती है | युवावस्था में फिर भी किसी न किसी प्रकार मनुष्य अपने दिन गुज़ार लेता है लेकिन उम्र के एक कगार पर आकर वह किसी सहारे की तलाश करता ही है | एक बड़ी उम्र में किसी न किसी का सहारा उसे लेना ही पड़ जाता है | वह मन के साथ तन से भी शिथिल होता ...और पढ़े

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उजाले की ओर----संस्मरण

उजाले की ओर ----संस्मरण ------------------------ स्नेही मित्रों नमस्कार 'जीवन एक पहेली सुलझाओ वह उलझे ,है रहस्यमय कितनी !!' इन पंक्तियों की रचयिता हैं -- 'स्व. श्रीमती दयावती शास्त्री' मेरी माँ का नाम है | जब छोटी थी तब उनकी लिखी हुई बातें या तो समझ नहीं आती थीं अथवा ध्यान भी नहीं देती हूंगी | दरअसल ,जब तक हमारे पास कोई होता है तब तक उसका मूल्य हमें पता ही नहीं चलता | हाँ,जब वह नहीं रहता तब उसकी बातें स्मृति खंगालती भी हैं और हमें याद भी आती हैं | हम उनकी कही गई ...और पढ़े

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उजाले की ओर ---संस्मरण

उजाले की ओर ---संस्मरण ------------------------ कोई भी बात जब यादों में घुल-मिल जाती तो संस्मरण बन जाती है और हमें झकझोरती रहती है | मन करता है ,इसे मित्रों के साथ साझा किया जाए | बहुत दिनों की बात है ,याद नहीं कितने --लेकिन काफ़ी वर्ष हो गए | हम लोग एक बार बैंक में किसी काम के लिए गए थे | वहाँ एक वृद्ध सज्जन भी आए थे | वे काफ़ी कठिनाई से चल रहे थे| उनके हाथ-पैर भी काँप रहे थे |हाथ में छ्ड़ी थी जिसके सहारे वे बड़ी मुश्किल से सीएचएल पा रहे थे ...और पढ़े

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उजाले की ओर---संस्मरण

उजाले की ओर --संस्मरण -------------------------- नमस्कार स्नेही मित्रों ज़िंदगी झौंका हवा का का संगीत है ज़िंदगी खुशियों की महफ़िल,गा सकें तो गीत है | हर रोज़ बदलती हुई ज़िंदगी को किस कोण से देखा जाए ,यह तय नहीं किया जा सकता | हर रोज़ ही क्या ,हर पल ही बदलाव होता है ज़िंदगी में ! क्या कभी हममें से ही कुछ मित्र महसूस नहीं करते कि ज़िंदगी एक दौड़ है ,एक ऐसी दौड़ जिसमें हम सब ही आगे निकलना चाहते हैं | जो पीछे रह गया ,वो गया काम से ! ...और पढ़े

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उजाले की ओर---संस्मरण

उजाले की ओर --संस्मरण ------------------------ जीवन में एक समय होता जब हम बच्चे होते हैं ,अपनी अठखेलियों से अपने परिवार का ,अपने माता-पिता का ध्यान आकर्षित करते हैं ,उनका प्यार,दुलार पाते है और फिर बड़े होने की प्रक्रिया में सहजता से आगे बढ़ते जाते हैं |दरअसल ,इसमें हमारा कोई हाथ नहीं होता ,ये सब चीज़ें प्राकृतिक हैं जो प्रत्येक मनुष्य के साथ बड़ी ही सहजता से घटित होती हैं | जीवन की प्रत्येक डगर हमें आगे बढ़ाती है ,नए संदेश देती है ,नए मार्गों की ओर प्रेरित करती है | हमें लगता है ,हम सब कुछ करते ...और पढ़े

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उजाले की ओर---संस्मरण

उजाले की ओर ---संस्मरण ------------------------ नमस्कार स्नेही मित्रों ! नहीं जानती मेरे मित्र कहाँ रहते हैं ,यह भी नहीं जानती कि वे मेरी बातों से कितना इत्तेफ़ाक रखते हैं | यह भी नहीं मालूम कि वे मेरे लेखन को कितनी रुचि से पढ़ पाते हैं लेकिन एक बात ज़रूर है कि मुझे महसूस होता है कि वे सब मेरे अपने परिवार का हिस्सा हो गए हैं | जीवन में बहुत सी बातों का हमें कोई ज्ञान नहीं होता ,न ही पता चलता है कि हम किससे कितने बाबस्ता हैं किन्तु धरती पर जन्म लेते ही ...और पढ़े

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उजाले की ओर --संस्मरण

उजाले की ओर --संस्मरण --------------------------- मित्रों को बसंत की स्नेहिल शुभकामनाएँ ------------------------------------ बसंत ऋतु आई ,मन भाई फूल फुलवारियाँ टेसू फूले ,अंबुआ मौले ,चंपा,चमेली सरसों फूले फूट रही कचनारियाँ---- भँवरे की गुंजन मन भाए ,ऋतु बासन्ती मन हर्षाए आओ सब मिल शीष नवा लें,स्वर की साधना कर हर्षा लें पुष्पित हैं अमराइयाँ ---- (माँ) स्व.दयावती शास्त्री माँ मन में हैं ,वो ही मार्ग-दर्शन करती हैं| आँसुओं की लड़ी को अनदेखे ही अपने आँचल में छिपा मुख पर मुस्कान बिखरा देती हैं | माँ को विशेष रूप से मैं शायद ही कभी याद कर पाती हूँ ...और पढ़े

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उजाले की ओर ---संस्मरण

उजाले की ओर --संस्मरण ---------------------- नमस्कार स्नेही मित्रो ! धूप-छांह खिलती मुस्कुराती ज़िंदगी में बहुत से क्षण प्यार -दुलार भरे आते हैं तो बहुत से कड़वे-कसैले भी | कभी हम इनकी वास्तविकता को समझ पाते हैं तो कभी इनके इर्द-गिर्द घूमते रह जाते हैं | समझ ही नहीं पाते कि हम किन उलझनों में हैं ? हमारे आगे का मार्ग किस ओर है ? हम ज़िंदगी की सुबह को शाम समझकर कभी बियाबानों में खोने लगते हैं तो ज़िंदगी की शाम को ही रात बनाकर काल्पनिक सितारों के साथ बतियाने लगते हैं | होते कहाँ ...और पढ़े

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उजाले की ओर---संस्मरण

उजाले की ओर --संस्मरण ------------------------ नमस्कार स्नेही मित्रों ! बहुत ज़रूरी लगता है इस में प्रेम बाँटकर जाना | प्रेम ,स्नेह वह संवेदना है जिसके बिना जीवन कुछ है ही नहीं | इस तथ्य से सब वाकिफ़ हैं कि प्रेम के अतिरिक्त केवल किसी और भावना से जीवन की गाड़ी नहीं चल पाती | प्रेम के दो मीठे बोलों में सामने वाले के प्रति ईमानदार परवाह हो तो मनुष्य सूखी रोटी खाकर भी मस्ती से जी सकता है | यदि सोने के थाल में सौ व्यंजन भी क्यों न हों और परोसने वाला या खिलाने वाला ...और पढ़े

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उजाले की ओर --संस्मरण

उजाले की ओर ---संस्मरण ----------------------- नमस्कार स्नेही मित्रो बहुत सी चीज़ें होती हैं रसभरी यानि रस से भरी और सी बातें भी तो होती हैं ऐसी रस से भरी जो भूले नहीं भूलतीं और यदि इन दोनों का समिश्रण हो जाए तो क्या ही कहने ! वैसे भी बामन कुल में जन्म लेकर रसभरी की आदत से सराबोर हम जैसे लोग किसी भी उम्र में इस रसभरी को ढूँढने के लिए ऐसे लपकते हैं कि क्या बताएँ और जब नहीं मिलती तो ऐसे बौखला उठते हैं जैसे मृग अपनी क्स्तूरी को तलाशता हुआ इधर-उधर लपकता है और जब कस्तूरी ...और पढ़े

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उजाले की ओर --संस्मरण

उजाले की ओर --संस्मरण ------------------------- नमस्कार स्नेही मित्रो बहुत जूझना पड़ता है अक्सर जीवन से लेकिन उसके लिए कोई कट नहीं है | जो करना होता है ,उसके लिए झूझना ही है ,बिना अपने जीवन का युद्ध स्वयं लड़े बिना कुछ हाथ में आता ही नहीं | और जीवन है कि आगे बढ़ता ही रहता है ,ज़रा सा भी तो नहीं रुकता | साँस लेने की फुर्सत ही नहीं देता |कारण यही है कि यह जीवन है --- जीवन न हो तो कुछ भी कहाँ है ? न लड़ाई ,न झगड़े ,न ही ईर्ष्या ,न ही क्रोध और न ...और पढ़े

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उजाले की ओर ---संस्मरण

उजाले की ओर ---संस्मरण ----------------------- नमस्कार मित्रों जीवन के सफर मे राही मिलते हैं बिछुड़ जाने को ---लेकिन ज़रूरी कि वे आहें और आँसू ही लेकर बिदा हों | आए हैं तो जाएँगे राजा ,रॅंक ,फकीर ---क्या सच्ची बात कह गए कबीर ! एक ऐसा जुलाहा जो जीवन की चादर बुनते -बुनते इतनी बड़ी-बड़ी बातें कह गया कि सच में उन्हें हर पल नमन बनता है | हम तो शिक्षित हैं ,अपने आपको आधुनिक भी कहते है और अपने गानों के ढ़ोल भी खुद पीटते हैं किन्तु ज़रा सी परेशानी होने पर हम अपनी वास्तविकता पर आ जाते हैं ...और पढ़े

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उजाले की ओर--संस्मरण

उजाले की ओर ---संस्मरण ------------------------- नमस्कार स्नेही मित्रो कुछ बातें अचानक ऐसे याद आ जाती हैं कि हँसी रोकनी हो जाती है | वैसे कहा तो यह जाता है कि बेबात हँसने वाले मूर्ख होते हैं | यदि ऐसा है तो रोते हुए ,गमगीन चेहरों के लिए 'लाफ़िंग-क्लब'क्यों बनाए जाते हैं ? इसीलिए तो कि भई हँस लें और अपने चेहरों को लटकाकर बिना बात ही खुद को और अपने से जुड़े हुओं की नाक में दम न करते रहें | मित्रों ! क्या कभी महसूस किया है कि हमारा गुस्सा इतनी जल्दी सिर पर चढ़कर बोलने लगता है ...और पढ़े

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उजाले की ओर --संस्मरण

स्नेही मित्रों नमस्कार 'मैं ज़िंदगी का साथ निभाता चला गया ' बड़ा खूबसूरत गीत है , साथ निभाना तो ही | जाएँगे कहाँ ? सुबह की निकलती लालिमा से लेकर शाम की डूबती किरणों तक ,ज़िंदगी का साथ निबाहना ही होता है | कितनी-कितनी चिंताएँ ,कठिनाइयाँ ,परेशानियाँ आती हैं लेकिन चल,चलाचल --- बेशकीमती लम्हों का खजाना है ये ज़िंदगी ,आना और जाना है ये ज़िंदगी | सब जानते हैं ,मैं कुछ खास तो बता नहीं रही हूँ |लेकिन बात करने का मन होता है ऐसी बातों पर जो हमें एक अनुभव देकर जाती हैं | ज़िंदगी की सदा एक ...और पढ़े

