उजाले की ओर –संस्मरण Pranava Bharti द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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उजाले की ओर –संस्मरण

नमस्कार स्नेही मित्रो

आशा है दीपावली का त्योहार सबके लिए रोशनी की जगमगाहट लेकर आया है | इस जगमगाहट ने मन के अँधियारों में भी उजाला किया हो तब ही तो दीपावली की जगमगाहट सफ़ल होगी |

वह एक ड्राइवर है | पिछले दिनों मैं एक मुंबई से आई हुई मित्र से मिली | वह अपने ड्राइवर के साथ अहमदाबाद आई थी| हम कहीं जा रहे थे, कुछ बातों में तल्लीन हम उसे रास्ता बताना ही भूल गए | जब दूसरे रास्ते पर कहीं बहुत दूर निकल आए तब मेरी मित्र को अपनी गलती का अहसास हुआ |

"अरे! हम तो तुम्हें रास्ता बताना ही भूल गए ----"उसने अपनी गलती का अहसास करते हुए कहा|

"कोई बात नहीं मैडम, अब बता दीजिए ,मैं उधर ले जाऊँगा |"उसने बड़े सहज भाव से विनम्रता से कहा|

हम दोनों कहीं से खाना खाकर आए थे और यह भी जानते थे कि ड्राइवर ने अभी खाना नहीं खाया है|

हमें इस बात का बेहद अफ़सोस भी था|

"बहुत गलत हुआ, हम अपनी बातों में उलझे रहे और तुम्हारे खाने का ध्यान नहीं रखा और ऊपर से गलत रास्ते पर जाकर उसका समय और ज़्यादा हो गया| इंसान है, देर होने पर भूख लगनी स्वाभाविक थी लेकिन उस बंदे ने अपने विवेक से हमें यह महसूस नहीं होने दिया कि उसे इतनी देर हो गई थी |

हम कई बार अपने पास काम करने वालों के बारे में लगभग एक सी ही राय रखते हैं | उन्हें अपने से छोटा समझते हैं लेकिन ऐसा नहीं है | कई बार हमारे लिए काम करने वाले अपने से अधिक हमारा ध्यान रखते हैं, हम उन पर कितने आधारित रहते हैं। निर्भर रहते हैं फिर भी कभी उनका ध्यान रखने में चूक जाते हैं | उसके लिए हमें कुछ अफ़सोस भी नहीं होता|

इस दिन भी कुछ ऐसा बार-बार होता रहा | हम लोग आपस में फिर से बातें करने में मशगूल हो गए फिर भी उसने याद नहीं दिलाया |अब काफी लंबा समय हो चुका था |

"मैडम! आप लोग चाय पीएंगी ?" उसने हम दोनों से बड़ी विनम्रता से पूछा| हमें अचानक फिर से याद आ गया कि उस बेचारे ने तो अभी तक कहना भी नहीं खाया है, बड़ी शर्मिंदगी से यह अहसास हुआ कि हमारा दोपहर की चाय का समय हो चुका है और यह बंदा जो हमारे लिए लगातार गाड़ी चला रहा है, वह भूखे पेट आखिर कैसे गाड़ी ड्राइव कर रहा होगा ?

"हाँ,किशन रोको----"मेरी मित्र ने उससे कहा और उसने गाड़ी एक रैस्टोरेंट के आगे रोक ली |यह हाई-वे था, हम अहमदाबाद से वडोदरा जा रहे थे |

आजकल हाई-वेज़ पर खाने-पीने के अच्छे, साफ़-सुथरे स्थान बन चुके हैं जहाँ लोग भी भी अच्छे आते हैं |

उस दिन न जाने किधर से कुछ ऐसे लोग आए थे जो कुछ बद्तमीज़ किस्म थे, वे उल्टे -सीधे लोग उस स्थान पर बैठे थे | किशन ने उन लोगों को देखते ही हमसे कहा कि हम गाड़ी में बैठें, हम लोग थोड़ी सी दूरी पर बने एक दूसरे स्थान पर बैठेंगे |

