हम अभी भी ऐसे समाजमें रहते हैं जहां किसी अंजान रोगने इंसान को घेर लिया है | तो उसके निदान या इलाज के बारे में सोचना तो दूर की बात, वह मरीज़ को नफरत की नज़रो से देखा जाता है, उस व्यक्ति को वहम और ध्रीना के अंधकार में डाल देते हैं | वह व्यक्ति तभी बाहर आ सकता है जब कोई सकारात्मक सोच वाला व्यक्ति इस पर प्रकाश डालता है। 'अग्निजा' एक ऐसी ही एलोपेसिया (Alopcia)से पीड़ित एक व्यक्ति के जीवन और संघर्ष के बारे में एक उपन्यास है | Now Available on Amazon . वैसे ये एक सच्ची कहानी है. गुजरात की केतकी जानी नामक लड़की यह रोग का शिकार हुई | यह रोग शरीर के अंदर जो बाल बनने की प्रक्रिया होती है | उसके विकार के कारण होता है | जो ज्यादातर पीडितो के बालो पर असर करता है | बाल जडन लगते हैं। धीरे धीरे सब बाल गिर जाते है | व्यक्ति और खास करके नारी की सुन्दरताका अहम हिस्सा होता है बाल... | यह पीड़ा और वहम की पीड़ा से एक पत्रकार उसके सहयोग में आकर कैसे उसको यह दर्द और अंधकार से बहार निकलता है और एक सम्माननीय, प्रतिष्ठापूर्ण जिंदगी देता है उसकी कहानी है 'अग्निजा'।
Full Novel
अग्निजा - 1
प्रफुल शाह प्रकरण-1 ................. अरी यशोदा...इतना सुनते ही वह पीछे पलटकर देखती और उसके चेहरे से मुस्कान बिखरने लगती। ओ यशोदा.. ये शब्द कान पर पड़ते ही उसका सारा ध्यान आ रही आवाज की ओर लग जाता। उसे ये शब्द थोड़े भाते भी थे। यशोदा दीदी...इस नाम को तीन बार पुकारे जाने के बावजूद, उसके दिमाग ने उनकी ओर ध्यान नहीं दिया। दरअसल, वह अपने इस असली नाम को सुनने की आदी नहीं थी। लेकिन, कम से कम इस समय तो वह अपना भूतकाल बिसरा कर अपने ही विचारों में खोई हुई थी। आने वाले शिशु के प्रेम में ...और पढ़े
अग्निजा - 2
प्रकरण 2 कितने लंबे-घने, काले रेशम सरीखे चमकदार बाल...जनार्दन के मुंह से ये शब्द सुनने के लिए अधीर हो यशोदा अपनी प्रसव पीड़ा भी भूल चुकी थी। ‘बेटी होगी तो पति खुश होंगे...पर सास नाराज हो जाएगी, लेकिन कितने दिन आखिर नाराज रह पाएंगी? पोती के प्रेमवश उनकी नाराजगी दूर होने में ज्यादा समय लगेगा नहीं...भगवान पहली बेटी ही देना मुझे। मुझे जन्म देते समय मेरी मां ने जिन कष्टों को झेला, उसकी चुकौती यदि कोई है तो बेटी ही है। मुझे गर्भ में ही मार डालने की या फिर जनमते ही गला घोंटकर मारने की कारगुजारियों का सामना ...और पढ़े
अग्निजा - 3
प्रकरण-3 यशोदा के कुछ पल्ले नहीं पड़ रहा था। वह पहली बार मां बनी थी और साथ-साथ विधवा भी गई थी। सुख और दुःख दोनों ही एकसाथ उसके हिस्से में आए थे। इस हादसे से वह निढाल हो गई थी। उसकी भूख-प्यास खत्म हो गई थी। सास की चुभने वाली नजरों का सामना करना उसके बस की बात नहीं थी। झमकू के हिसाब से यमराज या फिर वह ट्रकवाला गुनाहगार नहीं थी। उसका मानना था कि यह नवजात कुलक्षिणी ही जनार्दन की मौत का कारण थी। इन दोनों मां-बेटी ने उसे खा लिया। अब, सास-बहू के बीच जो कुछ ...और पढ़े
अग्निजा - 4
प्रकरण 4 इधर, प्रभुदास बापू के घर की शांति न जाने कितने दिनों से खोई हुई थी। समय तो कठिन था ही, लेकिन यह कठिन काल कब खत्म होगा इसका उत्तर उन्हें न वैद्यकीय शास्त्र में मिल रहा था, न ज्योतिषशास्त्र में ही। पहले से ही दुःख में डूबे, अपने विचारों में खोए हुए प्रभुदास बापू को आज कुछ अस्वस्थता महसूस हो रही थी। कुछ अशुभ घटने की आशंका उनके मन को डरा रही थी। अपने मन की शंका को दूर करने के लिए उन्हें अपने मन को एक चपत जमाई, “अब भी कुछ अशुभ होना बाकी रह गया ...और पढ़े
अग्निजा - 5
प्रकरण 5 काल से अधिक गतिमान और कुछ नहीं। काल किसी की परवाह किए बिना अपनी गति से भागता है। आज यशोदा को मायके आकर एक महीना हो गया था। गांव के लोग, आस-पड़ोस के, रिश्तेदार कभी लखीमां को, तो कभी प्रभुदास बापू को टोकते रहते थे। कुछ लोग जयसुख को भी सलाह देने से चूकते नहीं थे। सौ लोग, सौ बातें करते थे, लेकिन सबके कहने का सारांश एक ही था-“बेटी पराया धन होती है। उसे कब तक अपने घर में रखेंगे। झमकू बुढ़िया अब अपना दुःख भूल गई होगी। उसे मनाएं, उसके हाथ-पैर जोड़ें और यशोदा और ...और पढ़े
