उजाले की ओर Pranava Bharti द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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उजाले की ओर

1-उजाले की ओर
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मित्रों !
प्रणाम
जीवन की गति बहुत अदभुत है | कोई नहीं जानता कब? कहाँ?क्यों? हमारा जीवन अचानक ही बदल जाता है ,कुछ खो जाता है ,कुछ तिरोहित हो जाता है |हम एक आशा की प्रतीक्षा में खड़े रह जाते हैं और हाथ मलते रह जाते हैं |
ईश्वर प्रत्येक मन में विराजता है ,उसने सबको एक सी ही संवेदनाएँ प्रदान की हैं |प्रत्येक प्राणी के मन में प्रेम,ईर्ष्या,अहंकार करुणा जैसी संवेदनाओं को प्रतिष्ठित किया है |वह चाहे कोई भी जीव-जन्तु हो अथवा मनुष्य ईश्वर ने तो सबको एक समान ही निर्मित किया है | उसने न तो उनमें कोई भेद किया है ,न ही कोई छोटे-बड़े का आलंबन किया है | हाँ,एक बहुत ही महत्वपूर्ण वस्तु मनुष्य को दी है ,जो है 'मस्तिष्क' ,चिन्तन की शक्ति !सोचिए जरा मनुष्य के अतिरिक्त मस्तिष्क का उपयोग और कौनसा प्राणी कर सकता है ?प्रत्येक प्राणी में मस्तिष्क है किन्तु उनका चिंतन अपने वर्ग तक ही सीमित है |
यह केवल मनुष्य है जिसके पास सही चिन्तन करने की क्षमता तथा समाज को कुछ प्रदान करने का गुण वरदान के रूप में प्राप्त हुआ है |फिर भी हम मनुष्य बहक जाते हैं |वैसे तो अच्छाई-बुराई की सबकी अपनी सीमाएं होती हैं | एक चोर अपने परिवार का पेट भरने के लिए चोरी करता है, उसे वह बुराई नहीं लगती किन्तु यदि वह भी चिंतन की गहराई से जुड़ सके तो समझ पाएगा कि इस चोरी के अतिरिक्त वह और कुछ भी कर सकता था और अपने परिवार का पेट भर सकता था |किन्तु ऐसा होता नहीं है ,यह मनुष्य का स्वभाव है कि वह आसानी से मिलने वाली वस्तु को झपटना चाहता है,ले लेना चाहता है ,छीन लेना चाहता है |

कई बार हमें यह भी लग सकता है कि हमने अपने जीवन का बहुमूल्य समय गँवा दिया ,अब बहुत देर हो चुकी है |

मुझे अपने पिता की बात याद आती है जो कहा करते थे कि मनुष्य अपने जीवन की अंतिम घड़ी तक सीख सकता है |

वे स्वयं हिंदू-बनारस विश्वविद्यालय के चार बार के गोल्डमैडिलिस्ट थे ,उन्होंने चार विषयों में पी.एचडी व डी.लिट् किया था |आज वे नहीं हैं किन्तु जब सोचती हूँ तो उनकी बात शत -प्रतिशत सत्य लगती है और लगता है कि उम्र के इस कगार पर भी मैं सबसे कुछ न कुछ सीख सकती हूँ |

बस ,यहीं पर ईश्वर द्वारा प्रदत्त मनुष्य का चिन्तनशील मस्तिष्क काम में आता है | वास्तव में मनुष्य का जीवन एक पुस्तक है यदि वह उसे एक खुली पुस्तक के रूप में बांचने का प्रयत्न करे तब वह स्वयं तो सुखी रहेगा ही अपने चारों ओर के लोगों को भी सुख ही प्रदान करेगा |बात केवल एक चिन्तन भर की है जो यदि सोच पाएं तो बहुत आसान है और यदि न सोच सकें तो उतनी ही कठिन !
क्यों न हम अपनी चिन्तन-शक्ति को इतना ऊंचा उठाएं कि उससे हमारा व हमसे जुड़े हुए लोगों का ही नहीं वरन समाज के प्रत्येक वर्ग का लाभ हो सके |हम अन्धकार से उजालों की ओर बढ़ें ,जीवन के मार्ग प्रकाशित कर सकें |इसीमें हमारी सफलता होगी और जीवन जीने का उद्देश्य भी पूर्ण होगा |

आँचल में भर लूं आँसू सब

आँखों में खुशी बिछा दूँ तो
जीवन हो जाए सफल मेरा

चिंतन का गीत सुना दूँ तो ---------!!

प्रणव भारती