उजाले की ओर –संस्मरण Pranava Bharti द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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उजाले की ओर –संस्मरण

स्नेहिल नमन

मित्रों

कितनी विश्वास से भरी हुई लड़की थी दिव्या ! हम बचपन से साथ खेले, लड़ते झगड़ते बड़े हुए और समय आने पर सब मित्र एक-दूसरे से बिछड़ भी गए।

यही तो जीवन में बार बार होता है,हम जुदा होते ही रहते हैं कभी एक कारण से तो कभी दूसरे कारण से ! दिव्या जब युवा हुई उसके पिता का तबादला दूसरे शहर में हो जाने से उसे हम मित्रों को छोड़कर जाना पड़ा। यूँ हम सब झगड़ा करते रहते थे लेकिन जब उसके जाने की बात सामने आई तो हम जैसे कमज़ोर पड़ने लगे। कितनी स्मार्ट, इंटैलीजैंट थी वह ! जो हमें समझ न आता,चुटकी में समझ जाती और समस्या का हल हो जाता । बहुत सी बातें होती थीं उन दिनों | जिनमें कॉलेज की बातें अधिकतर रहतीं | अब युवा दिनों की युवा बातें ! वे कुछ दिन हर किसी की ज़िंदगी के अनमोल दिन होते हैं |हम लोगों के लिए भी थे |

किसी ने ग्रेजुएशन किया तो किसी ने पोस्टग्रेजुएशन और सबकी शादियाँ हुईं और बिखर गए हम ! लेकिन हम सब लोग जुड़े रहे एक-दूसरे से |दिव्या पहले से ही कहती थी कि उसकी शिक्षा की यात्रा एम.ए पर जाकर नहीं रुकेगी | उसे कुछ तो आगे करना होगा | पता चला उसने पीएच. डी किया और सीधे डिग्री कॉलेज की लेक्चरर बन गई | उसके बाद उसने डी.लिट भी किया | हम सब लोगों में से कुछ विवाह के बाद नौकरी भी कर रही थीं लेकिन कुछ बड़ा करने का स्वप्न आँखों में ही बंद रह गया था |

बहुत वर्षों बाद हम सब मित्रों ने मिलने का कार्यक्रम बनाया और बंबई दिव्या के घर जाने का निश्चय किया | अब वह बंबई विश्वविद्यालय के डिग्री कॉलेज में नियुक्त थी | हम सबको लगभग 10/12 वर्ष हो गए थे बिना मिले | किसी तरह पाँच मित्र कार्यक्रम में शामिल हो सके जिनमें हम तीन लड़कियाँ व दो लड़के थे | दो मित्र अपने पारिवारिक कारणों से हमारे साथ आने में असमर्थ रहे | यह तो होता ही है, हरेक की परिस्थिति एक सी नहीं रहती |

दिव्या बंबई जैसे शहर में खूब अच्छी तरह से जम चुकी थी | अवकाश प्राप्ति के बाद उसके माता -पिता इंदौर में अपने पैतृक निवास में रह रहे थे | जब समय मिलता दिव्या चली जाती अन्यथा उसके माता-पिता उसके पास आ जाते | कोई परेशानी नहीं थी | उसने अपने प्रेमी संदीप से भी सब मित्रों को मिलवाया | पता चला वह लड़का अपने पिता के अचानक देहावसन से डिप्रेशन में आ गया था लेकिन दिव्या अपने सकारात्मक दृष्टिकोण व स्नेह से उसे उस पीड़ादायी स्थिति से खींच लाई थी |

हम सब सुखद आश्चर्य में थे कि वह हर समस्या का समाधान कैसे निकाल पाती है? हम छोटी-छोटी बातों से परेशान हो जाते हैं | घर-परिवार में कोई समस्या आने पर हम अपने हाथ-पैर ढीले छोड़ देते हैं | हम सभी मित्र उसके स्वभाव से पहले से परिचित थे, कैसे वह चुटकियों में समस्या का समाधान निकाल लाती थी!

संदीप घोर डिप्रेशन में चला गया था लेकिन दिव्या ने उसको कहा कि वह उसकी सहायता तब कर सकेगी जब वह स्वयं अपनी सहायता करने के लिए तैयार होगा | उसने हर चीज़ संदीप के सामने परोसी नहीं बल्कि उससे स्वयं स्वीकार करवाया कि वह सब कुछ कर सकता है | जिन चीज़ों से वह भागता था, उनका सामना करना दिव्या ने उसे सिखाया |

संदीप ने हम सबको बातों बातों में बताया कि "हम सबके भीतर क्षमताओं का असीम भंडार है अपनी अज्ञानतावश हम उन्हें पहचान नहीं पाते और किसी अनहोनी परिस्थिति में हम टूट जाते हैं जो कभी-कभी जीवन भर हमें परेशान करता है | हम स्वयं को कमतर समझकर दूसरों की सहायता की प्रतीक्षा करते रहते हैं | दिव्या ने उसे यह समझाया कि परिस्थिति कितनी भी कठिन क्यों न दूसरों की सहायता की प्रतीक्षा मत करिए इतने सक्षम बनिए कि आप दूसरों की सहायता कर सकें | किसी भी कठिन परिस्थिति से निकलने के लिए हमें अपने ऊपर विश्वास रखकर बाहर निकलने का प्रयास करने की ज़रूरत होती है |

जो व्यक्ति स्वयं पर विश्वास नहीं कर पाता वो ज्यादा देर तक प्रयास भी नहीं कर पाता और जब वह प्रयास नहीं कर पाता तो उसके आगे के सभी रास्ते बंद नजर आते हैं क्योंकि सफलता के रास्ते हमारे लिए तभी खुलते जब हम अपने ऊपर विश्वास करना शुरू कर देते हैं, प्रयास से हम उसके बिल्कुल करीब पहुँच जाते है|”

विवाह से पहले इतनी समझदारी थी तो विवाह के बाद उनका जीवन स्वस्थ् व सुखमय होगा, इसकी अपेक्षा की जा सकती थी | संदीप ने भी उसकी बात ध्यान से सुनी और उस पर अमल किया जिससे परिस्थिति में जल्दी ही सुधार आ गया और संदीप जीवन को एक सकारात्मक दृष्टि से देखने लगा | यह भी हो सकता था कि अपने डिप्रेशन में वह दिव्या की बात नकार देता अथवा अपने अहं को ढाल बना लेता |

जीवन में आवश्यक है कि अपने शुभचिंतकों की बातों पर अवश्य विचार करें | इसमें अभिमान न रखें अन्यथा रिश्ता कमजोर होने में देर नहीं लगती |

हम सब मित्रों ने सहज रूप से अनजाने में ही दिव्या और संदीप से बहुत सी बातें सीख लीं थीं और मन में उनका धन्यवाद करके हम जल्दी ही मिलने का वायदा करके यह सोचते हुए अपने घरों को लौट आए थे कि परिवार की छोटी-मोटी बातों पर हम विवेकशीलता और विश्वास करने व उनका समाधान निकालने का प्रयास करेंगे |

फिर मिलते हैं किसी नए विषय पर चिंतन करने के लिए !

सस्नेह

डॉ.प्रणव भारती