उजाले की ओर--संस्मरण Pranava Bharti द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

उजाले की ओर--संस्मरण

नमस्कार

स्नेही मित्रों

जीवन की गाड़ी अद्भुत --कभी भागे ,कभी खिचर-खिचर चले | कभी बिलकुल बंद होकर अड़ जाए |

फिर उसे चलाने के लिए मशक्कत करनी पड़ती है और फिर भी वह थोड़ी दूर जाकर ठिठक जाए तो आखिर क्या करे इंसान !

जी,सभी की गाड़ी रुकती,थमती ,ठिठकती चलती है | कभी उसे धक्का मारना पड़ता है फिर गैराज में भेजना पड़ता है |

हमारे चिंतन का भाग एक गैराज ही तो है जो हमारे जीवन की ठिठकी हुई गाड़ी को चिंतन से सफ़ाई करके आगे बढ़ने में मदद करता है |

कभी कभी जब गाड़ी अधिक परेशान करती है तो हम अपने मित्रों से भी सलाह-मशविरा करते हैं कि भई,इसे निकाल दें या अभी इसकी मरम्मत करके काम चला लें ?

मस्तिष्क की सोच जीवन की गाड़ी को धक्का मारकर चलाती है ,कभी-कभी बेईमान भी हो जाती है |

शुभ्र कई वर्षों से एक ही द्फ़्तर में काम कर रहा है | सीधा-सादा शुभ्र दीवान अपने काम के प्रति बहुत सचेत है |

उसके कुलीग उससे कितना काम करवा लेते हैं और वह बिना कुछ न-नुकर किए अपने सहयोगियों का काम कर देता |

इसका परिणाम यह हुआ कि लोग उसका फ़ायदा उठाने लगे |

एक-दो बार तो उसने एवोयड किया बाद में जब देखा कि उसके पास फाइलों के थप्पे लग जाते हैं ,उसे चाय पीने का समय भी नहीं मिल पाता |

वह काम करते-करते ही मेज़ पर बैठा चाय पी लेता है और उसके कुलीग उस पर काम पटककर मस्ती मारते फिरते हैं |

वह परेशान हो उठा ,कभी किसीको काम के लिए मना किया नहीं था तो लोग उसका फ़ायदा उठाने लगे थे |

एक रविवार को जब वह मेरे पास आया ,उसकी पत्नी बड़ी परेशान थी |

उसने मुझे बताया ;"दीदी!ऑफिस में कभी काम के लिए शुभ्र मना ही नहीं करते ---इतने साल से क्लर्क हैं ,क्लर्क ही बने रहेंगे |"

"अरे ! ऐसा क्यों कह रही हो मणि ,काम करना तो अच्छी बात है| काम करेंगे तभी उन्हें आगे प्रमोशन मिल सकेगा |"मुझे पूरी बात मालूम नहीं थी|

"दीदी ! काम इन्होंने किया और प्रमोशन इनके बाद के तीन लोग ले गए | सब इनके पास फ़ाइलें पटक जाते हैं और ये इतने भौंदू हैं कि सबका बोझ अपने कंधों पर लाद लेते हैं |"

"यह तो गलत बात है ---" मैंने अपनी सहमति मणि को जताई |

"जो काम करता है प्रमोशन भी उसका ही होना चाहिए न !कहते क्यों नहीं तुम ?"

"क्या कहूँ दीदी? प्राइवेट नौकरी में हूँ ,लोग रौब झाड़कर काम निकलवा ही लेते हैं --" शुभ्र बोला | वह हर बार की तरह चुस्त नहीं था ,उदास था |

" देखो ,अगर तुम अपने काम में ईमानदार हो तो कहना सीखो ,मना कर दो | हाँ,अपना काम ईमानदारी से करो |"

बड़े होने के नाते मैंने उसे सलाह दी |

कुछ दिनों बाद वह फिर मिलने आया | मेरे पूछने पर उसने बताया कि उसने दूसरों के काम के लिए अब मना तो कर दिया है लेकिन वे लोग अब उसके पीछे ही पद गए हैं |

उसने बताया कि उस फ़र्म का मालिक तो अच्छा है लेकिन वहाँ काम करने वाले लोग उसे एक बस-कंडक्टर का बेटा मानकर उस पर अपना अधिकार समझते हैं |

मुझे उसका यह कहना अच्छा नहीं लगा और मैंने उसे दूसरों का काम न करने के निर्णय पर जमे रहने की सलाह दी |

उसने किया भी ऐसा ही लेकिन जब अगली बार वह मिला ,उदास था | बोला ;

"दुनिया के बाज़ार में वही व्यक्ति अकेला खड़ा रह जाता जो साफ़ व ईमानदार हो |"

उसकी बात सच थी ,आज आदमी को चौकन्ना होकर चलना ज़रूरी है | अपनी सिधाई से खुद को बेचारा बनने से बचने की आवश्यकता है | अधिक सिधाई से लोग मूर्ख समझते हैं | मनुष्य को अपने लिए खड़े रहना बहुत ज़रूरी है तभी वह इस दुनिया में सरवाइव कर पाता है |

कुछ दिनों बाद शुभ्र समझ गया था कि उसे क्या और कैसे करना है | कुछ दिनों बात उसे प्रमोशन भी मिल गया |

उसने अपनी बात कहनी सीख ली थी |

मित्रों ! यदि हम आवश्यकता पड़ने पर गलत बात का विरोध नहीं करेंगे तो हमारा साथ कोई नहीं दे सकता |

हमें अपने लिए खुद खड़े होने की ज़रूरत है !!

सस्नेह

डॉ. प्रणव भर्ती