उजाले की ओर –संस्मरण Pranava Bharti द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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उजाले की ओर –संस्मरण

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नमस्कार

स्नेही मित्रो

रोमी अब इतनी छोटी भी नहीं थी कि छोटी छोटी बातों को दिल में लगाकर बार बार उन्ही में अपने आपको गोल गोल घुमाती रहे और दुखी होती रहे।

हम मनुष्य हैं, अपना इतिहास या पुराण भी उठाकर देखें तो मालूम होता है कि जिसने इस दुनिया में जन्म लिया है, उससे गलतियाँ हुई ही हैं। उसके लिए क्या ताउम्र आँसू बहाते रहेंगे?

जब रोमी की दिन एक ही बात दोहराती रही, मैंने उसे समझाने की कोशिश की कि जो हो गया वह लौट तो सकता नहीं तो क्यों न आगे बढ़े!

गलतियां सभी करते हैं, दरअसल यदि कहें कि गलतियाँ हमारे आगे बढ़ने के लिए जरूरी हैं।जीवन में एक ही जगह अटकने के स्थान पर हमारा आगे बढ़ना ज़रूरी है। उस गलती से कुछ सीखने को ही मिलता है। उससे सीख लें और आगे बढ़ें।

हमें परफेक्ट बनने की चाह को त्यागने और जीवन को विचारशील तरीके से देखने की आवश्यकता है। हो सकता है कि ऐसा करने पर हमारे जीवन का बहाव पहाड़ की उस जलधारा के जैसा हो जाये जो पत्तों से भरे जंगलों से गुज़रती है और संघर्ष करती हुई अपनी गरिमा के साथ बहती रहती है। हम अंतत: अपने सच्चे स्वरूप और स्वभाव को देखकर बेहतर जीवन जीकर शांति, सुकून व प्रेम से जीवन व्यतीत कर सकते हैं।

यह बहुत ज़रूरी है कि हम अपनी गलतियों से सीख लें और जिसे सीखने के बाद भविष्य में गलतियाँ समझकर इस बात का लाभ भी प्राप्त कर सकें। हम शीघ्र ही महसूस करेंगे कि अतीत की उन गलतियों से हमने कितना कुछ सीखा है। उनके बिना हमारा जीवन बेरंग और फ़्लैट था जैसे सपाट उदास मार्ग ! इसलिये खुद के प्रति हमें उदार बनने और जीवन को इसके वास्तविक स्वरूप में देखने की कोशिश करनी होगी जिसके अंतर्गत आत्मविश्लेषण, व्यक्तिगत विकास और जीवनभर का सबक आता है।

सो, हमें अपनी गलतियों से घबराकर रोते नहीं रहना है बल्कि उनसे सबक लेकर आगे का मार्ग प्रशस्त करना है।

आमीन!

आपका दिन शुभ एवं सुरक्षित हो।

सस्नेह

आपकी मित्र

डॉ प्रणव भारती