मित्रो !
सस्नेह नमस्कार
कई बार जीवन में ऐसी बातें हो जाती हैं जो हम सोच भी नहीं पाते लेकिन जब वे बातें, घटनाएँ जीवन में घटित होती हैं तब मन पीड़ित होता है और हम सोचने के लिए बाध्य हो जाते हैं कि आखिर समाज में इस प्रकार की घटनाएँ, विसंगतियाँ क्यों होती हैं ? छोटी सी ज़िंदगी में हम न जाने कितने-कितने व्यवधान ले आते हैं |
कुछ दिन पहले एक घटना के बारे में पढ़कर चित्त बहुत अशांत हुआ और सोचने के लिए बाध्य होना पड़ा कि हम कहाँ जा रहे हैं ? संबंधों की कीमत हमारे लिए शून्य क्यों होती जा रही है ?घटना कुछ ऐसी थी ;
लखनऊ के एक उच्चवर्गीय बूढ़े पिता ने अपने पुत्रों के नाम एक चिट्ठी लिखकर खुद को गोली मार ली। चिट्टी क्यों लिखी गई थी और उसमें क्या लिखा गया था यह जानने से पहले संक्षेप में चिट्टी लिखने की पृष्ठभूमि जान लेनी चाहिए | बुज़ुर्ग सेना में कर्नल के पद से रिटार्यड हुए थे । वे लखनऊ के एक पॉश कॉलोनी में अपनी पत्नी के साथ रहते थे। उनके दो बेटे थे। जो सुदूर अमेरिका में रहते थे। माता-पिता ने अपने लाड़लों को पालने में सभी माता-पिता की भाँति कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी । बच्चे सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ते गए और माता-पिता गौरवान्वित होते गए ।
वे पढ़-लिखकर इतने योग्य हो गए कि दुनिया की सबसे नामी-गिरामी कार्पोरेट कंपनी में उनको नौकरी मिल गई। संयोग से दोनों भाई एक ही देश में,लेकिन वे अलग-अलग अपने परिवार के साथ रहते थे।
एक दिन अचानक पिता ने रोते हुए अपने बेटों को खबर दी।
"बेटे! तुम्हारी माँ अब इस दुनिया में नहीं रही । पिता अपनी पत्नी की मृत-देह के साथ बेटों के आने का इंतजार करते रहे। एक दिन बाद छोटा बेटा आया।पिता ने पूछा ;
"बेटा ! तुम्हारा भाई क्यों नहीं आया?"
पिता ने बेटे से कहा कि उसे फ़ोन मिलाए कि वह पहली उड़ान से आ जाए |
धर्मानुसार बड़े बेटे को आना चाहिए ,ऐसा सोचकर वृद्व फौजी ने ज़िद सी पकड़ ली थी ।
अचानक छोटे बेटे के मुँह से एक बात ऐसी निकली कि पिता का दिल फट गया |
उसने पिता से कहा ;
" भैया ने कहा कि माँ की मौत में तुम चले जाओ। पिता जी मरेंगे, तो मैं चला जाऊँगा।"
कर्नल साहब (पिता) कमरे के अंदर गए। खुद को संभाला फिर उन्होंने चंद पंक्तियों का एक पत्र लिखा। जो इस प्रकार था;
प्रिय बेटों !
मैंने और तुम्हारी माँ ने बहुत सारे अरमानों से तुम लोगों को पाला-पोसा था । दुनिया के सारे सुख दिए। देश-दुनिया के बेहतरीन जगहों पर शिक्षा दी। जब तुम्हारी माँ अंतिम साँसें ले रही थी, तो मैं उसके पास था । वह मरते समय तुम दोनों का चेहरा एक बार देखना चाहती थी और तुम दोनों को बाहों में भर कर चूमना चाहती थी। तुम लोग उसके लिए वही मासूम छोटे बेटे थे जिन्हें वह बचपन में अपने गले में लटकाए घूमती रहती थी । उसकी मौत के बाद उसकी लाश के पास तुम लोगों का इंतजार करने लिए मैं था। मेरा मन कर रहा था कि काश! तुम लोग मुझे ढांढस बधाने के लिए मेरे पास होते। मेरी मौत के बाद मेरी लाश के पास तुम लोगों का इंतजार करने के लिए कोई नहीं होगा। सबसे बड़ी बात यह कि मैं नहीं चाहता कि मेरी लाश निपटाने के लिए तुम्हारे बड़े भाई को आना पड़े। इसलिए सबसे अच्छा यह है कि अपनी माँ के साथ मुझे भी निपटाकर ही जाओ। मुझे जीने का कोई हक नहीं क्योंकि जिस समाज ने मुझे जीवन भर धन के साथ सम्मान भी दिया, मैंने समाज को असभ्य नागरिक दिये। हाँ, अच्छा हुआ कि हम लोग अमरीका जाकर नहीं बसे,वरना सच्चाई दब जाती।
मेरी अंतिम इच्छा है कि मेरे मैडल तथा फोटो बटालियन को लौटाए जाएँ तथा घर का पैसा नौकरों में बाँट दिया जाए । जमापूँजी आधी वृद्ध सेवा केन्द्र में तथा आधी सैनिक कल्याण में दी जाए ।
सदा खुश रहो !
तुम्हारा पिता
यह माता-पिता होते हैं जिनसे आप कितना भी खराब व्यवहार क्यों न कर लें, वो कभी भी अपने बच्चों को बददुआ नहीं देते |
मित्रों ! कितने कष्ट की बात है कि एक ऐसे पिता को जिसने अपने बच्चों को अपनी हैसियत से अधिक धन लगाकर व मन व शरीर से बच्चों की सेवा की| उन्हें इतनी ऊँचे स्थान पर पहुँचने के लिए सदा सहारा बने रहे, वे ही पुत्र अपने माता-पिता के अंतिम क्षणों में ऐसा व्यवहार करें !
सच में!ऐसी बातों से मन में बहुत से प्रश्न उठते हैं | अपनी भारतीय परवरिश पर चिंता होती है और अपनी नई पीढ़ी के लिए एक बार फिर से सोचने की आवश्यकता महसूस होती है |
मित्रों ,सोचें --विचार करें |
सस्नेह
आपकी मित्र
डॉ. प्रणव भारती