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उजाले की ओर ---संस्मरण

उजाले की ओर --संस्मरण ------------------------ नमस्कार मेरे स्नेही मित्रो एक पल हवा के झौंके सी ज़िंदगी ,हर पल अहं बोध करती ज़िंदगी | कभी हरे-भरे पत्तों से कुनमुनी धूप सी छनकर आती ज़िंदगी ! कभी सौंधी सुगंध सी मुस्काती ,बल खाती ज़िंदगी ----अरे भई ! हज़ारों रूप हैं इस एक ज़िंदगी नामक मज़ाक के ! हाँ जी कभी मज़ाक भी तो लगती है ज़िंदगी ,कभी हास लगती है और कभी परिहास भी ! समय दिखाई नहीं देता लेकिन दिखा बहुत कुछ देता है ,ज़िंदगी ही तो है जो सपने सी दिखती है ,बनती - बिगड़ती है फिर ग्राफ़ न ...और पढ़े

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उजाले की ओर --संस्मरण

स्नेही मित्रो नमस्कार आशा है सब प्रसन्न ,मंगलमय हैं | कभी-कभी हम जैसे नौसीखियों से बड़ी गड़बड़ी हो जाती | एक तो टाइप करना तक नहीं आता था ,आता क्या नहीं था ,हमारे ज़माने में सिखाया ही नहीं जाता था | तो बताइए ,क्या करते भला ? एक और भी बात थी ,बड़ी अंतरंग ---- पढ़ाई का शौक किसे था ! वो बात और है कि माँ वीणापाणि को हमारे नाम के आगे डॉ.सजवाना था| वैसे ,आज का जो माहौल है उसे देख-जानकर तो ऐसा लगता है ,बेकार ही मज़दूर बनकर हम जैसों ने घर -बाहर,बच्चे -गृहस्थी संभालते हुए ...और पढ़े

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उजाले की ओर ---संस्मरण

उजाले की ओर ---संस्मरण ----------------------- नमस्कार मित्रो ज़िंदगी के सफ़र में गुज़र जाते हैं जो मकाम ,वे फिर कभी लौटकर नहीं आते | बात तो यह सभी जानते हैं लेकिन सम्झना नहीं चाहते | किसी की खुशी या दर्द में शामिल होने पर हम उस पर अहसान नहीं करते बल्कि यह हमारी खुशी होती है जिसे हम बांटते हैं | अभी पिछले दिनों एक बात से मेरा मन बहुत दुखी हुआ | वर्षों से पहचान है ।मैं पति-पत्नी दोनों की दीदी हूँ | कोई भी बात होती है ,समाया होती है वे मुझसे सलाह लेते हैं | स्वाभाविक होता ...और पढ़े

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उजाले की ओर ---संस्मरण

उजाले की ओर---संस्मरण ----------------------- सभी मित्रों को स्नेहिल नमस्कार कई बार बड़े अजीब से सवाल हमारे सामने आ खड़े हैं और हमें आश्चर्य के साथ पीड़ा भी देते हैं | सबसे पहला प्रश्न तो यह उठता है कि हम मनुष्य मनुष्य में कैसे इतना भेदभाव कर सकते हैं ? कोई सुंदर है अथवा असुंदर मनुष्य तो है ,उसको भी तन और मन से उतनी ही पीड़ा होती है जितनी कि हमें | हम भूल ही जाते हैं और हमें केवल अपनी ही पीड़ा दिखाई देती है | मित्रों ! कुछ बातें तो हमें सोचनी ही होंगी | मेरे मन ...और पढ़े

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उजाले की ओर--संस्मरण

उजाले की ओर --संस्मरण ------------------------- सुभोर स्नेही मित्रों ज़िंदगी हर किसी के लिए कुछ न कुछ ऐसा लेकर आती जिससे हम बहुत कुछ सीख लेते हैं | आज का ट्रेंड देखते हुए ऐसा लगता है कि भाई ! क्या किया जाय जब हमें सहूलियत ही नहीं मिली | यह एक कारण हो सकता है किन्तु इसके अतिरिक्त और कारण यह भी हो सकते हैं कि सहूलियत न मिल पाने पर भी लोग कितनी प्रगति करते हैं और समाज के सामने प्रेरणा बन जाते हैं | अब इस उम्र में हम अपने भूत में पीछे तो लौट नहीं सकते किन्तु ...और पढ़े

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उजाले की ओर--संस्मरण

एक अविस्मरणीय पर्यावरण दिवस ---------------------------------------- नमस्कार स्नेही मित्रों आज आप सबसे अपने जीवन का हाल का ही ऐसा दिन साझा करना चाहती हूँ जो मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण रहा | आशा है, अप सब भी मेरे साथ इसको जानकार, पढ़कर आनंदित होंगे | यह रिपोर्ट है, स्नेही मित्र इसे पढ़कर आनंद लें | पुस्तक विमोचन के कार्यक्रम हर दिन होते हैं लेकिन दिनांक 5 जून का एक ऐसा दिन था जो सदा अविस्मरणीय रहेगा | कार्यक्रम था 75 वर्ष अपनी आज़ादी का महोत्सव, विश्व पर्यावरण दिवस, प्रख्यात साहित्यकार डॉ.प्रणव भारती के 75वें दिवस ...और पढ़े

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उजाले की ओर--संस्मरण

------------------ मित्रों ! सस्नेह नमस्कार ! हम सब जानते और मानते हैं कि जीवन चंद दिनों का भी ऐसे जीते हैं जैसे हम अमर हैं | सच्ची बात तो यह है कि हम अमर हो सकते हैं लेकिन शरीर से तो नहीं ---हाँ, अपने व्यवहार से, प्यार से, स्नेह से, सरोकार से ! और कुछ है ही कहाँ इंसान के बस में | कई लोगों को देखकर दुख होता है, जो पास में है उसे जीने के स्थान पर जब हम उसकी याद में घुले जाते हैं जो पास नहीं है अथवा जिसके पास होने ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

उजाले की ओर –संस्मरण -------------------------- मित्रों ! सस्नेह नमस्कार ! हम सब जानते और मानते हैं कि जीवन दिनों का फिर भी ऐसे जीते हैं जैसे हम अमर हैं | सच्ची बात तो यह है कि हम अमर हो सकते हैं लेकिन शरीर से तो नहीं ---हाँ,अपने व्यवहार से ,प्यार से ,स्नेह से ,सरोकार से ! और कुछ है ही कहाँ इंसान के बस में | कई लोगों को देखकर दुख होता है ,जो पास में है उसे जीने के स्थान पर जब हम उसकी याद में घुले जाते हैं जो पास नहीं है अथवा जिसके पास ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

मित्रों सस्नेह नमस्कार 'उजाले की ओर' में आज किसी के द्वारा सुनाई गई एक कहानी प्रस्तुत कर रही हूँ आशा है ,आप लोग पसंद करेंगे | एक बार जब अकबर ने एक ब्राह्मण को दयनीय हालत में भिक्षाटन करते देखा तो बीरबल की ओर व्यंग्य कसकर बोला - 'बीरबल! ये हैं तुम्हारे ब्राह्मण! जिन्हें ब्रह्म देवता के रुप में जाना जाता है। ये तो भिखारी है'। बीरबल ने उस समय तो कुछ नहीं कहा। लेकिन जब अकबर महल में चला गया तो बीरबल वापिस आये और ब्राह्मण से पूछा कि वह भिक्षाटन क्यों करता है' ? ब्राह्मण ने कहा ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

इस संसार का हर इंसान इस ‘क्यू’ में खड़ा साँसें ले रहा है | वह जग रहा है, वह रहा है |वह भाग रहा है, वह रूक रहा है, वह थम रहा है-जम रहा है---- लेकिन जिजीविषा की ‘क्यू’ सबके भीतर है | इसीलिए वह ज़िंदाहै | साँसें कुछ सवाल पूछती हैं, वह कभी उत्तर दे पाता है, कभी नहीं लेकिन उसका हृदय ज़रूर धड़कता है | वह कुछ बातें आत्मसात करता है, उन्हें अपने सलीके से कहने की कोशिश करता है | हाँ, वह ज़िंदा रहता है, यह विभिन्न प्रकार की जिजीविषा ही उसे ज़िंदा रखती है | ...और पढ़े

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उजाले की ओर ---संस्मरण

स्नेही साथियों नमस्कार कैसी-कैसी राहों पर होकर गुजरता है जीवन ! जब हम क्भू सोचते हैं कि ! ऐसा हुआ ? तब कभी विश्वास होता भी है तब भी कभी हम विचलित हो जाते हैं | घटना चाहे खुद के साथ हो अथवा अपने किसी परिचित के साथ ,सब पर ही उसका प्रभाव पड़ता है | यह बड़ा स्वाभाविकहै| दोस्तों !प्रश्न यह है कि क्या विचलित होने से कुछ होगता है ? क्या हम पिछले दिनों में जाकर फिर से कुछ कर सकते हैं ? क्या हम पैनिक होकर कुछ सकारात्मक हो सकते हैं ? नहीं ...और पढ़े

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उजाले की ओर ---संस्मरण

-------------------------------- नमस्कार स्नेही मित्रो हमारे जीवन में बहुत से ऐसे मोड़ आते हैं जो हमें सिखाकर जाते हैं | समय हमें वह घटना बहुत खराब लगती है | हमें महसूस होता है कि हम किसी ऎसी परिस्थिति में फँस गए हैं जो हमारा जीवन पलट देगी | कई बार हो भी जाता है ऐसा लेकिन यदि हम थोड़े से विवेक से काम लें तो परिस्थिति में बदलाव भी आ सकता है और हम उस परिस्थिति से निकल भी सकते हैं जिसने हमारे सामने परेशानी पैदा कर दी हो | यहाँ मुझे एक लेडी-कॉन्स्टेबल की कहानी याद आ रही है ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

नमस्कार स्नेही मित्रो इस जीवन में ब्रह्मांड ने सबके लिए खाने-पीने की व्यवस्था की है पर इसके लिए हमें करने की ज़रुरत होती है | हम मेहनत भी करते हैं तो कई बार हमें इतना नहीं मिल पता जिससे हम बहुत अच्छी प्रकार अपना व परिवार का पेट भर सकें | मनुष्य के हाथ-पैरों के साथ, मस्तिष्क का वरदान बहुत बड़ी व कीमती बात है जिससे यदि हम अपने बारे में तो सोचें ही अपने समाज के बारे में। दूसरे लोगों के बारे में भी सोचें तो हम मानव कहलाएंगे | इसी बात का उदाहरण देते हुए मैं आपके ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

नमस्कार स्नेही साथियों मनुष्य, चाहे वह पुरुष हो अथवा महिला, सबके मन में भावनाएँ, संवेदनाएँ होती हैं | सब न किसी प्रकार अपने आपको प्रसन्न रखना चाहते हैं जो ज़रूरी भी है किंतु अपना अथवा अपनों का दुःख देखकर यह बड़ा स्वाभाविक है कि कोई भी क्यों न हो, उसकी आँखें भर आती हैं | हमारे समाज में पुरुष को हमेशा से 'स्ट्रॉंग' कहकर उसके आँसुओं को नकारा गया है जबकि वह भी हाड़-माँस से बना है, उसके मन में भी करुणा, संवेदनशीलता होना स्वाभाविक है | उसको भी अपने आँसू बहकर खुद को सहज करने का अधिकार है ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

मित्रों सस्नेह नमस्कार हमारे जीवन में अक्सर ऎसी बातें होती हैं जिनसे हम तकलीफ़ में आ जाते हैं | वर्गीय आदमी के लिए आज जीवन चलाना कठिन है, यह बात सौ प्रतिशत सही है | हम सभी इस मँहगाई से परेशान हैं फिर भी प्रयास करते हैं कि हम जितना बेहतर अपने बच्चों को दे सकें, दें | मध्यम वर्गीय परिवार अपना पेट काटकर ही बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में पढ़ा सकता है | मतलब कहीं न कहीं तो माँ-बाप को अपने ऊपर कोताही करनी पड़ती है | एक घर बना लेने से, एक गाड़ी खरीदने से, घर के ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

