उजाले की ओर –संस्मरण Pranava Bharti द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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उजाले की ओर –संस्मरण

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स्नेहिल नमस्कार मित्रो

भीग उठता है मन जब देखते हैं कि रिश्तों में गांठ पड़ रही है। यदि उसे तुरंत खोलने की कोशिश न की जाय तो वह दिनों दिन और मज़बूत होती जाती है।वही गांठ ज़ख़्म में परिवर्तित हो जाती है क्योंकि उसमें चीरा लगाना पड़ता है जैसे शरीर के किसी अंग में कोई गांठ बनने लगे और उसका तुरंत इलाज़ न किया जाए तो आॉप्रेशन करना पड़ता है। अब वह कितने दिनों में ठीक होगी,होगी भी या नासूर बनकर रह जाएगी, कहा नहीं जा सकता।

शरीर के ज़ख़्म हों या मन के जितने पुराने होते हैं उसकी टीस उतनी ही ज्यादा होती है। ऐसे में कई लोग भावनात्मक रूप से इतने मजबूत नहीं होते कि उन यादों से पीछा छुड़ा लें और ऐसे में वो इन यादों को पूरी जिन्दगी ढ़ोते रहते हैं।

कुछ लोग तो उन यादों में इतनी बुरी तरह उलझ जाते हैं जैसे मकड़ी ख़ुद के जाल में से निकलने के लिए छटपटाती है।ऐसे लोग  मानसिक व शारीरिक रूप से भी कमज़ोर पड़ जाते हैं और व्यवहार भी उन यादों की तरह विचलित और कड़वा बन जाता है।

यदि हमें भावनात्मक स्थिरता चाहिए , एक बेहतर जिन्दगी चाहिए, तो ये ज़रूरी है कि हम संबंधों में प्यार व स्नेह बनाए रखें। हम मनुष्य हैं और हम सबसे गलतियाँ हो जाना बहुत स्वाभाविक है तो यदि ऐसा हो भी जाता है तब यादों से छुटकारा पाने का प्रयास करें।

1) हमें अपनी चेतना का इस्तेमाल करना चाहिए।यह  चेतना हमें यह समझने में सहायक होगी कि जो दुःख है, वह

हमारा जीवन नहीं है बल्कि समय व परिस्थितियों के कारण आया है, उसे पीछे छोड़ हमें जीवन में आगे बढना है ।

2) माइंडफुलनेस अर्थात अपनी परिस्थितियों व अपनी स्थिति के प्रति जागरूकता और ध्यान  की तकनीकें हमें वर्तमान में रहने और नकारात्मक विचारों से दूर रहने में मदद कर सकती हैं।

3) पॉजिटिव एक्टिविटी, हमअपने आप को उन गतिविधियों में व्यस्त रखें जो हमें आनंदित करती  हैं,  अपने शौक जिनमें खेल या दोस्तों और परिवार के साथ समय बिताना। अपनी भावनाओं और विचारों को लिखना एक अच्छा तरीका हो सकता है उन्हें समझने और उनसे निपटने का! कोई भी कला जिनमें गीत-संगीत, नृत्य, एक्टिंग आदि कुछ भी हो सकते हैं जिससे हमें आनंद प्राप्त हो।पर्यटन स्थल पर जाना, प्रकृति से प्रेम बहुत बड़ा संबल है।

4) हमें खुद को माफ़ करना भी सीखना होगा जब अतीत मन पर आवरण चढ़ा देता है, परेशान करता है, तो परेशान होकर हम केवल खुद को चोट पहुंचाते हैं,उस व्यक्ति को नहीं, जिसको हम जिम्मेदार समझते हैं। इसलिए,हमें क्षमा की भावना विकसित करके खुद के साथ-साथ दूसरों को भी क्षमा करना सीखना होगा । जब हम स्वयं को और दूसरों को क्षमा करना सीख जाएंगे उसके बाद हम पर किसी दुःख का बोझ नहीं रहेगा और हमें जीवन में आगे बढ़ने में सहयोग मिलेगा ।

साथियों! चलिए इन छोटी-छोटी बातों पर ध्यान देकर अपने जीवन को अधिक सरल व सहज बनाने की यात्रा पर चलते हैं।

 

आपकी मित्र

डॉ प्रणव भारती