UJALE KI OR - 32 books and stories free download online pdf in Hindi

उजाले की ओर - 32

उजाले की ओर

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स्नेही मित्रो

सस्नेह नमस्कार

हम सब हैं एक ही दुनिया के बाशिंदे किन्तु भिन्न-भिन्न स्थानों में हमने जन्म लिया ,भिन्न-भिन्न परिवेश में हमारी शिक्षा-दीक्षा हुई इसलिए विचारों में भी परिवर्तन आया |किन्तु एक चीज़ जो चाहे किसी भी स्थान की हो ,किसी भी जाति-बिरादरी की हो ,वह सबमें एकसी है ---और वह है हमारी संवेदना ! ये वे संवेदनाएँ हैं जिनसे मनुष्य में इंसानियत की चमक आती है ,वह दूसरों के दुख: दर्द को भी अपनी पीड़ा के समान ही समझ पाता है |उसके मन मेँ किसी गरीब अथवा अशक्त को सहारा देने की इच्छा मन में जागृत होती है |किसी भी परिस्थिति में संवेदनशील मनुष्य अपने सामने होते हुए किसी भी प्रकार के अनाचार को सह पाने मेँ खुद को असमर्थ पाता है |

आज सारी दुनिया वैश्वीकरण की दुहाई देती है |हम सब दुनिया के किसी भी कोने को अपने समीप पाते हैं ,बहुत अच्छी बात है किन्तु इस सबमें हम कहीं खो जाते हैं |आजकल ये जो ‘डे’ मनाने की प्रथा चल रही है ,यह एक बीमारी की भांति पुष्पित व पल्लवित होती जा रही है | मैं समझती हूँ ये भी संवेदना प्रदर्शित करने का ही एक रूप हैं किन्तु जब इसमें एक-दूसरे से तुलना होने लगती है तब संवेदनाओं का तो कचूमर निकल जाता है और रह जाता है केवल दिखावा जो वास्तव मेँ बहुत हानिकारक है | अपना प्रेम प्रदर्शित करने के कई तरीके हो सकते हैं जिनमें किसी विशेष दिन कोई विशेष क्रिया द्वारा प्रदर्शित किया जाने वाला स्नेह भी गलत नहीं है किन्तु जब यह प्रदर्शन एक स्नेह के स्थान पर मन को मलिनता से भर दे ,तब तो यह गलत ही हुआ न ? प्रेम व स्नेह वैसे भी किसी एक दिन की उपज नहीं होते |प्रेम व स्नेह प्रत्येक दिन होगा तभी तो आपसी रिश्तों मेँ मुहब्बत बनी रह सकेगी !किसी के कष्ट को महसूसना व उसे कम करने का प्रयत्न करना भी तो स्नेह व प्रेम का ही एक अंग है |

चलिए,ये ‘डेज़’ हम सब भी हम एक त्योहार की भांति मनाने लगते हैं तो ठीक है किन्तु जब प्रेमी अथवा पति-पत्नी के बीच दूसरों के द्वारा दिए जाने वाले ‘गिफ्ट्स’ को लेकर मनमुटाव होने लगे तब स्नेहिल संवेदनाएँ तो ‘डस्टबिन’ का हिस्सा बन जाती हैं और आपसी मन-मुटाव की बरखा प्रेमी ह्रदयों मेँ अपने छींटे उड़ाने लगती है |

मित्रों ! अब आप ही सोचें ,इसमेँ लाभ है अथवा हानि ? प्रेम को किसी भी चीज़ अथवा दिन मेँ कैद करके कैसे हम संतुष्ट हो सकते हैं ? फिर भी यदि ये ‘डेज़’ मनाने ही हैं तो उसमें स्ंतुष्टि रहे जो हमें मिलता है उसमें न कि दूसरों की देखा-देखी ऐसी ‘गिफ्ट्स’ की अपेक्षा की जाए जो बेचारे प्रेमी अथवा पति की जेब ही खाली करवा दे |प्रेम तो एक पुष्प से भी प्रदर्शित किया जा सकता है और नौलखे हार से भी |इसमें किसी से कोई तुलना अथवा कोई बराबरी होनी ठीक नहीं |

हाँ,जाते जाते मैं आपको ‘वैलेंटाइन वीक’ की बधाई देने से नहीं चूकुंगी |आखिर यह भी एक उत्सव की भांति ही तो मनाया जाता है |लेकिन एक इच्छा के साथ कि आपका हर दिन,हर पल ही खुशियों व प्रेम से भरा हो ,आपको कोई तनाव न हो ,आप सदा आनंद मेँ रहकर स्नेह प्राप्त करते व प्रसरित करते रहें -----आमीन !!

हमने प्रेम को एक डिबिया मेँ

कैद कर दिया है

बांध दिया है उसे ,डोरों से

आइए---उसे उड़ने दें खुले आकाश मेँ

और वितरित कर दें

संपूर्ण धरा पर ------

आप सबकी मित्र

डॉ.प्रणव भारती

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