उजाले की ओर ----संस्मरण Pranava Bharti द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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उजाले की ओर ----संस्मरण

उजाले की ओर ---संस्मरण

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नमस्कार स्नेही साथियों

इस जीवन -संग्राम में डूबते-उतरते हुए हम कभी निराश होकर टूटने की कगार पर आ जाते हैं |

यह जीवन हमें न जाने कितनी बार इस कगार पर ला खड़ा करता है और फिर वहाँ से उठाकर फिर से जूझने के लिए छोड़ देता है |

मनुष्य का स्वभाव है ,वह मुड़-मुड़कर देखता है जितना वह पीछे मुड़कर देखता है ,उतना ही अधिक कमज़ोर पड़ता जाता है |

कभी परिस्थितियाँ उसे कमज़ोर बना देती हैं और वह अपने सही निर्णय नहीं ले पाता |

इसका परिणाम यह होता है कि मनुष्य कई बातों के भँवर में डूबता-उतरता रहता है और बेचैनी उसका पीछा नहीं छोड़ती |

हम दरअसल,कई बार भयभीत हो जाते हैं | कोई काम करना है ,अथवा नहीं ? इसका सही निर्णय नहीं ले पाते |

जब हमारे निर्णय गलत होते हैं तो फलस्वरूप हमारे परिणाम भी गलत ही होते हैं |

जिसके लिए हमें बाद में पछताना पड़ जाता है |

हर पल ज़िंदगी झरोखे से झाँकती नज़र आती है ,झरोखा बंद हो तो ज़िंदगी में विराम लगने की संभावना ही रहती है |

नीरा से बहुत पहले से परिचित हूँ | दीदी कहती है ,कोई परेशानी होती है तो साझा करती है |

किसी भी काम की शुरुआत करने में सकुचाती बहुत है |

मनुष्य के लिए कुछ बातें स्वाभाविक होती हैं | किसी काम की शुरुआत करने में पहले-पहल उसे संकोच होता ही है |

लेकिन जैसे-जैसे वह आगे बहता जाता है ,उसका संकोच दूर होने लगता है |

न जाने नीरा पर यह परिभाषा क्यों सही नहीं उतरी |

वह कोई भी निर्णय लेने से सदा भयभीत रही मुझसे बात भी की और जब लिया तो गलत निर्णय ले लिया|

हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि या तो हम स्वयं इतने परिपक्व हैं अथवा यदि किसी विश्वासपात्र से अपनी बात शेयर कर रहे हैं और उसके सुझाव माँग रहे हैं |

तब उसके सुझावनुसार चलकर भी देखना होगा ,संभवत: वह हमारे हिट में हो |

कुछ दिनों बाद नीरा मेरे पास आकर रोने लगी | पूछा ---तो बताया कि अपनी बुद्धिनुसार निर्णय लिया था लेकिन वह धोखा खा गई |

अब पछताए होत क्या ? नदी जब अपने ठिकाने से निकलकर सागर के समीप पहुँचती है तब उसके मन में एक घबराहट होती है लेकिन पीछे लौटने का कोई रास्ता नहीं होता |

उसे आगे बढ़कर सागर में मिल जाना ही होता है |

हमें भी आगे बढ़ना ही होता है ,ठिठकने का कोई अवसर नहीं |

यदि जीवन में कोई कष्टपूर्ण अवसर आ जाए तब बिना घबराए आगे बढ़ने में ही समझदारी है |

अन्यथा हम उसी परेशानी में घूमते रह जाते हैं जो हमें कमज़ोर बनाती है |

हमें ध्यान रखना होगा और अपने निर्णय पर सही मुहर लगानी होगी |

जीवन तो ऊपर -नीचे चलता हुआ हमसे न जाने कितने प्रश्न पूछता है ,उनके उत्तर हमें स्वयं ही देने होते हैं |

सावधान रहना होता है ,विश्वास व आस रखनी होती है औए न केवल स्वयं के लिए वरन अपने से जुड़े हुओं के लिए भी छाया बनकर रहना होता है |

यह जीवन है ,इस जीव का यही है ,यही है ,यही है रूप !!

सस्नेह

डॉ. प्रणव भारती