उजाले की ओर –संस्मरण Pranava Bharti द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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उजाले की ओर –संस्मरण

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स्नेहिल सुप्रभात

पाठक मित्रों

हर समय किसी से नाराज़ रहने में आखिर क्या मिल जाएगा? जीवन के जिन रास्तों पर चलना है, जो खुरदुरे परिणाम पाने हैं, उनमें तो हम कोई भी रोक रोकथाम नहीं लगा सकते | जो मार्ग हमारे सामने आते हैं उन पर तो हमें चलना ही पड़ता है | अब रोकर चलें या हँसकर ! सारी बातों का उत्तर एक ही है कि हम न तो हर समय अप्रसन्न रह सकते और न ही रो सकते | सवाल यह भी बहुत कठिन है कि आखिर ऐसा करने से हमें मिल क्या जाएगा ? कोई साथ भी नहीं क्योंकि सभी हँसते-मुस्कुराते चेहरों के पास बैठना पसंद करते हैं|रोते हुए अथवा लटके हुए चेहरे भला कौन पसंद करता है?

हम स्वयं ही आनंदित नहीं रहेंगे तो दूसरों को भला कहाँ से खुशी बाँट सकेंगे?

मित्रों! ज़िन्दगी का सबसे खूबसूरत एहसास है किसी की खुशी का कारण बनना । बहुत तेज दिमाग चाहिए, गलतियां निकालने के लिए लेकिन एक सुंदर, सरल मन चाहिए अपनी गलतियां स्वीकार करने के लिए। इस सरलता से ही जीवन में संतुष्ट होने का अहसास बना रहता है | एक संतुष्टि भरा जीवन, ऊँचे कहलाने वाले जीवन से सदैव श्रेष्ठ होता है।

इस जीवन में हम प्रतिदिन कुछ नया सीखते हैं, हम समय समय पर कुछ न कुछ नया सीखते रहते हैं। सीखना एक लगातार चलने वाली प्रक्रिया है। लेकिन उनमें से कुछ ऐसी बातें हैं जिन्हें 'लर्न फ़ॉर लाइफ' यानी जीवन भर की सीख कहा जाता है।

हम सीखते हैं कि हरेक बात पर प्रतिक्रिया नहीं जरूरी नहीं है। जरूरी नहीं है कि हमारी प्रतिक्रिया सदा सही हो| हो सकता है कि जिसकी बात पर प्रतिक्रिया दी जा रही है उसे हमारी बात गलत लगे और हम बिना किसी खास कारण के मन मुटाव कर बैठें | प्रत्येक मनुष्य का अपना 'पॉइंट ऑफ व्यू' होता है। प्रतिक्रिया के माध्यम से शुरू होती है एक नकारात्मक सोच !

जो लोग हर वक़्त नकारात्मकता फैलाते हैं उनकी किसी भी बात पर व्यर्थ ही प्रतिक्रिया देना मूर्खता है क्योंकि वे पहले से ही सोचकर बैठे हैं कि हमारी सकारात्मकता प्रतिक्रिया भी उनके लिए व्यर्थ है | अत:उन पर हमारी प्रतिक्रिया का कोई सकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता | हाँ, उनकी नकारात्मकता से हमारी मानसिक शांति भंग ज़रूर हो जाती है।

दरअसल, व्यर्थ ही किसी की बात पर प्रतिक्रिया देने से बेहतर है कि उन्हें प्यार व स्नेह से कुछ ऐसे बात को समझाया जा सके कि सीधे उनके मन के भीतर बात उतर जाए न कि उनकी बात पर एकदम प्रतिक्रिया देकर उन्हें अपने से दूर कर दिया जाए| जरूरी तो नहीं कि हम हरेक बात में परफ़ेक्ट हों और हमारी बात सोलह आने ठीक ही हो |

जो हमसे प्यार करते हैं वे हमारी गलतियों पर तुरंत ही प्रतिक्रिया न देकर प्रेम पूर्वक उनको सही करने का प्रयास भी करते हैं। इसीलिए अपनी गलतियों को प्रेम से समझाने वाले के प्रति हमें भी सहिष्णु होने की आवश्यकता है |

हमें अपने व्यवहार को संयमित रखना भी बहुत आवश्यक है क्योंकि हमारे बस में सिर्फ हमारा व्यवहार है दूसरों का नही। जरूरी नहीं होता कि दूसरों का व्यवहार हमारे मनमुताबिक ही हो ।

काफ़ी कठिन है किन्तु अपनी गलतियों को सरलता से स्वीकारना जरूरी है चाहे उससे बात बने या न बने परंतु अपने मन को असीम शांति महसूस होती है।

जीवन में एक और बात बहुत अधिक महत्वपूर्ण है कि हमें छोटी छोटी बातों पर भी सबको कृतज्ञता प्रकट करनी चाहिए। उस महान सत्ता पर हमेशा आस्था और भरोसा रखना चाहिए जो हमें जन्म देकर हमारा पालन-पोषण करती है | ये प्रकृति ही तो ईश्वर है जो हमें जीवित रखने के अनेक साधन प्रदान करती है जिन्हें हम महसूस करते हैं | ये कभी भी किसी के साथ अन्याय नहीं करती इसलिए जीवन हमें जो भी सिखाए उसे खुले मन से सीखने में ही हमारी भलाई है | जीवन हमें किसी न किसी के माध्यम से कुछ न कुछ सिखाता ही रहता है |

मित्रों! जीवन से बड़ा और कोई स्कूल नही होता और समय से बड़ा कोई शिक्षक नहीं होता।

चलिए,इस बात को गुनकर देखें और सबमें स्नेह बाँटते हुए आनंद प्राप्त करें |

सस्नेह

आप सबकी मित्र

डॉ. प्रणव भारती