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उजाले की ओर –संस्मरण

उजाले की ओर - - - संस्मरण

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स्नेहिल नमस्कार

मित्रों को

"भई, क्या हो गया ऐसा जो इतने बुरी तरह बिफरे हुए हो" ?

बात ज़रा सी थी, सामने फ़्लैट के निवासी ने औटोरिक्षा में बैठने से पहले मीटर चैक नहीं किया और घर पहुंचकर उनमें और रक्षा वाले भैया में जमकर हंगामा शुरू हो गया जिसका किसी प्रकार कोई औचित्य था ही नहीं।

जीवन कभी आवेग के क्षण ले आता है, कभी उत्साह के, कभी कष्ट के यानि जीवन अपने रूप में बदलाव करता ही रहता है, हर पल और उन बदलाव के पलों में हमारी परीक्षा होती ही रहती है।

छोटी-छोटी बातों पर हमारी नाक पर मक्खी बैठने लगती है और हम आव देखते हैं न ताव, सेकेंड में हमारी प्रतिक्रिया सामने आकर हमारे मूल स्वभाव के दर्शन करवा देती है।

क्रोध में दी गई प्रतिक्रिया अगर किसी के इतिहास से जुड़ी हुई है, तो यह बहुत ही खतरनाक है। अक्सर क्रोध में आने के बाद लोग सम्बंधित व्यक्ति के इतिहास और पृष्ठभूमि को निशाना बनाने लगते हैं उसके परिवार, धर्म, जाति या क्षेत्र को लपेटकर दी गई प्रतिक्रिया का परिणाम अत्यंत घातक होता है। और पता भी नहीं चलता कब यह प्रतिक्रिया एक जघन्य अपराध में परिवर्तित हो जाती है।

यह अत्यंत चिंताजनक है और इसके द्वारा होने वाले दुष्परिणामों पर भी विचार करने की आवश्यकता है ।

सही स्थिति तो यह है कि क्रोध किया ही न जाये किंतु क्रोध भी एक स्वाभाविक संवेगात्मक स्थिति है जो अन्य संवेगों की भाँति समय पर प्रस्फुटित हो जाती है लेकिन जब तक ऐसा नही होता कि हम क्रोध को अपने जीवन से सदा के लिए उखाड़कर फेंक न दें, तब तक इसको कम करने या नियंत्रण में करने पर बल देना आवश्यक हो जाता है ।

इससे क्रोध में अनर्गल बोल देने और बाद में उस पर पछताते रहने जैसी नौबत आने की आशंका कम हो जाती है।

क्रोध हमारी परीक्षा लेता है और हम इसके प्रभाव में जलते हैं या शीतल रहते हैं । यह हमारे सारे व्यक्तित्व और कृतित्व को, विशेषताओं को क्षण भर में धराशायी कर देता है।

इस सबके लिए हमें स्वयं को धीरे धीरे क्रोध से दूर रहने का प्रशिक्षण देना बहुत आवश्यक हो जाता है।

हम सकारात्मक सोच के प्रयास से क्रोध जैसे दुश्मन को शनैः-शनैः शांत करने का व बाद में बिलकुल समाप्त करने का प्रयास करेंगे तो अवश्य ही जीवन में इसका लाभ ले सकेंगे।

मित्रों! हम सबका दिन सपरिवार क्रोधरहित एवं आनंदमय हो।

इसी अभिलाषा सहित

आप सबकी मित्र

डॉ. प्रणव भारती

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