अग्निजा - 6
प्रकरण 6 प्रभुदास बापू का घर से बाहर निकलना बंद हो गया। एकदम बंद भी नहीं कह सकते, वैसे केतकी को लेकर सुबह-शाम महादेव के मंदिर में आरती के समय पर जाते थे। परंतु, अपना बचा हुआ बाकी सारा समय केतकी के साथ बिताते थे। उससे खेलते, उसे खिलाते, सुलाते, जगाते....इन्हीं कामों में उनका सारा समय बीत रहा था। नाना पूरी तरह नातीमय हो गए थे। केतकी भी अपने नाना से इतना लगाव हो गया था कि कोई उसे उनकी गोद से उतार ले, जो दहाड़ मारकर रोने लगती थी। उठाने वाला उसे जैसे ही नाना की गोद में ...और पढ़े
अग्निजा - 7
प्रकरण 7 और सच में, बिना समय गंवाए तीन साल की केतकी को उसके नए पिता मिल गए, तो साल की जयश्री को नई मां मिली। यशोदा को नया पति मिला लेकिन पहले पति की तरह वह स्नेही नहीं था। यशोदा को इसकी अपेक्षा भी नहीं थी। सच्चा प्रेम और खरा और अच्छा व्यक्ति किसी भाग्यवान को ही इतनी आसानी से प्राप्त होता है। और जीवन में बार-बार ऐसा संयोग तो नहीं ही बनता। शांतिबहन पोते की राह देखने लगी। इस घर में केतकी को कोई पसंद नहीं करता, यह बात यशोदा को जल्दी ही समझ में आ गई ...और पढ़े
अग्निजा - 8
प्रकरण 8 काल का पहिया तो आगे ही आगे बढ़ता रहा, लेकिन यशोदा को सुख-शांति, सुरक्षा इनमें से कुछ हासिल नहीं हुआ। मन का संतोष भी नहीं। वह हमेशा डर के साये में ही जीती रही। अपने बारे में और केतकी के लिए भी उसे असुरक्षा ही महसूस होती रही। रणछोड़ दास के मन में उसके और बेटी केतकी के प्रति जरा भी स्नेह और ममता नहीं है, यह उसे बड़ी जल्द ही मालूम हो चुका था। वह केवल उसकी रात के खेल का साधन है, उसकी जब इच्छा होती, उसे तैयार रहना ही पड़ता था। अपनी इच्छा-अनिच्छा, तबीयत ...और पढ़े
अग्निजा - 9
प्रकरण 9 रणछोड़ दास की क्रूरता, शांति बहन की कारस्तानियां, जयश्री की परेशानियां और यशोदा की अमर हो चुकी और दुर्बलता के कारण बिचारी केतकी का बचपन ही खो गया था। रोज-रोज का अपमान, भूखे रहना, अकेले रहना, रोते रहना, आते-जाते मार खाना, खेलकूद-सुख-शांति से वंचित रहना-इन सब बातों की अब उस नन्हीं सी जान को आदत हो चुकी थी। जयश्री को प्रायवेट ट्यूशन लगवाई गई थी, लेकिन केतकी जब होमवर्क करने बैठती तो उसकी खैर नहीं। रणछोड़ दास उसकी पुस्तके छीन कर कहीं ऊपर रख देता था। वह पढ़ाई करने बैठी नहीं कि शांतिबहन उसको कोई न कोई ...और पढ़े
अग्निजा - 10
प्रकरण 10 सुबह से ही शांति बहन और रणछोड़ दास आपस में कुछ फुसफुसा रहे थे। रविवार को सुबह जरा देर में बनती थी। जैसे ही यशोदा चाय लेकर आई, वैसे ही दोनों एकदम चुप हो गए। रणछोड़ दास ने कठोर आवाज में पूछा, “चाय देने आई हो, या बातें सुनने?” यशोदा वहां से चुपचाप निकल गई। नाश्ते के थेपले लेकर केतकी को भेजा तो शांति बहन ने उसके हाथों से प्लेट छीन ली। रणछोड़ दास ने उसका हाथ खींचा, “जिस समय मैं घर में रहूं मेरे सामने आना नहीं। कितनी बार तुझे बताया है, चल निकल यहां से। ...और पढ़े
अग्निजा - 11
प्रकरण 11 प्रभुदास बापू का मन कहीं लग ही नहीं रहा था। सुबह उठने पर उनका चेहरा देखते साथ ने बोलीं, “आज ठीक नहीं लग रहा है क्या?” प्रभुदास बापू ने उत्तर दिया, “भोलेनाथ की इच्छा।” लखीमां ने उनके माथे पर हाथ रखा। “बुखार तो नहीं है। रात में नींद नहीं आई क्या?” प्रभुदास बापू ने निःश्वास छोड़ा, “ नींद तो मेरी केतकी के साथ ही निकल गई।” लखीमां ने उनकी ओर देखा और दुःखी स्वर में पूछा, “आप ही यदि ऐसा करेंगे तो कैसे चलेगा? बच्चा अपने घर में हैं। भगवान से प्रार्थना करें कि उसे सुखी रखे। ...और पढ़े
अग्निजा - 12
