उजाले की ओर –संस्मरण Pranava Bharti द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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उजाले की ओर –संस्मरण

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"पता नहीं, आपकी उम्र तक हम कैसे रहेंगे ?"

ये शब्द थे मेरे से बहुत छोटे मेरे मामा जी के बेटे यानि मेरे ममेरे भाई के |

मैं जब भी उसे मिलती, मुझे वह उदास दिखता | कोई परेशानी तो दिखाई देती नहीं थी | कोई पैसे की तंगी हो या फिर कोई परिवार की परेशानी हो तो आदमी नकारात्मकता में जाने लगता है लेकिन जहाँ तक मुझे मालूम था, ऐसा तो कुछ था नहीं उसके परिवार में |

मामा जी प्रतिष्ठित उद्योगपति थे, उन्होंने अपना एक्सपोर्ट का जमा-जमाया व्यापार अपने बेटे के हाथ में दे दिया था| उसका बचपन बड़े ही ठाठ-बाट से बीता | एक बार मुँह से कुछ निकला नहीं कि उसके सामने हाज़िर ! शादी हो गई, पत्नी सुंदर, सुशील ! परिवार में दो बच्चे आ गए | कहीं कोई परेशानी नहीं, हर चीज़ मयस्सर फिर उसमें इतनी नकारात्मकता क्यों आई होगी, मैं सोचती |

मेरी उम्र देखकर सदा कहता था कि मैं कैसे इस उम्र में इतना काम कर पाती हूँ ? मैं एक मध्यम परिवार की बेटी और मध्यम परिवार में ही मेरा विवाह हुआ | सब कुछ था लेकिन कोई चीज़ भी 'ओवरफ़्लो' नहीं थी | कभी ऐसा भी होता कि बहुत आराम होता तो कभी सब काम करने पड़ते लेकिन कोई परेशानी ऐसी नहीं महसूस की कि असहज हो जाओ | समय है, अपना रंग दिखाता है, नाच भी नचाता है लेकिन उससे नकारात्मक हो जाना यानि अपना ही नुकसान करना |

उसकी पत्नी सुहास भी मध्यम वर्ग से ही आई थी। संगीत और नृत्य में पारंगत होने के साथ बड़ी हँसमुख भी थी, कोई उससे दो बातें करता और उसका हो जाता जबकि हमारे भाई जनाब कंफ़र्ट लेवल से बाहर आते ही कुनमुनाने लगते | वह हर चीज़ में मीन-मेख निकालता ही नज़र आता |

सुहास भी पति के नकारात्मक रवैये से खीज जाती थी | उसे समझ में नहीं आता था कि अपने पति का नकारात्मक रवैया कैसे दूर करे ? धीरे-धीरे वह मुझसे खुलकर बातें करने लगी | उसे भय था कि बच्चों पर भी इस बात का बुरा असर पड़ रहा था | मैंने उसे समझाया था कि अभी भी समय है बच्चों को चीजों की, समय की, रिश्तों की, पैसे की -----सबकी वैल्यू करना सिखाए |

उसने अपने बच्चों के साथ थोड़ा सख्त व्यवहार करना शुरू कर दिया |जहाँ उसके पति को मुँह से निकालते ही हाथ में चीज़ मिल जाने की आदत थी, वहाँ सुहास ने अपने बच्चों में थोड़ा विवेक रखने की आदत डालनी शुरू कर दी |

वह उन्हें समझाने की कोशिश करती और बच्चे समझने लगे, यह सकारात्मक बात हुई | सुहास को बच्चों की तरफ़ से कुछ तसल्ली सि होने लगी लेकिन इस बात पर उसका पति यानि हमारा भाई चिढ़ता था | उसके अहं को ठेस लगती कि जब उसके पास इतना पैसा है तो उसके बच्चे ऐसी स्थिति में क्यों पलें कि उन्हें अपने किसी शौक के लिए अपना मन मारना पड़े | बच्चे समझदार थे, उन्हें माँ की बात समझ में आती थी और वे हर चुनौती के लिए तैयार रहते थे |

