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Part .1 गाँव की सुबह हमेशा की तरह शांत थी। हल्की धूप खेतों पर फैल रही थी, हवा...
चंदनी लेखक राज फुलवरेसुनहरे चंदन के पेड़ों की लंबी कतारों के बीच, एक छोटी-सी गुफ...
त्योहारों की छुट्टियां और आपका दिल क्या आप ज...
कहते हैं न,कभी-कभी उम्र कम पड़ जाती है प्यार करने के लिए,और कभी-कभी पूरी उम्र भी...
सर्जा राजा – भाग 1(बैलों का महान मेला – शुरुआत)लेखक राज फुलवरेअध्याय 1 – बैलों...
घर की दहलीज ,सुबह की पहली किरणें बरामदे में बिछी सफेद चादर पर पड़ रही थीं, लेकिन...
घने जंगल के हृदय में, जहाँ सूरज की रोशनी भी डरते-डरते ज़मीन तक पहुँचती थी, वहाँ...
सवा का महीन था। चारों तरफ हरी चादर पेड़ पौधों को ढके हुए थी । आकाश में काली घटाए...
एपिसोड 1: खामोश पेंटिंग की पहली साँसपुरानी गली की वह कला-दुकान हमेशा की तरह उस श...
विशाल, अथाह समुद्र के बीचों-बीच एक आलीशान-सी क्रूज़ लहरों से जूझ रही थी। चारों ओ...
Part .1 गाँव की सुबह हमेशा की तरह शांत थी। हल्की धूप खेतों पर फैल रही थी, हवा में मिट्टी की सोंधी खुशबू घुली हुई थी। वह उसी गाँव में पला-बढ़ा था, सयुग जहाँ हर कोई एक-दूसरे को नाम...
दिव्या की ट्रेन नई पोस्टिंग की ओर बढ़ रही थी। अगला जिला—एक छोटा-सा पहाड़ी इलाका, जहां सड़कें संकरी थीं और हवा में चीड़ की ताजगी भरी खुशबू। प्रोबेशन का दूसरा चरण। रेस्ट हाउस यहां भी...
जंगल अब पहले जैसा नहीं रहा था। जहाँ कभी राख और सन्नाटा था, वहाँ फिर से हरियाली लौट आई थी। नई बेलें पुराने पेड़ों से लिपट गई थीं, पक्षियों की आवाज़ें सुबह को जगाने लगी थीं और नदी का...
एपिसोड 52 — “हवेली का प्रेत और रक्षक रूह का जागना”(सीरीज़: अधूरी किताब)️ 1. हवा फटी — और हमला शुरू हुआकाली रूह ने जैसे ही चीखकर अपना रूप फैलाया,हवेली की नीली रेखाएँ काली पड़ने लगीं...
मुंबई 2099 – डुप्लीकेट कमिश्नररात का समय। मरीन ड्राइव की पुरानी सुरंग वीरान थी। हवा में नमी और अजीब सा सन्नाटा।कमिश्नर अरुण देशमुख जैसे ही आगे बढ़े, अचानक उनकी नज़र पास पड़े एक पत्...
भूल-87 ‘सिक्युलरिज्म’ बनाम सोमनाथ मंदिर (जूनागढ़ के लिए कृपया भूल#31 पढ़ें। सोमनाथ और गजनी के महमूद के लिए भूल#92, 93 देखें) सोमनाथ मंदिर गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र के काठियावाड़ के...
चंदनी लेखक राज फुलवरेसुनहरे चंदन के पेड़ों की लंबी कतारों के बीच, एक छोटी-सी गुफा थी—शांत, ठंडी और सुगंध से भरी हुई। वही थी चंदनी का घर, चंदनवन की रक्षिणी।न जाने कितने वर्षों से वह...
हमारा समाज अपने व्यक्तियों की उपलब्धियों एवं सफलता के मानकों का समय-समय पर निर्धारण करता रहता है। कुछ परिस्थितियों में ये मानता है कि समाज के नियम सर्वोपरि हैं तो अन्य म...
दिल्ली के ऊपर हल्की बारिश की बूंदें गिर रही थीं।सड़कों पर पीली रोशनी फैल रही थी।लेकिन ISAR के वैज्ञानिक ब्लॉक की एक खिड़की अभी भी चमक रही थी—वहीं खिड़की जहाँ से भारत का सबसे अनोखा...
एपिसोड 2: डर से भरोसे तककमरे में अब भी वही अजीब-सी ठंड थी, जैसे दीवारों के भीतर कोई अनकही साँसें घूम रही हों।आरव अपनी जगह जड़ बना खड़ा था—आँखें सामने तैरती उस आकृति पर टिकी हुईं।वह...
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