उजाले की ओर –संस्मरण Pranava Bharti द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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उजाले की ओर –संस्मरण

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मित्रों !

स्नेहपूर्ण नमस्कार

जीवन की गति न्यारी मितरा ---सच, मन कितनी बार झूमता है-झूलता है, चहकता है -महकता है, रोता है-सुबकता है और फिर शिथिल होकर बैठ जाता है | यानि पूरे जीवन भर इसी ग्राफ़ में ऊपर-नीचे होता रहता है | कोई एक मन नहीं, इस दुनिया में जन्म लेकर अंतिम क्षण तक जीने वाले सभी मन जो पाँच तत्वों से निर्मित इस शरीर में कुलबुलाते रहते हैं |

अधिक तो ज्ञान नहीं है किन्तु मन की परिभाषा कुछ ऎसी समझ में आती है कि मन अर्थात मस्तिष्क की वह क्षमता जो मनुष्य को चिंतन, स्मरण, निर्णय, बुद्धि, भाव, इन्द्रिय, एकाग्रता, व्यवहार आदि को सक्षम बनाती है | वास्तव में मन और मस्तिष्क एक ही सिक्के के पहलू प्रतीत होते हैं किन्तु मन से सोचकर हम बुद्धि से निर्णय लेते हैं जो तर्क -वितर्क भी करती रहती है |

मन में बहुत सी बातों के बीज उगते हैं लेकिन सारी बातें पल्ल्वित नहीं हो सकतीं, यह बड़ी स्वाभाविक सी बात है | तीन दिन हुए मैं अपनी बहुत प्यारी दोस्त से मिलने गई | पता चला था कि उसका स्वास्थ्य ठीक नहीं है | पहले जहाँ हम कुछ दोस्त सप्ताह अथवा पंद्रह दिनों में तो अवश्य ही बाहर जाया करते और प्रदर्शनियों में नई नई चीज़ें देखते, पेंटिंग की प्रदर्शनी में जाते, शास्त्रीय संगीत व नृत्य के कार्यक्रमों में जाते | शायद ही कोई ऐसा मह्त्वपूर्ण व क्लासिक कार्यक्रम होता कि उसका फ़ोन न आता हो | बहुत सी बार तो जाने का मूड भी न होता या कोई काम भी होता तब भी उसकी नाराज़गी के कारण जाना ही होता | कितनी शौकीन थी वह !

वह आकाशवाणी और दूरदर्शन के उच्च पदों पर रह चुकी है | हम सब मित्र जब भी उसके चैंबर में मिलते, उसके लिए जैसे दावत का समय होता | कितनी खुश होती थी ! एक प्रसिद्ध संगीत के घराने से जुड़ी हुई उसका मन इतना बड़ा था कि उसका पूरा स्टाफ़ उससे खुश रहता | जब देखो.चाय -नाश्ता करवा रही है | सरल, सहज स्वभाव की वह दोस्त अपने काम के दिनों में कितनी सकारात्मक थी | वैसे भी हम सब मित्र सकारात्मक बने रहने की बातें अधिक किया करते थे | वह हमेशा कहती, खूब अच्छे कपड़े पहनकर, तै यार होकर रहना चाहिए| एक्ज़ीबीशन्स से ज़बरदस्ती कपड़े ख़रीदवाती |

हममें से सभी सोचते थे कि ज़िंदगी भर काम करने वाला बंदा आखिर कैसे बिना काम के बैठ सकता है ? सलाह करते, कोई न कोई ऐसा शौक़ रक्खेंगे जिससे हमारी आख़िर की उम्र आसानी से, प्रसन्नता से गुज़र सके | यही उम्र का पड़ाव सबसे महत्वपूर्ण होता है | वह संगीत-समीक्षक थी, हर माह किसी न किसी संगीत की पत्रिका में उसकी समीक्षा प्रकाशित होती रहती | हम सोचते कि उसके पास सेवा निवृत्ति के बाद संगीत से जुड़े हुए खूब समीक्षात्मक काम होंगे | लेकिन न जाने कैसे वह इन सबसे दूर होती गई | कुछ वर्षों तक तो हम सब अधिक मिलते रहे फिर कुछ कारणोंवश ऐसा समय भी आ गया कि मिलना कम होने लगा | दुःख-सुख में मिल जाते अन्यथा सब अपने में व्यस्त ! लेखन वाले लेखन में, संगीत वाले संगीत में, कंसल्टेंसी वालों ने अपने काम को थोड़ा कम कर दिया था लेकिन बिलकुल बंद नहीं किया था|

