उजाले की ओर –संस्मरण Pranava Bharti द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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उजाले की ओर –संस्मरण

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नमस्कार स्नेही

पाठक मित्रों

आशा है सब स्वस्थ व प्रसन्न हैं |

जीवन बड़ा अद्भुत् है | यहाँ पर भाँति-भाँति के लोग मिलते हैं | कोई बड़ा सरल होता है तो कोई ज़रूरत से अधिक चालाक !

कोई चुस्त होता है तो कोई बहुत अधिक चुस्त यानि ओवर-स्मार्ट होने का दिखावा करता है और कई बार अपनी ओवर-स्मार्टनैस में फँसकर अपना ही कबाड़ा कर बैठता है |

अंजलि के पास सब कुछ था लेकिन वह अपने पास की चीज़ों से कभी संतुष्ट ही नहीं रहती थी | उसे हर चीज़ वह अच्छी लगती या उसका हर उस चीज़ पर मन ललकता जो उसके पास नहीं होती |

यह तो संभव ही नहीं होता है न कि सब कुछ सबके पास हो | उसको चैन ही नहीं पड़ता था जब तक उसके पास वॉ चीज़ न आ जाए जो उसके किसी दूसरे के पास देखी है, चाहे उसके लिए उसे किसी से पैसे उधार ही क्यों न लेने पड़ें | वह उधार ले लेती और फिर भुला देती |

बाद में जिससे पैसे उधार लेती वह बेचारा माँग-माँगकर शर्मिंदा हो जाता लेकिन उसका रटा-रटाया उत्तर होता कि दे देगी न, आखिर ऐसी क्या जल्दी है? बेचारा अपने ही पैसे लेने के लिए उसके पीछे घूमता रहता |

कुछ दिन पहले अंजलि ने अपनी किसी मित्र से ऐसी ही अपनी किसी पसंद की चीज़ खरीदने के लिए पैसे माँगे जो केवल दो/चार दिनों के लिए थे | जब एक महीना बीत गया और उस मित्र को पैसे की जरूरत पड़ी उसने अपने पैसे लेने के लिए अंजलि से कहा |

उसका हमेशा की तरह यही उत्तर था कि दे देगी न, ऐसी क्या आफ़त है ?

देने वाली लड़की बेचारी पशॉपएश में पड़ गई और उसने अपनी किसी दूसरी मित्र से कहा कि क्या करे | दूसरी मित्र भी अंजलि को पैसे देकर फँस चुकी थी | दोनों ने एक योजना बनाई और अंजलि के पास पहुंचीं |

बातों-बातों में दूसरी मित्र ने एक कहानी सुनाई जो कुछ निम्न प्रकार से थी ---

एक सेठ जी बहुत ही दयालु थे। धर्म-कर्म में यकीन करते थे। उनके पास जो भी व्यक्ति उधार माँगने आता वे उसे मना नहीं करते थे। सेठ जी मुनीम को बुलाते और जो उधार माँगने वाला व्यक्ति होता उससे पूछते कि "भाई ! तुम उधार कब लौटाओगे ? इस जन्म में या फिर अगले जन्म में ?"

जो लोग ईमानदार होते वो कहते - "सेठ जी ! हम तो इसी जन्म में आपका कर्ज़ चुकता कर देंगे।" और कुछ लोग जो ज्यादा चालक व बेईमान होते वे कहते - "सेठ जी ! हम आपका कर्ज़ अगले जन्म में उतारेंगे।" और अपनी चालाकी पर वे मन ही मन खुश होते कि "क्या मूर्ख सेठ है ! अगले जन्म में उधार वापसी की उम्मीद लगाए बैठा है।" ऐसे लोग मुनीम से पहले ही कह देते कि वो अपना कर्ज़ अगले जन्म में लौटाएंगे और मुनीम भी कभी किसी से कुछ पूछता नहीं था। जो जैसा कह देता मुनीम वैसा ही बही में लिख लेता।

एक दिन एक चोर भी सेठ जी के पास उधार माँगने पहुँचा। उसे भी मालूम था कि सेठ अगले जन्म तक के लिए रकम उधार दे देता है। हालांकि उसका मकसद उधार लेने से अधिक सेठ की तिजोरी को देखना था। चोर ने सेठ से कुछ रुपये उधार माँगे, सेठ ने मुनीम को बुलाकर उधार देने को कहा। मुनीम ने चोर से पूछा- "भाई ! इस जन्म में लौटाओगे या अगले जन्म में ?" चोर ने कहा - "मुनीम जी ! मैं यह रकम अगले जन्म में लौटाऊँगा।" मुनीम ने तिजोरी खोलकर पैसे उसे दे दिए। चोर ने भी तिजोरी देख ली और तय कर लिया कि इस मूर्ख सेठ की तिजोरी आज रात में उड़ा दूँगा।

