उजाले की ओर –संस्मरण Pranava Bharti द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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उजाले की ओर –संस्मरण

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नमस्कार

स्नेही मित्रो

मेरे जीवन में कई लोग ऐसे हैं जिनको मैं कोशिश करके बताते हुए थक गई लेकिन प्रयासों के बावजूद  भी यह नहीं सिखा पाई कि समय पर कोई भी काम करना कितना जरूरी है।

हर चीज़ की एक व्यवस्था होती है, हर चीज़ का एक समय होता है यदि वह उस समय में ना हो या ना की जा सके तब वह कई बार व्यर्थ हो जाती है। इसमें हमारा समय तो जाता ही है उर्जा भी नष्ट हो जाती है और हम शून्य पर खड़े हो जाते हैं। सोचते रह जाते हैं यह हमारे साथ ही क्यों हुआ?

यह नहीं सोच पाते कि हम उस कार्य में व्यवस्थित नहीं थे और हमने समय से उस कार्य को नहीं किया था। बस अपने आप को या अपने से जुड़े लोगों को या भाग्य को कोसते रह जाते हैं। आखिर इसका अर्थ क्या है जीवन में? हमें स्वयं ही सब कुछ करना पड़ता है। ईश्वर ने हमें मस्तिष्क दिया है जो इस धरती के किसी और प्राणी के पास में नहीं है और यदि है भी तो हम उसको समझ नहीं पाते क्योंकि वह अपनी भाषा, अपने व्यवहार से हमें समझा नहीं पाता।

ईश्वर ने हमें बड़े सहज तरीके से बड़ी सरलता से समझाया है कि आखिर हमें नियमबद्ध क्यों होना चाहिए? हमें समय से क्यों काम करने चाहिए? यदि हम नहीं कर पाते तो इसमें किसी और का दोष नहीं है इसके लिए हमें स्वयं अपने ऊपर काम करने की आवश्यकता होती है।

जीवन मे नियमबद्ध होना परम आवश्यक है, यदि हमारे जीवन मे सिद्धांत ही नहीं, कोई नियम नहीं ,कोई अनुशासन नहीं, तो उस जीवन का कोई महत्व नहीं है ! जैसा ऊपर लिखा जा चुका है, प्रकृति भी हमें नियम सिखाती है। सूर्य का समय से उगना और समय से अस्त होना, सभी नक्षत्र अपनी निश्चित धुरी पर घूम रहे हैं। फूल भी कली से बनेगा , फिर उसमें फल आएगा और समय से वह झड़ भी जाएगा ! माँ प्रकृति में पूरा का पूरा संतुलन दिखाई देता है। हम प्रकृति से ही तो बने हुए हैं , हमें भी उसी प्रकार अनुशासित होना है!

बिना नियम के जीवन ऐसा बेपेंदी के बर्तन के समान होता है जिसकी कोई अहमियत नहीं, इसीलिए अपने को नियमित करना बेहद ज़रूरी है। अपने शरीर के लिए – उचित भोजन, व्यायाम, प्राणायाम, अच्छी नींद! यह सोपान है, अच्छे स्वास्थ्य के! शरीर भगवान का दिया वह रथ है जिस पर बैठकर हमें सौ वर्षों की यात्रा करनी है। हमारे यहाँ शतं जीवेत की भावना है लेकिन केवल भावना से कुछ नहीं होता, जो कुछ भी सही परिणाम आता है,व्यवहार में लाने से होता है।हमारा शरीर व मन व्यवस्थित रहेगा तो हमारे निर्णय स्वस्थ होंगे।

इसको स्वस्थ, सक्षम बनाये रखना हमारा कर्तव्य है ! स्वस्थ शरीर से ही सब कुछ पाना सम्भव है, रोगी, कमजोर, अस्वस्थ व्यक्ति अपने जीवन मे कुछ नहीं पा सकता!

इसी प्रकार अनुशासन का भी अपना नियम बनाना आवश्यक है।  निश्चित समय, निश्चित अवधि और लगातार अभ्यास  हमें अवश्य ही बहुत ऊंचाई पर पहुंचा देगा !

हमें स्वयं ही अपने ऊपर ध्यान देना होगा और अपना इच्छित प्राप्त करना होगा।

 

चलो, खोल दें खिड़कियाँ, दरवाजे़,

जीवन की सौंधी धूप का, स्वागत कर लें।

 

सभी मित्रों को स्नेहपूर्ण मंगलकामनाएँ

आप सबकी मित्र

डॉ.प्रणव भारती