प्रकरण 12 कानजी चाचा ने चिमटी में नस दबाकर नाक में भर ली और उन्हें एक के पीछे एक छींकें आने लगीं। उन्होंने अपनी जेब से तुड़ा-मुड़ा रुमाल निकालकर नाक पोंछी। उनकी उम्र और उनका आज तक के हासिल अनुभव में उनके लिए ये बातें नयी नहीं थीं। येनकेन प्रकारेण जोड़ियां बना देनेकी उनकी आदत के कारण इस तरह के प्रसंग उनके सामने अनेक बार आते ही थे। कई लोगों का जीवन उनके कारण बरबाद हुआ। तीन-चार मामलों में तो उनके ऊपर आरोप लगने से पहले ही दुर्भाग्य से उन लोगों ने अपनी ईहलीला ही समाप्त कर ली थी। ...और पढ़े
अग्निजा - 13
प्रकरण 13 और केतकी के भविष्य, सुरक्षा, सुख और शिक्षा का विचार करते हुए यशोदा ने अपने मन पर रखकर निर्णय ले लिया। कानजी चाचा की नस ने ऐसा कमाल दिखाया कि तीसरे ही दिन जयसुख स्वयं यशोदा को उसकी ससुराल छोड़ आया। प्रभुदास और जयसुख को सब समझ में आता था, लेकिन एक मां के मन की बात केवल लखीमां और यशोदा ही समझ सकती थीं। यशोदा के मन में केतकी की पढ़ाई और पालन-पोषण को लेकर नई आशा जाग गई। इसलिए एक ओर तो उसे आनंद हो रहा था, लेकिन वहीं केतकी की विरह की कल्पना से ...और पढ़े
अग्निजा - 14
प्रकरण 14 केतकी को अपने हाथों से लड्डू खिलाते-खिलाते ही लखीमां की नजर दरवाजे पर पड़ी। हाथ और नजरें-दोनों वहीं ठहर गए। दरवाजे पर यशोदा खड़ी थी। वह अपनी मां और बेटी को एकटक देख रही थी। केतकी दौड़कर अपनी मां से जा लिपटी। यशोदा केतकी को लेकर लखीमां के पास आई। लखीमां का चेहरा रुंआसा हो गया, पर यशोदा बोली, “हमेशा के लिए नहीं आई हूं...सिर्फ चार दिन रहने के लिए आई हूं।” इतना सुनते ही लखीमां के चेहरे पर हंसी उभर गई। घर में प्रवेश करते ही यशोदा को देखकर प्रभुदास बापू प्रसन्न हो गए। उन्होंने धीरे ...और पढ़े
अग्निजा - 15
प्रकरण 15 पूरी चाल में केतकी की धाक थी। उसकी हमउम्र लड़कियों ने उसका नाम रखा था ‘डॉन’। सुबह होते साथ ही वह बाहर खेलने निकल जाती। गिल्ली-डंडा हो चाहे डिब्बा लुका-छिपी उसका कोई सानी नहीं था। सागरगोटी खेलने में भी वह एक्सपर्ट थी। घर से जब चार-पांच बुलावे आ जाते, तब वह खाना खाने जाती। खाना खाते समय भी उसका आधा ध्यान बाहर ही रहता था। बॉयकट बाल रखने वाली केतकी की गैंग बहुत बड़ी थी। उसकी गैंग में छोटे सदस्य में वह खुद, नीता, हकु, अच्छी मुन्नी, पगली मुन्नी, मम्मु और खास थी टिकु। छोटी जब कंचे ...और पढ़े
अग्निजा - 16
प्रकरण 16 यशोदा पहले महीने में नहीं आई, दूसरे महीने में भी नहीं आई, तीसरे में भी नहीं। चौथा रहा था और सबकी बेचैनी बढ़ती चली जा रही थी। लखीमां का कलेजा इस डर से कांप रहा था कि यशोदा ऐसे कौन-से संकट में फंस गई कि चार महीनों से मायके ही नहीं आई। प्रभुदास बापू का जप बढ़ गया था। लेकिन चिंता न करते हुए सिर्फ एक ही बात कहते थे, “मेरा भोलेनाथ जो करेगा वही सही।” लेकिन दिन ब दिन केतकी मुरझाती जा रही थी ये बात सभी के ध्यान में आ रही थी। उसका खेलना, मौज-मस्ती, ...और पढ़े
अग्निजा - 17
प्रकरण 17 लखीमां की खुशी आसमान में न समा रही थी। लेकिन आनंद के साथ-साथ उन्हें यशोदा की चिंता सता रही थी। मन में तरह-तरह के विचार आ रहे थे। यशोदा के लिए क्या बनाऊं, क्या लाऊं? उसका हर पसंदीदा व्यंजन सुबह-शाम बनाया जाए। अचानक उन्हें कुछ याद आया। और वह अपना सिर पकड़कर बैठ गईं, “उस बेचारी की पसंद-नापसंद है कहां? मां होकर भी मुझे याद नहीं कि उसे क्या अच्छा लगता है और क्या नहीं... फिर भी कुछ न कुछ तो बनाकर भेजती हूं...” और लखीमां ने खूब सारा घी डाल कर बादाम का हलुआ बनाया। गोंद ...और पढ़े
अग्निजा - 18
प्रकरण 18 नन्हीं केतकी को कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था कि सब लोग उसे मां से नहीं मिलने देते? कितने ही महीने बीत गए उसे देखे हुए। मां के बिना बेटी मुरझाने लगी थी। इसका असर उसके खाने-पीने, खेलने-सोने पर पड़ने लगा था। वह रात को भी जागती ही रहती थी। ठीक से खाना नहीं खाती। बाहर खेलने जाना तो लगभग बंद ही हो गया था। हमेशा चुपचाप बैठी रहती थी, अकेली-अकेली। नानी उसके प्रश्नों के उत्तर देती नहीं थी। नाना तो बस एक ही वाक्य रटते रहते हैं, “मेरा भोलेनाथ जो करेगा वही सही।” केतकी ...और पढ़े
