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उजाले की ओर –संस्मरण

उजाले की ओर ----संस्मरण

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नमस्कार प्रिय मित्रो

आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि सब कुशल मंगल हैं, आनंदित हैं। जीवन के उतार-चढ़ाव में ऊपर नीचे होकर एक सुनिश्चित, सुनियोजित रूप से भविष्य की रूपरेखा बनाते हुए हम लड़खड़ाने लगते हैं और धराशायी हो जाते हैं।

ऐसा नहीं है, कभी संभल भी जाते हैं लेकिन अधिकांश रूप से जब जब लड़खड़ाते हैं तब नकारात्मकता में उतरने लगते हैं और एक बार नकारात्मक हुए कि हमारी ऊर्जा निचुड़ने लगती है और हम अशक्त और अशक्त होते जाते हैं । बस, यही वह समय है जब हमें संभलने की, चेतना की, जागरूकता की आवश्यकता है।

समस्याएं चाहे व्यक्तिगत जीवन से सम्बंधित हों या पारिवारिक, आर्थिक हो या सामाजिक , प्रतिकूल परिस्थितियों से संघर्ष करने के लिए सदा सकारात्मक सोच ही हमेशा काम आती है। यदि किसी का भी चिंतन नकारात्मक होगा तो वह भीतर ही भीतर टूटता रहेगा। अपने जीवन को अपने ही हाथ बर्बाद कर देगा।

इसीलिए यदि हमें सफ़ल होना है तो हम अपनी प्रतिकूलताओं को दूर करने का बार बार प्रयास करेंगे। प्रतिकूल परिस्थितियों के बारे में सोचने से समस्याओं का समाधान संभव नही है। इसे सम्भव बनाया जा सकता है बस आवश्यकता है मानसिक संतुलन बनाए रखने की, तीव्र इच्छा शक्ति, सकारात्मकता और स्वस्थ चिंतन को बनाये रखने की। मानसिक संतुलन तभी सम्भव है जब विचारों की उलझन को कम किया जाए व सहज स्थिति विकसित की जाए।

जब हम अपने विचारों में स्पष्ट होते हैं, हमें उलझन कम होती है और हम  किसी भी तरह की परिस्थिति में स्वयं को सामंजस्य बैठाने योग्य बनाने में समर्थ होते हैं ।

अत: मित्रों ! आवश्यक है कि हम अपनी नकारात्मकता को तिलांजलि देकर सकारात्मक रवैया अपनाएँ और जीवन को भरपूर आनंद से जीएँ।

आपका सबका हर दिन सुरक्षित एवं मंगलमय हो।

आपकी मित्र

डॉ. प्रणव भारती

 

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