उजाले की ओर –संस्मरण Pranava Bharti द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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उजाले की ओर –संस्मरण

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स्नेहिल नमस्कार मित्रों

दिविज बहुत ही प्यारा युवा है | उसने अपने बालपन में क्या खोया ?क्या पाया ?इसका लेखा-जोखा तो पूरी तरह से उसके पास भी नहीं है | जब बालपन से ही परिस्थितियों में से तीरों की बारिश होने लगे तब बालपन रह कहाँ जाता है ? तब तो वह ऐसी शीट बन जाती है जो प्रयास करती रहती है अपने और अपनों के जीवन को बचाने का | बल्कि अधिकतर अपनों की सुरक्षा का | अनायास ही बालपन परिवर्तित हो जाता है प्रौढ़ावस्था में, युवावस्था तो न जाने कहाँ जा छिपती है अँधियारों में | रोशनी की एक किरण तलाश करने के लिए जाने कितने जंगल पार करने पड़ जाते हैं और जब कोई जुगनू भी दिखाई दे जाता है तो जीवन को मानो उस रोशनी की छोटी सी लकीर के सहारे राह पकड़ लेना इतनी बड़ी भी नहीं लेकिन थोड़ी सी आशा दे जाता है | मनुष्य के जीवन में कुछ बातें ऐसी होती हैं जिन पर उसका कोई वश नहीं होता जो इतनी अचानक होती हैं कि रोशनी भी फटी फटी आँखों से ताकती रह जाती हैं कि आखिर हो क्या जाता है ? जीवन की इसी अनहोनी कहानी में उलझते हुए, फँसते हुए, निकलते हुए जीवन कगार पर आकर खड़ा हो जाता है और तब मख़सूस होता है कि भई,समय तो समाप्ति की ओर चल जा रहा है |

बालपन से अनेक कठिनाइयों को झेलते हुए बड़ा होना इंसान को न जाने क्या क्या सिखा देता है | सच तो यह है कि जीवन के युद्ध में मन के हथियारों का प्रयोग करते-करते वह यह भी भूल जाता है कि आखिर उसने यह क्यों किया होगा? किसकी ऊँगली पकड़कर चला है वह या फिर किसी ने उसके पैरों में ऐसी जंजीर बाँध दी है जो निकल ही नहीं पाता वह !लेकिन फंस जाता है तो करे क्या आखिर ?

यह एक नाज़ुक समय होता है जिसमें दिल और दिमाग का झगड़ा हर पल होता ही रहता है |पंद्रह वर्ष की किशोरावस्था में अचानक पिता का साया उठ जाना दिविज की माँ के लिए तो अप्रत्याशित शॉक था ही, उसके लिए कितना बड़ा हादसा था जिसमें से उसे ही केवल नहीं निकलना था, अपनी पीड़ित माँ और दो छोटी बहनों को भी कैसे निकाले ? यह प्रश्न बहुत कठिन व असहनीय था |

अक्सर ऐसे समय में ही ऐसे अपने धोखा दे जाते हैं जिनसे आशा होती है अपनेपन की, समझदारी की, सहायता की| उसके साथ भी ऐसा ही हुआ | पिता के व्यवसायिक पार्टनर ने उसके पिता को ही न जाने कितना बड़ा अपराधी ठहरा दिया | माँ इस स्थिति में नहीं थीं कि उनसे कोई सलाह ले पाता | मध्यम वर्ग के इंसान को पहले रोटी, कपड़ा और मकान की आवश्यकता होती है | वो पिता के पार्टनर ने जिन्हें वह शुरू से प्यारे चाचा जी कहता था अपना दुलार उसके घर की छत छीनने तक कर लिया | ऐसे में उस छोटे से किशोर की दूरदृष्टि काम आई |

पिता के सामने वह एक खिलंदड़ा बच्चा था जिसे जहाँ तक संभव हो पिता उसकी इच्छानुसार सब कुछ लाकर देने की चेष्टा करते थे लेकिन अब परिस्थिति भिन्न थी और उसे परिवार के लिए सोचना था | पिता के एक वकील मित्र थे जो अच्छे इंसान थे | आजकल इंसान का अच्छा होना उस पर निर्भर है जो समय पड़ने पर किसी को गुमराह न करके उसका भला कर सके |बस,ऐसे ही थे वे जिन्होंने कुछ ऐसी कानूनी कार्यवाही की जिससे कम से कम दिविज के परिवार के सिर पर से छत तो नहीं उठी यानि परिवार के पास मकान तो रहा | जब कि उसके पिता के पार्टनर उसके आगे-पीछे घूमते हुए उसके परिवार के सिर पर से छत छीनने के यत्न करते रहे |

उस छोटे से लड़के पर जब यह संकट आकर पड़ा तब उसने वकील अंकल की सहायता से अपने पिता का कुछ हिस्सा भी किसी प्रकार ले लिया | वह समझ चुका था कि पिता के सामने वो प्यारे चाचा जी उसके लिए जो दिखावा करते हुए नहीं थकते थे वे अब उसके पीछे हाथ धोकर पड़ गए थे|भला कौन सोच सकता है कि इतनी करीबी रिश्ते इस प्रकार अपनी असलियत दिखा देंगे | दिविज ने सकारात्मक चिंतन नहीं छोड़ा जिससे वह पिता के पार्टनर अंकल से बच सका और अपने परिवार को किसी प्रकार संभालने में सफ़ल हुआ |

दूर दृष्टि से बनता है सकारात्मक दृष्टिकोण। संसार एक विशाल समुद्र है, उस विशाल समुद्र के बीच हमारी स्थिति क्या है? क्या हम जानते हैं? हमें लगता है हमारी गणना नहीं होती, मगर ऐसा नहीं है। सूर्य एक-एक किरण से है, रेशों से रस्सी है, बूंद-बूंद से समुद्र है, कोशिकाओं से शरीर बनता है, ऐसे ही एक-एक व्यक्ति से संसार बनता है।

हम सबके साथ ही सृष्टि है | समय के बदलाव से निकलकर हमें जाना है और अपनी जगह स्थापित करनी है | हम सबके बिना यह सृष्टि अधूरी है। जैसे बत्तीस दांतों का पूरे मुख में महत्व है, दांत टूट कर गिर गया तो वहां की शोभा तो बिगाड़ ही देगा, मगर जहां जाएगा वहां की शोभा भी नहीं बनाएगा। बातों की शोभा अपनी जगह है। तिनको को जोड़कर झाड़ू बना लिया जाए तो उससे कूड़ा साफ होता है, लेकिन टूट कर गिर जाए तो कूड़ा हैं।

जिस बच्चे पर लोग दिखाने के लिए तरस खाने लगें और उसके सिर से छत तक छीनने की तैयारी रखें जब वह अपने विवेक से अपने परिवार व स्वयं को बचाने में सफ़ल हो जाए तो निश्चय ही उसकी दूरदर्शिता व विवेक हैं ।

दूरदर्शिता से बहुत सी समस्याएं हल की जा सकती हैं, बचना पड़ता है लोगों से जो दिविज छोटा होने के बावज़ूद भी कर पाया |

सभी मित्रों का दिन सपरिवार शुभ एवं सुरक्षित हो।

आपकी मित्र

डॉ. प्रणव भारती