बच्चे अब बड़े भी हो गए थे और माँ से उन्होंने समझदारी तो ली ही थी |

अक्सर कम्फर्ट जोन में जाने के बाद उससे बाहर आ पाना मुश्किल होता है. ऐसे में चुनौतियाँ आने पर

उनका सामना कर पाना आसान नहीं होता. इसलिए कभी भी कम्फर्ट ज़ोन में जाकर ख़ुश न हो जाएँ. ख़ुद को हमेशा चुनौती देते रहें और मुसीबत के लिए तैयार रहें. जब तक आप चुनौती का सामना करते रहेंगे, आगे बढ़ते रहेंगे|

एक बार किसी कठिन समय में जब हमारा भाई टूटने की कगार पर आ गया, बच्चों ने उसे सहारा दिया और अपने पिता को समझाया ;

"पापा ! जीवन में कठिनाइयाँ हमे बर्बाद करने नहीं आती है, बल्कि यह हमारी छुपी हुई सामर्थ्य और शक्तियों को बाहर निकालने में हमारी मदद करती है | कठिनाइयों को यह बताना हमारा फ़र्ज़ है कि हम उनसे भी ज़्यादा कठिन हैं यानि स्ट्रॉंग हैं ।"

अपने व्यवसाय में बहुत कठिन समय आने पर जब वह टूटने लगा और डिप्रेशन में आने लगा तब उसके बच्चों ने उसे समझाया और अपनी ज़िद पर कायम हमारे भाई को समझना पड़ा कि हमें कठिनाइयों में भी नकारात्मकता से बचकर सुदृढ़ बनना होगा |

बच्चों से ही सही उसने अपने स्वभाव को बदलने का प्रयास किया और धीरे-धीरे हर स्थिति में उसने सहज रहना सीख ही लिया | पहले वह जितना नकारात्मक हो जाता था, कोई काम, मेहनत करना ही नहीं चाहता था अब धीरे-धीरे उसने अपने ऊपर काम करना शुरू किया और अपने उस दिमागकी स्थिति से निकलने में सफ़ल हुआ जैसे उसका एक नया जन्म हुआ हो |

मेहनत कभी बेकार नहीं जाती| यह विश्वास ही हमें आगे बढ़ने एंव निरंतर प्रयास करने के लिए प्रेरित करता है| हमारा हर प्रयास हमें एक कदम आगे बढ़ाता है और हम जैसे-जैसे आगे बढ़ते है वैसे वैसे हमारे लिए सफलता के रास्ते खुलते जाते हैं |

अब उसमें नकारात्मकता के स्थान पर विश्वास दृढ़ होने लगा था कि वह हर उम्र में चैतन्य रहेगा, काम करता रहेगा, प्रफुल्लित रहेगा | जितना वह नकारात्मक था, उतना ही वह सकारात्मक हो गया था और अभी जब पिछले दिनों मिला तब वह प्रफुल्लित था और उसका जीवन के प्रति दृष्टिकोण बदल गया था, उसका विश्वास दृढ़ हो गया था और अब उसने सबको बताना शुरू कर दिया था कि जीवन जीने की एक शैली प्रसन्नता के साथ श्रम करने की भी है |

खुद पर विश्वास की अत्यंत आवश्यकता है | जो व्यक्ति विश्वास नहीं करता वो ज्यादा देर तक प्रयास नहीं कर पाता और जब वह प्रयास नहीं करता तो उसके आगे के सभी रास्ते बंद नजर आते हैं क्योंकि सफलता के रास्ते हमारे लिए तभी खुलते हैं जब हम स्वयं प्रयास करते हैं |

स्थिति कोई भी हो, हमें सकारात्मक रास्ते पर चलना है, परिवार के सदस्यों के साथ मिलकर सबके साथ आगे बढ़ना है न कि किसी परेशानी में मुँह लटकाकर बैठ जाना है |

मित्रों! सोचें, समझें और हर परिस्थिति में मुस्कुराते हुए सकारात्मक बने रहें |

आमीन !

सस्नेह

आपकी मित्र

डॉ.प्रणव भारती