स्नेहिल नमस्कार
मित्रो
जन्माष्टमी के पावन पर्व के लिए सभी मित्रों को स्नेहपूर्ण मंगलकामनाएँ। कृष्ण प्रेम हैं, सहज हैं, सरल हैं। कृष्ण प्रेम हैं और प्रेम के बिना जीवन का कोई आधार ही नहीं है।
जो चराचर जगत के सभी प्राणियों को अपनी ओर आकर्षित करे, वही है कृष्ण! कृष्ण प्रेम हैं इसीलिए सृष्टि का कण-कण कृष्ण की ओर आकर्षित होता है। दरअसल कृष्ण अकेले हैं जो सोलह कलाओं से परिपूर्ण परमपुरुष हैं।
श्री कृष्ण की लीलाओं का प्रत्येक आयाम सहज और सरल मालूम होता है। बाल्यवस्था से लेकर अर्जुन को अपने विराट रूप का दर्शन कराने तक उनकी समस्त लीलायें हमारा मार्गदर्शन करती हुई विषमताओं से सामंजस्य स्थापित करना सिखाती प्रतीत होती हैं। कृष्ण को समझने, उनके समीप जाने के लिए केवल प्रेम का समर्पण चाहिए जो हर प्राणी में विद्यमान है। केवल उस प्रेम का आभास करने की आवश्यकता है। हम जन्मते ही प्रेम से हैं,जन्म से ही सारी संवेदनाएं हमारे भीतर हैं जिनमें प्रेम सर्वोपरि है।
कंस का वध अहंकार पर विजय प्राप्ति का प्रतीक है जब व्यक्ति हर तरह के अहम का विसर्जन कर देता है तो उसके ह्रदय में विनयशीलता एवं दयालुता स्थापित हो जाती है। यह विनय व करुणा ही प्रेम तक ले जाती हैं।
श्री कृष्ण संदेश देते हैं कि प्रेम व ज्ञान से श्रेष्ठ कुछ नहीं ओर कर्म से उच्च कोई चीज़ नहीं। ज्ञान प्राप्ति के लिए श्रद्धा, आस्था और आत्मसयंम आवश्यक है और कर्म करते समय कर्म फल की चिंता करने की आवश्यकता नहीं है।
'कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन'
यह बड़ी स्वाभाविक सी बात है कि हम जैसे कर्म करेंगे, स्वाभाविक रूप से वैसा ही परिणाम प्राप्त करेंगे। इसलिए कर्म करते हुए परिणाम अथवा फल की चिंता न करें बल्कि पूरे मन-प्राण लगाकर अपने कार्य में निमग्न रहें। फल तो मिलना ही है। आम बोने से स्वादिष्ट मीठा फल प्राप्त होता है और बबूल बोने से काँटे तो क्या बोना बेहतर है? स्वाभाविक है, हर मनुष्य प्रेमपूर्ण जीवन जीना चाहता है। इसलिए आम ही बोएं तो मीठे स्वादिष्ट फल खाने को मिलेंगे न!
खूब प्रसन्न रहना, प्रेम में रहना, किसी भी परिस्थिति में अपने आपको सहज बनाए रखना ही प्रेममय जीवन के आधार हैं। यह कृष्ण का जन्म हमें जीवन के हर पल में प्रेम सिखाता है।
सभी मित्रों को जन्माष्टमी की सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएं।
भगवान कृष्ण आपकी मनोकामनाएं पूर्ण करें।
जय श्री कृष्णा
आपकी मित्र
डॉ. प्रणव भारती