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उजाले की ओर –संस्मरण

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मित्रों

स्नेहिल नमस्कार

सूर्य की रोशनी, चाँद की चाँदनी, समय-समय पर चलती हुई पुरवाई और प्रकृति की प्रत्येक मुस्कुराती, गुनगुनाती भंगिमा हमें बिन शब्दों के सहज, सरल सलीके से इतना कुछ सिखा जाती हैं कि हम आश्चर्यचकित रह जाते हैं ! कैसा मैनेजमेंट है उस परवरदिगार का कि हम कुछ सोच, समझ ही नहीं पाते और सारी चीजें व्यवस्था से चलती रहती हैं |

उस दिन मणि बड़ी परेशान थी, अक्सर परेशान हो ही जाती है वह !

"आँटी ! क्या करूँ मैनेज नहीं कर पा रही हूँ ?"उसने आते ही शिकायत का पुलिंदा मेरे सामने खोल दिया|
"अब क्या हो गया, आज किसलिए परेशान हो ?"

"परेशानी के बिना और कुछ है जीवन में ! "उसने हर बार की तरह भिनभिनाना शुरू किया |

"क्या तुम्हारे ऐसे भुनभुनाने से कुछ होगा?"हर बार की भाँति मेरे सवाल उसको और चिढ़ा जाता |

"पता नहीं आपने कैसे पूरी ज़िंदगी मेन्टेन किया काम को और अपनी पर्सनल लाइफ़ को ?"उसने अपनी चप्पलें बाहर बरामदे में ऐसे उतारी थीं जो एक कोने में एक तो दूसरे कोने में दूसरी जाकर हारे और रूठे दोस्तों की तरह एक-दूसरे की ओर से मुँह फुलाकर पड़ी थीं | कमरे में आकर उसने अपना बैग एक तरफ़ सोफ़े पर पटक दिया था और एक थके-हारे खिलाड़ी की भाँति दूसरे सोफ़े पर जा पड़ी थी |

मुझे कोई आश्चर्य नहीं हुआ उसके इस व्यवहार को देखकर, मैं उसे लगभग ऐसे ही संत्रासित, पीड़ित हर दूसरे दिन देखती ही थी | उसे कितना समझाती लेकिन वह समझ ही नहीं पाती थी और मुझे लगता कि मैं उसको समझा नहीं पाती |

मुझे लगा कि ऑफ़िस से आने पर यदि वह थोड़ी समझदारी से, संयम से काम लेती तब जब वह फिर कहीं किसी काम से जाती तो व्यवस्थित रूप में रखी हुई चीज़ों में तलाशने के लिए न दुबारा समय और ऊर्जा खराब करती, न उसकी शक्ति ही खराब होती और न उसे दुबारा अपनी चीज़ों को समेटने के लिए समय बर्बाद करना पड़ता |

प्रश्न यह भी उठता है कि एक एम.बी.ए लड़की जब इस प्रकार से अपना व्यवहार रखेगी तब वह किस प्रकार अपने जीवन का प्रबंधन कर सकेगी ?

हम चाहे कितनी ही पुस्तकें पढ़ लें, कितने कोर्स कर लें लेकिन जब तक अपने व्यवहार में नहीं लाएंगे तब तक कैसे जीवन को व्यवस्थित कर सकेंगे | यह तो ऐसे हो गया जैसे हम अपने आपको दिखाते हैं कि न जाने कितने शिक्षित हैं किन्तु उनसे भी गए-गुजरे हैं जो अंगूठे लगाने तक ही सीमित हैं | जिन्होंने शब्दों के माध्यम से शिक्षा प्राप्त नहीं की लेकिन व्यवहार के माध्यम से अपने व परिवार की गाड़ी को व्यवस्थित रूप से चलाकर अपने जीवन को सुगढ़ बनाया और अपनी आगे की पीढ़ी के लिए एक आदर्श कायम कर गए |

मणि घर की ही बच्ची है, संयुक्त परिवार में रहने के कारण मेरे सामने सदा बनी रहती है | अच्छी शिक्षा प्राप्त करके प्रतिष्ठित पद पर कार्यरत है किन्तु उसमें पेशेंस की इतनी कमी है कि कुछ सोच ही नहीं पाती और अब उसे यह भी चिंता हो रही है कि उसका विवाह होने वाला है | उसकी भावी ससुराल वालों ने योग्यता और सुंदरता देखकर आगे बढ़कर उसका हाथ मांगा है | संभवत:उनका सोचना है कि संयुक्त परिवार की बेटी है, उसे कुछ सिखाने की ज़रूरत नहीं होती, वह तो पकी हुए डेज़र्ट की तरह होती है जो मिठास से भरी हुई स्वादिष्ट ही हो सकती है | जब कि ऐसा नहीं होता |

जीवन में छोटी-छोटी बातें ही तो महत्वपूर्ण होती हैं जिनमें छिपी होती है मानसिक शांति, मुस्कान और घर को महका देने वाला एटीट्यूड ! आज मणि अपनी माँ के घर में इस प्रकार का व्यवहार करेगी तो उसे समझाया जा सकता है, समझा तो उसे न जाने कब से रहे हैं यहाँ परिवार के लोग उसके इस व्यवहार को किसी प्रकार पचा भी लेंगे चाहे वह बात उनको भी पसंद न आती हो पर लेकिन अगर वह अपनी ससुराल में इस प्रकार का व्यवहार करेगी और किसी ने उसे वहाँ कुछ बोल दिया तब वह और चिढ़ जाएगी |

हममें से सबको अपने ऊपर काम करने की आवश्यकता होती है न कि दूसरों पर दोषारोपण कर देने की | लाइफ मैनेजमेंट एक ऐसा विषय है जिसको हर किसी को सीखने की जरूरत है। जिंदगी का हर पल हमें कुछ सिखा जाता है। लेकिन यदि हम बिल्कुल होश में नही है तो हम इसका लाभ नहीं उठा सकते हैं। यदि जीवन जीने का तौर तरीका नहीं सीखा गया और भूलों को दोहराते गए तो जीवन अंधकारमय हो सकता है। इसीलिए जीवन को संवारने के लिए जिंदगी की गहराई को समझना आवश्यक है ओर अपनी क्षमताओं को पहचानने ओर उनका सही इस्तेमाल करने की आवश्यकता है तो फिर जीवन एक सही दिशा में चल पड़ेगा ओर हमें स्वयं से अथवा किसी को हमसे कोई शिकायत नही होगी।

 

आपकी मित्र

डॉ प्रणव भारती

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