उजाले की ओर –संस्मरण Pranava Bharti द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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उजाले की ओर –संस्मरण

मित्रों
सस्नेह नमस्कार

आशा है आप सब प्रसन्न वह आनंदित होंगे। जीवन एक बहुत बड़ी भूल भुलैया है। कभी-कभी यह हमें इतनी सफ़लता की ओर ले जाता है जो हमने कभी सोचा ही नहीं होता, कभी यह हमें इतना नीचे गिरा देता है जो भी हमने सोचा नहीं होता। सवाल इस बात का है कि आखिर यह सब होता कैसे है? सीधी सी बात है यह सब हमारे अपने करने से होता है। कभी-कभी हम आनंद में इतने अच्छे काम कर जाते हैं जिसके परिणाम बहुत अच्छे होते हैं यानि हमें यह याद भी नहीं होता कि हमने यह कब किया लेकिन यह हमारा मूल स्वभाव होता है जो हमें उस सुनिश्चित काम की ओर ले जाता है। अगर मूल स्वभाव नहीं होता और हमें पता चल जाता है कि हमारे भीतर यह गलती है तो हम उसे ठीक करने की चेष्टा करते हैं और उसके परिणाम स्वरूप हम जो काम करते हैं वह सकारात्मक होता है, स्वाभविक है, उसका परिणाम भी सकारात्मक होगा जो हमारे व हमसे जुड़े हुए सबके लिए आनंदमय होगा ।

हमारे कर्म या तो हमें सफ़लता की ऊंचाइयों तक पहुंचा सकते हैं या पराजय की गहराइयों तक। हमारी रोज़ रोज़ की आदतें हमारा स्वभाव बन जाती हैं। और हमारे स्वभाव से ही हमारे जीवन की सीमाएं ओर प्रतिभाएं निश्चित होती हैं।

इस बात को हम कुछ इस प्रकार उदाहरण स्वरूप देख सकते हैं। 

अब देखिए यदि हम अपना वज़न घटाना चाहते हैं, लेकिन हमारी आदत है जो मन किया, जब किया खा लिया तो क्या हम अपने लक्ष्य तक पहुंचेंगे? 

यह एक उदाहरण है, लेकिन इसके पीछे की जो बात है वो हर जगह लागू होती है- चाहे वो नौकरी हो, हमारा घर हो या हमारे रिश्ते! जीवन के हर पहलू में सफ़लता कर्मों पर, प्रयास पर ओर हमारी आदतों पर निर्भर रहेगी।

हम जब यह मान कर चलते हैं कि हर घटना के पीछे कोई ऐसी शक्ति हैजो कभी हमारा बुरा नहीं चाहती है तो परेशानी में भी हमअपने मन को शांत और संतुलित पाएंगे। हमारे अंदर ये अडिग विश्वास होगा कि जिसने ये परेशानी दी है वो ही इसे हल करने का रास्ता भी देगा।

दूसरी ओर अगर हम ये मान कर चलेंगे कि हम अकेले हैं हमारा सही गलत देखने वाला कोई नहीं, तो हम अपने जीवन की बड़ी से बड़ी उपलब्धियों में भी परेशान होंगे, असन्तुष्ट होंगे। अब यह चुनाव हम पर है कि हम अच्छाई को चुनते हैं या बुराई को। सामर्थ्य को चुनते हैं या आलस्य को।

कुछ दिन पहले निशा से यही बातें हो रही थी वह बड़ी परेशान थी जब मैंने उसे इस प्रकार से समझाया तो वह काफी स्वस्थ लगी। मुझे लगा कि इस बात को या कहें इस विचार को मुझे मित्रों से साझा करना चाहिए इसीलिए मैंने उपरोक्त बातें अपने पाठक मित्रों से साझा की हैं। आशा है, इस सबसे हमें सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होगी।

खुद में झांके और खुद ही अपने निर्णय लेने के प्रयास करें। देखिए मन का आंँगन कैसा खेल उठता है! तो आइए, सब मिलकर मुस्कुराते हुए इस नए वर्ष में पूरे विश्व के लिए प्रार्थना करें और कल्पना करें कि हमारा पूरा विश्व स्वस्थ रहेगा सब लोगों पर ब्रह्मांड की कृपा बनी रहेगी और धीरे-धीरे जो चीजें हमारे लिए नकारात्मक हो गईं थीं, वे फिर से सकारात्मक ऊर्जा लेकर आ जाएंगी । 

आमीन! 
आपकी मित्र 
डॉ.प्रणव भारती