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उजाले की ओर –संस्मरण

उजाले की ओर---संस्मरण

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स्नेहिल नमस्कार मित्रों

कई बार किसी मनुष्य में कुछ दिनों में इतने बदलाव दिखाई देते हैं कि विचार उठता है, क्या यह वही मनुष्य है ? जी, मनुष्य तो वही होता है जिसको हम वर्षों पहले से जानते थे | कुछ दिनों परिस्थितिवश उससे दूर क्या हुए कि जब मिले तब उसका रूप, आचरण, व्यवहार सब बदल हुआ मिला | कई बार जब सकारात्मक ऊर्जा की बात होती है तब अच्छा लगता है और लगता है कि अवश्य ही उसने अपने जीवन में ऐसा कुछ प्राप्त किया है कि हमें उसके लिए प्रसन्न होना भी बनता है और उससे कुछ सीखना भी | कारण है कि हम सभी एक-दूसरे से कुछ न कुछ सीखते हैं | जरूरी नहीं है कि सीखना तभी होता है जब कोई हमें व्याख्यान दे अथवा हमें बैठकर, प्यार से या डाँट से कुछ सिखाए | 

हम अधिकतर बड़े ही सहज रूप से सीखते हैं किसी के व्यवहार से | हम देखते हैं कि कोई मनुष्य अचानक ही हमें अपनी ओर आकर्षित कर लेता है | जरूरी नहीं होता कि उसका पहनावा अथवा बातचीत करने के तरीके में दिखावा ही हो | उसका सरल किन्तु आत्मविश्वास से भरा व्यक्तित्व हमें प्रेरित करता है और हम उसके व्यक्तित्व से अनजाने ही प्रभावित हो जाते हैं, साथ ही कुछ ऐसी बातें सीख लेते हैं जो हमें कहीं न कहीं उपयोगी होती हैं | 

जब कभी आत्मविश्वास से भरपूर व्यक्ति हमें काफ़ी दिनों बाद मिलता है और हम देखते हैं कि उसका वह आत्मविश्वास न जाने कहाँ उड़न-छू हो गया है | तब हम यह सोचने के लिए विवश हो जाते हैं कि आखिर उसका आत्मविश्वास आखिर चला कहाँ गया ?ऐसा तो क्या हुआ होगा कि आत्मविश्वास से भरा मनुष्य इतना नकारात्मक हो गया ?

अक्सर ऐसा भी हो जाता है कि जो मनुष्य बेहतर गुणों से सम्पन्न होता है,उससे लोग कुछ चिढ़ जाते हैं या यह कहें कि ईर्ष्या करने लगते हैं | वे उसको कहीं न कहीं गिराने की कोशिश करने लगते हैं| अधिकांश लोग तो जमकर खड़े रहते हैं किन्तु कुछ लोग कमज़ोर भी पड़ जाते हैं और अपने व्यक्तित्व से बिलकुल बदल जाते हैं, दब जाते हैं | 

कुछ ऐसा ही नीमा के साथ हुआ | जब मैंने पहले उसे देखा था और अब जब लगभग दस वर्षों के बाद देखा तो पहचान ही नहीं पाई | कहाँ आत्मविश्वास से भरपूर उसके चेहरे पर हमने कभी असमंजस की एक लकीर ही नहीं देखी थी | जो काम कोई नहीं कर पाता,उसी काम को वह चुटकियाँ बजाकर कर लेती लेकिन अब उसे देखने पर यह बिलकुल भी नहीं लगा कि यह वही नीमा हो सकती थी | 

थी,वह बिलकुल वही नीमा लेकिन जैसे किसी का दब्बू व्यक्तित्व उधार ले आई हो | विवाह के बाद नीमा के आत्मविश्वास को अहंकार मान लिया गया | संयुक्त परिवार में रहने के कारण उसने किसी भी बात में यहाँ तक कि अपने लिए किसी भी गलत बात के लिए भी कोई विरोध नहीं किया | जिसका हश्र यह हुआ कि वह दबती चली गई | अफ़सोस इस बात का और भी अधिक हुआ कि उसके वे पति जो उसके आत्मविश्वास से ही प्रभावित रहते थे,अपनी पत्नी का आत्मविश्वास नहीं बचा पाए और बातें बिगड़ती चली गईं | 

