उजाले की ओर –संस्मरण Pranava Bharti द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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उजाले की ओर –संस्मरण

स्नेही  मित्रों 

नमस्कार

    जीवन के हर क्षण में कोई ना कोई बाधा या परेशानी आनी स्वाभाविक है। हम कभी भी सीधे सपाट रास्तों पर तो चल नहीं पाते। सीधी सी बात है जब हर जगह बदलाव है मोड़ हैं, घुमाव है तब जीवन की पटरी कैसे केवल सीधी हो सकती है? उसमें भी मोड़ आएंगे घुमाव आएंगे। बस हमें केवल अपने ऊपर ध्यान देना जरूरी है। हमें देखना है कि हमारा विश्वास कहीं मोड़ों और घुमावों के साथ कमजो़र ना पड़ जाए। जीवन एक लम्हे का नाम है या फिर एक बुलबुले का या फिर गुब्बारे का वह भी गैस का गुब्बारा जो एक में क्षण में हाथ से निकल भागता है तो फिर क्यों ना उसको सहेज लिया जाए समेट लिया जाए? उसे बंद कर लिया जाए अपने दिल की गहराइयों में उन दिनों में बांटने के लिए जब हम महसूस करें सामने वाला परेशान है, उदास है, किसी न किसी कारण से उसकी आंखें भीगी हुई हैं। हमें उस समय उसके मन में एक सकारात्मक भाव की उत्पत्ति करनी है। एक ऐसा बीज बोना है जिससे नई को पत्ते निकलें जिनमें हरियाली हो, 

नई सुगंध फैले जो तन-मन को हरा - भरा कर दे। 

जीवन आशा और विश्वास का नाम है। जीवन को अगर एक नदिया कहा जाये तो आशा और निराशा दो किनारे हैं। व्यक्ति कभी निराश-हताश हो जाता है, कभी आशा, उत्साह से युक्त। हरी-हरी पत्तियों और तीखे शूलों के बीच मुस्काती मदकाती कलियों के होठों पर भविष्य में पूर्ण सुमन बनने की आशा होती है। वसंत के गीत गाती कोयल के स्वर और आशा की मधुर तानें भरी हुई हैं। लहलहाती प्रकृति के हरित पट में आशा का गहरा रंग भरा है। ऊँची सुदूर उड़ान के पक्षियों में जो मस्ती दिखाई पड़ती है उसमें आशा ही बलवती है। निराशा जीवन का बंधन है, दुःख है, एक जंजीर है। 

जीवन वास्तव में एक गति है, जीवन प्रतीक है जागरण का, प्रगति का, जिसमें जीवन की शक्ति अधिक है उस पर बीमारी के कीटाणु भी असर नहीं करते। जिसमें जीवन की शक्ति अधिक है वह अपनी कमजोरी पर अवश्य हीविजय प्राप्त कर लेता है।

     उम्र चाहे कोई भी क्यों ना हो मनुष्य को जिंदा रहना है तो सकारात्मक तरीके से, उसे स्वयं में तो सकारात्मकता भरनी है  साथ ही अपने चारों तरफ भी सकारात्मकता का वातावरण बनाए रखना है क्योंकि यह ठीक वैसा ही है जैसे बहुत सारे गरीब या असमर्थ लोगों के बीच रहने वाला एक बहुत अमीर या पैसे वाला और  समर्थ इंसान! सोचने की बात है कितने लोग असमर्थ हैं, कितने लोगों के पास में पूरी तरह से भोजन की व्यवस्था नहीं है कितने लोगों के पास में सिर पर ढकने को छत नहीं है, कितने लोग निराशा के दलदल में फंसे हैं! फिर इतने लोगों के बीच एक समर्थ कैसे पनप सकता है? उसका यह सामाजिक कर्तव्य हो जाता है कि वह यथाशक्ति अपने वातावरण में सकारात्मकता लाने का प्रयत्न लगातार करता रहे तभी तो वह सही मानव बन पाएगा। आवश्यक है कि हम सभी अपने वातावरण को भली प्रकार समझें, कोशिश करें जितने लोग  परेशान हैं उनको इस प्रकार से एक सुंदर मार्ग की ओर ले जा सके जिससे वे जीने के मार्ग अपने आप ही खोजें, समझें कि सभी एक रचनाकार की बनाई हुई कृतियां हैं जिसको उसने एक ही इरादे से इस दुनिया के  कैनवास पर पेंट करके भेजा है। सब को समय दिया है, बुद्धि दी है कि वह विश्वास व आशा से अपने जीवन को एक सही दिशा देने का प्रयत्न करे। यदि कहीं कोई सुख या दुख, कोई भी परिस्थिति हो, हम सब एक दूसरे का साथ दें जिससे इस दुनिया में आने वाले हर प्राणी का जीवन आनंद में व्यतीत हो सके।

थोड़ा है, थोड़े की ज़रूरत है।

तो मित्रों, मिलते हैं अगले रविवार को।

स्नेह सदा 

आप सबकी मित्र 

डॉ.प्रणव भारती