उजाले की ओर –संस्मरण Pranava Bharti द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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उजाले की ओर –संस्मरण

प्रिय मित्रो!

स्नेहिल नमस्कार

आशा है सब स्वस्थ वआनंदित हैं और आने वाले त्योहारों की तैयारियों में पूरे जोशो-खरोश से लगे हुए हैं।

हमारे देश जैसा दुनिया भर में कौनसा देश है जो इतना रंग बिरंगा है। इतने त्योहार ! इतना हर्षोल्लास ! उसके बावज़ूद भी हम कभी टूट-बिखर जाते हैं । निराशा ओढ़ने -बिछाने लगते हैं | हम मनुष्य हैं और कभी न कभी सब कुछ ठीक चलते हुए भी हम निराशा में डूब जाते हैं | यह सब भी होता रहता है लेकिन यदि हम उस निराशा में गहरे चले जाएं तो कभी कभी अपने से जुड़े हुए लोगों को भी निराशा के भँवर में खींच ले जाते हैं | हमारे सामने ऐसी परिस्थितियाँ आती रहती हैं लेकिन यदि हम थोड़ी गहराई से सोचें तो पाएंगे कि कभी-कभी यह नकारात्मकता चुनौती के रूप में आती है और हम उस चुनौती के कारण सफ़ल भी हो जाते हैं |

अक्सर देखा गया है कि कुछ करीबी मित्र भी अलग टोन में बातें करने लगते हैं |

"हाँ. भई । आपके पास तो इतना है, आप तो इतना कर सकते हैं; हम तो ज़्यादा बात नहीं कर पाते, ज़्यादा काम भी नहीं कर पाते । आप तो इतना कर लेते हैं । आपके इतने दोस्त हैं, आप तो घंटों उनसे बतियाते रहते हैं, हम तो भई थक जाते हैं, हम आपके जैसे सोशल नहीं हो सकते | कई बार समझ में भी नहीं आता कि ऐसी बातें कहने का औचित्य क्या है ? यह प्रशंसा है अथवा किसी को नीचा दिखाने के लिए किया जाता है?

अन्नी और किन्नरी उम्र के उस किनारे पर पहुँच गईं हैं जहाँ उनको किसी लाग-लपेट या किसी बेकार की प्रशंसा की ज़रूरत नहीं है | हैं भी दोनों बहुत पुरानी मित्र ! दोनों एक-दूसरे के स्वभाव को अच्छी तरह जानती हैं | अन्नी वैसे किन्नरी की बहुत प्रशंसा करती रहती है लेकिन ऐसी बातें बोल जाती है कि किन्नरी की आँखों में आँसू भरने लगते हैं |

ऐसा नहीं है कि इस प्रकार की बातें केवल लड़कियाँ या महिलाएं ही करती हैं | हम कई बार खासी उम्र के पुरुषों को भी ऐसी बातें करते हुए सुनते हैं |

दूसरी एक बात और देखी गई है कि बड़ी उम्र हो जाने पर भी लोग अपने पद का गाना गाना नहीं भूलते | चाहे दोस्त हों । पड़ौसी अथवा सगे-संबंधी, ऐसी बातें करने वाले लोग यह नहीं जानते-समझते कि वे बिना किसी विशेष कारण के अपने संबंधों में अलगाव पैदा करते हैं |

सोचकर देखें, सबकी न तो हैसियत एक सी होती है और न ही शारीरिक, मानसिक व आर्थिक अवस्था ! इसलिए किसी भी बात की भला क्या? क्यों? कैसी तुलना ?