अग्निजा - 19
प्रकरण 19 शांति बहन को काम करते-करते खीज होने लगी थी। लेकिन, रणछोड़ दास यशोदा को उठने भी नहीं था। उसके सामने शांति बहन यशोदा को झूठमूठ डांटती भी थीं, “आराम करो...आराम करो...मेरे कृष्ण को यदि कुछ हो गया तो....?”रणछोड़ बेटा, बहुरानी को तुम भी कुछ समझाया करो..और ये देखो बहू, थोड़ी देर बाद हलुआ और लड्डू खा लेना और फिर एक घंटे बाद दूध पी लो...फिर थोड़ा आराम करो...मेरा कृष्ण एकदम स्वस्थ पैदा होगा...” लेकिन रणछोड़ दास के बाहर निकलतेही वह यशोदा को खाना-पीना देने के बजाय कामों में लगा देती। साथ ही बड़ब़ड़ाते रहती, “मेरे समय मैं ...और पढ़े
अग्निजा - 20
प्रकरण 20 डॉक्टरों की बात सुनकर रणछोड़ दास, शांति बहन और जयश्री-तीनों ही स्तब्ध रह गए। शांति बहन का उतर गया। आंखों से आंसू बहते इसके पहले ही वह किनारे पड़े हुए पलंग पर जाकर बैठ गईं। जयश्री खिड़की के पास जाकर खड़ी हो गई। रणछोड़ दास डॉक्टरों के पीछे-पीछे गया। “डॉक्टर साहब, मेरे बेटे को बचाइए। खर्च की चिंता मत कीजिए। तुरंत पैसे देता हूं।” डॉक्टर सोच में पड़ गए, “लड़का है या लड़की ये तो ऊपर वाला ही जानता है लेकिन इसको अपने बेटे को बचाना है। पत्नी की जान की इसको कोई चिंता भी नहीं और ...और पढ़े
अग्निजा - 21
प्रकरण 21 डॉक्टर अपनी धीमी गति से आगे आ रहे थे। रणछोड़ दास को लगा वैसे तो डॉक्टर पैसे के लिए जल्दबाजी करतेहैं लेकिन इस समय जल्दी से कुछ बताना उनकी जान पर आ रहा है। शांति बहन से रहा नहीं गया, वह दौड़ते हुए डॉक्टर के पास गईं, उनके पीछे-पीछे रणछोड़ दास भी दौड़ पड़ा। जैसे ही दोनों डॉक्टर के पास आकर रुके, डॉक्टर ने उन्हें बताया, “पांच मिनट के बाद केबिन में आइए।” रणछोड़ दास को डॉक्टर पर बहुत गुस्सा आया, इतना कि लगा उसका पैर ही तोड़ डालें। परंतु लाचारीवश दोनों बाहर ठहर गए। सामने दीवार ...और पढ़े
अग्निजा - 22
प्रकरण 22 “भाई थोड़ा तो विचार करें.. बेटी को जन्म देकर उसे भूल जाते हैं क्या? हमारा भी कोई होता है कि नहीं? उसके भले-बुरे की चिंता होती है कि नहीं?” कानजी भाई द्वारा फोन पर की जा रही फायरिंग से जयसुख अवाक हो गए। “अरे चाचा, हम तो प्रसूति के लिए घर ले जाने की बात कर रहे थे...यशोदा के लिए नियमित रूप से सूखे मेवे, हलुआ, लड्डू भेज रहे थे, पूछिए शांति बहन से...” “भाई आप पर मुझे पूरा विश्वास है। इसीलिए तो मुझे आश्चर्य हुआ। अरे यशोदा की तबीयत की चिंता होने के कारण ही उसे ...और पढ़े
अग्निजा - 23
प्रकरण 23- “एक किलो पपीता दो जल्दी से” लखीमां यशोदा के लिए फल खरीदने के लिए अस्पताल के बाहर थीं। लेकिन आसपास कोई फलवाला नहीं होने के कारण उन्हें थोड़ा दूर जाना पड़ा। न जाने क्यों, उन्हें थोड़ी बेचैनी हो रही थी। पपीते वाले को पैसे देकर वह और थोड़ा आगे बढ़ीं और वहां से दो दर्जन केले खरीदे। मन ही मन रामनाम का जाप करते हुए जल्दी-जल्दी अस्पताल की ओर वापस होने लगीं। उनके पैरों की गति से ज्यादा तेज उनके विचारों की गति थी। “आठवें महीने में प्रसूति वह भी ऑपरेशन से...बेचारी कितनी स्वस्थ हो पाएगी? उस ...और पढ़े
अग्निजा - 24
प्रकरण 24 जयसुख को समझ में ही नहीं आ रहा था कि लखीमां को कैसे संभालें और केतकी को समझाएं। प्रभुदास अत्यंत व्यथित होने के बावजूद भोलेनाथ के नामस्मरण में मगन थे। कभी-कभी वह बहुत नाराज और गुस्से में दिखाई देते थे...उसका कारण भी वैसा ही था। सारी दुनिया का भविष्य बताने वाले प्रभुदास बापू स्वजन का भविष्य उजागर नहीं कर सकते थे। इस कारण वह भीतर ही भीतर कसमसा रहे थे। यशोदा क्यों नहीं आ रही है और कब आएगी, इसके अनेक अलग-अलग कारण लखीमां और जयसुख ने केतकी को समझाकर बताए। लेकिन अब उस मासूम बच्ची का ...और पढ़े
अग्निजा - 25
