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उजाले की ओर –संस्मरण

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स्नेही मित्रो !

नमस्कार

( किट्टी पार्टी)

वैसे मैं किट्टी पार्टी जैसी पार्टियों के समर्थन में कभी नहीं रही, मुझे सदा यह महसूस होता रहा कि यह सब समय गुज़ारने के साधन हैं, जिनके पास खाली समय है, उनके लिए यह एक अच्छा शगल हो भी सकता है । यदि आप कुछ मौलिक सर्जनात्मक कार्य करना चाहते हैं तब इस प्रकार समय का दुरूपयोग मेरी बुद्धि में नहीं आता । यदि आप एक बार अपने आपको इस प्रकार की व्यस्तताओं से जोड़ लेते हैं तब आपके अन्य सृजनात्मक कार्य वहीँ ठिठक जाते हैं जहाँ से आप उन्हें लेकर चले थे । इस बात की मैं अनुभवी भी रही हूँ और जब इनमें दिखावा तथा स्पर्धा आने लगती है तब तो ये अवश्य ही मस्तिष्क खोखला कर डालती हैं । बस एक नशा सिर चढ़कर बोलता है ।

इस प्रकार की तथाकथित किट्टी पार्टियों में पन्द्रह सोलह अथवा अधिक मित्र मिलते हैं, खाते -पीते हैं, गप शप मारते हैं, स्त्रियाँ के द्वारा चटपटे विविध तथा नित नूतन अथवा दादी के जमाने के व्यंजनों की विधि के बारे में कभी चर्चा भी की जाती है ।

वस्त्रों, गहनों के डिज़ाइन का प्रदर्शन ज़रा अधिक ही होता है। एक से बढ़कर एक अपनी मेजबानी की होड़ में जी जान लगाई जाती है । जहाँ प्राय: नौकर पीड़ित स्त्रियाँ अपने नौकर- नौकरानी के निकम्मेपन की चर्चा करतीं है, जहाँ पुरुष वर्ग राजनीति के परखचे उड़ाते है, जहाँ फेसबुक और वाट्सअप के चुटकुलों पर हा-हा, ही- ही होती है वहीं कुछ बुद्धिजीवि इस त्यौहार ( किट्टी पार्टी भी किसी त्यौहार से कम नही रह गया है ) को व्यर्थ मानते है व समय की बर्बादी समझते है।

एक ऐसा सत्य कुछ इस प्रकार समक्ष आया जब एक अवकाश प्राप्त कर्नल मित्र के समुदाय के दूसरे अवकाश प्राप्त कर्नल मित्र गिर पड़ने के कारण गंभीर चोट से घायल हो गए । आज के इस दौर में अधिकाँश रूप से पति-पत्नी ही घर में रह जाते हैं । बच्चे अपने कार्यों में व्यस्त रोज़ी-रोटी के लिए विभिन्न स्थानों पर जा बसते हैं । दुर्घटनाग्रस्त कर्नल पति-पत्नी भी अपने अवकाश प्राप्त सेना के मित्रों के साथ कई किट्टी पार्टियों में संलग्न अपने समय का सदुपयोग कर रहे हैं ।

बाथरूम में गिर पड़ने के कारण कर्नल साहब को गंभीर चोट आई, देखते ही देखते किट्टी से जुड़े सभी मित्र उनकी सहायता के लिए एकत्रित हो गए । जहाँ एक नामी अस्पताल में कुछ विशेष कारणोंवश उनको प्रवेश नहीं मिल सका तथा सारा जीवन देश के लिए समर्पित करने वाले एक कर्नल के लिए मानवीयता तक नहीं दिखाई गई, वहीँ इन किट्टी के मित्रों ने किस प्रकार तन-मन -धन से व्यथित परिवार की देख-भाल में अपने आपको समर्पित किया, किसने उनके लिए क्या किया किसी को कुछ पता नहीं । बस, इतना ही कि उन्हीं हा-हा करने वाले मित्रों ने अपने दुर्घटना ग्रस्त मित्र को सुरक्षित हाथों में पहुँचाया ! जहाँ उपचार करने वाले मंदिर (अस्पतालों) ने बहुत अधिक निराश किया, डॉक्टरों एवं अस्पताल के कर्मचारियों का प्रदर्शन इस संसार रूपी मंच पर पर विफल रहा वहीं किट्टी के इन मित्रों की सहायता से ही उनका उपचार तक पहुंचना संभव हो सका । जब तक उनके पुत्र-पुत्री बैंगलौर तथा दिल्ली से पहुंचे मित्रों की सहायता से उनकी सर्जरी प्रारंभ हो चुकी थी । दुर्घटनाग्रस्त मित्र व उनके परिवार का भाग्य ठीक रहा तो वे शायद जीवित रह पाएंगे । यद्यपि वे अब कभी भी पूर्ण रूप से स्वस्थ नही रहेंगे उनका बायाँ भाग लकुए से ग्रस्त हो चुका है, अस्पताल के परिसर में उनका समय बहुत नष्ट हुआ फिर भी उन्हें उस अस्पताल में इलाज़ प्राप्त नहीं हो सका ।

मेरी मित्र ने जब मुझे पूरा वृत्तांत सुनाया तब कहीं मेरे मन में भी उनकी कही हुई बात उभरकर आई कि इस प्रकार की पार्टियों में यदि इतनी संवेदनशीलता है तब इनका नाम केवल 'किट्टी पार्टी' नहीं 'संवेदनशील मानव मंडल' जैसा कुछ होना चाहिए जिससे हम जैसों के भ्रम टूट सकें ।

मानवीयता के आधार पर इस प्रकार के मिलन होते हैं तब उन्हें 'सतसंग' समझना बेहतर होगा ।

सस्नेह

आपकी मित्र

डॉ.प्रणव भारती

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