मित्रो ! सस्नेह नमस्कार कई बार जीवन में ऐसी बातें हो जाती हैं जो हम सोच भी नहीं पाते जब वे बातें, घटनाएँ जीवन में घटित होती हैं तब मन पीड़ित होता है और हम सोचने के लिए बाध्य हो जाते हैं कि आखिर समाज में इस प्रकार की घटनाएँ, विसंगतियाँ क्यों होती हैं ? छोटी सी ज़िंदगी में हम न जाने कितने-कितने व्यवधान ले आते हैं | कुछ दिन पहले एक घटना के बारे में पढ़कर चित्त बहुत अशांत हुआ और सोचने के लिए बाध्य होना पड़ा कि हम कहाँ जा रहे हैं ? संबंधों की कीमत हमारे ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

------------------------------ नमस्कारस्नेही मित्रों जीवन एक पहेली सजनी ,जितना सुलझाओ ये उलझे ,है रहस्यमय कितनी !मित्रों सोचें तो में घूमते ही रह जाते हैं हम और ज़िंदगी का पटाक्षेप हो जाता है |हम सब देखते हैं कि जीवन की युवावस्था तो जैसे-तैसे कट ही जाती है किंतु जब कभी एक ऐसा समय आता है जब हमें अकेलापन भोगना पड़ता है तब हम कितना अकेलापन महसूस करने लगते हैं | ऐसा नहीं है कि युवावस्था में हम अकेलापन महसूस नहीं करते लेकिन अनुपात में यह कम ही होता है | मनुष्य का अकेलापन इस संसार में उसके लिए ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

--------------- नमस्कार मेरे स्नेही मित्रो एक पल हवा के झौंके सी ज़िंदगी, हर पल अहं का बोध करती ज़िंदगी कभी हरे-भरे पत्तों से कुनमुनी धूप सी छनकर आती ज़िंदगी ! कभी सौंधी सुगंध सी मुस्काती, बल खाती ज़िंदगी ----अरे भई ! हज़ारों रूप हैं इस एक ज़िंदगी नामक मज़ाक के ! हाँ जी कभी मज़ाक भी तो लगती है ज़िंदगी, कभी हास लगती है और कभी परिहास भी ! समय दिखाई नहीं देता लेकिन दिखा बहुत कुछ देता है, ज़िंदगी ही तो है जो सपने सी दिखती है, बनती - बिगड़ती है फिर ग्राफ़ न जाने कहाँ ले जाती ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

स्नेही मित्रो नमस्कार आज का युग तकनीकी युग है, हमें इस तकनीक ने बहुत कुछ दिया है, इसमें कोई नहीं है लेकिन यह भी उतना ही सच है कि हम जितने इसके आदी होते जा रहे हैं उतने ही खुद से दूर होते जा रहे हैं | कम में ख़ुश रहना अब बिलकुल बंद हो गया है | सबको अपनी-अपनी चीज़ें चाहिएँ --चाहे स्कूटर, बाइक, गाड़ी हो, कम्प्यूटर हो, या कमरे ! सब अपने-अपने, हमारा कोई नहीं, कुछ नहीं --- हमने अपने ज़माने में देखा है कि हमारे रसोईघरों में माएँ अधिकतर बैठकर खाना बनातीं, नीचे बैठकर, कुछ न ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

स्नेही मित्रो नमस्कार आज हम एक ऐसे युग में जी रहे हैं जहाँ मूल्यों में इतना भयंकर बदलाव आ है कि राजनीति शब्द से ही नकारात्मकता का आभास होने लगता है | जैसे राजनीति न हो गई कोई इतनी गंदी चीज़ हो गई कि उधर आँख उठाकर देखना भी जैसे कीचड़ में पड़ने की बात हो | इतने गंदे तरीके से दूरदर्शन के भिन्न भिन्न चैनलों पर ऐसे चीख़ने चिल्लाने वाले कार्यक्रम दिखाए जाते हैं कि एक सीधा-सादा आम आदमी सचमुच बाध्य हो जाता है सोचने के लिए कि भई राजनीति जैसा खराब विषय कोई हो ही नहीं सकता ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

स्नेहिल नमस्कार मित्रों कैसे हैं आप सब? आज हम बात करते हैं मुस्कान की। आप ही सोचें सुबह सुबह कोई मुस्कुराता चेहरा दिखाई देता है तो मन कैसा प्रफुल्लित हो जाता है। बस यही बात है जब हम किसी प्यारी सी चीज को देखते हैं जैसे आसमान की लालिमा.. सूर्य की किरणें.. खिले हुए फूल.. ताजे पत्ते.. बारिश की कुछ बूंदे और सामने मुस्कुराता चेहरा तो जान लीजिए कि आपका सारा दिन खूबसूरत बन गया। मुस्कान बाधाओं को दूर करती है, तनावपूर्ण परिस्थितियों को आरामदायक बनाती है,हम आकर्षक दिखते हैं, हममें ऊर्जा का संचार होता है,लोग हमारे आस पास ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

उजाले की ओर - - - - संस्मरण ------------------ स्नेही एवं प्रिय मित्रो नमस्कार जीवन की भूलभुलैया बड़ी ही वाली है, जीवन में चलते हुए हम किन्ही ऐसे मार्गों में खो जाते हैं जिनसे निकास का मार्ग ही नहीं मिलता | वास्तव में यह हमारी मानसिक स्थिति पर निर्भर करता है कि ऐसे समय हम उलझन में से किस प्रकार सही मार्ग निकाल पाते हैं | बहुधा देखा यह गया है कि हम किसीके कहने में अथवा किसीकी देखा-देखी किसी ऐसे मार्ग पर चल पड़ते हैं जो हमें और भी विकट स्थिति में लाकर पटक देता है| हम भुला ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

नमस्कार स्नेही मित्रों अक्सर ऐसा होता है कि हम अनावश्यक रूप में ऐसी परेशानियों में फंस जाते हैं जो नहीं की होतीं लेकिन फिर भी उसमें किसी पल अविवेकी होने के कारण हम बिना बात की उस स्थिति को अपने ऊपर ओढ़ लेते हैं। इससे होता यह है कि हम ना चाहते हुए भी ऐसी कठिनाई में पड़ जाते हैं कि हम फँस तो जाते हैं लेकिन उसका कोई हल दिखाई नहीं देता। इसलिए हम बिना बात ही परेशान हो जाते हैं। हम सब इस बात से वाकिफ़ हैं कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है इसलिए समाज में रहकर ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

उजाले की ओर------- संस्मरण --------------------- नमस्कार स्नेही मित्रों हम सब चाहते हैं कि हमारा जीवन खूब सुख में हो' खूब ऐश्वर्य में रहें लेकिन इससे पहले क्या हमें कुछ बातों के ऊपर ध्यान देना ज़रूरी नहीं होगा? चलिए, इस बारे में कुछ चर्चा करते हैं। जीवन को सुखमय बनाने के लिए रिश्तों को सँभालना अति आवश्यक है। रिश्तों में विश्वास बनाए रखना इतना ही आवश्यक है जितनी अपने सिर पर छत का होना। रिश्तों का आधार प्रेम है। यह ढाई अक्षर का अक्षर इतना भारी है कि इसके पलडे़ ताउम्र यदि झुके रहें तब ज़िंदगी सदा एक खूबसूरत उत्सव ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

नमस्कार स्नेही मित्रो पता ही नहीं चला जीवन कब इस कगार पर आकर खड़ा हो गया और न जाने प्रश्न पूछने लगा ; "बताओ, क्या किया, ताउम्र ? पूरी उम्र ऐसे ही भटकते रहे ? खोजते रहे किसी न किसी को, कभी ईश्वर को, अल्ला को ? कौन मिला ? हाँ, बस खुद को नहीं देखा, न ही जाना-पहचाना ? एक ऐसी डगर पर चलते रहे जिसका पता ही नहीं था कि किधर जाती है ? मुड़ती भी है या सीधे नाक की सीध में चलना होता है ! बस, घूमते रहे वृत्त में, यादों के दरीचों में --याद ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

---------------- नमस्कार स्नेही मित्रों कहा गया है कि जिस दिन हम इस धरती पर जन्म लेते हैं, अपने लौटने दिन निश्चित करवाकर आते हैं। वैसे तो आजकल की ज़िंदगी के बारे में कुछ पता नहीं चलता। कभी कुछ भी हो जाता है। लेकिन यदि हमने जीवन के 50/60/70 वर्ष पार कर लिए है तो अब लौटने की तैयारी प्रारंभ करें....इससे पहले कि देर हो जाये...इससे पहले कि सब किया धरा निरर्थक हो जाये.....। लौटना क्यों है?, लौटना कहाँ है? लौटना कैसे है? इसे जानने, समझने एवं लौटने का निर्णय लेने के लिए आइये टॉलस्टाय की मशहूर कहानी आज आपके ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

--- नमस्कार स्नेही मित्रो मेरे जीवन में कई लोग ऐसे हैं जिनको मैं कोशिश करके बताते हुए थक गई प्रयासों के बावजूद भी यह नहीं सिखा पाई कि समय पर कोई भी काम करना कितना जरूरी है। हर चीज़ की एक व्यवस्था होती है, हर चीज़ का एक समय होता है यदि वह उस समय में ना हो या ना की जा सके तब वह कई बार व्यर्थ हो जाती है। इसमें हमारा समय तो जाता ही है उर्जा भी नष्ट हो जाती है और हम शून्य पर खड़े हो जाते हैं। सोचते रह जाते हैं यह हमारे साथ ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

स्नेही मित्रों नमस्कार जीवन के हर क्षण में कोई ना कोई बाधा या परेशानी आनी स्वाभाविक है। कभी भी सीधे सपाट रास्तों पर तो चल नहीं पाते। सीधी सी बात है जब हर जगह बदलाव है मोड़ हैं, घुमाव है तब जीवन की पटरी कैसे केवल सीधी हो सकती है? उसमें भी मोड़ आएंगे घुमाव आएंगे। बस हमें केवल अपने ऊपर ध्यान देना जरूरी है। हमें देखना है कि हमारा विश्वास कहीं मोड़ों और घुमावों के साथ कमजो़र ना पड़ जाए। जीवन एक लम्हे का नाम है या फिर एक बुलबुले का या फिर गुब्बारे का वह ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

---------- मित्रों ! स्नेहपूर्ण नमस्कार जीवन की गति न्यारी मितरा ---सच, मन कितनी बार झूमता है-झूलता है, चहकता है है, रोता है-सुबकता है और फिर शिथिल होकर बैठ जाता है | यानि पूरे जीवन भर इसी ग्राफ़ में ऊपर-नीचे होता रहता है | कोई एक मन नहीं, इस दुनिया में जन्म लेकर अंतिम क्षण तक जीने वाले सभी मन जो पाँच तत्वों से निर्मित इस शरीर में कुलबुलाते रहते हैं | अधिक तो ज्ञान नहीं है किन्तु मन की परिभाषा कुछ ऎसी समझ में आती है कि मन अर्थात मस्तिष्क की वह क्षमता जो मनुष्य को चिंतन, स्मरण, निर्णय, ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

----------------------------------- स्नेहिल नमस्कार मित्रों को आज आप सबसे एक कहानी साझा करना चाहती हूँ। आप सब महाकवि कालिदास से हैं। कालिदास बोले :- माते! पानी पिला दीजिए बड़ा पुण्य होगा। स्त्री बोली :- बेटा! मैं तुम्हें जानती नहीं. अपना परिचय दो।मैं अवश्य पानी पिला दूंगी। कालिदास ने कहा :- मैं पथिक हूँ, कृपया पानी पिला दें। स्त्री बोली :- तुम पथिक कैसे हो सकते हो? पथिक तो केवल दो ही हैं सूर्य व चन्द्रमा, जो कभी रुकते नहीं हमेशा चलते रहते हैं। तुम इनमें से कौन हो? सत्य बताओ। कालिदास ने कहा :- मैं मेहमान हूँ, कृपया पानी पिला ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

