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उजाले की ओर –संस्मरण

स्नेही मित्रों

नमस्कार, स्नेह

कैसा लगता है जब आप अपने पाठक मित्रों से दूर हो जाते है, बेशक कुछ समय के लिए ही सही ? मुझे तो कुछ समय में ही अकेलेपन ने अनमना कर दिया | कभी महसूस हुआ कि कैसे एक पंछी की भाँति उड़कर मातृभारती के पटल पर पहुँच जाऊँ, कभी लगा कि विवेक रखना बहुत आवश्यक है | वैसे भी विवेक के बिना कोई भी काम संभव नहीं |

मैंने लगभग दो वर्ष तक अपने स्वास्थ्य का ध्यान नहीं दिया जिसका परिणाम कुछ तो होना ही था | कोई बात नहीं, मुझे पूर्ण विश्वास है कि मैं लगातार अपने पाठकों से जुड़कर उनका स्नेह, प्रेम प्राप्त करती रहूँगी जो मेरे लिए संजीवनी है | यह भी विश्वास है कि शब्द ब्रह्म हैँ, नाद है न, उनको ब्रह्मांड के आँचल से कोई कैसे खींच सकता है | वे बीएसई है तो हम सब उनके द्वारा प्रदत्त प्रेम को पाकर एक सुंदर जीवन जी रहे है |

जीवन को सुंदर, सरल, प्रेमयुक्त जीने के लिए ईश्वर की अनुकंपा व माँ वीणापाणि का वरद हस्त सबके सिर पर हो, इससे अधिक कुछ इसलिए नहीं चाहिए कि यदि यह सब रहा तब सब कुछ ही रहेगा | बुद्धि शुद्ध तो सबही भ्रम तिरोहित !

हमारे यहाँ देवी के कितने रूप हैं जो सभी एक-दूसरे में समाहित हैं| वे ही धन, वाणी, करुणा, प्रेम, सौभाग्य, और हाँ, ईर्ष्या-द्वेष सब ही रूपों में हम मनुष्यों के भीतर यत्र-तत्र सर्वत्र विद्यमान है| हमें तो केवल चयन करना है और वह हमारी विवेक, बुद्धि पर निर्भर करता है | तो --बस आइए करते है चयन और जीते सुकून से !

कहते हैं जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि। हम जिस दृष्टि से वस्तुओं, व्यक्तियों या स्थितियों को देखते हैं वही हमारे जीवन की वास्तविकता बन जाती है । हमारा प्रभावशाली व्यक्तित्व हमारे संबंध ओर हमारी व्यवसायिक सफलता या असफलता कमोबेश हमारे ही दृष्टिकोण पर निर्भर करती है। एक विकलांग व्यक्ति अपने सकारात्मक दृष्टिकोण से एवरेस्ट पर विजय पताका फहराने में सफल हो जाता है। जबकि एक सम्पूर्ण सबल व्यक्ति अपने विकृत दृष्टिकोण के कारण जीवन के हर क्षेत्र में असफल रह जाता है। राग-द्वेष, ईर्ष्या, अहंकार, आदि दुर्गुण हमारे नकारात्मक दृष्टिकोण का ही परिणाम है। दृष्टिकोण या नजरिया बदलने से ही हम सुखी हो सकते हैं। इसलिए जरूरी है कि हम जीवन में केवल सकारात्मक रवैया ही अपनाएं ओर यह तभी सम्भव है जब हम वस्तुओं या स्थितियों के केवल उज्ज्वल पक्ष पर ध्यान दें।

आप सब का दिन मंगलमय एवं खुशहाल हो।मिलते रहेंगे, लगातार, बारम्बार ! एक नवीन ऊर्जा, नवीन विषय और नवीन विचार के साथ !

 

सस्नेह

आप सबकी मित्र

डॉ . प्रणव भारती

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