उजाले की ओर --संस्मरण
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सुभोर
स्नेही मित्रों
ज़िंदगी हर किसी के लिए कुछ न कुछ ऐसा लेकर आती है जिससे हम बहुत कुछ सीख लेते हैं | आज का ट्रेंड देखते हुए ऐसा लगता है कि भाई ! क्या किया जाय जब हमें सहूलियत ही नहीं मिली |
यह एक कारण हो सकता है किन्तु इसके अतिरिक्त और कारण यह भी हो सकते हैं कि सहूलियत न मिल पाने पर भी लोग कितनी प्रगति करते हैं और समाज के सामने प्रेरणा बन जाते हैं |
अब इस उम्र में हम अपने भूत में पीछे तो लौट नहीं सकते किन्तु आज के युवा वर्ग के समक्ष कुछ ऐसे उदाहरण तो रख ही सकते हैं जिनसे हमारे से आगे वाली पीढ़ी को प्रेरणा मिल सके |
बरसों पूर्व की बात है रेलगाड़ी के सफ़र में मुझे एक ऎसी लड़की मिली जो बड़ी विनम्र थी ,हँसमुख स्वभाव की थी और यात्रा की शुरुआत में मुझसे इतनी घुल मिल गई थी कि उसे कोई संकोच नहीं है कि वह एक मध्यमवर्गीय परिवार में पैदा हुई एक छोटे शहर की लड़की है । उसके माता-पिता का एकमात्र उद्देश्य अपने बच्चों को सर्वोत्तम शिक्षा प्रदान करना था।उनके इस उद्देश्य ने उसे बचपन से महत्वाकांक्षी और मेहनती बना दिया। उसने बताया ;
"मुझे आज भी याद है कि मैं अपनी टेबल पर मोमबत्तियों के साथ पढ़ती थी जब बिजली कटती थी।मुझे अपने प्रथम श्रेणी में पहली रैंक मिली थी। अपने 10 वीं कक्षा के बाद, मैंने विज्ञान को चुना और IIT JEE की तैयारी करना चाहती थी। लेकिन उस समय, मेरे शहर में कोई कोचिंग नहीं थी। मैंने अपने बोर्ड की परीक्षा की तैयारी करने का निर्णय लिया ताकि मुझे दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रवेश मिल सके। मैंने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया और 96.2% हासिल किया। मैं अपने शहर में उस वर्ष की टॉपर थी।"
कुछ रुककर उसने एक आत्मविश्वास से भरी दृष्टि मुझ पर डाली ;
"मैंने IIT JEE मेंस की परीक्षा दी और एडवांस के लिए क्वालिफाई हो गई। लेकिन मैं परीक्षा क्लीयर नहीं कर पायी। मेरे शिक्षकों ने मुझे एक साल छोड़ने और कोटा में IIT-JEE की तैयारी करने की सलाह दी।मेरे पास दो विकल्प थे - कोटा के लिए अपने बैग पैक करना, या डी.यू में प्रवेश पाने के लिए। लेकिन परिवार आर्थिक रूप से संघर्ष कर रहा था । मेरे पिता ने मेरी बड़ी बहन की शिक्षा के लिए पहले ही कर्ज ले लिया था और वह ज्यादा कर्ज नहीं चुका सकते थे। मैं उनके लिए बोझ नहीं बनना चाहतीं थी। मुझे टॉप कॉलेजों में पढ़ाई करने का विचार छोड़ना पड़ा।"
"मैं परिस्थितियों से विवादित थी। मुझे लगा जैसे वर्षों में मेरी सारी मेहनत बेकार चली गई। 12 वीं बोर्ड के बाद, जहां मेरे दोस्तों को पास होने या अच्छे प्रदर्शन के लिए प्रस्तुतियां मिल रही थीं, मुझे अपनी पसंद की शिक्षा नहीं मिली।लेकिन, मैंने हार नहीं मानी। मैंने बी.टेक के लिए स्थानीय कॉलेजों के लिए प्रयास करना शुरू कर दिया। मुझे भी यू.पी में अच्छी रैंक मिली। एस. ई. ई. जो मुझे मेरे गृह -नगर के पास एक कॉलेज में फीस माफी सीट के माध्यम से १००% छात्रवृत्ति देता है।"
उसने वहाँ प्रवेश लिया और माता-पिता से कोई भी पॉकेट मनी मांगने से बचने के लिए ट्यूशन क्लास देना शुरू कर दिया।
उसे पता था कि कुछ कंपनियाँ कैंपस प्लेसमेंट के लिए आने वाली हैं। उसे नौकरी पाने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी। उस समय, उसके घर पर कोई डेस्कटॉप या लैपटॉप नहीं था। वह कॉलेज में कोडिंग सीखती थी। उसने उन सभी आवश्यक चीज़ों को सीखा जो एक कंपनी देखती है। कैंपस प्लेसमेंट का समय आया ,उसे नौकरी का प्रस्ताव मिला।
शुरुआती दिनों में उसे हाथ में 15k वेतन मिलता था। उसने वहाँ दो साल काम किया। उसके बाद, अन्य कंपनियों में नौकरी के लिए आवेदन किया।उसे कई बड़ी कंपनियों से नौकरी के प्रस्ताव मिले। इस तरह, वह उस स्थान पर आयी जहाँ आज वह है |
वह खूब प्रसन्न है और दिन-रात प्रगति कर रही है न कि इस बात पर अफ़सोस कि उसके पास कोई सुविधा नहीं थी|
मेरे युवा मित्रों ! यह कहानी सबके जीवन के लिए प्रेरणा बन सकती है | निराश न हों और कमज़ोर समय में अपने को टूटने न दें |
न थकना है ,न टूटना
हमें बस ,चलना है ||
सस्नेह
डॉ. प्रणव भारती