मित्रो स्नेहिल नमस्कार हम सब जानते हैं परिस्थितियाँ कभी एक सी नहीं रहतीं। उनमें बदलाव आना स्वाभाविक है, न तब आश्चर्य की बात है। और कभी कभी तो दोस्तों ऐसा अचानक बदलाव आ जाता है कि हम हकबक रह जाते हैं। यानि अलग-अलग समय पर अलग-अलग बदलाव आते हैं और मज़े की बात यह कि एक ही बात का प्रभाव सब पर अलग प्रकार से पड़ता है। हम कभी एक तरीके से टूटते हैं तो कभी वैसी ही परिस्थिति से आराम से निकल जाते हैं। फिर कभी बिना किसी गलत प्रभाव के खड़े भी हो जाते हैं या नहीं ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

सभी स्नेही मित्रो को नमस्कार जीवन की गति न्यारी मितरा, गुप-चुप करते बीते जीवन, मन होता है भारी मितरा। पड़ता है उस भारीपन से मित्रों क्योंकि हमें जीवन जीना है, घिसटना नहीं है। जीवन को परीक्षाओं के बिना जीने के लिए नहीं बनाया गया है और किसी भी प्रकार के दर्द से बचने के लिए अपनी जिम्मेदारियों को त्यागना, चाहे वह मानसिक हों या शारीरिक, जीने का अच्छा तरीका नहीं है। हर बार जब हम किसी समस्या का सामना करते हैं, उसके सामने युद्ध करना ज़रूरी है। हम बचपन से सुनते आते हैं कि जीवन युद्धक्षेत्र है, जब हमने ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

------------------ स्नेही मित्रों आप सबको प्रणव भारती का नमन जीवन अनमोल है लेकिन हमारी कितनी ही क्रियाएँ बस गोलमगोल | हम जानते हैं कि छोटा सा जीवन है, जैसे-जैसे उम्र के दौर गुज़रते रहते हैं हमें यह संवेदना बहुत गहराई से कचोटने लगती है कि हमारा जीवन कम होता जा रहा है | हमारे संगी-साथी शनै:शनै: साथ छोड़ने लगते हैं और सदा के लिए गुम हो जाते हैं | ऐसे समय में हममें कुछ समय का वैराग्य उत्पन्न होने लगता है किन्तु कुछ समय पश्चात वही ढ़ाक के तीन पात !? कभी-कभी हम जान-बूझकर सही-गलत का निर्णय नहीं ले ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

---------------------------------- स्नेही एवं प्रिय मित्रों नमस्कार, प्रणाम, नमन जीवन की इस गोधूलि में कितनी ही बातें लौट-फिरकर धूल भरे को झाड़ती-पोंछती सी मन के द्वार खोलकर झाँकने लगती हैं । आपके मन के द्वार की झिर्रियों से भी अवश्य झाँकती ही होंगी, यह मानव-स्वभाव है । इसमें कुछ न तो नया है और न ही असंभव ! हमारे मन में न जाने कितने कोने हैं और किसी न किसी कोने में कुछ न कुछ दबा-पड़ा रहता है, वह कभी भी किसी ज़रा सी ठसक से हमारे समक्ष आ खड़ा होता है और हमें यह सीखना पड़ता है बल्कि यह ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

सुप्रभात आ. एवं स्नेहिल मित्रो ! आप सबको प्रणव भारती का नमन एक बार एक पिता अपने सत्रह वर्षीय को किसी संत के पास लेकर गया |उसने संत से प्रार्थना की ; “महाराज ! मेरे बेटे को ज्ञान दीजिए ,कृपया इसे बताइए कि यह जब तक शिक्षा में अपना मन नहीं लगाएगा,अच्छी बातें नहीं सीखेगा,सबसे प्रेम पूर्वक व्यवहार नहीं करेगा तब तक इसका जीवन उत्कृष्ट कैसे हो सकेगा ?” संत ने कुछ विचार किया फिर पूछा ; “आपके घर का वातावरण कैसा है ?” “अर्थात्---” बच्चे का पिता असमंजस में पड़ गया,आखिर संत उससे क्या पूछना चाहते हैं ? ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

स्नेही मित्रों को स्नेहमय नमस्कार नववर्ष में नव कामना, नव अर्चना, नव साधना नाव चिंतन, नव आलोकन, नव आलोड़न हर बार आता है, साल जाता है, बताएँ तो क्या बदल पाता है ? नहीं दोस्तों, मैं कोई नकारात्मक बात नहीं कर रही हूँ मैं तो अपने आपको आईना दिखाने की एक छोटी सी कोशिश भर कर रही हूँ भई, कहते हैं न किसी भी बात की शुरुआत खुद से करो, बस --वही तो -- मुझे तो लगता है ये गाना, बजाना, मस्ती केवल एक ही दिन क्यों ? वो भी नए साल की प्रतीक्षा में ! रात ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

स्नेही मित्रों ! सादर, सस्नेह सुप्रभात जीवन की धमाचौकड़ी पूरे जीवन भर चलती रहती है हम नाचते हैं कठपुतली के समान इधर से उधर, उधर से इधर जीवन में कुछ न कुछ ऊँचा-नीचा होता ही रहता है हम कब कुछ ग़लत कर बैठते हैं हमें इसका आभास भी नहीं होता, होता तब है जब हम अपने किए हुए का परिणाम देखते हैं स्वाभाविक है, बबूल का पेड़ बोने से हमें स्वादिष्ट आम का आनन्द तो प्राप्त हो नहीं सकता किन्तु हमें यह पता ही नहीं चलता कि हमने आखिर यह बबूल का पेड़ कब बो ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

मित्रोंसस्नेह नमस्कार आशा है आप सब प्रसन्न वह आनंदित होंगे। जीवन एक बहुत बड़ी भूल भुलैया है। कभी-कभी यह इतनी सफ़लता की ओर ले जाता है जो हमने कभी सोचा ही नहीं होता, कभी यह हमें इतना नीचे गिरा देता है जो भी हमने सोचा नहीं होता। सवाल इस बात का है कि आखिर यह सब होता कैसे है? सीधी सी बात है यह सब हमारे अपने करने से होता है। कभी-कभी हम आनंद में इतने अच्छे काम कर जाते हैं जिसके परिणाम बहुत अच्छे होते हैं यानि हमें यह याद भी नहीं होता कि हमने यह कब किया ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

नमस्कार स्नेहिल मित्रों इस अद्भुत जीवन में अद्भुत घटनाएँ होती रहती हैं | हम जानते भी नहीं कि इनके दरसल है क्या ? ये पवन की भांति घटित होती जाती हैं और हमारे मनों में कभी शीत की लहर का आभास लाती हैं तो कभी ग्रीष्म की गर्माहट ! मैंने इस स्थिति को जीया है इसलिए जब यह घटना पढ़ी तो इसे साझा करने से स्वयं को रोक नहीं सकी | कभी-कभी हम बहुत सी गलतफहमियों में जीते रहते हैं लेकिन जब तक हमें वास्तविकता का भान होता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है | हम ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

स्नेही मित्रों स्नेहिल नमस्कार कभी कभी हमारे शांत जीवन में उतार-चढ़ाव ऐसे आ जाते हैं कि हम सोचते रह हैं | कभी-कभी बात कुछ नहीं होती और हम परेशान रहते हैं | मैंने नीचे लिखा हुआ लेख कहीं पढ़ था और मुझे महसूस हुआ कि मित्रों के साथ इसे साझा करना चाहिए | मैं नहीं जानती किसने किसको यह घटना सुनाई ?यह किसी की कहानी, किसी की ज़ुबानी है ---- आप पढ़ें और आनंद लें --- मेरे एक दोस्त ने मुझसे कहा कि उसकी पत्नी की तबियत ठीक नहीं रहती। हमेशा सिर दर्द की शिकायत करती है, चिडचिड़ी सी ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

स्नेहिल नमस्कार मित्रो आज माँ - पापा को याद करते हुए मित्रों को बसंत की स्नेहिल शुभकामनाएँ ---------------------------------------------- बसंत आई,मन भाई फूल रहीं फुलवारियाँ टेसू फूले, अंबुआ मौले, चंपा, चमेली सरसों फूले फूट रही कचनारियाँ---- भँवरे की गुंजन मन भाए, ऋतु बासन्ती मन हर्षाए आओ सब मिल शीष नवा लें, स्वर की साधना कर हर्षा लें पुष्पित हैं अमराइयाँ ---- (माँ) स्व.दयावती शास्त्री माँ मन में हैं,वो ही मार्ग-दर्शन करती हैं | आँसुओं की लड़ी को अनदेखे ही अपने आँचल में छिपा मुख पर मुस्कान बिखरा देती हैं | माँ को विशेष रूप से मैं शायद ही कभी याद ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

मित्रों प्रणव भारती का स्नेहिल नमन हम भूल जाते हैं, इस संसार के वृत्त में घूमते हुए, हम इस सत्य से अपने मन को न जाने कब भटका लेते हैं । बहुत देर बाद समझ आता है कि भई बहुत छोटा सा है जीवन ! और खो जाते हैं इस सागर की लहरों में ! सच बात तो यह है मित्रों कि हम अपनी ही बातों में, अपने कर्तव्यों में,अपनी परेशानियों में गुम हो जाते हैं | स्वाभाविक भी है क्योंकि हम अपनी प्रतिदिन की पीड़ाओं की गुत्थी में ऐसे उलझ जाते हैं कि जब तक हम पर कोई ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

.................. सभी मित्रों को स्नेहमय नमस्कार जीवन की तलहटी में ऊपर नीचे घूमते हुए हमें न जाने कितने लोग हैं। वो मिलते हैं और कुछ देर साथ रहने वाले सहयात्री की भाँति हमसे बिछड़ भी जाते हैं। मनुष्य इस जीवन में अनेकों से मिलता है, कुछ देर साथ रहता है और अपनी अपनी दिशा की ओर बढ़ जाता है। लेकिन हमारी ज़िंदगी में ऐसे लोगों की बहुत आवश्यकता है जो हमसे भीतर से जुड़े रहें और हम उनसे। लोगों को अथवा हमें प्रेम, विश्वास, और सपोर्ट की ज़रुरत तब सबसे ज्यादा होती है जब हम किसी बुरे दौर से ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

--------------------------------- स्नेहिल नमस्कार मित्रों ये लेखन भी है बड़ी मज़ेदार चीज़ ! वैसे लेखन एक चीज़ नहीं कला है न जाने कहाँ कहाँ से से लोगों को मिलवा देती है | यानि आपका लेखन कुछ लोगों के बीच पहुंचा नहीं कि आपकी बिरादरी के कई लोग आपसे जुड़ गए | मेरे साथ तो बहुत हुआ है ऐसा और न जाने कब से हो रहा है और आज भी हो ही जाता है | यह अक़्सर किसी अनजान जगह पर बहुत सहायता भी करता है | आज से शायद 27/28 वर्ष पूर्व मैं अपने देवर के हृदय की सर्जरी करवाने ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

------------------ स्नेहिल नमस्कार दोस्तों !कभी कभी बरसों पुरानी गलियाँ खुल जाती हैं और हम उनमें अनजाने ही प्रवेश कर हैं | विचरण करने लगते हैं | कभी किसी की कोई बात सुनकर, कभी किसी को देखकर स्मृति मन के द्वार पर दस्तक दे ही जाती है |यह सबके साथ होता है किसी के साथ कम तो किसी के साथ कुछ अधिक ही | मेरे साथ काफ़ी होता है और उन्हें मैं सँजो लेती हूँ | कभी किसी उपन्यास के चरित्र का हिस्सा बनाकर, कभी किसी कहानी में तो कभी संस्मरण या गीत में भी |सवाल यह ज़रूर उठ रहा ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