प्रकरण 25 सुबह उठने के बाद यशोदा ने रणछोड़ दास द्वारा किए गए अत्याचार को छुपाने के लाख प्रयास लेकिन वह अपने शरीर के कितने जख्मों को छुपा पाती? दोनों हाथ, माथा, गला, पैर और...घाट-घाट का पानी पी चुकी शांति बहन कुछ बोली नहीं...लेकिन जयश्री ने मुंह खोला, “दादी, इसको चमड़ी को रोग हो गया है क्या..ऐसा होगा तो मैं इसके हाथ का बना खाना नहीं खाऊंगी...बता देती हूं।” यशोदा कुछ न कहकर रसोई घर में चली गई। उसका पोर-पोर दुख रहा था। शरीर तप रहा था और घाव जल रहे थे। यशोदा चुपचाप काम करती रही। उसको लंगडाते ...और पढ़े
अग्निजा - 26
प्रकरण 26 सभी भोजन करने के लिए बैठ गए। घर में जैसे दीपावली का त्यौहार हो। अपने मनपसंद खाने साथ-साथ केतकी का सारा ध्यान अपनी मां की तरफ लगा हुआ था। उसकी तरफ से नजरें हट ही नहीं रही थीं। यह देखकर लखीमां को बहुत बुरा लगा। वह सोचने लगीं कि बेचारी अपी मां के लिए कितनी तड़फ रही थी। उसी समय किनारे गोदड़ी में सो रही नन्हीं ने रोना शुरू कर दिया। यशोदा उठने को ही थी कि केतकी भागकर गई और उसने नन्हीं को उठा लिया। जयसुख से रहा नहीं गया, “ठीक से उठाओ....संभालो...” और फिर उसने ...और पढ़े
अग्निजा - 27
प्रकरण 27 घड़ी के कांटे ही नहीं, कैलेंडर के पन्ने भी बदलते जा रहे थे। केतकी, प्रभुदास, लखीमा, जयसुख, दास, शांतिबहन जयश्री और भावना इन सभी की उम्र बढ़ती चली जा रही थी। समय के अनुसार कुछ मामूली परिवर्तन भी हुए, वे बहुत उल्लेखनीय नहीं थे। रणछोड़ दास अब घर देर से लौटने लगा था। कभी दो-चार दिन, कभी एक-दो रात को भी काम की वजह से बाहर रह जाता था। केतकी और भावना जो पहले बहनें थीं, अब सहेलियां भी बन गई थीं। अब केतकी महीने के चार दिन सिर्फ आई से मिलने की ही नहीं, तो भावना ...और पढ़े
अग्निजा - 28
प्रकरण 28 ज्ञान और बुढ़ापा कभी-कभी दुःखदायी बन जाता है। असहनयी वेदना...सहेलियों के पिता अपनी बेटी को ‘कलेजे का कहते हैं। लेकिन मुझे तो हमेशा ‘पत्थर’ ही कहा गया था। वो सावी कहती है, “मैं तो अपने पप्पा के साथ ही खाना खाती हूं और उनके साथ खूब बातें करती हूं, तभी मुझे रात को नींद आती है। ” यह सुनकर केतकी को लगता था, “मैंने अपने एक पिता को तो देखा ही नहीं, और दूसरे मुझे नहीं देखना चाहते। पिता का प्रेमभरा स्पर्श कैसा होता है, और स्नेमयी आवाज?” उसको ‘पप्पा’ शब्द बड़ा अच्छा लगता था। कभी-कभी लगता ...और पढ़े
अग्निजा - 29
प्रकरण 29 केतकी डर गयी थी। नाना को खटिया की जगह नीचे क्यों सुलाया गया? वह बात क्यों नहीं रहे हैं? उन्हें कोई दवाई क्यों नही दे रहा? अपने इलाके के डॉक्टर काका तो भीड़ में सबसे आगे खड़े थे, फिर भी उन्होंने इलाज क्यों नहीं किया? दवाई दो...एकदम कड़वी...अरे जरूरत हो तो इंजेक्शन भी दो... लेकिन कुछ तो करो... प्रभुदास चाचा को ले जाने की तैयारी की गई, तो केतकी एकदम दौड़ कर उनकी तरफ गई, लेकिन जयसुख ने अपने दो-तीन मित्रों को इशारा करके उसको पकड़कर रखने के लिए कहा। फुसफुसाहट चल रही थी, जितने मुंह उतनी ...और पढ़े
अग्निजा - 30
प्रकरण 30 जयुसुख को डर लगा कि हम सबका मन रखने के लिए केतकी संभलने का नाटक तो नहीं रही? अपने अतिप्रिय नाना को खो देने का दुःख अभी उसने भीतर से गया नहीं है। मन ही मन परेशान हो रही है बेचारी, लेकिन किसी से कुछ नहीं कह रही। “ बेटा, बिना किसी से कुछ कहे मंदिर में आ गई?” “हां चाचा, मैं देखना चाहती थी कि बिना किसी से कुछ कहे नाना जब मंदिर में आए होंगे तो उन्हें कैसा लग रहा होगा?” उस समय क्या कहा जाए, जयसुख को सूझा ही नहीं। वह बोला, “ठीक है ...और पढ़े
अग्निजा - 31
प्रकरण 31 शांति बहन को एक बात खटक रही थी। यशोदा तो पाली हुई गाय की तरह सीधी हो थी। केतकी को घर से बाहर निकाल दिया था। सबकुछ उनके मनमाफिक हो रहा था, लेकिन भावना किसी की सुनती नहीं थी। वह जितना सुनना चाहती थी, उतना ही सुनती और जो करना चाहे वही करती थी। लेकिन वह अपने व्यवहार में कहीं चूक नहीं करती थी। कभी कोई गलत, झूठा काम करते हुए कोई उसे पकड़ नहीं सकता था। अपने से बड़ी जयश्री को दो-चार बातें सुनाने में भी कोई कमी नहीं रखती थी। एक बात तो थी, लड़की ...और पढ़े
