उजाले की ओर --संस्मरण
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स्नेही साथियों
सस्नेह नमस्कार
मैंने आपसे चर्चा की थी कि अपनी युवावस्था में मैं एक बार अपने ममेरे मामा जी के यहाँ अलीगढ़ गई थी | जहाँ बच्चे हर रोज़ गाँव में जाकर प्रकृति के सानिध्य में खेलते-कूदते |
वे पेड़ों पर चढ़कर खूब मस्ती करते और पूरा आनंद लेते | मैं घर पर ही रहती लेकिन एक दिन ऐसा आया जिसको मैं आजीवन नहीं भुला सकूँगी |
अलीगढ़ के पास ही कोई स्थान है 'किन्नौर' जहाँ पर गंगा बहती हैं |
एक दिन सिंचाई-विभाग में एक्ज़ीक्यूटिव इंजीनियर के पद पर कार्यरत मामा जी ने अपनी जीप भेज दी |
उन्होंने ड्राइवर से कहा कि वह हम सबको लेकर आए | मामा जी को किन्नौर के ऑफिस में 'फ्लाइंग विज़िट 'के लिए जाना था |
ये वो दिन थे जब सरकारी अफ़सर का बड़ा रौब हुआ करता था |
उनके पास सरकारी गाड़ी,ड्राइवर व घर के काम के लिए सहयोग करने वाले भी उपलब्ध होते थे |
यदि अफ़सर का बैकग्राउंड शानदार हो ,तब तो और भी बल्ले-बल्ले !
जैसे मामा जी के काफ़ी बाग-बगीचे थे तो उनके पास काम करने वालों को खाने-पीने की मुफ़्त सुविधा रहतीं |
मामी जी भी काम करवाने के एवज में उन्हें खूब खुश रखतीं |
मामा जी के आदेशानुसार गाड़ी हम सबको ले जाने आ गई | यह भी तय हो गया कि वहाँ के एक जूनियर इंजीनियर के घर पर हम सबका लंच रहेगा|
हम सब जैसे बैठे थे ,वैसे ही उठकर एक टोकरी में सबके कपड़े भरकर गाड़ी में ठुँसकर बैठ गए |
मैं,माँ,मामी जी और चार बच्चे व ड्राइवर महोदय ! अपनी गंगा-स्नान की यात्रा के लिए चले |
कोई एक/डेढ़ घंटे का रास्ता रहा होगा | बहुत वर्ष बीत जाने पर ठीक से याद नहीं है |
पता चला ,मामा जी अपने ऑफिस पहुँच चुके थे | ड्राइवर भाई हम सबको लेकर गंगा जी के तट पर आ गए थे |
जहाँ बच्चों ने अपनी शैतानी शुरू कर दी थी |
उस गंगा तट पर स्नान के लिए कई घाट बने हुए हैं जिनमें एक आम घाट है ,एक केवल स्त्रियों का और एक केवल पुरुषों का !
बच्चों ने कहा कि वे आम घाट पर नहाएंगे ,अम्मा और मामी जी स्त्रियों के घाट पर चले गए |
मेरे बच्चों ने कभी इस प्रकार गंगा जी में स्नान नहीं किया था | मुझे भी कुछ अधिक याद नहीं ,शायद बचपन में कभी हरिद्वार में एकाध बार ही जाना हुआ था |
मित्रों ! आप जानते हैं कि उत्तर-प्रदेश में कम से कम उन दिनों जबकि बात मैं कर रही हूँ ,लड़कियों,स्त्रियों का बाहर जाने का अधिक प्रचलन नहीं था |
वे तो बस ,घरों ताक ही सीमित रहतीं | आज तो बहुत बदलाव आ चुके हैं लेकिन उन दिनों गंगा-स्नान अथवा किसी धार्मिक स्थलों के अतिरिक्त स्त्रियाँ
अधिक बाहर नहीं निकलती थीं |
ख़ैर,यहाँ खुला वातावरण ,गंगा का यहाँ से वहाँ फैला विशाल तट देखकर 'नमामि गंगे' स्वयं ही मुख से झरने लगा |
बच्चों की अपनी दुनिया होती है ,वे हर जगह खुलकर साँस लेने की कोशिश करते हैं जिसमें कभी गड़बड़ी भी हो जाती है |
मुझे बच्चों के साथ छोड़ा गया कि वे अधिक शरारत न करें |
बच्चों को लगा कि उन्हें आगे नहीं जाने दिया जाएगा ,उन्होंने एक शैतानी सोची और मेरे कंधे पकड़कर एक रेलगाड़ी तैयार कर ली |
मामी जी व ड्राइवर हमें बहुत समझाकर गए थे लेकिन मुझे लगा कि मैं आगे हूँ तो बच्चे मेरे आगे कैसे जाएँगे ?