------------------------------------ सभी मित्रों को स्नेहिल नमस्कार कैसे हैं सब ? लीजिए इस वर्ष की होली भी आ गई | फिर जली होली उन लकड़ियों से जो घर-घर चंदा इकट्ठा करके पैसे जमा करके लाई जाती हैं | उत्साही युवक सोसाइटी के घर -घर जाते हैं, सिंहद्वार पर खड़े होकर लकड़ियाँ या फिर पैसे लेने के लिए पुकारते हैं, वैसे युवक तो आजकल शर्माने लगे हैं, उनका स्टेट्स डाउन होता है | अधिकतर छोटे बच्चे ही बंदरों की तरह ही उछल-कूद मचाते हुए पहुंचते हैं सिंहद्वार तक ! ये बच्चे किसी बड़े को लेकर साथ लेकर चलना चाहते हैं जिससे ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

उजाले की ओर...... संस्मरण मित्रों स्नेहिल नमस्कार जीवन है तो इसमें कभी बहुत से उत्साह के क्षण भी हैं, ऐसे क्षण भी हैं कि हम दुखी व कुंठित होने लगते हैं | ये कुछ ऐसा है कि अभी घनी धूप पड़ रही थी, पेड़-पौधे ही नहीं हर मनुष्य, अरे मनुष्य ही क्या प्राणि मात्र सूखा जा रहा था | अभी न जाने कहाँ से ऐसी बयार आई कि पवन में ताज़गी सी भर उठी | अचानक बादलों ने सुहानी छाया कर दी और जाने कैसे रूठे हुए इंद्रदेव प्रसन्न हो उठे | मयूर नृत्य करने लगे और मनुष्यों, प्राणियों ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

नमस्कार स्नेहिल मित्रों अक्सर लोग कहते क्या पूछते हैं - - - "ये क्या सबको स्नेहिल कहती रहती हो? स्नेहिल होते हैं क्या? बेकार लोगों को सिर पर चढ़ाए रखती हो?" मन उद्विग्न होने लगता है। ये बेकार आखिर होता क्या है? ऐसे तो क्या हम सभी बेकार नहीं हैं? और यदि 'हाँ' तो किसी के लिए भी हमारे मन में कोई प्यार, स्नेह न हो तो हमें भी इस नकारात्मकता के लिए तैयार रहना होगा न ! क्या संवेदन भी विषयों की तरह विभागों में बँटा है? यह स्नेह का विभाग, यह घृणा का विभाग, यह क्रोध का, ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

मित्रों स्नेहिल नमस्कार जीवन है तो इसमें कभी बहुत से उत्साह के क्षण भी हैं, कभी ऐसे क्षण भी कि हम दुखी व कुंठित होने लगते हैं | ये कुछ ऐसा है कि अभी घनी धूप पड़ रही थी, पेड़-पौधे ही नहीं हर मनुष्य, अरे मनुष्य ही क्या प्राणी मात्र सूखा जा रहा था | अभी न जाने कहाँ से ऐसी बयार आई कि पवन में ताज़गी सी भर उठी | अचानक बादलों ने सुहानी छाया कर दी और जाने कैसे रूठे हुए इंद्रदेव प्रसन्न हो उठे | मयूर नृत्य करने लगे और मनुष्यों, प्राणियों के मन की बात ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

============ स्नेही मित्रों ! सस्नेह नमस्कार आज जबसे मीरा आई थी, भुनभुनाती चली जा रही थी | खासी उम्र मीरा की | हम सब एक ही कॉलोनी में कई वर्ष रह चुके थे | बाद में सबने अपने-अपने घर बना लिए। स्वाभाविक था अब मिलना काफ़ी कम होने लगा था | कभी जन्मदिवस पर, किसी छोटे-मोटे फ़ंक्शंस पर पुरानी कॉलोनी के सब लोग इक्कठे हो जाते और पुराने दिनों की याद करके खूब इन्जॉय करते | यह तब की बात है जब हममें से कइयों की नई-नई शादी हुई थी | अपने घरों को छोड़कर आना और अपने बालपन ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

======= स्नेहिल नमस्कार साथियों निम्न संवाद से मन पीड़ित हुआ - - " मुझसे मत उम्मीद करना कि इतने के बीच में जाकर रहूँगी। " सुमी बड़बड़ कर रही थी। "क्या प्राब्लम है? लड़का इतना पढ़ा लिखा, इतने ऊँचे पद पर, पूरा परिवार सभ्य, शिक्षित... तकलीफ़ क्या है? " पापा लाड़ली बेटी को पटाने में लगे हुए थे लेकिन बिटिया थी कि तैयार ही नहीं थी कि वह एक संयुक्त परिवार में जीवन बिता सकती है। कभी-कभी लगता है कि बच्चों को अधिक सुविधाएं, अधिक आजा़दी देकर हम उनके भविष्य के साथ खिलवाड़ कर जाते हैं। आज संयुक्त परिवार ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

स्नेहिल नमन मित्रों कितनी विश्वास से भरी हुई लड़की थी दिव्या ! हम बचपन से साथ खेले, लड़ते झगड़ते हुए और समय आने पर सब मित्र एक-दूसरे से बिछड़ भी गए। यही तो जीवन में बार बार होता है,हम जुदा होते ही रहते हैं कभी एक कारण से तो कभी दूसरे कारण से ! दिव्या जब युवा हुई उसके पिता का तबादला दूसरे शहर में हो जाने से उसे हम मित्रों को छोड़कर जाना पड़ा। यूँ हम सब झगड़ा करते रहते थे लेकिन जब उसके जाने की बात सामने आई तो हम जैसे कमज़ोर पड़ने लगे। कितनी स्मार्ट, इंटैलीजैंट ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

=================== "पता नहीं, आपकी उम्र तक हम कैसे रहेंगे ?" ये शब्द थे मेरे से बहुत छोटे मेरे मामा के बेटे यानि मेरे ममेरे भाई के | मैं जब भी उसे मिलती, मुझे वह उदास दिखता | कोई परेशानी तो दिखाई देती नहीं थी | कोई पैसे की तंगी हो या फिर कोई परिवार की परेशानी हो तो आदमी नकारात्मकता में जाने लगता है लेकिन जहाँ तक मुझे मालूम था, ऐसा तो कुछ था नहीं उसके परिवार में | मामा जी प्रतिष्ठित उद्योगपति थे, उन्होंने अपना एक्सपोर्ट का जमा-जमाया व्यापार अपने बेटे के हाथ में दे दिया था| उसका ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

मित्रों! स्नेहिल नमस्कार जीवन की गति न्यारी न्यारी जितनी सुलझाओ, वह उलझे न सुलझाओ, चलत कटारी ---- माँ लिखा था, मैंने पढ़ा था लेकिन बस पढ़ा था, समझा नहीं था | बच्चे को इतनी गहन बात समझ में नहीं आ सकती थी बेशक सरल शब्द थे, छोटी सी बात थी लेकिन गहन थी | बड़े होने पर कुछ समझ में आया कि जीवन किसी भी दिशा में,कभी भी बहक जाता है | अब मन बहक जाता है तो जीवन, बहक ही तो जाएगा । बहकना मन का स्वभाव है जीवन की गति का भी ! माँ लिखती रहतीं ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

उजाले की ओर ---संस्मरण स्नेहिल नमस्कार मित्रों हरेक साँस में एक आस होती है ,ऐसी आस जो मनुष्य को में कुछ करने के लिए प्रेरित करती रहती है | जो कोशिश करतीहै कि मनुष्य अपने जीवन को अच्छी तरह ,संतुष्टि से जीए किन्तु हम कहीं न कहीं अपनी सोच से, अपनी प्रेरणा से भटक जाते हैं और स्वयं को ही पीड़ा पहुँचाने के माध्यम बन जाते हैं | जब कोई बात बिना किसी विशेष कारण के ही हमारे दिमाग में गलत हिलोरें लेने लगती है तब हम वास्तविकता छोड़कर अपने आप ही न जाने क्या-क्या कयास लगाने लगते हैं ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

========== स्नेही मित्रो सुप्रभात हम स्वीकारते हैं कि कण-कण में प्रभु का वास है, कोई भी काम चाहे कितने पर्दों के पीछे कर लो, प्रभु की दृष्टि से कभी नहीं छिप सकता फिर भी हम आँख-मिचौनी खेलने से बाज़ नहीं आते | अपने साथ के लोगों से तो हम आँख-मिचौनी खेलते ही हैं, ईश्वर को भी धोखा देने से बाज़ नहीं आते | आरती करते हुए सेठ जी घंटियाँ बजा-बजाकर आरती तो करते हैं किन्तु क्रूर दृष्टि से उस गरीब को घूरना नहीं भूलते जिसे अभी-अभी उनका आदमी घसीटकर लाया है जो कई माह से सेठ से लिए गए ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

स्नेही मित्रों नमस्कार आशा है सब आनंद में हैं। मैं थोड़ी सी असहज हूँ। क्यों? आप सबसे साझा करने लिए आई हूँ। आप सब बरसों से मित्र हैं, सबसे पहले आपसे सलाह लेनी बनती है। इसीलिए सबसे पहले आप सबके साथ संवाद करना उचित लगा | अभी हाल ही की बात है मेरे पास मुझसे काफ़ी छोटी एक युवती आई और उसने मुझसे कहा कि वह हिन्दी में लिखती है अत:मैं उसे बताऊँ, समझाऊँ कि वह कैसे पाठकों के पास तक अपनी बात पहुँचा सकती है | मुझे अच्छा लगा, मेरे अनुसार आज की पीढ़ी हिन्दी लेखन में ज़रा ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

============ नमस्कार स्नेही मित्रो एक हास्य कवि हैं श्री हरिवदन भट्ट। गुजराती मूल से हैं किंतु हिंदी में भी सुंदर रचनाएँ करते हैं। उन्होंने बड़ी मज़ेदार किंतु समाज के लिए संदेश पूर्ण कहानी साझा की। आज आप मित्रों को वही साझा करती हूँ। ...... और... बैताल के शव को कांधे पर लादकर राजा विक्रमादित्य मसान से उज्जैनी की ओर चल दिया। टाइम पास करने हेतु बैताल ने कहानी की शुरूआत की। ... मिट्टी के पांच घड़े मेरे पास थे। चार घड़े एक समान थे और छोटे थे ; जब कि पांँचवां घड़ा , बाकी घड़ों से चौगुना बड़ा था। ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

============== आज भोर में एक कोयल ने कूककर मुझे पुकारा और कहा ‘गुड मॉर्निंग’! मैं इधर-उधर देखती रह गई शायद वह किसी बड़े पेड़ की डाली में छिपी बैठी थी और हाँ, शायद मेरे उठकर आने की प्रतीक्षा भी कर रही थी | मुझे हँसी भी आई, अपनी सोच पर--ऐसा तो क्या है भई मुझ में जो वह मेरी प्रतीक्षा कर रही थी लेकिन वह फुर्र से उड़ भी तो गई|छोड़ गई अपने पीछे एक प्यारी सी कूकती मुस्कान! मन में एक कुनमुना सा विचार उठा, काश! कोयल बन जाऊँ! कोयल और मुस्कान ? मैं खुद पर हँस पड़ी, ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

=============== स्नेहिल नमस्कार साथियों इस अधाधुंध दौड़ में भागते हुए अक्सर हम अपने जीवन की कुछ महत्वपूर्ण बातों को देते हैं जिनमें प्रमुख हैं अपने बच्चों को समय न दे पाना, अपने माता-पिता को समय न दे पाना | हम देख ही रहे हैं कि बच्चों को जैसे-तैसे करके हम पाल लेते हैं तो बच्चे भी पिंजरे से उड़ने को व्याकुल रहते हैं और जैसे ही उन्हें समय मिलता है, वे उड़कर बहुत दूर चले जाते हैं | फिर हम उनको दोष देते हैं कि वे पास नहीं रहते, परवाह नहीं करते | समय परिवर्तित हो रहा है, स्वाभाविक ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

