उजाले की ओर –संस्मरण Pranava Bharti द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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उजाले की ओर –संस्मरण

उजाले की ओर...... संस्मरण

मित्रों

स्नेहिल नमस्कार

जीवन है तो इसमें कभी बहुत से उत्साह के क्षण भी हैं, कभी ऐसे क्षण भी हैं कि हम दुखी व कुंठित होने लगते हैं | ये कुछ ऐसा है कि अभी घनी धूप पड़ रही थी, पेड़-पौधे ही नहीं हर मनुष्य, अरे मनुष्य ही क्या प्राणि मात्र सूखा जा रहा था | अभी न जाने कहाँ से ऐसी बयार आई कि पवन में ताज़गी सी भर उठी | अचानक बादलों ने सुहानी छाया कर दी और जाने कैसे रूठे हुए इंद्रदेव प्रसन्न हो उठे | मयूर नृत्य करने लगे और मनुष्यों, प्राणियों के मन की बात तो बस क्या कहें, उनके आनंद का तो ओर-छोर ही न रहा | 

यह आनंद भीतर का है जिसमें किसी दिखावे अथवा किसी छलावे की ज़रूरत नहीं पड़ती और हम झूमने लगते हैं | मन में प्यार पींगें बढ़ाने लगता है | लगता है कि स्नेह, प्रेम लबालब भरा है और उसका जितना छिड़काव किया जाए, जिस पर भी किया जाए, यह प्रेम की गागरी छलकती ही रहेगी लेकिन फिर अचानक न जाने ऐसी कौनसी विपत्ति आ जाती है कि क्षण भर पहले हम जिस तरंग में डूब रहे होते हैं अचानक ही उसमें ऐसी लहर उठने लगती है कि अब डूबे, अब गए | 

मेरे विचार से मित्र समझ गए हैं मैं क्या कहना चाह रही हूँ| बिलकुल, ठीक समझे आप ! हमारे सामने अचानक कोई ऐसी समस्या आकर खड़ी हो जाती है कि हमारे तरंगित मन को उठाकर न जाने कहाँ पीछे फेंक देती है और हम शून्य में मुँह फाड़े खड़े रहा जाते हैं | उस भीगने का आनंद भी कहाँ ले पाते हैं जिसने अभी ही तो हमारे दिल के द्वार खोलकर भीतर प्रवेश किया था | कोई ऐसी समस्या हमें घेर लेती है कि हम फिर से अचानक निरुत्साहित हो जाते हैं और आनंद भूलकर उस समस्या से जूझने लगते हैं | 

हमारी समस्या है कि हम अपने करीबी मित्रों से अपनी समस्या साझा भी तो नहीं करते दूसरों के अनुभव न तो लेते हैं, न अपने मन की बात उनसे साझा करते हैं | न ही किसी की सुनते हैं, न ही सुनना चाहते है, हम अपने अहं से ग्रस्त रहते हैं और अगर समस्या का समाधान पूछते भी है तो अपनी ही उम्र के ऐसे मित्रों से जिनके पास स्वयं कोई समाधान नहीं होता | | सोचकर देखें हमारे जितने मित्र को भी तो लगभग उतना ही अनुभव व ज्ञान होगा जितना है ।

आइए, सोचकर देखें कि कितने लोग अपने परिवार के बड़े बुजुर्गों या पढ़े लिखे लोगों से उनके तजुर्बे का फायदा लेते हैं ?

मित्रों ! हफ्ते में कितनी बार हम अपने माता - पिता, दादा - दादी या और किसी बुजुर्ग संबंधी दोस्त, पुराने तजुर्बेकार साथी की मदद लेते हैं ?

मित्रों ! हर समस्या का हल होता है, अगर हमारे पास उस समस्या का हल नहीं है तो हमें इस ग़लतफ़हमी में नहीं रहना चाहिए कि हमारे अपने भी उस समस्या का हल नहीं निकाल सकते|  यकीन मानिये वो लोग अपने अनुभव से उस समस्या का हल चुटकियों में निकाल देंगे जिसने हमारे मन के मौसम को खराब कर दिया है । यहाँ सबसे बड़ी समस्या युवा पीढ़ी की यह है कि यह सोचती है कि अगर हमने उन लोगों से अपनी कोई साझा कर ली तो वो लोग क्या कहेंगे? पता नहीं क्या सोचेंगे…… ?

अरे भाई ! व्यर्थ में परेशान न हों | हम अपने अनुभवी मित्रों अथवा विश्वसनीय संबंधों से अपनी बात साझा तो करें | हम एक चीज पूछेंगे वो लोग अपने अनुभव से न जाने कितने समाधान बता देगें और एक फायदा और हो जायेगा, सब लोगों में अपनापन भी बढ़ेगा !ये संबंध मजबूत होते जाएंगे और सुदृढ़ संबंधों के साथ जीवन जीना कितना सहज व सुंदर होता है, अनुभव करके उन्हें महसूस करके देखें तो सही | एक बार बस इस प्रकार से सोचने की आवश्यकता है | फिर तो हमारे पाँव किसी थोड़ी सी भी कठिनाई में हमारे बुजुर्ग मित्रों की ओर हर बार अपने आप उठ जाएंगे | हम देखेंगे जीवन की दिशा व दशा कितनी बेहतर होती जा रही है | 

सोचें, आप स्वयं समझदार हैं | 

मिलते हैं अगली बार फिर किसी नए विचार के साथ | 

तब तक मुस्कुराइए, आनंद में रहिए और आनंद बांटते रहिए ---

इस अचानक बदले हुए खूबसूरत मौसम को जाने न दें । इसका सत्कार करें | 

 

आपका दिन शुभ एवं सुरक्षित हो।

आपकी मित्र

सस्नेह

डॉ. प्रणव भारती