हमारे लिए चाय इतनी ज़रूरी नहीं थी जितना उसके लिए खाना लेकिन उसने अपनी भूख की परवाह न करके हमें वहाँ से पहले निकाला, एक अच्छे रेस्टोरेंट में बिठाया फिर खुद खाने के लिए गया | अब भी उसके चेहरे पर एक मुस्कान थी |

उसकी मुस्कान भरी बातों से हमें उसके भूखे रहने का और भी दुख हुआ | लौटती बार हम दोनों आपस में उसके बारे में अपने द्वारा की गई भूल की बातें कर रहे थे जो किशन सुन रहा था उसने कहा कि जो हो गया है, उसके बारे में अब बात नहीं करनी चाहिए |

"मैडम! आप लोग इतना अफ़सोस न करिए | यह तो छोटी सी बात है, आप लोग इतना अफ़सोस मत करिए|

अब तक हमें कई ऐसे ड्राइवर मिले थे जो छोटी-छोटी बातों में चिक-चिक करते थे | इस युवा किशन की विवेकशीलता ने हमें सिखाया कि विवेकी व्यक्ति में बड़ा हौसला और साहस होता है | वह निर्णय भी अविवेकी व्यक्ति से बेहतर लेता है |

"मैडम ! मेरी बात सुन लीजिए प्लीज़, आप हमेशा मेरा ध्यान रखती हैं, कभी ऐसा हो भी गया तो क्या हुआ?"

किसी बात को इतनी सरलता से लेना बहुत महत्वपूर्ण है | यह भी हमें सिखाता है कि ईश्वर प्रदत्त प्रेम, प्रवाह का एक रूप यह भी है|

संसार में हर कोई सब कुछ नही जानता परंतु कुछ न कुछ तो हर कोई जानता, समझता है इसलिए सुनना भी एक कला है। जो सुनना जानता है उसी में सीखने के गुण होते हैं। झूठी प्रशंसा हमें राह से भटका देती है, इसीलिए इससे परहेज करना ही बेहतर रहता है ।

सबसे पहले हमें अपने मन की भीतरी दीवाल पर चिपके गलत विचारों को निकालकर अँधेरे के स्थान पर ज्योति जलनी होगी | तब हमारा मन आलोकित होगा | हमें समझ में आएगा कि प्रेम के असंख्य पहलू हैं | न कभी वह किसी गोल घेरे के भीतर बंधकर रहा है, न रह सकता है |

ज़मीन से लेकर आसमान तक,सभी दिशाओं के ओर-छोर में और धरती के कण-कण में प्रेम ही तो विभिन्न आकार व स्वरूपों में पसरा हुआ है, कहीं से भी ज़रा सी रज उठाकर अपने माथे पर लगा लें और अहसास करें उस संवेदना का जो हमें चैतन्य रखती है |

एक बात और भी समझ में आती है कि आलोचना हमारा मार्गदर्शन करती है। जैसे ही हम प्रशंसा में छिपा झूठ और आलोचना में छिपा सच जान लेते हैं तो समझ सकते हैं कि हममें अच्छे और बुरे को पहचानने की काबिलियत आ गई है । हम अपने भीतर भी झाँकने का प्रयास करते हैं और पाते हैं कि उसमें न कोई वृत्त है, न कोई बंधन -----केवल प्रेम है---शाश्वत प्रेम !

किसी की बात सुन लेने से कितने ही सवाल सुलझ जाते हैं | वाणी ही एक ऐसा जरिया है जिससे हम सबसे जुड़ कर रह सकते हैं। और यह वाणी ही है जिसका सही इस्तेमाल न करने से हम दूर हो सकते हैं। इसीलिए वाणी को विराम देकर स्वयं को सबके करीब पहुंचने में ही प्रेम का विस्तार है जो कभी भी वृत्त में बंधकर नहीं रह सकते |

 

आप सबकी मित्र

सस्नेह

डॉ . प्रणव भारती