अग्निजा - 32
प्रकरण 32 स्तब्ध, किंकर्तव्यविमूढ़, आघातग्रस्त...ये सभी शब्द केतकी की मनःस्थिति का वर्णन करने के लिए कम पड़ रहे थे। जीवनदान देने वाले, मुझे मेरा बचपन देने वाले, मासूमियत से पहचान करा देने वाले, रंगीन संसार के दर्शन कराने वाले दोनों आधारस्तंभ चले गए। एक के पीछे एक। वह भी थोड़े समय के भीतर ही। नाना-नानी न होते तो मेरा क्या हुआ होता, यह प्रश्न तो उसके मन में उठा ही नहीं, क्योंकि यदि वे नहीं होते तो वह जिंदा ही नहीं रही होती, इस बात का उसे पूरा भरोसा था। प्रेम, ममता, अनुकंपा, मानवता और एकदूसरे की चिंता करना ...और पढ़े
अग्निजा - 33
प्रकरण 33 गोवर्धनदास की रमा के साथ जयसुख के साथ रिश्ता पक्का होना वास्तव में कानजी चाचा को बिलकुल पसंद नहीं आया। उन्हें रमा से कोई लेना-देना नहीं था, इसका कोई कारण भी नहीं था क्योंकि वह रमा को पहचानते ही नहीं थे। लेकिन अपनी मोनोपोली टूटने का दुःख था उनको, वह भी उनके हाजिर रहते हुए। गोवर्धनदास पहुंचा हुआ आदमी था, ऊपर से नेतागिरी। अपने नेता की भूमिका में कोई विघ्न तो नहीं डालेगा? यशोदा की हामी और जयसुख की मूक सहमति मानकर उसने अगले दिन रमा और उसके माता-पिता को बुला लिया। गोवर्धनदास ने उनके सामने जयसुख ...और पढ़े
अग्निजा - 34
प्रकरण 34 जयसुख घर आकर कुछ बोला नहीं, पर उसका मूड बदला हुआ था। वह चिंतित है या गुस्से को समझ में ही नहीं आ रहा था। लेकिन उसके मन में एक गांठ तो पक्की हो गई थी कि इसकी वजह केतकी ही है। लेकिन रमा को इस बात का अंदाज नहीं था कि वह जिस तरह से केतकी के साथ व्यवहार कर रही है, उसकी जानकारी गांव-भर को मिल गयी है। कानजी चाचा ने इस मौके का फायदा उठाने का विचार किया। वो साला गोवर्धनदास मुझे हराकर अपने आपको बड़ा होशियार समझ रहा है क्या....? अब मेरी बारी ...और पढ़े
अग्निजा - 35
प्रकरण 35 ...और केतकी के लिए अपने प्राणप्रिय, जीवनदाता और सर्वस्व नाना-नानी की यादें, खुशबू और स्पंदन समाए हुए को छोड़ने का समय आ गया। केतकी को महसूस हो रहा था कि वह केवल इस मंदिर को ही छोड़ कर नहीं जा रही है, परंतु कोई उसकी चमड़ी छील रहा है और शरीर के भीतर कोई हथौड़ों से प्रहार कर रहा है। इस घर ने, इस परिसर ने से न जाने क्या-क्या दिया था..जीवन जीने का अवसर..रंगीन बचपन। इतना प्रेम दिया कि जीवन भर भी खत्म न पाएगा। इस घर के तीन लोग उसके लिए भगवान से बढ़कर थे। ...और पढ़े
अग्निजा - 36
प्रकरण-36 मैट्रिक की परीक्षा खत्म होने पर सभी की छुट्टियां लग जाती हैं। लेकिन केतकी के सामने तो एक संकट खड़ा हो गया था। संकट वैसे तो पुराना ही था। इसके पहले तीन बार ऐसा हो चुका था। लेकिन उसे नापसंद लजाने वाला काम बार-बार करने की मजबूरी थी। शांति बहन मूलतः ईडर के पास के एक छोटे गांव से आई हुई थीं। उनके पति अभी-भी गांव में रह कर भिक्षा मांगते थे। पूरा गांव उन्हें लाभुभा के नाम से पहचानता था। छोटी-बड़ी पूजा पाठ, क्रिया-कर्म करना, हाथ देख कर भविष्य बताना और उसके बदले में जो दान-दक्षिणा मिलती ...और पढ़े
अग्निजा - 37
प्रकरण 37 ...और फिर मैट्रिक का परिणाम सामने आ गया। खूब पढ़ाई, ट्यूशन, कोचिंग क्लास, जागरण के कारण जयश्री पास होने ही वाली थी। वह 56 प्रतिशत नंबर लेकर पास हो गई। रणछोड़ और शांति बहन को खूब खुशी हुई। केतकी भी परिणाम लेकर आई, लेकिनकोई कुछ नहीं बोला, किसी ने उससे पूछा भी नहीं। कौन-से झंडे गाड़ने वाली थी भला? सब तो यही मान कर चल रहे थे। इसी कारण किसी को भी उसके परिणाम के प्रति उत्सुकता नहं थी, न ही चिंता थी। आंखों में आंसू भरकर केतकी अपने मार्कशीट को देख रही थी। भावना ने धीरे ...और पढ़े
अग्निजा - 38