==================== स्नेही मित्रो सस्नेह नमस्कार एक नवीन दिवस का आरंभ, एक नवीन चिंतन का उदय हमें परमपिता को प्रत्येक धन्यवाद अर्पित करने का अवसर प्रदान करता है। हम करते भी हैं,कितना कुछ प्रदान किया है उसने जिसने ज़िन्दगी जैसी अनमोल यात्रा का अनुभव कराया है। लेकिन हम कहीं न कहीं चूक जाते हैं, हम अपने वर्तमान में रहकर भी वर्तमान में नहीं रह पाते। हम वर्तमान में रहकर भी न जाने कहाँ कहाँ भटकते रहते हैं। यह मस्तिष्क का स्वभाव है, वह कभी शांत तथा स्थिर नहीं रह पाता। जीवन में कितनी भी आपा-धापी क्यों न चल रही हो ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

उजाले की ओर ----संस्मरण ================== मित्रों सस्नेह नमस्कार उम्र की एक कगार पर आकर काफ़ी चीज़ों में बदलाव आने है, काफ़ी चीज़ें सीमाओं में कैद होने लगती हैं | जैसे किसी को कान से सुनाई देने में दिक्कत, किसी की मैमोरी लौस, किसी को कुछ तो किसी को कुछ | कुछ को अधिक चलने में कठिनाई होना या कुछ और ऐसे ही---कुछ न कुछ तो होने लगता ही है | हम निराश होकर बैठ जाते हैं यदि हमें कोई कहे भी तो भी हम बचते रहते हैं, यदि कहें कि अपने मन को भी मारते रहते हैं तो गलत ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

=========== स्नेही मित्रो ! नमस्कार ( किट्टी पार्टी) वैसे मैं किट्टी पार्टी जैसी पार्टियों के समर्थन में कभी नहीं मुझे सदा यह महसूस होता रहा कि यह सब समय गुज़ारने के साधन हैं, जिनके पास खाली समय है, उनके लिए यह एक अच्छा शगल हो भी सकता है । यदि आप कुछ मौलिक सर्जनात्मक कार्य करना चाहते हैं तब इस प्रकार समय का दुरूपयोग मेरी बुद्धि में नहीं आता । यदि आप एक बार अपने आपको इस प्रकार की व्यस्तताओं से जोड़ लेते हैं तब आपके अन्य सृजनात्मक कार्य वहीँ ठिठक जाते हैं जहाँ से आप उन्हें लेकर चले ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

============ मित्रों! स्नेहिल नमस्कार कुछ ही दिनों की बात तो है कुछ मित्रों के बीच अपनी श्रेष्ठता को लेकर ज़ोर शोर से बहस छिड़ी हुई देखकर मन दिग्भ्रमित हो उठा। अक्सर हम सभी मित्र बहस में पड़ जाते हैं, यदि कहा जाए कि हर मनुष्य स्वयं को 'द बैस्ट' साबित करने में लगा रहता है तो ग़लत नहीं है | विषय चाहे कोई भी क्यों न हो ,हम चाहे अपनी विद्वता के झंडे गाडें, या अमीरी शान के अथवा किसी और बात के, मन के कोने में यही कसमसाहट रहती है कि कोई हमें छोटा, गया-गुज़रा या 'ऐंवे' ही ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

========== स्नेहिल नमस्कार मित्रो इस छोटे से जीवन में कहाँ किसी से बहस करने का समय है? कहाँ उलझने ज़रूरत! जब हम किसी भी प्रकार की उलझन में फँस जाते हैं तो अपने लिए ऐसी नकारात्मकता का गड्ढा खोद लेते हैं कि उसमें फँसते ही चले जाते हैं। जब होश में आते हैं तब देर हो चुकी होती है। अधिकांशत: अपनी वर्तमान स्थिति को विवेक व गंभीरता से न संभालने के कारण इस मन:स्थिति में गड़बड़ी होती है। हमें नकारात्मक विचारों के प्रति सावधान रहना बहुत आवश्यक है । नकारात्मक ऊर्जाएं हमारे शरीर में सकारात्मक ऊर्जाओं के प्रवाह में ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

उजाले की ओर ---संस्मरण ================== स्नेहिल नमस्कार मित्रो! भोर के इन लम्हों में जब अंगड़ाई के लिए उठे हाथ गए अधर में ही नन्हे नन्हे बूँदों की तारों पर लटके मोतियों ने मुस्कुराते हुए अपना स्नेहिल मनुहार पहुंचाया मुझ तक। ठगी रह गई, टकरा गई आँखों में भरी मुस्कान उनसे। अंगड़ाई के लिए उठे हाथ नीचे लटक आए।हतप्रभ मैं पहुंच गई उनके पास। यहाँ से लेकर वहाँ तक, जहाँ तक दृष्टि भी पूरी तरह नहीं पहुंच रही थी, माँ प्रकृति का प्रेम ही प्रेम बरस रहा था। बिन भीगे ही भींज उठा मेरा तन-मन ! प्रेम कहाँ वृत्त में ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

स्नेहिल नमस्कार मित्रो कैसे हैं आप सब? अच्छे होंगे, हैं न? जब हम हर पल परमपिता से जुड़े रहते तो आनंद में ही रहते हैं न, हम उस ब्रह्मांड के हिस्से हैं न जो अलौकिक है, सार्वभौमिक है, शाश्वत है !! हम इस इतने विशाल ब्रह्मांड के, इतने नन्हे से भाग हैं जिसको बायनाकुलर से भी नहीं देखा जा सकता। फिर भी हम इतने विशाल हैं कि अपने ऊपर अभिमान का मनों बोझ लादे ताउम्र भटकते रहते हैं और टूटा हुआ महसूसने लगते हैं। हाँ, गर्व को कितनी बार समझने की कोशिश की मैंने कि इतनी जल्दी बातों को ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

--------------------------- नमस्कार मित्रों ! "दीदी ! पता है आज क्या हुआ ?" इंद्राणी भागती हुई आई | "क्या हो ऐसा जो तुम इतनी उत्साहित दिखाई दे रही हो ? क्या टॉप कर लिया है क्लास में ?" मणि ने छोटी बहन से पूछा जो बारहवीं में पढ़ रही थी | मणि कॉलेज के दूसरे वर्ष में थी और उसका शिक्षा का पूरा सफ़र बहुत अच्छा रहा था | न कभी उसे किसी ट्यूशन की ज़रूरत पड़ी, न ही उसने किसी को यह कहने का मौका दिया कि उसे पढ़ना चाहिए या ऐसे करना चाहिए,वैसा करना चाहिए | खैर कुछ ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

------------------------------- नमस्कार स्नेही मित्रों हवाओं की शीतलता कभी राग में बदल जाती है तो कभी आग में, कभी स्नेह तो कभी ईर्ष्या में, कभी कुहासे में तो कभी रोशनी में ! हमें तो उसके साथ चलना होता है जो हमारे सामने आता है। क्या हम बंद द्वार खोलकर गर्म हवाओं को शीतलता में परिवर्तित कर सकते हैं ? "तुम्हारा नाम आशा किसने रख दिया ?" मैं पूछ ही तो बैठी उससे। "क्यों, कुछ बुराई है मेरे नाम में ?" उसने अकड़कर कहा। "नहीं, बुराई ही तो नहीं है लेकिन तुम क्यों बुराई लाने की कोशिश कर रही हो ? ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

उजाले की ओर - - -संस्मरण ------------------------------------- मित्रों को स्नेहिल नमस्कार अभी रक्षाबंधन का पावन पर्व गया है। स्मृति आकर अपनी कहानी स्वयं सुनाने लगती है और हमें बहुत सी ऐसी घटनाओं से परिचित कराती है जिनसे हम परिचित नहीं होते,जिन्हें जानते ही नहीं। ऐसी ही एक कहानी - - - नहीं, कहानी नहीं जीवन की वास्तविकता को जानने का प्रयास करते हैं। वह अनोखा भाई': (रक्षा बंधन पर आप सबके लिए) महादेवी वर्मा को जब ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था, तो एक साक्षात्कार के दौरान उनसे पूछा गया था, "आप इस एक लाख रुपये का क्या ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

स्नेहिल नमस्कारमित्रोजन्माष्टमी के पावन पर्व के लिए सभी मित्रों को स्नेहपूर्ण मंगलकामनाएँ। कृष्ण प्रेम हैं, सहज हैं, सरल हैं। प्रेम हैं और प्रेम के बिना जीवन का कोई आधार ही नहीं है।जो चराचर जगत के सभी प्राणियों को अपनी ओर आकर्षित करे, वही है कृष्ण! कृष्ण प्रेम हैं इसीलिए सृष्टि का कण-कण कृष्ण की ओर आकर्षित होता है। दरअसल कृष्ण अकेले हैं जो सोलह कलाओं से परिपूर्ण परमपुरुष हैं।श्री कृष्ण की लीलाओं का प्रत्येक आयाम सहज और सरल मालूम होता है। बाल्यवस्था से लेकर अर्जुन को अपने विराट रूप का दर्शन कराने तक उनकी समस्त लीलायें हमारा मार्गदर्शन करती ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

========== नमस्कार स्नेही मित्रो रोमी अब इतनी छोटी भी नहीं थी कि छोटी छोटी बातों को दिल में लगाकर बार उन्ही में अपने आपको गोल गोल घुमाती रहे और दुखी होती रहे। हम मनुष्य हैं, अपना इतिहास या पुराण भी उठाकर देखें तो मालूम होता है कि जिसने इस दुनिया में जन्म लिया है, उससे गलतियाँ हुई ही हैं। उसके लिए क्या ताउम्र आँसू बहाते रहेंगे? जब रोमी की दिन एक ही बात दोहराती रही, मैंने उसे समझाने की कोशिश की कि जो हो गया वह लौट तो सकता नहीं तो क्यों न आगे बढ़े! गलतियां सभी करते हैं, ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

हम भारतीयता और अपनी भाषा हिन्दी पर गर्वित हैं !! ------------------------------------------------------------------- उजाले की ओर----संस्मरण -------------------------------- सभी स्नेही साथियों को हिन्दी दिवस पर इस कॉलम के लिए गुजरात वैभव को अनेकानेक अभिनंदन | मुझे बहुत अच्छी प्रकार से याद है जब गुजरात में 'गुजरात वैभव' पत्र की नींव पड़ी थी | उन दिनों मैं गुजरात विद्यापीठ से पीएच.डी कर रही थी | आ. दादा जी ने इस पत्र की गुजरात में नीव डालकर एक बहुत महत्वपूर्ण कदम उठाया था | अक्सर वे गुजरात विद्यापीठ आते और उनकी डॉ. नागर, डॉ. काबरा, डॉ. रामकुमार गुप्त आदि से हिन्दी के बारे में ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

=================== स्नेहिल नमस्कार सभी मित्रों को शोभित और अमित वैसे तो एक ही गर्भ से जन्म लेने वाले जुड़वाँ हैं परंतु उनके स्वभाव में देखो तो कितना विकट बदलाव है ! मित्रों को लग रहा होगा कि मैं विकट जैसे कठिन शब्द का प्रयोग क्यों कर रही हूँ ? खुलासा कर ही देती हूँ | मैंने सुना था और बहुत सी फिल्मों में भी दिखाया जाता है कि जुड़वाँ बच्चों में बहुत कुछ एक से गुण होते हैं | यह भी कहा जाता अथवा दर्शाया जाता रहा है कि अगर दो जुड़वाँ किसी मेले में बिछड़ जाते हैं अथवा ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