उसकी तबियत देखने जब हम कुछ मित्र उससे मिलने गए, उसे एक अजीब सी स्थिति में पाया | उसका शरीर बहुत निर्बल हो चुका है, सुनने में तकलीफ़ है | पहले ही वह बहुत पहलवान नहीं थी अब तो सूखकर काँटा हो रही है | हम सबसे मिलकर उसके चेहरे पर मुस्कान तो छा गई लेकिन उसकी स्थिति देखकर हमारे भीतर झुरझुरी सी छा गई |

कुछ ऐसा हुआ कि मेरा मन न जाने क्यों पिछले दिनों में घूमने लगा | उससे बातें करके मन पुरानी बातों से कुछ सोचता हुआ इस विषय पर लिखने के लिए विवश हो गया |

मित्रो !

हम सभी के लिए यह बहुत आवश्यक है कि हम अपनी सेवा-निवृत्ति से पहले ही किसी ऐसे काम में स्वयं को मशगूल कर लें कि अधिक न सही थोड़ा ही करें किन्तु बिलकुल ख़ाली न बैठें | ख़ाली बैठना यानि शैतान का घर ---हम लोग काफ़ी देर तक उसके पास बैठकर आए लेकिन हम जो सोच रहे थे कि उसके साथ थोड़ा हँस बोल सकेंगे, पुरानी बातों को याद करके उसकी खिंचाई कर सकेंगे, ऐसा कुछ नहीं हुआ |

उसके कपड़े इतने ढीले थे मानो कहीं टंगे हों, उसके बाल बिखरे हुए थे | उसके पास हर काम के लिए सेवक मौज़ूद हैं किन्तु उसकी यह हालत देखकर हमारे कलेजे मुँह को आ गए | हम हर समय उससे कहते रहते थे कि इतना बाहर जाने का शौक तुम्हें ही है, तुम जाओ | वह हम दोस्तों से ख़ासकर मुझसे नाराज़ रहती कि मुझे समय नहीं मिलता है | इसका कारण था कि मुझे लेखन के लिए बहुत समय की दरकार रहती | वह रूठ जाती थी फिर हम उसे खुश करने के लिए कोई न कोई कार्यक्रम बना ही लेते |

उस दिन उससे मिलने के बाद मेरी आँखों के सामने उससे जुड़े हुए कितने ही संस्मरण तैरने लगे | हम सबको यह भी महसूस हुआ कि प्राकृतिक रूप से बदलाव आना बड़ी स्वाभाविक सी स्थिति है लेकिन अपने आपको इस परिस्थिति के लिए मन से तैयार करना कुछ प्रतिशत तो मनुष्य के अपने हाथ में है |

मित्रों ! यदि हम जीवित हैं तब सकारात्मकता का आभूषण हमारे लिए आवश्यक है | जिस दिन हम स्वयं से विमुख हो जाएँगे, उस दिन हमारे साथ कोई नहीं रह पाएगा | अकेलापन हमें शिथिल करता जाएगा | ज़रूरी है कि हम प्रौढ़ावस्था के समय में ही किसी न किसी कार्य में अपने आपको जोड़ने की चेष्टा करके अपने जीवन के कगार पर आकर आनंदित रहें |

अपने युवा मित्रों से भी मेरी अपील है कि वे अपने सेवा-निवृत्ति के समय के लिए अपने मन को

तैयार कर लें | किसी न किसी ऐसी चीज़, ऐसी रुचि को अपने जीवन का हिस्सा बना लें कि इतनी बेचारगी न रहे |

ज़िंदगी है, बदलाव आएँगे ही, 

समझदारी इसमें है कि मन से स्वीकार करें

 

आप सबकी मित्र

डॉ प्रणव भारती