उजाले की ओर –संस्मरण Pranava Bharti द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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उजाले की ओर –संस्मरण

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स्नेहिल नमस्कार

प्रिय साथियों

प्रतिदिन जीवन में टर्नस् एंड ट्विस्टस आते ही रहते हैं और हम असहज और असहज होते रहते हैं | छोटी-छोटी बातों में हम परेशान होने लगते हैं | छोटी-छोटी बीमारियों में हम इतने घबरा जाते हैं कि सारा ध्यान अपने पर ही केंद्रित रहता है | हम अपने चारों ओर देखना भी भूल जाते हैं | यदि केवल खुद के बारे, में न सोचकर हम अपने चारों ओर होने वाली परेशानियों को देख सकें तो पता चलेगा कि हम तो बहुत अच्छे हैं, दुनिया में न जाने लोग कितनी-कितनी परेशानियों से घिरे हुए हैं |

मित्रों! आप सबके साथ एक घटना साझा करती हूँ ;

एक बार एक थिएटर में एक शॉर्ट फिल्म दिखाई जा रही थी । जब फिल्म शुरू हुई, तब स्क्रीन पर केवल एक सफेद पंखा दिखाई दे रहा था, जो बिना किसी हलचल के रुका हुआ था।

यह दृश्य करीब 6 मिनट तक चलता रहा। धीरे-धीरे दर्शकों में बेचैनी बढ़ने लगी।कुछ दर्शक शिकायत करने लगे तो कुछ लोग उठकर बाहर जाने लगे | इस समय वहाँ बैठे दर्शक इतने असहज हो गए कि थिएटर में चिल्ल पौं शुरु हो गई |

6 मिनट की अवधि के बाद, कैमरा उस पंखे से नीचे खिसकने लगा और एक बिस्तर पर आकर रुकने लगा, जहाँ एक अपाहिज बच्चा लेटा हुआ था। उसकी रीढ़ की हड्डी में चोट के कारण वह हिल-डुल भी नहीं सकता था| वह बेचारा बस छत की ओर देखता रहता था। तभी एक आवाज सुनाई दी |

"अभी इस शॉर्ट फिल्म में केवल 6 मिनट तक एक ही दृश्य दिखाया गया। इन 6 मिनटों में कई लोग असहज हो गए, कुछ धैर्य खो बैठे और कई उठकर चले गए। दूसरी ओर, एक बच्चा है, जो पैरालाइज्ड है और वह अपने जीवन के अधिकांश समय में बस यही दृश्य देखता रहता है।"

दर्शकों को समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर में फ़िल्म से पहले इस छोटी सी फ़िल्म को दिखने का अर्थ क्या हो सकता है ? लोग असमंजज़ में थे, जो खड़े होकर जाने वाले थे या फिर गेट तक पहुँच भी गए थे वे लौटकर वापिस आए | उन्हें पता चल गया था कि इसके बाद पूरी फ़िल्म दिखाई जाएगी जिसके लिए वे यहाँ आए थे |

फिर भी इतनी देर बर्बाद होने के लिए उनके मन में आक्रोश भरा था और वे थियेटर के अधिकारी से इसके लिए पूछना चाहते थे |

"दोस्तों ! मेन फ़िल्म से पहले यह फ़िल्म इसलिए दिखाई गई है कि हम सब इसके भीतर छिपे संदेश को समझ सकें |"

कुछ रुककर फिर से बताया गया कि यह संदेश हमें यह समझाने के लिए था कि कभी-कभी हमें अपनी स्थिति को दूसरों की दृष्टि से देखने की कोशिश करनी चाहिए। जो कुछ हमारे पास है, उसकी अहमियत को समझें और इसके लिए ईश्वर का आभार व्यक्त करें।

अपनी स्थिति को सदा बहुत कठिनाई भरी न समझें बल्कि हमेशा अपनी समस्याओं की तुलना उन लोगों से करें जो हमसे कहीं अधिक कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं, लेकिन फिर भी साहस नहीं खोते। हमें ईश्वर का धन्यवाद करना चाहिए कि उसने हमें यह सुंदर जीवन और इसके साथ-साथ हवा, पानी, धरती, आसमान, चाँद-सूरज, पेड़-पौधे, और मौसम जैसे अद्भुत साधन दिए हैं।

हमारे एक साथी हैं जो ईश्वर में बिलकुल भी विश्वास नहीं करते | यदि हम उनके सामने कोई बात छेड़ देते हैं तो वे उखड़ जाते हैं और बड़े नाराज़ होकर पूछते हैं कि क्या हममें से किसी ने ईश्वर को देखा है?अगर देखा है तो उन्हें भी दिखाएं |

"ठीक है,आपको ईश्वर या भगवान के नाम से तकलीफ़ होती है लेकिन जिस हवा ,पानी,सूर्य के सहारे जिंदा रहते हैं इन सबको तो आपको मानना पड़ेगा न ! उसके प्रति तो कृतज्ञ होना चाहिए न जो आपको मुफ़्त में जिंदा रखते हैं | वे नहीं समझ पाते तब उन्हें पूछना ही पड़ता है कि आप अपने मित्रों,संबंधियों को छोटी सी चीज़ के लिए धन्यवाद दे सकते हैं, उनको नहीं जो हमें जिंदा रखते हैं |

ईश्वर या भगवान या आप जिन्हें भी अपना सगा मानते हैं, उन्हें देख नहीं पाते तब भी क्या उनके आशीर्वादों को अपने भीतर महसूस नहीं करते ? उनको धन्यवाद या कृतज्ञता ज्ञापन करना क्या गलत है?

सोचें क्या यह ठीक है अथवा ग़लत ?

 

आपकी मित्र

डॉ. प्रणव भारती