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उजाले की ओर - 36

उजाले की ओर

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स्नेही मित्रों

प्रणव भारती का नमस्कार

मनुष्य-जीवन विधाता के द्वारा विशेष प्रयोजन से बनाया गया है जिसमें न जाने कितनी–कितनी संवेदनाएँ भरी हैं जिनके बिना जीवन के टेढ़े-मेढ़े मार्गों से गुज़रना आसान भी नहीं होता | हमारे समक्ष बहुत से मोड़ आते हैं जिनमें से कभी तो हम सहजता से निकल जाते हैं और कभी खो भी जाते हैं | इन मार्गों में जीवन प्रेम के सहारे से ही अपने गंतव्य पर अग्रसर होता है |हम सभी इस तथ्य से परिचित हैं कि स्नेह के बिना जीवन सूखी हुई डाली के समान रूखा रह जाता है |तात्पर्य है कि जीवन में प्रेम व स्नेह की इतनी महत्ता है जिसका कोई भी मोल नहीं है |

प्रेम बेचारगी नहीं है , न ही है भिक्षा जो कमंडल लेकर किसी के समाने मांगना पड़े |प्रेम तो वह अलौकिक शक्ति है जिसमें मीरा का ज़हर का प्याला अमृत बनकर म्रत को भी जिला देता है| एक मनुष्य ही है जो अपने प्रेम को अपने व्यवहार से प्रगट कर सकता है,केवल मँहगी वस्तुएँ देकर प्रेम को अपमानित व लांछित करना कोई प्रेम का आचरण नहीं है |प्रेम देता है,कोई अपेक्षा नहीं करता |स्नेह की वाटिका में रंग- बिरंगे पुष्प खिलाकर प्रेम हर पल उत्सव मनाता है |प्रेम रिश्तों की कद्रकरता है ,उन्हे नग्न नहीं करता |अपेक्षा और उपेक्षा से परे है प्रेम ! प्रेम जीवन के उतार चढ़ाव में सहारा बनकर खड़ा होता है न कि समय की नज़ाकत को देखते हुए हाथ छोड़ देता है |

एक कहानी याद आती है;एक छोटा बच्चा था,बहुत शरारती किंतु वह संवेदनशील बहुत था| अपने बड़ों के साथ उसने कभी ऊंची आवाज़ में बात करना भी नहीं सीखा था |एक बार वह शरारत करते हुए सड़क पर जा रहा था कि उसे एक वृद्ध मिले जो काफी ग़रीब व भूखे दिखाई दे रहे थे| उनकी आँखों की याचना भरी दॄष्टि देखकर वह बच्चा ठिठक गया |

“दादा जी आप परेशान क्यों हैं ?”बच्चे ने अपनी शैतानी छोड़कर वृद्ध की आँखों में देखा |वृद्ध की आँखों से आँसुओं की धार बह निकली |उन्होंने कुछ उत्तर तो नहीं दिया किंतु बच्चे ने उनकी बेचारगी को भाँप लिया और उन्हें कहा कि वे उसकी वहीं प्रतीक्षा करें वह बस अभी आता है |वृद्ध कमज़ोर तो थे ही ,एक पुलिया पर बैठ गए |उन्होंने देखा कि बच्चा पास वाली भोजन सामग्री की दुकान पर जा रह था |पाँच मिनट के अंदर ही वह लौट आया ,उसके एक हाथ में खाने की कुछ चीज़ें थीं और एक पानी की बोतल थी |पह्ले बच्चे ने बुज़ुर्गवार के हाथ-मुह धुलाए और अपने रूमाल से उनका मुख पोंछ दिया फिर उन्हें वह खिलाया जो वह उनके लिए लाया था |

बच्चा बहुत मनोयोग से यह सब काम कर रहा था कि इतनी देर में बच्चे की माँ उसे तलाशते हुए वहाँ आ गई,उसने अपना स्कूटर रोका और बच्चे पर नाराज़ होने लगी किंतु अचानक बुज़ुर्ग को देखकर वह भौंचक्की रह गई |ये बुज़ुर्ग महिला के पिता थे जो उसके शहर से दूर किसी शहर में रहते थे |

बच्चे की माँ अपने पिता की स्थिति देखकर उनसे चिपटकर रोने लगी,बच्चे को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था |वह कभी अपनी माँ का मुख देखता तो कभी वृद्ध का |बच्चा और उसकी माँ वृद्ध को घऱ ले गये जहाँ उन्हें पता चला कि वृद्ध को उनके बेटे-बहू ने घर से बाहर निकाल दिया था और वे अपनी बेटी को तलाशते हुए न जाने कितने दिनों पश्चात यहाँ तक पहुँचे थे |जबकि अपनी बहन को उसके भाई ने बताया था कि पिता न जाने बिना बताए कहीं चले गए थे |बेटी बेचारी ने काफी खोज करवाई,बाद में चुप होकर बैठ गईं |

एक छोटे से बच्चे ने अपने सद्व्यव्हार तथा संवेदनशीलता से अपने नाना को खोज लिया था| बुज़ुर्ग ने अपने नाती को वर्षों से देखा नहीं था अत: वे दोनों एक-दूसरे को पहचान नहीं पाए थे| अपने संस्कारों से ही हम प्रेम व स्नेह की गहराई को बिना किसी विशेष प्रयास के अपने भीतर महसूस करते हैं और न केवल अपने लिए वरन्‌ सभी के लिए एक आदर्श स्थापित करते हैं | यही है वास्तविक प्रेम और यही है इसका अंदाज़ !!

यही प्रेम है दोस्तों ,इस जीवन का सार

प्रेम बिना होता नहीं ,जीवन का निस्तार ----

आइये मित्रों प्रेम क़े वास्तविक रूप का आलिंगन करें और अपने साथ ही सबके जीवन को प्रेम से सराबोर कर दें ||

आप सबकी मित्र

डॉ प्रणव भारती

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