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उजाले की ओर –संस्मरण

हम भारतीयता और अपनी भाषा हिन्दी पर गर्वित हैं !!

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उजाले की ओर----संस्मरण

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सभी स्नेही साथियों को नमन

हिन्दी दिवस पर इस कॉलम के लिए गुजरात वैभव को अनेकानेक अभिनंदन |

मुझे बहुत अच्छी प्रकार से याद है जब गुजरात में 'गुजरात वैभव' पत्र की नींव पड़ी थी |

उन दिनों मैं गुजरात विद्यापीठ से पीएच.डी कर रही थी |

आ. दादा जी ने इस पत्र की गुजरात में नीव डालकर एक बहुत महत्वपूर्ण कदम उठाया था |

अक्सर वे गुजरात विद्यापीठ आते और उनकी डॉ. नागर, डॉ. काबरा, डॉ. रामकुमार गुप्त आदि से हिन्दी के बारे में चर्चाएं होतीं | मुझे इस बात को साझा करते हुए प्रसन्नता है कि उन चर्चाओं में शामिल रहने का सौभाग्य मुझे मिलता रहा |

यह हिन्दी का एकमात्र पत्र था जिसने गुजरात के अधिकांश अध्यापकों, साहियकारों को जोड़ा और अपनी भाषा को बुलंदियों तक ले जाने में सदा प्रयत्नशील रहा |

मुझे इस बात की भी प्रसन्नता है कि मेरा लेख 'उजाले की ओर' प्रत्येक रविवरीय परिशिष्ट में वैभव में बहुत वर्षों तक प्रकाशित होता रहा | इससे मुझे अनेकों पाठक मिले |

कई बार वे अपनी समस्याओं के समाधान के लिए पत्र लिखते अथवा फ़ोन से अपनी समस्याएं बताते |

यथाशक्ति मैं आ. दादा जी के साथ चर्चा करके उन समस्याओं का समाधान देने का प्रयास करती |

हिन्दी एक दिन की नहीं, हमारी हर पल की भाषा है | हिन्दी हमारी धड़कन है, हमारी साँसें है |

यह केवल भाषा ही नहीं है, हमारा विश्वास है, गर्व है, स्वाभिमान है, मुस्कान है, देश का अभिमान है |

हिन्दी हमारी एकता की, गर्व की भाषा है | मैं सभी उन हिन्दी-प्रेमियों को अपनी हार्दिक शुभकामनाएं प्रेषित करती हूँ जो पूरे हृदय से अपनी माँ हिन्दी में कार्यरत हैं, व उसके ऊपर गर्व करते हैं | हमारी सबकी यही भावना व कामना है कि हमारी हिन्दी पूरे विश्व-पटल पर सर्वोच्च सिंहासन पर विराजमान हो |

हम सब मिलकर हिन्दी के काम में संलग्न रहें |

इसी आशा व विश्वास के साथ सभी हिन्दी-प्रेमियों को अनेकानेक मंगलकामनाएँ

डॉ. प्रणव भारती

अहमदाबाद

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