मैं केवल इतना कहना चाहती हूँ कि यदि हमें कुछ ऐसी परिस्थितियों का सामना करना पड़े तो उन्हें हमें एक चैलेंज के रूप में लेना चाहिए

कई बार नेगवटिव लोग भी हमारे जीवन मे बदलाव ला सकते हैं और कैसे उन्ही नेगेटिव लोगों की बातों को चुनौती के रूप में लेकर उनकी वजह से हम तरक्की कर जाते हैं और वे अपनी नेगेटिविटी के चलते, ना घर के रहते हैं ना घाट के।

कुछ लोगों की टेंडेंसी ऐसी होती है जो किसी को काम करते देख, खुश नही होते। फर्ज करो उनके पड़ोस में कोई नई गाड़ी ले आये तो वो उस बात से भी परेशान हो जाएंगे। सबसे पहला आरोप तो ये लगाएंगे कि गलत कमाई से लाया होगा। ऐसे लोग अपने भीतर झाँककर नहीं देखते बल्कि दूसरे को नीचे गिराने में लगे रहते हैं। यही वो लोग हैं जिनसे हमे बचना है और उनकी बातों को अपने ऊपर हावी भी नहीं होने देना है । इन्हें सही संज्ञा अगर दी जाए, तो ये साइकोपैथ हैं। जो अपना काम धंधा छोड़ कर व्यर्थ में ही अपने जीवन का कीमती भाग व्यर्थ कर देते हैं | ऐसे लोगों से व्यर्थ ही उलझने की आवश्यकता नहीं होती क्योंकि उनके कारण, उनकी व्यर्थ की बातें सुनकर हम पीड़ित तो होते ही हैं, हमारे अंदर नकारात्मकता पनपने लगती है और हम खुद को अशक्त महसूस करते हैं |

कहा जाता है न कि जीवन इतना छोटा सा है कि प्रेम के लिए छोटा पड़ जाता है तो बेकार की बातों, नफ़रत, ईर्ष्या, अपनी बड़ाई करके दूसरों को नीचे दिखाने का समय ही कहाँ रह जाता है ?

अभी दशहरे का पर्व गया है जहाँ हम वर्षों से बाहर के रावण को जलाते आए हैं | किन्तु हमारे भीतर का रावण ज्यों का त्यों किसी न किसी रूप में हमारे भीतर जमा हुआ है |

ऐसे तो पूरा जीवन ही हम अपने भीतर के रावण को जमाए ही रखेंगे |

बाहरी राम-राम कभी भी हमारे भीतर की नकारात्मकता को नष्ट नहीं कर सकता चाहे हम कितने रावण मार लें और यही हो भी रहा है | अपनी नकारात्मकता के कारण हमारे रिश्ते उलझ रहे हैँ । ईर्ष्या, नफ़रतें बढ़ रही हैं और हम वहीं के वहीं खड़े हुए हैं जहाँ बरसों पूर्व थे |

मन के रावण को मारने के साथ ही हमारे भीतर दीपों की लौ जगमगाने लगती है | दीपावली आ गई है, हम सब अपने मन के अँधेरों से निकलकर मन में हर्षोल्लास के दीपक जला लें और नकारात्मक बोलने, सोचने, कहने वालों को एक उजास दें जिससे सबके मनों में प्यार, मनुहार के दीप प्रज्वलित होते रहें और हम सब मिलकर एक खूबसूरत, रौशन दीपावली मनाएं जिसमें प्रेम हो, करुणा हो और हों वे सारी खूबसूरत संवेदनाएं जो हमें भीतर से प्रफुल्लित करती हैं। सुवासित रखती हैं |

मित्रों! सबको दीपावली के पावन पर्व की अशेष, मगलकामनाएं | हम सब सदा प्रसन्न, स्वस्थ, आनंदित रहें । प्रेम केवल प्रेम बाँटते चलें | किसी से न अपेक्षा करें और न ही उपेक्षा !

हमारे पास चाहे कम है अथवा अधिक, आनंद में रहने के लिए पर्याप्त है । महसूस करके देखें !

सभी मित्रों को दीपावली की अनन्त रोशनी भरी मंगलकमनाएं |

हम सबके मन में कभी अंधकार न हो,मन के दीप सदा जगमगाते रहें !

 

अशेष स्नेहिल शुभकामनाएं

आपकी मित्र

डॉ. प्रणव भारती

हमें सदा यही याद रखना है कि हमारा जीवन बहुत नन्हा सा है, हमारे पास तो ज़रा स भी समय नहीं है जिसको हम खराब कर सकते हैं | कब पल भर में जीवन व्यतीत हो जाता है, हमें पता ही नहीं चलता |

 

स्नेहिल