प्रकरण 38 यशोदा बर्तन मांज रही थी और उसके कानों पर रणछोड़ दास के ये वाक्य अभी भी गूंज थे, ‘बस झालं तिचं शिक्षण.. मी किती दिवस तिचा खर्च करू?.. मी म्हणून एवढं तरी केलं... नाहीतर कोणी केलं नसतं.’ क्या हुआ भगवान जाने, पर यशोदा एकदम उठ कर खड़ी हुई. रविवार की दोपहर थी। शांति बहन और रणछोड़ दास खाना खाकर सौंफ चबा रहे थे। यशोदा उनके सामने जाकर खड़ी हो गई। दोनों हाथ जोड़ कर बोली, “मैंने आज तक आपसे कुछ नहीं मांगा है, कभी कोई शिकायत नहीं की...आज कृपा करके मेरी एक बात मान लें...” सुपारी कतरते ...और पढ़े
अग्निजा - 39
प्रकरण 39 ग्यारहवीं में एकदम जैसे इकॉनॉमिक्स, बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन, एकांउट्स और स्टैटिस्टिक्स जैसे एकदम नये विषय पढ़ कर उसमें भी हो जाना-यह बात केतकी स्वयं के लिए भी किसी आश्चर्य से कम नहीं थी। लेकिन पास होने के साथ-साथ केतकी को डर सताने लगा था क्योंकि अगली कक्षा में इन विषयों का गहराई से अध्ययन करना था। और यह उसके लिए यह किस हद तक संभव हो पाएगा, वह सशंकित थी। नई किताबें खरीद नहीं सकती थी। पुराने विद्यार्थियों से किताबें मिल जाएं, तो ही अगली पढ़ाई जारी रखनी थी। इसी तरह किसी विषय की यदि उसे गाइड पुस्तिका ...और पढ़े
अग्निजा - 40
प्रकरण 40 ........और भावविहीन चेहरे के साथ यशोदान ने चंदा का वह फोटो रणछोड़ दास को जाकर दे दिया, चार कदम दूर उसके चेहरे के भावों को देखने के लिए खड़ी हो गई। रणछोड़ ने फोटो को देखा, पलट कर देखा और फिर एक-एक कदम धीमी गति से उठाते हुए उसकी तरफ आया.. और सटाक...यशोदा के चेहरे पर एक जोरदार थप्पड़ जड़ दिया। उस थप्पड़ की आवाज सुनकर कमरे के भीतर केतकी स्तब्ध हो गई। “मां ने इतनी हिम्मत दिखाई, आखिर उसकी वेदना व्यक्त हो ही गई।” लेकिन बाहर आकर जब उसने दृश्य देखा तो तो खड़ी की खड़ी ...और पढ़े
अग्निजा - 41
प्रकरण 41 शांति बहन को घर में फैली हुई नीरवता खल रही थी। उनका दम घुट रहा था। उन्होंने व्यूहरचना की। उन्होंने यह सबकुछ जयश्री को मिर्च मसाला लगाकर बताया। “ये चलने वाला नहीं, चींटी को पंख निकल आए हैं। आज वह हरामी बोल रही है, कल उसकी मां भी मुंह चलाने लगेगी। पर ये हुआ कैसे, ये ही समझ में नहीं आ रहा.. यशोदा को वह पहली बार मार खाते हुए थोड़े देख रही थी। किसी ने उसके कान तो नहीं भरे होगें...जयश्री, तुम एक काम करो...वो जहां पढ़ने जाती है वहां उसकी कौन-कौन सी सहेलियां हैं...किससे मुलाकात ...और पढ़े
अग्निजा - 42
प्रकरण 42 केतकी कपड़े धोने की मोगरी को देखते ही रही। यशोदा ने कपड़े धोते समय मोगरी को तोड़-फोड़ था, जैसे कि अपने जीवन पर हो रहे अत्याचारों का बदला ले रही हो। उसने दो-तीन बार नई मोगरी लाकर देने को कहा था,लेकिन उसकी सुनता कौन था? आज बाथरूम में दो-दो नई मोगरियां देख कर केतकी को पने बचपन की याद आ गयी। नाना के घर में केतकी घर-घर खेलते समय हमेशा ही मां बनती थी। वह भी रजस्वला मां। यानी कोई भी काम नहीं करना। एक कोने में बैठ कर बच्चे संभालना। और बच्चे भी कौन? यही मोगरी। ...और पढ़े
अग्निजा - 43
प्रकरण 43 रणछोड़ दास की स्थिति तो ऐसी हो रही थी कि कब एक रिश्ता मिले और कब तो की शादी निपटाऊं। शांति बहन भी उसी दिन की प्रतीक्षा में थीं। यशोदा को लग रहा था कि केतकी यहां से निकल जाए, तो ससुराल में अधिक सुखी रह पाएगी। केवल भावना दिन-रात भगवान से प्रार्थना करती रहती थी, “ भगवान जल्दी मत करना, दोगे तो हीरे सरीखा पति देना मेरी बहन को। ” केतकी को अपने विवाह को लेकर जरा भी उत्सुकता या उत्साह नहीं था, न कोई सपना था। उसको तो बस इस घर में काम कर-करके विरक्ति ...और पढ़े
अग्निजा - 44
प्रकरण ४४ शाला में ट्रस्टी के केबिन के बाहर केतकी बैठी हुई थी। वह जरा बेचैन थी। उसको डर नहीं लग रहा था, पर चूंकि पहला ही इंटरव्यू था इसलिए जरा बेचैनी अवश्य हो रही थी। उसके भीतर मिली–जुली भावनाएं घुमड़ रही थीं। आनंद, उत्साह, कौतूहल। अंदर से घंटी बजने की आवाज आई और दरबान आया। उसने बाहर आकर तुरंत केतकी को भीतर आने का इशारा किया। अंदर 45 साल के ट्रस्टी चंदाराणा बैठे हुए थे। उनका व्यक्तित्व प्रभावशाली था। केबिन शानदार था लेकिन बिलकुल साधारण। साफ-सफाई थी। केतकी ने हाथ जोड़कर नमस्ते कहा। “नमस्ते...बैठिए...केतकी जानी है न आपका ...और पढ़े