इसमें और किसी का तो जो नुकसान हुआ,वह तो ठीक था लेकिन नीमा का इतना बड़ा नुकसान हुआ कि उसका जीवन ही जैसे बिलकुल बदल गया | अब वह एक दबा हुआ व्यक्तित्व बन चुकी थी जो उसके लिए बहुत हानिकारक हुआ | 

"या तो मैं अपने आत्मविश्वास के बारे में सोचती या फिर परिवार की शांति के बारे में ---"नीमा ने पूछने पर धीरे से बताया | 

आत्मविश्वास को अक्सर अहंकर रूपी भावना के साथ जोड़ दिया जाता है जबकि सच यह है कि जिस व्यक्ति में आत्मविश्वास की कमी हो जाती है, उसका पूरा व्यक्तित्व ही मोम की तरह पिघल जाता है | वह योजनाएं बनाकर भी उन्हें कार्यांवित नहीं कर पाता| उसे हमेशा अपने भीतर कोई ना कोई कमी नजर आती ही है फिर चाहे वह कितना ही सक्षम या आकर्षक क्यों ना हो।

जब मनुष्य को अपनी क्षमता पर विश्वास नहीं रहता.तब उसके अंदर एक डर घर कर जाता है जो

उसको मुरझा देता है | परिस्थितियाँ व व्यक्ति से जुड़े लोग कई बार अपने ही अभिमान में या दूसरे के ऊपर उठ जाने की ईर्ष्या से उसे पूर्ण रूप से खिलने नहीं देते । आत्मविश्वास ना होना या उसमें कमी होना मनुष्य के मौलिक स्वभाव के साथ तो संबंध रखता है. किन्तु अक्सर लोग अपने को ऊँचा दिखाने के चक्कर में दूसरे को नीचा दिखाने लगते हैं | 

कोशिश करने से यह मुमकिन हो सकता है कि वे दूसरों को नीचा दिखाने की जगह सामने वाले के आत्मविश्वास से स्वयं भी बेहतर ग्रहण करें, न कि दूसरे के आत्मविश्वास को डिगाएं | इसमें गलती दूसरों की तो है किन्तु स्वयं उस मनुष्य की अधिक है जो अपने ऊपर किसी को हावी होने देता है | यदि उसे महसूस हो जाता है कि उसके साथ यह गलत किया जा रहा है, उसे स्वयं ही दृढ़ होने की कोशिश करनी चाहिए न कि सामने वालों को अपने ऊपर हावी होने देना चाहिए | इसमें वह स्वयं को तो बचा लेगा, साथ ही सामने वाला भी चाहे देर में ही सही, अपने आप समझ सकेगा कि उसे दूसरे के आत्मविश्वास को डिगाने के स्थान पर अपना आत्मविश्वास बढ़ाना चाहिए | 

यह तो नीमा की कहानी है किन्तु ऐसा नहीं है कि लड़कियों के साथ ही ऐसा होता है,यह कभी न कभी, कहीं न कहीं सबके साथ हो सकता है| विभिन्न कार्य-स्थलों पर भी इस प्रकार की घटनाएं देखने को मिल जाती हैं | 

अत: यदि प्रयास रहे कि दूसरे को नीचा न दिखाकर स्वयं को ऊँचा उठाएं तो सबकी ज़िंदगी बेहतर हो सकती है, इसमें लेशमात्र भी संशय नहीं है, सोचकर देखें | 

 

आपका दिन सपरिवार शुभ एवं सुरक्षित हो।

सस्नेह

आप सबकी मित्र

डॉ.प्रणव भारती

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