उजाले की ओर –संस्मरण Pranava Bharti द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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उजाले की ओर –संस्मरण

स्नेहिल नमस्कार मित्रों

आशा है इस भीषण गर्मी में आप अपना ध्यान रख रहे होंगे |अब किया क्या जाए जैसा मौसम आता है हम सबको उसी के अनुसार उस मौसम को ओढ़ना बिछाना पड़ता है | हमने कितने वर्षों से प्रकृति का दोहन किया अब हर चीज़ की एक सीमा होती है न ! प्रकृति की भी सीमा जवाब दे गई और परिणाम हम सब देख ही रहे हैं | हम सबको संभलकर चलना होगा और किसी भी काम को सोच-समझकर करना होगा |

एक कहानी याद आई जिसे आप सबसे साझा कर रही हूँ |

एक बार एक आदमी को अपने बगीचे में टहलते हुए किसी टहनी से लटकता हुआ एक तितली का कोकून दिखाई पड़ा | उसे उस कोकून में रुचि हुई अब वह प्रतिदिन अपने बगीचे में घूमते हुए उसे देखने लगा एक दिन उसने ध्यान से देखा और उसे महसूस हुआ कि उस कोकून में एक छोटा सा छेद बन गया था | उस दिन वह वहीं बैठ गया और घंटो उसे देखता रहा|

उसने देखा कि तितली उस खोल से बाहर निकलने की बहुत कोशिश कर रही है पर बहुत देर तक प्रयास करने के बाद भी वह उस छेद से नहीं निकल पायी और फिर वह बिलकुल शांत हो गयी मानो उसने हार मान ली हो|

वह आदमी बेचैन हो गया और उसने निश्चय किया कि वह उस तितली की मदद करेगा| वह बगीचे से अपने घर के अंदर गया और एक कैंची उठाकर ले आया | वह फिर वहीं आकर बैठ गया जहाँ से उस छेद को और तितली के संघर्ष को देख सकता था | तितली बेचारी बहुत संघर्ष कर रही थी लेकिन उस छेद से बाहर नहीं निकल पा रही थी | वह उस तितली को देखकर मायूस हो गया और उसने कोकून के छेद को कैंची की सहायता से इतना बड़ा कर दिया जिससे वह तितली आसानी से बाहर निकल सके.| यही हुआ, तितली बिना किसी और संघर्ष के आसानी से बाहर निकल आई, पर उसका शरीर सूजा हुआ था,और पंख सूखे हुए थे|

वह आदमी तितली को यह सोचकर देखता रहा कि वह सुंदर सी रंग-बिरंगी तितली किसी भी समय अपने पंख फैला कर उड़ने लगेगी, पर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ| इसके विपरीत बेचारी तितली कभी उड़ ही नहीं पाई और उसे अपनी बाकी की ज़िन्दगी इधर-उधर घिसटते हुए बितानी पड़ी|

तितली के निकलने का संघर्ष देखकर वह आदमी अपनी दया और जल्दबाजी में ये नहीं समझ पाया कि दरअसल कोकून से निकलने की प्रक्रिया को प्रकृति ने इतना कठिन इसलिए बनाया है ताकि ऐसा करने से तितली के शरीर में मौजूद तरल पदार्थ उसके पंखों में पहुच सके और वह छेद से बाहर निकलते ही उड़ सके| उसने तितली की सहायता करने के चक्कर में उसे और भी नि :सहाय बना दिया |

वास्तव में कभी-कभी हमारे जीवन में संघर्ष ही वो चीज होती है जिसकी हमें सचमुच आवश्यकता होती है| यदि हम बिना किसी संघर्ष के सब कुछ पा लें तो हम भी एक अपंग के सामान हो जायेंगे|बिना परिश्रम और संघर्ष के हम कभी उतने मजबूत नहीं बन सकते जितना हमारी क्षमता है इसलिए जीवन में आने वाले कठिन पलों को सकारात्मक दृष्टिकोण से देखना किसी भी काम में इतनी जल्दबाज़ी न करना जैसे उस आदमी ने करुणा के वशीभूत होकर उस बेचारी तितली की बना दिया |

जीवन में संघर्ष इसीलिए ज़रूरी होते हैं कि हम उन संघर्षों से कुछ सीख सकें }ये संघर्ष हमारे जीवन में आते ही हैं हमें कुछ सिखाने के लिए ! उन संघर्षों से सीखकर ही हम सबमें कार्य-क्षमता और संभावनाएं बढ़ती हैं और हम अपने जीवन में सकारात्मक रास्तों पर चलने में सफ़ल होते हैं |

ये संघर्ष ही हमें हमारे जीवन की उड़ान भरने में हमें सहयोगी सिद्ध होते हैं | बिना संघर्षों के दूसरों के द्वारा सहायता से हमारा जीवन बेचारगी से भर जाता है | अत:हमें अपना जीवन संघर्षों से बिना घबराए उत्साहपूर्वक चलाना है जिससे हम तितली की भाँति अपंग न बन जाएं |

देखा जाए तो इस कहानी में तितली बेचारी की कोई गलती नहीं थी,वह तो संघर्ष कर ही रही थी लेकिन हमारे जैसे किसी मनुष्य ने अपनी बेकार की करुणा से उसका जीवन व्यर्थ कर दिया | इसलिए यह भी आबश्यकता है कि हम धैर्य रखें और जब तक हमें यह बात न समझ में आए कि सामने वाले को हमारी सहायता की सच में ही आवश्यकता है तब तक उसे अपना संघर्ष अपने आप ही करने दें |

सोचें, क्या यह कहानी हमें सही शिक्षा नहीं देती है?

 

आपकी मित्र

डॉ. प्रणव भारती