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उजाले की ओर –संस्मरण

स्नेहिल नमस्कार मित्रो!

सभी मित्रों के मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य की कामना !

 

अनेकानेक बंधनों, अड़चनों, परेशानियों के बीच भी जीवन चलता है, बहता है। ठहरता है, ठिठकता है, सहमता है फिर भी चलता है। कारण? जीवन चलने का नाम, चलते रहो सुबह-शाम ! थम जाना तो जीवन नहीं, उसका अपमान है। वास्तव में इस खूबसूरत दुनिया को बनाने वाले का, जीवन के प्रदाता का अपमान हम कैसे कर सकते हैं? जिस प्रकार हम स्वयं को इस दुनिया में लाने वाले अपने माता-पिता की अवहेलना नहीं कर सकते।

भिन्न मित्रों के अनुभवों व स्वयं के अनुभवों से पता चलता है कि कभी जब कोई ऐसा काम हो जाता है जो वास्तव में हम करना नहीं चाहते, न जाने किस मनोदशा, किस परिस्थिति के अनुकूल हो जाता है कि हम स्वयं पर ही आश्चर्य करते रह जाते हैं कि भई, यह हमसे कब हो गया? क्यों हो गया? कैसे हो गया?

' पता नहीं दीदी, कब, कैसे हो गया?'

अभि ज़ार ज़ार रोए जा रहा था।

अभिनंदन बहुत छोटा नहीं है, 28 वर्ष का प्यारा, सुंदर व्यक्तित्व का मालिक है वह !

अंतर्राष्ट्रीय फ़र्म में कार्यरत, ऊँचा पद, ऊँची प्रतिष्ठा, ऊँची तनख्वाह, ऊँचे ख्वाब - - - - - यानि सब कुछ ऊँचा ! बस, एक ही परेशानी और वह यह कि स्वयं की मानसिक व शारीरिक सुविधा के लिए न सोचना।

अब यह तो आवश्यक है न ! स्व कुछ अपने अंदर और हम उसे अनदेखा कर दें तब कैसे सकारात्मकता के बीज बोलेंगे? हमारे मन व मस्तिष्क को ,हमारे पोर-पोर को, हमारे हर पल को संज्ञानता में रखने का प्रयास करना, हमारे लिए जीवन को खाद-पानी देना आवश्यक है |

जैसे अच्छी सेहत के लिए जितना जरूरी स्वच्छ और संतुलित खानपान है, उतना ही जरूरी ये भी है कि हम किन लोगों के साथ उठते-बैठते हैं, किस वातावरण में रहते हैं और साथ ही अपने आसपास के लोगों का कितना सम्मान करते हैं।दरसल ,यह बात सदा से कही गई व स्वीकार की गई है कि हम जैसा व्यवहार स्वयं के लिए चाहते हैं,जिस प्रकार के व्यवहार की स्वयं के लिए दूसरों से अपेक्षा करते हैं,वैसा व्यवहार ही हमें दूसरों से करना होगा | बस,इतनी सी बात है किन्तु हम यहीं कभी ठिठक जाते हैं |

यह बुद्धिमता से परिपूर्ण एक ऐसा आवश्यक तथ्य और कथ्य है जिसे आज के जमाने में भुला दिया गया है, या जिसकी महत्ता पर अब ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता। वर्तमान समय में हमारे समाज की जो स्थिति है, उसके मद्देनजर यह कहना गलत तो नहीं होगा कि हम अस्वस्थ जीवनशैली, अस्वस्थ खानपान के प्रति आकर्षित होने लगे हैं, जहां हम घर के खाने की जगह फास्ट फूड और चीनी से भरे भोजन करते हैं, कम सोते हैं, न्यूनतम व्यायाम करते हैं, साथ ही ना तो हमारे पास किसी से बात करने का समय है,न ही कुछ कहने । सुनने का, जिसके फलस्वरूप अनेकों सुविधाओं व तथाकथित ऊँची जीवन-शैली को अधिक महत्वपूर्ण समझते हुए हम जीवन में पिछड़ ही तो जाते हैं |अंत में इसका सारा कुप्रभाव अपने मन नींव में डालकर उलझन में पड़ जाते हैं | ।

इसीलिए हम धीरे धीरे तनावग्रस्त होते जा रहे हैं। इससे पहले कि हम अवसाद में चले जाएं ,हमारे लिए अपनी जीवनशैली को समझना, उसे दुरुस्त करना बहुत आवश्यक है मित्रों ! अपने स्वास्थ्य ख़ासतौर पर मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देने से अन्य परेशानियों को भी संभाल जा सकता है। उसका एक आसान तरीका ये है कि हम सब सकारात्मक वातावरण में, सरल, सहज वातावरण में उठना- बैठना शुरू करें, सोचें, समय निकालें व और कुछ समय बाद ही हम महसूस करेंगे कि हमारे जीवन में एक सुंदर परिवर्तन होने लगा है | अपने जीवन मे तो परिवर्तन स्वयं महसूस करेंगे ही साथ ही अपने से जुड़े हुए लोगों के व्यवहार व मन में रोशनी की किरण देखकर आनंदित हो सकेंगे।

हम सब जानते ,समझते हैं कि जीवन में आनंदित होने का अर्थ है ,क्षण भर नहीं ,वरन हर पल,किसी भी परिस्थिति में !

चलिए ,सब मिलकर चलते हैं उधर की ओर, जहाँ आनंद की आशा के गीत गुनगुनाए जा रहें हैं|हम सब भी उन गीतों की गुनगुनाहट में सम्मिलित होते हैं | हम सबका प्रत्येक दिन व पल शुभ एवं मंगलकारी हो। हम सब अपने भीतर के सद्गुणों के साथ स्वयं व समाज के स्वस्थ समाज के लिए उपयोगी बन सकें।

आप सबकी मित्र

डॉ. प्रणव भारती

 

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