उजाले की ओर - 18 Pranava Bharti द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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उजाले की ओर - 18

उजाले की ओर

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स्नेही मित्रों

नई सुबह का सुखद नमन

इस गत वर्ष को 'बाय' करते हुए मन न जाने कितनी-कितनी बातों में उलझा हुआ है | पूरे विश्व में एक अजीब सा भय फैलाने वाले इस बीते वर्ष ने बहुत सी बातें सोचने के लिए मज़बूर कर दिया है | ज़रुरी भी है कि हम अपनी कार्य-प्रणाली पर ध्यान दें और यदि कुछ नहीं कर सकते तो कम से कम अपने लिए व अपनों से जुड़ों के लिए एक सुरक्षा-कवच अवश्य बनाने की चेष्टा करें |

नव-वर्ष बाध्य करता है सोचने के लिए कि गत वर्ष में हमसे क्या त्रुटियाँ हो गई हैं, यदि इस वर्ष उनका सुधार कर लिया जाय तो क्या बात है!!इससे हम किसी और का भला नहीं वरन स्वयं अपने ही व्यक्तित्व में सुधार करेंगे |क्या ही अच्छा हो यदि हम केवल और केवल स्वयं में झांककर देख लें कि हमारे व्यक्तित्व का कौनसा अंग शिथिल पड़ रहा है और तुरंत ही उसका इलाज़ शुरू कर दें,उसकी देखभाल कर दें |पुरानी कहानियों में से अपने चरित्र को पहचानकर हम अपने आज से तुलना करें और फिर देखें कि बीते समय में और आज के समय में हमने स्वयं में क्या परिवर्तित किया है ?निश्चय ही हम बेहतर जीवन के अधिकारी होंगे |

हम सबका संपूर्ण जीवन एक बृहद उपन्यास है जिसमें ढेरों कहानियाँ छिपी हुई हैं,हम अपने एक जीवन में अनेकों चरित्रों का निर्वहन करते हैं और जब जीवन के अंतिम मोड़ पर पहुँचते हैं तब एक पछतावा सा महसूस करते हैं |काश! हमने ऐसा न किया होता किन्तु इस बात को स्वीकारने में कि हमसे कुछ गलत हो गया है, देर हो जाती है | हम ऎसी कगार पर आकर खड़े हो जाते हैं कि पीछे लौटने का समय ही नहीं बचता | त्रुटियाँ कर बैठना बहुत स्वाभाविक है,हम मनुष्य हैं इसीलिए त्रुटियाँ कर बैठते हैं किन्तु उनका सुधार करना भी हमारा ही काम है |

प्रत्येक मनुष्य के जीवन का हर पल एक कहानी कहता है ,सोचकर देखें किस पल में कहानी नहीं है |सभी बातें किसी एक पल से ही प्रारंभ होती हैं और पल पर ही आकर समाप्त हो जाती हैं|यदि हम गंभीरता से सोचें तो पाएंगे कि हमारे जीवन का एक-एक पल कितना महत्वपूर्ण है |हमें कोई कार्य करना है,कोई निर्णय लेना है और यदि किसी कारणवश वह विशेष पल हमसे चूक जाता है तो कभी–कभी हम केवल उस एक पल के कारण ही जीवन के ऐसे दोराहे पर आकर खड़े हो जाते हैं जिसके बाद हमारी राह ही अवरुद्ध हो जाती है|हम मानो किसी गहरी खाई अथवा कूएँ में समा जाते हैं| लक्ष्य पर पहुंचने के कई मार्ग होने के उपरान्त भी हम अपने लिए सही मार्ग का चयन करने में स्वयं को अक्षम पाते हैं |यह स्थिति इस कारण भी हमारे समक्ष आ सकती है जब हम अपने मस्तिष्क को किसी भी कारण से स्थिर नहीं रख पाते| हम निर्णय लेने के समय से चूक जाते हैं और भटकाव की स्थिति में अटक जाते हैं |समय व्यतीत होना है,हो जाता है |यह न किसी के लिए रुका ,न ही रुकेगा |

कभी ऐसा भी होता है हमारी किसी से अनबन हो जाती है ,किसी विशेष परिस्थिति में हमारे मुख से कुछ गलत निकल जाता है ,सामने वाला भला क्यों चुप रहे ?आखिर वह किसी से कम तो नहीं,वह हमें और अधिक कड़वाहट से उत्तर परोसता है |बस फिर क्या है दोनों ओर से कमान में से तीर निकलने शुरू हो जाते हैं |हमारी कहानी में सकारात्मकता के स्थान पर नकारात्मकता भर जाती है |इस प्रकार की घटनाएँ बारंबार होने से हम शिथिल होते जाते हैं |आँखों में आँसू भर जाते हैं ,हृदय की धड़कनें तीव्र हो जाती हैं ,कभी तो उच्च-रक्तचाप के भी रोगी बन जाते हैं किन्तु हम स्वयं को सही करने की दिशा में कोई प्रयत्न नहीं कर पाते क्योंकि हम छोटे से जीवन की सच्चाई जानते हुए भी उसे न समझने की भूल करते हैं |हम सभी कभी न कभी इस परिस्थिति से दो-चार होते हैं ,यह समझने का प्रयत्न नहीं करते कि वास्तव में हमें जीना कैसे और किस सोच के साथ है ?प्रतिदिन होने वाली घटनाओं से जो कहानियाँ जन्म लेती हैं वो कुहरे में दब जाती हैं,उनकी उज्ज्वलता को ग्रहण लग जाता है |

अपने जीवन में घटित होने वाली घटनाओं से उत्पन्न कहानियाँ और उनमें पात्रों का निर्वहन करने वाले हम सब ही तो हैं,यदि हम सचेत रह सकें तो निश्चय ही हमारा जीवन अधिक सुन्दरता व आनन्द से परिपूर्ण हो सकेगा ,इसमें कोई संशय नहीं है |

आइये ! नव-वर्ष में हम एक नवीन सोच के साथ ताज़गी भरी मुस्कुराहट से जिंदगी का स्वागत करें और मुस्कुराकर पुकारें ;

आ ज़िंदगी गले लगा ले ---पिछले पूरे वर्ष गले लगाने की बात क्या हाथ मिलाने की बात भी भयभीत करने वाली रही है |अब भी हमें 'डिस्टेंसिंग' ,सेनेटाइज़ ,मास्क का ध्यान रखने की बहुत ज़रुरत है | यहाँ मैं ज़िंदगी को गले लगने का निमंत्रण दे रही हूँ.मित्रों को नहीं ------ध्यान रखें ,स्वस्थ्य व सुरक्षित रहें |आमीन !

संभले रहें जाएं और अफ़सोस करने के स्थान पर स्वयं में सुखद परिवर्तन लाने का प्रयास करें | नवीन वर्ष में नये तराने लेकर जिंदगी का स्वागत करें,हमें यह न कहना पड़े;

यूँ ही कभी हाथों से फिसली है ज़िंदगी,

मेरे –तुम्हारे बीच में पिघली है ज़िंदगी ||

सभी मित्रों को नव-वर्ष की खुशनुमा शुभकामनाएँ

नए वर्ष के नए तराने ,आओ सब ही मिलकर गए लें |

सस्नेह

आप सबकी मित्र

डॉ.प्रणव भारती