उजाले की ओर ----संस्मरण ================== नमस्कार प्रिय मित्रो आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि सब कुशल मंगल हैं, हैं। जीवन के उतार-चढ़ाव में ऊपर नीचे होकर एक सुनिश्चित, सुनियोजित रूप से भविष्य की रूपरेखा बनाते हुए हम लड़खड़ाने लगते हैं और धराशायी हो जाते हैं। ऐसा नहीं है, कभी संभल भी जाते हैं लेकिन अधिकांश रूप से जब जब लड़खड़ाते हैं तब नकारात्मकता में उतरने लगते हैं और एक बार नकारात्मक हुए कि हमारी ऊर्जा निचुड़ने लगती है और हम अशक्त और अशक्त होते जाते हैं । बस, यही वह समय है जब हमें संभलने की, चेतना की, ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

स्नेहिल नमस्कार मित्रों अचानक ही जब कुछ ऐसा सामने आ जाता है जो चौंका तो देता ही है साथ कुछ ऐसे प्रश्न सामने परोस देता है जिनके उत्तर हमें स्वयं के भीतर ही झाँककर लेने होते हैं | सच, अक्सर ऐसा लगता है कि हम कितने भाग्यशाली हैं जो इतने सुख में हैं | हम बड़े मज़ेदार लोग हैं जो दिनों को बाँटने लगे हैं। हम संयुक्त रूप से रहने वाली संस्कृति के लोगों के लिए हर दिन सबको प्यार बाँटने का दिन होता है जिन्हें हमने टुकड़ों में विभाजित कर लिया है। वैसे यह विचार अचानक ही मन ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

उजाले की ओर---संस्मरण =================== स्नेहिल नमस्कार मित्रों कई बार किसी मनुष्य में कुछ दिनों में इतने बदलाव दिखाई देते कि विचार उठता है, क्या यह वही मनुष्य है ? जी, मनुष्य तो वही होता है जिसको हम वर्षों पहले से जानते थे | कुछ दिनों परिस्थितिवश उससे दूर क्या हुए कि जब मिले तब उसका रूप, आचरण, व्यवहार सब बदल हुआ मिला | कई बार जब सकारात्मक ऊर्जा की बात होती है तब अच्छा लगता है और लगता है कि अवश्य ही उसने अपने जीवन में ऐसा कुछ प्राप्त किया है कि हमें उसके लिए प्रसन्न होना भी बनता ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

================= स्नेहिल नमस्कार मित्रों दिविज बहुत ही प्यारा युवा है | उसने अपने बालपन में क्या खोया ?क्या पाया लेखा-जोखा तो पूरी तरह से उसके पास भी नहीं है | जब बालपन से ही परिस्थितियों में से तीरों की बारिश होने लगे तब बालपन रह कहाँ जाता है ? तब तो वह ऐसी शीट बन जाती है जो प्रयास करती रहती है अपने और अपनों के जीवन को बचाने का | बल्कि अधिकतर अपनों की सुरक्षा का | अनायास ही बालपन परिवर्तित हो जाता है प्रौढ़ावस्था में, युवावस्था तो न जाने कहाँ जा छिपती है अँधियारों में | रोशनी ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

================= नमस्कार स्नेही मित्रों चंदन हर समय दुखी क्यों बना रहता है, मुझे अच्छा नहीं लगता था | मैं समझाती रहती लेकिन उसे महसूस होता कि मैं ऐसे ही उसकी बात को हवा में उड़ा देती हूँ | ऐसा नहीं था, मैं अक्सर उसे समझाती कि उसका नाम तो चंदन है और चंदन का काम है हवा में भी अपनी सुगंध फैलाना | उसे अपने नाम की तरह सबमें सुगंध फैलाकर आनंदित रहना चाहिए लेकिन उसके कण पर जूँ नहीं रेंगनी थी तो रेंगी ही तो नहीं | आज की दुनिया में हर कोई सुख लेना तो चाहता है ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

उजाले की ओर - - - संस्मरण ================== मित्रो स्नेहिल नमस्कार जीवन बड़ा अद्भुत है, सच कहें तो एक सा लगता है और कभी सोता हुआ सा |सच बात तो यह है कि हम मनुष्य कभी भी संतुष्ट नहीं होते | सफ़ल होते हैं, तब और आगे की सोच शुरू हो जाती है और असफल होते हैं तब तो बिलकुल ही निराशा के पलड़े में जा बैठते हैं | सोचकर देखें कि मनुष्य -जीवन में सफलता ज्यादा खतरनाक है या असफलता? जब कभी व्यक्ति असफल होता है तो वह तरह तरह से अपना विश्लेषण करता है। अपनी कमियों ओर ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

उजाले की ओर - - - संस्मरण =================== स्नेहिल नमस्कार मित्रों को "भई, क्या हो गया ऐसा जो इतने तरह बिफरे हुए हो" ? बात ज़रा सी थी, सामने फ़्लैट के निवासी ने औटोरिक्षा में बैठने से पहले मीटर चैक नहीं किया और घर पहुंचकर उनमें और रक्षा वाले भैया में जमकर हंगामा शुरू हो गया जिसका किसी प्रकार कोई औचित्य था ही नहीं। जीवन कभी आवेग के क्षण ले आता है, कभी उत्साह के, कभी कष्ट के यानि जीवन अपने रूप में बदलाव करता ही रहता है, हर पल और उन बदलाव के पलों में हमारी परीक्षा होती ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

==================== सभी मित्रों को स्नेहिल नमस्कार "भई, त्योहारों के इस सुंदर मौसम में तुम्हारे चेहरे का रंग क्यों उड़ा ?" "अरे ! कभी नहीं सुनती मेरा, आपकी बहू ---"उसने अपने मन की भड़ास निकालने की कोशिश की | उमेश को देखते ही मैंने पूछ लिया था और उसने मुझे ऊपर वाला उत्तर दिया था | वैसे तो हर समय ही आनंद में रहना चाहिए लेकिन त्योहार के दिनों में तो आनंद और भी खिल-खुल जाता है | फिर छोटी-छोटी बातों में आखिर मन मुटाव क्यों? कई लोग छोटी-छोटी बातों में ऐसे नाराज़ हो जाते हैं जैसे न जाने क्या ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

उजाले की ओर - - - संस्मरण =================== मित्रो ! स्नेहिल नमस्कार मैं उसे अक्सर मुँह लटकाए थी। सामने के फ़्लैट की बालकनी के सुंदर से लकड़ी के झूले पर उसका तन होता और मन जाने कहाँ भटक रहा होता। मेरे और उसके बीच की दूरी थी लेकिन मैं उसके चेहरे पर पसरे विषाद को भाँप सकती थी और उससे असहज हो जाती थी। अक्सर मित्र, पहचान वाले और हाँ स्नेह करने वाले मुझसे पूछते हैं, "सबके फटे में टाँग अड़ाने का आख़िर शौक क्यों है तुम्हें?" कुछ उत्तर नहीं दे पाती तो फिर एक व्यंग्य उछलकर ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

=================== "अरे ! यहाँ क्यों नहीं बैठती ? किताबों में इस उमर में क्या मिलेगा, लड्डू?" एक दिन नहीं, दिन नहीं जब ये संभाषण हर रोज़ के हो गए भाई कान पक गए, सिर चक्कर खाने लगा और आपनराम चुप्पी साधकर उस रास्ते से गुजरने लगे जहाँ से संभाषण की संभावनाएं बनी ही रहती हैं | उस तीर्थ की ओर देखे बिना जहाँ रामायण के पाठ के साथ ही मुझ जैसे लोगों को पकड़कर बैठने की भरसक कसरत की जाती थी | "अरे भैया ! जाने दो न, पकड़ूँ तोरी बैयां ---" "अभी पता नहीं चलता न, जवानी का ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

ज़िंदगी झौंका हवा का! =============== स्नेहिल नमस्कार साथियों संसार में आपाधापी हम सब देख ही रहे हैं| उम्र की कगार तक आते-आते न जाने कितने बदलाव, कितने ऊबड़-खाबड़, कितने प्लास्टर उखड़ते हुए देख लेते हैं हम! पल-पल में दुखी भी होने लगते हैं | जैसे कोई पानी का रेला बहा ले जाता है समुंदर पर बच्चों द्वारा बनाए गए रेत के घरों को और बच्चे रूआँसे हो उठते हैं, ऐसी ही तो है हम सबकी ज़िंदगी भी! कभी पानी के रेले से पल भर में जाने कितनी दूर जा पहुँचती है कि नामोनिशान भी नज़र नहीं आता| कभी बुलबुले ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

उजाले की ओर--संस्मरण ================ नमस्कार स्नेही मित्रों वैशाली की परेशानी से मन व्यथित था | जहाँ जाती काम समस्या आड़े आती | ऐसा नहीं था कि वह शिक्षा में कम थी अथवा उसे कोई काम मिलता नहीं था, उसकी शिक्षा भी आज की शिक्षा -नीति के अनुसार अच्छी थी लेकिन उसके साथ सबसे बड़ी परेशानी यह थी कि वह किसी को उत्तर ही नहीं दे पाती थी | किसी ने अगर उसे कुछ कह दिया तो उसकी आँखों से टप टप आँसु झरने लगते और वह असमंजस में ही पड़ जाती | इस सीधे स्वभाव के कारण दूसरे ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

================== स्नेहिल सुभोर मित्रो पड़ौसी के घर से वैसे तो हर दिन शोर आता ही था, नहीं, नहीं बच्चों बात नहीं कर रही हूँ | उन बड़ों की बात कर रही हूँ जो बड़े तो हैं ही, अपने माथे पर समझदारी का बड़ा स लेबल चिपकाए घूमते रहते हैं | "भैया, ते तमगा क्यों?" "क्यों? तुमै क्या परेशानी हैगी जी ? माथा हमारा, तमगा हमारा अर चिपकने की गोंद भी किसी से मांग कै न लाए हैंगे जी फिर ----??" "नहीं,नहीं ---हमने तो यूँ ही पूछ लिया था --इतना बुरा न मानो भाई |" अपने कानों को पकड़कर उन्हें ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

=================== मित्रों स्नेहिल नमस्कार सूर्य की रोशनी, चाँद की चाँदनी, समय-समय पर चलती हुई पुरवाई और प्रकृति की प्रत्येक गुनगुनाती भंगिमा हमें बिन शब्दों के सहज, सरल सलीके से इतना कुछ सिखा जाती हैं कि हम आश्चर्यचकित रह जाते हैं ! कैसा मैनेजमेंट है उस परवरदिगार का कि हम कुछ सोच, समझ ही नहीं पाते और सारी चीजें व्यवस्था से चलती रहती हैं | उस दिन मणि बड़ी परेशान थी, अक्सर परेशान हो ही जाती है वह ! "आँटी ! क्या करूँ मैनेज नहीं कर पा रही हूँ ?"उसने आते ही शिकायत का पुलिंदा मेरे सामने खोल दिया|"अब क्या ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

================= स्नेहिल मित्रों सस्नेह नमस्कार जीवन में कई बार ऐसी घटनाएँ अचानक समक्ष आ जाती हैं कि उन्हें किए बिना मन नहीं मानता | इस जीवन-यात्रा में आवश्यक नहीं होता कि कोई यथा कथित शिक्षित अथवा उच्च वर्ग से संबंधित व्यक्ति ही बहुत समझदार, संवेदनशील लगे | यह समझदारी किसी के भी भीतर हो सकती है क्योंकि विधाता ने हम सभी को मस्तिष्क नामक उपहार से नवाज़ा हुआ है |वे अवश्य अपेक्षा भी करते ही होंगे कि हम उनके द्वारा प्रदत्त इस उपहार की पूरी सार-संभाल करें व इसकी उपयोगिता करें | इसीके मद्दे -नज़र मुझे एक घटना ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

