उजाले की ओर –संस्मरण Pranava Bharti द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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उजाले की ओर –संस्मरण

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प्रिय मित्रो

नमस्कार

हर दिन सोसाइटी में सब्ज़ी वाले, फल वाले आते हैं और न जाने कितने हाॅकर आते हैं।

आवाज़ लगाते हैं। हम सबको बाज़ार जाने से छुट्टी मिल जाती है।

कभी कभी छोटी सी बात पर हम इतने क्रोधित हो जाते हैं कि हमें ध्यान ही नहीं रहता कि हम कह क्या रहे हैं? इसने यह चीज़ इस भाव से दी तो तुम हमें इस भाव क्यों दे गए? और छोटी सी बात पर झगड़ा शुरू!!

क्रोध आने पर हम दूसरों के हाथों का खिलौना बन जाते हैं। हम अपने अस्तित्व को भूल जाते हैं। क्रोध से मूढ़ता उत्पन्न होती है, मूढ़ता से स्मृति खत्म होने लग जाती है, स्मृति क्षीण  होने से बुद्धि सही काम करने में अशक्त हो जाती है और बुद्धि अशक्त होने से मनुष्य स्वयं अविवेकी हो जाता है। इसीलिए अपने क्रोध पर काबू पाना बहुल आवश्यक है। हम इसको अपनी कमजोरी की जगह ताकत बनाएं, इससे हमअपनी एनर्जी का सही इस्तेमाल कर सकेंगे।

छोटी सी बातों में बेकार का झगड़ा करके हम निरर्थक बातों में फंस जाते हैं और निराश होने लगते हैं।

निराशा एक सकारात्मक संकेत है. इसका मतलब है कि समस्या का समाधान सीमा के भीतर है, लेकिन हम वर्तमान में जो कर रहे हैं वह काम नहीं कर रहा है, और हमें अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अपना दृष्टिकोण बदलने की जरूरत है।

हमें इन छोटे-छोटे झगड़ों में न पड़कर हमेशा खुश और आशावान रहने की व

सुरक्षित और सकारात्मक रहने की स्थिति बनाए रखनी है।

हमारे मन में एक सूची होती है जिसके मुताबिक हम कुछ कर सकते हैं। यह लिस्ट हमने खुद के अनुभव के आधार पर बनाई होती है। लेकिन इसका अधिकतर काम परखा हुआ नहीं होता है। इस सूची को चेंज करने की जरूरत है। इस लिस्ट के बहुत सारे कार्य ऐसे हैं जिन्हें हम थोड़ी सी कोशिश के बाद आसानी से कर सकते हैं। लेकिन अतिरिक्त प्रयास कैसे करें? इसका सबसे सरल तरीका यह है कि हम भरोसे के साथ काम करें कि हम इसे कर सकते हैं। और खुद को एकाग्र करके धीरे धीरे ताक़त लगाना शुरू कर दें। काम में अगर सफलता नहीं मिलेगी तो भी हमें इसका नुकसान नही होगा, बल्कि अपनी क्षमता को परखने का मौका तो मिलेगा।

इस सबके लिए हमें आशा बनाए रखने की जरूरत है। आइए, हम सब मिलकर जीवन को सरल, सहज बनाने के लिए कटिबद्ध हों।

 

आप सबकी मित्र

डॉ.प्रणव भारती