चोर रात में ही सेठ के घर पहुँच गया और वहीं भैंसों के तबेले में छिपकर सेठ के सोने का इन्तजार करने लगा। अचानक चोर ने सुना कि भैंसे आपस में बातें कर रही हैं और वह चोर भैंसों की भाषा ठीक से समझ पा रहा है।

एक भैंस ने दूसरी से पूछा- "तुम तो आज ही आई हो न, बहन !" उस भैंस ने जवाब दिया- “हाँ, आज ही सेठ के तबेले में आई हूँ, सेठ जी का पिछले जन्म का कर्ज़ उतारना है और तुम कब से यहाँ हो ?” उस भैंस ने पलटकर पूछा तो पहले वाली भैंस ने बताया- "मुझे तो तीन साल हो गए हैं, बहन ! मैंने सेठ जी से कर्ज़ लिया था यह कहकर कि अगले जन्म में लौटाऊँगी। सेठ से उधार लेने के बाद जब मेरी मृत्यु हो गई तो मैं भैंस बन गई और सेठ के तबेले में चली आयी। अब दूध देकर उसका कर्ज़ उतार रही हूँ। जब तक कर्ज़ की रकम पूरी नहीं हो जाती तब तक यहीं रहना होगा।”

चोर ने जब उन भैंसों की बातें सुनी तो उसके होश उड़ गए और वहाँ बंधी भैंसों की ओर देखने लगा। वो समझ गया कि उधार चुकाना ही पड़ता है, चाहे इस जन्म में या फिर अगले जन्म में उसे चुकाना ही होगा। वह उल्टे पाँव सेठ के घर की ओर भागा और जो कर्ज़ उसने लिया था उसे फटाफट मुनीम को लौटाकर रजिस्टर से अपना नाम कटवा लिया।

जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती गई थी, वैसे-वैसे ही अंजलि का चेहरा फीका ओड़ने लगा | उसे महसूस होने लगा कि हो न हो, यह कहानी उसे ही इंगित करके सुनाई गई है |

"ऐसा भी कहीं होता होगा ? ये लेन-देन तो दुनिया में हमेशा से चलते आए हैं } इसमें क्या बड़ी बात है?"उसने तुरंत ही कहा |

"हाँ,सच कह रही हो,लेन के साथ देन भी होता है | अकेला कुछ नहीं होता|"कहानी सुनाने वाली मित्र ने कहा|

सच तो यह था कि अंजलि के मन में घबराहट होने लगी थी | उस पर उस कहानी का असर स्पष्ट दिखाई दे रहा था | उसने कुछ दिनों में जल्दी ही सबके पैसे वापिस कर दिए और भविष्य में जितना और जैसा उसके पास था उसमें ही संतुष्टि प्राप्त करने की कसम खाई |

हम सब इस दुनिया में इसलिए आते हैं, क्योंकि हमें किसी से लेना होता है तो किसी का देना होता है। इस तरह से प्रत्येक को कुछ न कुछ लेने देने के हिसाब चुकाने होते हैं। इस कर्ज़ का हिसाब चुकता करने के लिए इस दुनिया में कोई बेटा बनकर आता है तो कोई बेटी बनकर आती है, कोई पिता बनकर आता है, तो कोई माँ बनकर आती है, कोई पति बनकर आता है, तो कोई पत्नी बनकर आती है, कोई प्रेमी बनकर आता है, तो कोई प्रेमिका बनकर आती है, कोई मित्र बनकर आता है, तो कोई शत्रु बनकर आता है, कोई पड़ोसी बनकर आता है तो कोई रिश्तेदार बनकर आता है। चाहे दुःख हो या सुख हिसाब तो सबको देना ही पड़ता है। यही प्रकृति का नियम है।

मुझे यह कहानी बहुत प्रेरणास्पद लगी ,मैंने इसलिए इसको पाठक मित्रों से साझा करने का मन बनाया | आशा है, आप सबको भी यह कहानी संदेशपूर्ण लगी होगी | इसे बच्चों को या फिर अपने उन मित्रों को भी सुनाया जा सकता है जिनको कहानी में रुचि हो|

अगले रविवार को किसी दूसरे विषय के साथ ---

आप सबकी मित्र

डॉ.प्रणव भारती