मानसिक संत्रास की परिधि में पीढ़ियाँ !! ========================= स्नेहिल मित्रों नमस्कार अखिल भारतीय सद्भावना व्याख्यान माला, उज्जैन में मुझे किया गया था | जिसके विषय का चयन भी मुझ पर छोड़ दिया गया था |पहले महिलाओं की मानसिक संत्रास की बात की गई थी किन्तु मुझे यह अहसास हुआ कि मन व तन की स्वस्थता पुरुष अथवा स्त्री सबके लिए आवश्यक है। मेरा यह व्याख्यान उज्जैन की प्रत्येक वर्ष आयोजित की जाने वाली व्याख्यान श्रृंखला में सम्मिलित है। जिसे व्याख्यान हाल में उपस्थित विद्वानों द्वारा सराहना प्राप्त हुई। उज्जैन के अनेक समाचार पत्रों ने मेरे वाक्य की हैडलाइन से ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

================== नमस्कार स्नेही मित्रो कई बार बात बहुत छोटी सी होती है किंतु हमारे जीवन में यह बहुत गहन डालती है। सच में यदि सोचकर देखें तब महसूस होगा कि इस भौतिक जगत में से निकलना इतना आसान नहीं है। हम एक चीज़ में से निकल कर दूसरी किसी बात में फँस जाते हैं लेकिन मुक्त नहीं रह पाते। हम अपनी उलझनों में से निकलने के लिए हाध पैर मारते हैं, छटपटाते रहते हैं। किसी के द्वारा सुनाई गई एक कथा याद आती है : एक पंडित जी प्रतिदिन किसी रानी के पास कथा करने जय करते थे। कथा ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

================== स्नेहिल नमस्कार मित्रों लाली मेरे लाल की जीत देखूं तित लाल, लाली देखन मैं चली, मैं भी गई लाल ! हम अपनी तमाम उम्र स्वयं को खोजते ही रहते हैं जैसे मृग की नाभि में कस्तूरी और वह बन -बन ढूँढता फिरता रहे, वैसे ही हमारे भीतर ईश्वर विराजमान हैं और हम उन्हें न जाने कहाँ कहाँ खोजते फिरते हैं | दरअसल हम स्वयं को ही कहाँ जानते हैं, हम दूसरों के भीतर झाँकने का प्रयत्न अधिक करते हैं स्वयं को खोजने, जानने के बजाय | यह हमारे व्यवहार का ही एक अंग बन गया है जिसके ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

उजाले की ओर - - - - संस्मरण -------------------------------------- स्नेहिल सुभोर मित्रो वह अक्सर दुखों का अंबार सिर पर घूमता रहता है। पूछो तो किसी के साथ कुछ साझा करना नहीं चाहता। इसी प्रकार साल दर साल गुज़र रहे हैं और हम नहीं जानते कि हम स्वयं से ही अपरिचित हो रहे हैं। विधाता ने प्रत्येक मनुष्य को अलग अलग शक्लोसूरत, अलग अलग कदकाठी, अलग अलग रूप रंग दिया है। शायद इसमें कोई उनकी सोच ही रही होगी। या फिर शायद यह सब मनुष्य को अपने कर्मानुसार मिलता होगा। यूँ तो आजकल ज्ञान बाँटने का, गुरुओं का व्यापार इतना ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

प्रिय साथियों स्नेहिल नमस्कार अभी 26 जनवरी का पावन दिवस गया है। इस दिवस को हम सभी भारतीय प्रत्येक बहुत उत्साह से मनाते हैं भारत के इतिहास में 26 जनवरी की ऐतिहासिक पावनता संचित है। मनीषी जननायकों, बुद्धिजीवियों एवं विधि-विशेषज्ञों का गहन चिंतन, विभिन्न धर्मों व दार्शनिक विचारधाराओं में निहित आध्यात्मिक मानवीय तत्त्वों का उत्कर्ष, भारत की गौरवशाली साँस्कृतिक परम्पराओं से अदम्य ऊर्जा लेकर विश्व में महान राष्ट्र के रूप में भारत के निर्माण का स्वप्न, असंख्य पीढ़ियों तक भारतवासियों की आकांक्षाओं, आशाओं, सपनों एवं संकल्पों का प्रकाश-उदगम, भारतवासियों के मौलिक अधिकारों तथा निर्देशक सिद्धांतों व इनके संरक्षण का ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

स्नेही मित्रों नमस्कार, स्नेह कैसा लगता है जब आप अपने पाठक मित्रों से दूर हो जाते है, बेशक कुछ के लिए ही सही ? मुझे तो कुछ समय में ही अकेलेपन ने अनमना कर दिया | कभी महसूस हुआ कि कैसे एक पंछी की भाँति उड़कर मातृभारती के पटल पर पहुँच जाऊँ, कभी लगा कि विवेक रखना बहुत आवश्यक है | वैसे भी विवेक के बिना कोई भी काम संभव नहीं | मैंने लगभग दो वर्ष तक अपने स्वास्थ्य का ध्यान नहीं दिया जिसका परिणाम कुछ तो होना ही था | कोई बात नहीं, मुझे पूर्ण विश्वास है कि ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

स्नेहिल नमस्कार मित्रो! सभी मित्रों के मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य की कामना ! अनेकानेक बंधनों, अड़चनों, परेशानियों के भी जीवन चलता है, बहता है। ठहरता है, ठिठकता है, सहमता है फिर भी चलता है। कारण? जीवन चलने का नाम, चलते रहो सुबह-शाम ! थम जाना तो जीवन नहीं, उसका अपमान है। वास्तव में इस खूबसूरत दुनिया को बनाने वाले का, जीवन के प्रदाता का अपमान हम कैसे कर सकते हैं? जिस प्रकार हम स्वयं को इस दुनिया में लाने वाले अपने माता-पिता की अवहेलना नहीं कर सकते। भिन्न मित्रों के अनुभवों व स्वयं के अनुभवों से पता चलता ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

=================== स्नेहिल नमस्कार प्यारे मित्रों हर दिन छोटी-बड़ी बातें होती रहती हैं | जीवन का न तो कोई भी खाली रहता है न ही कोई भी दिन अथवा कोई भी मन का कोना | मन तो ऐसा कंप्यूटर है जो भरा ही रहता है | अब जब कोई भी चीज़ अधिक भर जाए, उसमें कुछ इतना ठुँसने लगे कि भीतर ही भीतर युद्ध छिड़ने लगे, वहाँ कुछ जगह तो बनानी ही पड़ती है | कुछ चीज़ों को खाली करना पड़ता है, कुछ चीज़ों को समेटना पड़ता है तब कहीं जाकर कुछ खुली साँस आ सकती है | अपने इसी ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

=============== नमस्कार प्रिय मित्रों कभी ऐसा लगता है न कि अभी सब कुछ इतना अच्छा चल रहा है, चारों खुशियाँ हैं, मन के द्वार पर तोरण है, मन में मधुर आस है, विश्वास है, जीवन को जीने की एक नवीन दृष्टि किसी कोने से आकर छा गई है मन-मयूर नृत्य करने के लिए उत्साहित, उत्फुल्ल है और अचानक कहीं से न जाने कैसी आँधी आ गई कि सब कुछ उलट-पुलट हो गया | सारा उत्साह, प्रफुल्लता एक ओर आंधी के साथ बह जाते है | हम सभी यह भली प्रकार जानते, समझते हैं कि इस जीवन में इस प्रकार ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

=================== नमस्कार प्रिय मित्रो बहुत सी बार बातें होती छोटी होती हैं किंतु उनका प्रभाव अचानक, अजीब व नकारात्मक जाता है। कहीं एक कहानी पढ़ी थी, वह आप सबके साथ साझा करती हूँ। एक स्कूल में एक बच्चे ने अचानक ही सारे चित्र काले रंग से बनाने शुरू कर दिए। चाहे वो सूर्य हो, फूल, पत्ती, बादल, पृथ्वी, समुद्र या कुछ और। स्कूल के शिक्षक चिंतित हो गए। क्योंकि यह काला रंग उसकी किसी निराशा का या दुख का संकेत दे रहे थे। माता पिता से, दोस्तों से, उसके आस पड़ोस में पूछा गया। जानकारी इकट्ठी करके एक बड़ी ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

================= नमस्कार स्नेहिल मित्रों आशा है, आप सब स्वस्थ व आनंदित हैं जीवन में न जाने कितने उतार-चढ़ाव आते हम सबको आमना-सामना करना पड़ता है |कभी उनसे सामना करते हैं तो कभी उनसे छिपने की कोशिश भी लेकिन यह सच है कि जीवन में हमें सभी तत्वों की आवश्यकता होती है | मनुष्य प्रकृति से ही संवेदनशील है, उसमें प्रत्येक प्रकार की संवेदना समय-समय पर आकर अपनी उपस्थिति का दर्शन करवा ही देती है | रंजन काम के मामले में बहुत गंभीर और प्रगति के मामले में बड़ा चैतन्य लेकिन बॉस के मामले में उसका ज़रा अजीब ही मसला ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

====================== स्नेहिल नमस्कार मित्रों आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि आप सबकी होली खूब रंग-बिरंगी व उल्लासपूर्ण वातावरण आनंद से व्यतीत हुई होगी | रंगों के इस पर्व की महत्ता हम मनुष्यों से अधिक और कौन जान-समझ सकता है ? जिसके जीवन में किसी भी कारण से एकाकी और अकेले में रहने की आदत पड़ जाती है, उसे अपने भीतर कैसा महसूस होता होगा ? हम सब समाज के अंग हैं, हमारे दो-चार लोगों के परिवार के अतिरिक्त समाज हमारा परिवार है जिससे हम हर दिन जुड़े रहते हैं, कभी दुख में तो कभी सुख में ! आज ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

================== स्नेहिल नमस्कार मित्रो! आशा है, आप सब आनंद में हैं । मेरी सोसाइटी काफ़ी बड़ी सोसाइटी है जिसमें से ही अख़बार, दूध, सब्ज़ी-फलों वाले हाॅकर, हैल्पर आने शुरु हो जाते हैं। उनमें से कुछ तो कितने वर्षों से आते हैं और जिनको अपना सामान देते हैं, अथवा जिनके यहाँ काम करते हैं उनसे कभी अपने सुख दुख भी साझा करते हैं। दरअसल, वर्षों से आने के कारण उन्हें सब अपने ही लगते हैं। दुनिया में सब प्रकृति के लोग होते हैं, कुछ के पास काग़ज़ी डिग्री नहीं होती लेकिन उनके अनुभव उन्हें बहुत परिपक्व बना देते हैं और ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

================== यादों के झरोखे से खिलती, खुलती झरती हँसी हमें रोते हुओं को भी अचानक मुस्कान में तब्दील कर है | मुन्ना भैया को मिलाकर हमारे घरों के आँगन के चारों ओर बने दस मकान थे |उन्हें मकान कहा जाना उचित नहीं है वैसे क्योंकि मकान मिट्टी, चूने, लकड़ी, ईंटों को मिलाकर बना दो और खड़ा हो जाता है एक मकान ! अब वह कितना बड़ा या छोटा है, यह महत्वपूर्ण नहीं होता | महत्वपूर्ण होता है, उसका घर में परिवर्तित होना | मकान, चाहे वो कोठी हो या फिर बंगला या फिर लंबा चौड़ा महल बनकर मुँह लटकाए ...और पढ़े

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उजाले की ओर –संस्मरण

=================== नमस्कार मित्रो जीवन के अनुभवों से हम न जाने कितना कितना सीखते हैं। एक दिन में न जाने बातें और यदि यह कहें कि हर पल, एक दूसरे से न जाने कितनी बातें सीखते हैं। इसका कारण यह है कि हम सबमें गुण हैं, अवगुण भी हैं। बुराई है तो अच्छाई भी है। हम सबमें कुछ न कुछ ख़ास है। वही हमें एक नाम देता है, एक पहचान देता है। अखिल बड़ा परेशान! हर बात में उसे किसी न किसी की सलाह की ज़रुरत। चलो वो भी कोई बात नहीं लेकिन खुद की खूबियों को तो पहचानो भाई। ...और पढ़े

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