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उजाले की ओर –संस्मरण

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स्नेहिल नमस्कार मित्रों

आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि आप सबकी होली खूब रंग-बिरंगी व उल्लासपूर्ण वातावरण में आनंद से व्यतीत हुई होगी | रंगों के इस पर्व की महत्ता हम मनुष्यों से अधिक और कौन जान-समझ सकता है ? जिसके जीवन में किसी भी कारण से एकाकी और अकेले में रहने की आदत पड़ जाती है, उसे अपने भीतर कैसा महसूस होता होगा ?

हम सब समाज के अंग हैं, हमारे दो-चार लोगों के परिवार के अतिरिक्त समाज हमारा परिवार है जिससे हम हर दिन जुड़े रहते हैं, कभी दुख में तो कभी सुख में ! आज वैश्विकता की परिकल्पना से बहुत सी और भी बातें जुड़ती हैं | सोचकर देखें, एक मनुष्य के पास सब कुछ होगा ? एक परिवार के पास होगा, एक राज्य के पास होगा, एक राष्ट्र के पास होगा या फिर सम्पूर्ण विश्व के पास होगा तब कैसा हर्षोल्लास होगा | न किसी को किसी से ईर्ष्या होगी, न जलन, न किसी को हराने की इच्छा होगी और मनुष्य के जीवन की सुंदर व्यवस्था से हम सब अपने जीवन में प्रफुल्ल, आनंदित रहेंगे |

प्रकृति ने इस पूरे विश्व में अनेकों रंग भरे हैं | इंद्रधनुष की सुंदरता और मनमोहकता के बारे में कवियों ने क्या-क्या नहीं लिख दिया? सुंदरता के लिए अनेकों रंगों के उपमानों का प्रयोग करके प्रेमी अपने हृदय के द्वार खोलते हैं तो माँ बालपन में रंग-बिरंगी तितलियों और फूलों की कहानियाँ सुनाकर बच्चों को कहानी से लेकर लोरियों में ढालकर उन्हें सुंदर स्वप्नलोक में पहुँचा देती हैं और बच्चे परियों के साथ खेलकर आनंदित हो जाते हैं|

रंग केवल इंद्रधनुष के सात रंगों को ही परिभाषित नहीं करता, उससे परे अनेक दूसरे रंगों के मिश्रण से जो रंग बनते हैं जिनमें प्रेम रंग घुला रहता है, वे सब ही रंग मानव-जीवन के लिए एक से महत्वपूर्ण व आनंददाई हैं, हम सब इस बात से वकिफ़ हैं | प्रेम -रंग के बिना सब कुछ फीका है और होली का त्योहार इसी प्रेम को प्रमाणित करने  हर वर्ष लेकर आता है रंगों की बौछार !पुकारता है कि भाई, प्रेम से जी लेते हैं न, बिन प्रेम न चढ़े कोई पक्का रंग !

आज एक मजेदार कहानी सामने आ गई, लगा कुछ मोड़ देकर आपको भी उसे पढ़वाती हूँ |वैसे यह कहानी इस बात से आसानी से जुड़ सकती है कि हम जैसी भावना रखते हैं, जैसा समझते हैं, वैसी ही मन की स्थिति होती है और हम उस पर वैसे ही स्वाभाविक गति से चलते चले जाते हैं |

एक बार एक कवि महोदय हलवाई की दुकान पर पहुंचे| उन्होंने जलेबी ली और वहीं खाने बैठ गये।

इतने में एक कौआ कहीं से आया और दही की परात में चोंच मारकर उड़ चला। हलवाई को बड़ा गुस्सा आया उसने पत्थर उठाया और कौए को दे मारा। कौए की किस्मत ख़राब, पत्थर सीधे उसे लगा और वो मर गया।

– ये घटना देख कवि -हृदय जाग उठा । जलेबी खाने के बाद जब वह पानी पीने गए तब उन्होंने एक कोयले के टुकड़े से दीवाल पर एक पंक्ति लिख दी।

“काग दही पर जान गँवायो”

– इतने में वहाँ एक लेखपाल महोदय, जो कागजों में हेराफेरी की वजह से निलम्बित हो गये थे, पानी पीने आए। कवि की लिखी पंक्तियों पर जब उनकी नजर पड़ी तो अनायास ही उनके मुंह से निकल पड़ा, कितनी सही बात लिखी है ! क्योंकि उन्होंने उसे कुछ इस तरह पढ़ा –

“कागद ही पर जान गंवायो”क्योंकि लेखपाल महोदय कागज़ के कारण ही अपनी नौकरी से हाथ धोकर बैठे थे |इसलिए उन्हें वही ध्यान आया जो उन्होंने किया था |

– इतने में पिटा -पिटाया सा एक मजनू टाइप लड़का भी वहाँ वहां पानी पीने आ आया। उसे भी लगा कितनी सच्ची बात लिखी है। काश उसे ये पहले पता होती, क्योंकि उसने उसे कुछ ऐसे पढ़ा –

“का गदही पर जान गंवायो”

उसके जीवन में जो भी हुआ, उसका अफसोस था उसे और उसकी प्रतिक्रिया ही थी यह सब !

बहुत सीधी और सरल बात है कि हम मनुष्य अपनी सोच से, अपने चिंतन से, अपने व्यवहार से अपने जीवन को सुंदर बना सकते हैं और जब एक व्यक्तिगत मनुष्य का जीवन सुंदर बन सकेगा तब हमारा, समाज का, देश, काल का भी सुंदर बनेगा, यह विश्वास रखकर काम करना होगा |मन को खंगालना होगा और भावनाओं को संबल बनाना होगा |

संत तुलसीदासजी ने बहुत पहले ही लिख दिया था –

“जाकी रही भावना जैसी, 

प्रभु मूरत देखी तिन तैसी”!

तो आइए मित्रों

जीवन को सबसे मिलकर प्यार से जीएँ

गलत न पढ़ें, मन के कागज़ पर प्रेम की भावना उकेरें | इसमें कोई संशय नहीं कि एक का ही नहीं, संपूर्ण विश्व का जीवन प्रेममय हो |

सर्वे भवन्तु सुखिन:

आनंदित रहें, प्रेम-रंगों में कल्याण की भावना से सराबोर रहें |

 

आप सबकी मित्र

डॉ.प्रणव भारती

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