मुझे ख़्याल भी नहीं था कि पानी में उतरकर नीचे जाने के लिए सीढ़ियाँ बनी हुई हैं |
बच्चों ने मुझे इंजन बनाया और पीछे डिब्बे बनकर मेरे पीछे-पीछे चल दिए |
मुझे कोई अनुभव ही नहीं था ,पता चला कि अचानक सीढ़ियाँ समाप्त हो गई हैं और मेरा पैर पानी के बहाव में फिसल गया है |
कुछ समझ में आए इससे पहले तो मैं गुड़प-गुड़प करके न जाने कितना पानी मुँह में भर चुकी थी |
मैं चिल्लाना चाहती थी लेकिन मेरे मुँह से आवाज़ ही नहीं निकल रही थी |बोलने की कोशिश करती कि पानी मुँह में भर जाता |
मन में आया 'भगवान ! पहली बार शादी के बाद मामा जी के घर आई हूँ ,मामा जी का मुँह क्यों काला कर रहे हो ?"
न जाने ये बात कैसे मेरे मन में आई कि अचानक एक लहर ज़ोर से किनारे की ओर आई और सीढ़ियों पर खड़े बच्चों ने मेरे बाल पकड़कर मुझे खींच लिया |
आज तक मुझे वो शोर याद है जो दूसरे घाटों से उभरकर वातावरण में तैर गया था |
"भागो,बचाओ --कोई डूब गया --" मैं सुन रही थी लेकिन अर्धमूर्छित सी थी |
पता नहीं ,कौन-कौन मुझे खींचकर पक्के फ़र्श पर लेकर आया ? मुझे कुछ ख़्याल नहीं था लेकिन सबकी मिली-जुली आवाज़ें सुन पा रही थी |
फिर न जाने क्या हुआ ? कुछ याद नहीं |हम अलीगढ़ कब आए ,यह भी ध्यान नहीं है | मैं अपने रोज़ाना के कर्म यूँ ही करती रही |
एक दिन मामा जी ने सुबह नाश्ता करते समय टेबल पर मुझे कहा ---
"गंगा देवी कहाँ हो ?"उन्होंने मेरा नाम गंगा रख दिया था |
मुझे लगा कि मैं तो दूसरे लोक में आ चुकी हूँ --मामा जी यहाँ क्या कर रहे हैं ?
मामा जी ने मुझे ज़ोर से झिंझोड़ा -- मैं जैसे कई दिनों बाद एक गहरी नींद से जागी और मुझे पता चला कि मैं बिल्कुल ठीक-ठाक थी |
हम सब मामा जी के घर पर अलीगढ़ में थे |
मामा जी ने बताया था कि यदि मैं पानी में चली जाती तो मेरे साथ ये चारों बच्चे भी बह जाते |
तब मुझे अपनी स्थिति का भान हुआ |
यह एक विचित्र अनुभव था ! इसके बाद पानी के किसी ज़ोरदार बहाव के बारे में पढ़कर या उसको देखकर मैं बहुत दिनों तक असहज हो जाती थी |
बहते पानी के साथ खेलना कभी अत्यंत दुष्कर बन जाता है ,इस बात का ध्यान रखना ज़रूरी है |
सस्नेह
आपकी मित्र
डॉ. प्रणव भारती