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उजाले की ओर –संस्मरण

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स्नेहिल नमस्कार

मित्रो

इस छोटे से जीवन में कहाँ किसी से बहस करने का समय है? कहाँ उलझने की ज़रूरत! जब हम किसी भी प्रकार की उलझन में फँस जाते हैं तो अपने लिए ऐसी नकारात्मकता का गड्ढा खोद लेते हैं कि उसमें फँसते ही चले जाते हैं। जब होश में आते हैं तब देर हो चुकी होती है।

अधिकांशत: अपनी वर्तमान स्थिति को विवेक व गंभीरता से न संभालने के कारण इस मन:स्थिति में गड़बड़ी होती है। हमें नकारात्मक विचारों के प्रति सावधान रहना बहुत आवश्यक है ।

नकारात्मक ऊर्जाएं हमारे शरीर में सकारात्मक ऊर्जाओं के प्रवाह में बाधा डालती है। संदेह, भय या चिंता का कोई भी विचार हमें स्वस्थ होने से रोकता है। इन विचारों को खुद से दूर रखने की आवश्यकता होनी ज़रूरी है ।

सकारात्मक, आशावादी, उपचारात्मक विचारों को उनके सही स्थान पर सक्रिय रखना होगा । इस तरह की ऊर्जाएं और पूर्णता और अच्छाई युक्त विचार हमारे जीवन में अच्छे मानसिक स्वास्थ्य को स्वस्थ व ऊर्जावान बनाते हैं ।

अत:अपने विचारों का खयाल रखना आवश्यक है । विचारों के कारण ही शरीर में ऊर्जा महसूस होती है। हमें अपने विचारों के प्रति सचेत रहना है ।

यदि हमारा मन गलत और नकारात्मक विचारों से भरा हुआ हो तो हम सकारात्मक हो ही नहीं सकेंगे । ऐसे विचारों से हमारा मन और हृदय असहजता से भर जाता है।ऐसी स्थिति में हम खुश और स्वस्थ रहने की उम्मीद कैसे कर सकते हैं?

मानसिक स्वस्थता के बिना शारीरिक रूप से स्वस्थ रहना संभव नहीं है। स्वास्थ्य के बिना जीवन का आनंद नहीं लिया जा सकता ।

मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य हेतु  संतुलित आहार, शुद्ध हवा, नियमित व्यायाम, अच्छी आदतें, स्वच्छ वातावरण और शांत जीवनशैली हमारे लिए आवश्यक हैं। अत:इसके लिए सही दृष्टिकोण, सही मानसिक अवस्था और सही सोच अति आवश्यक हैं ।

आदमी केवल शरीर नहीं है, वह शरीर, मन, बुद्धि और आत्मा का समग्र रूप है।इसीलिए कहा जाता है कि मन सुंदर तो तन सुंदर!

हम सब ऊर्जावान सार्थक विचारों के साथ अपने जीवन को भरपूर रखने का प्रयास करें, खुलकर, खिलकर जीवन जीएं और आनंदित रहें।

 

सभी मित्रों का दिन सपरिवार स्नेहपूर्ण, शुभ एवं सुरक्षित हो।

 

सस्नेह

आपकी मित्र

डॉ. प्रणव भारती

 

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