अग्निजा - 45
प्रकरण-45 नौकरी पाने की वजह से कहें, अपने पैरों पर खड़े हो जाने के कारण या फिर आर्थिक स्वतंत्रता जाने के कारण कहें...केतकी अब खुश रहने लगी थी। फिर भी उसने घर के कामकाज करना छोड़ा भी नहीं था, न ही कम किया था। सभी काम मां के ऊपर डालने से आखिर कैसे चलता? अब वह अपने गुजराती भाषा की किताबों के अलावा अन्य विषयों की भी किताबें लाकर घर पर देर रात तक पढ़ती रहती थी, उनमें से नोट्स बनाती और फिर उनका अध्ययन करती थी। पूरी निष्ठा और ईमानदारी से पढ़ाने और अपने विषयों के प्रति अद्यतन ...और पढ़े
अग्निजा - 46
प्रकरण-46 केतकी की सांस ऊपर-नीचे हो रही थी। इतनी देर? एक तो बस इतनी देर से आई और आई तो इतनी भरी हुई थी कि ड्रायवर ने रोकी ही नहीं। आखिर रिक्शे से जाने का विचार किया। सात-आठ रिक्शे वालों के मना करने पर बड़ी मुश्किल से एक तैयार हुआ तो ट्रैफिक जाम। आज पहली बार केतकी को शाला पहुंचने में इतना विलंब हुआ था। डेढ़ घंटे देर से पहुंची। रिसेस में इसकी चर्चा हो ही गई। प्राचार्य मेहता ने मेमो दिया। केतकी को बहुत बुरा लगा। कुछ ही देर में दरबान ने सूचना दी कि शाला समाप्त होने ...और पढ़े
अग्निजा - 47
प्रकरण-47 रणछोड़ दास को लगा कि यदि भिखाभा कह रहे हैं तो काम होना ही है। लेकिन उसे मालूम नहीं था कि केतकी इतनी जल्दी इस घर से विदा होने वाली नहीं थी, और शादी करके तो बिलकुल भी नहीं। इसके अलावा भिखाभा के लिए राजनीतिक दौड़भाग करते हुए उसे खुद को भी केतकी के लिए वर तलाशने का समय नहीं मिल रहा था और न उसके पास इस समय इतना समय था कि इस बात का बुरा मानते बैठे। केतकी इन सब बातों से अनजान और लापरवाह होकर अपनी शाला के काम में गले तक डूब चुकी थी। ...और पढ़े
अग्निजा - 48
प्रकरण-48 “रणछोड़, ऐसा मत करना....उसको घर से बाहर मत निकालना। घर में रहेगी तो कभी न कभी काम ही घर से बाहर निकल जाएगी तो उस पर तेरा कोई नियंत्रण नहीं रह जाएगा।” भिखाभा कह रहे थे, वह सही ही था, लेकिन रणछोड़ को वह बात पच नहीं रही थी। इधर, केतकी अपने सौतेले बाप की स्वार्थभरी मांग और भावनाओं को भुला कर अपनी नौकरी, शाला और अपने मासूम बच्चों में व्यस्त-मस्त थी। भावना के प्रति उसका स्नेह और मजबूत हो रहा था। तारिका चिनॉय एकदम पक्की सहेली बन गई थी। तारिका और भावना की भी दोस्ती हो गई ...और पढ़े
अग्निजा - 49
प्रकरण-49 भावना ने अपना हाथ आगे बढ़ाते हुए कहा, “आई एम भावना...भावना जानी। ये आपकी वाइस प्रिंसिपल हैं न, मेरे कारण है, समझे?” प्रसन्न ने हंसते हुए भावना से हाथ मिलाया. “थैंक यू...आपके कारण हमारी शाला को एक खूब अच्छी वाइस प्रिंसिपल मिली हैं।” “लेकिन आप क्या करते हैं...? आपका क्या नाम है मिस्टर....?” “अभी मैंने नाम कमाया तो नहीं है, लेकिन रखा गया नाम है...प्रसन्न। प्रसन्न शर्मा। दो काम करता हूं। एक संगीत सिखाना, दूसरा आइसक्रीम खाना।” “वाह...तब तो हमारी खूब जमेगी प्रसन्न भाई....पूछिए क्यों...” “बताइए...जल्दी बताइए। आप पहली लड़की हैं जिसे ऐसा लगता है कि मेरे साथ ...और पढ़े
अग्निजा - 50
प्रकरण-50 केतकी को लगा कि खूब जोर से चिल्लाना चाहिए..इतनी जोर से कि धरती कांप जाए। अपने ही बाल जाएं। इतनी जोर से कि सारे बाले उखड़कर हाथों में आ जाएं और सिर खूनाखून हो जाए। कम से कम नाखून ही इतने लंबे होते कि अपनी ही चमड़ी उधेड़ सकती। उसे समझ में ही नहीं आ रहा था कि मां आखिर इतना सहन क्यों करती है? किसके लिए? किन पापों की सजा भुगत रही है वह? ऐसे राक्षस को वह क्यों बचाना चाहती है और कब तक ? मां की सहनशीलता का अंत होता क्यों नहीं? उसे हंसने की ...और पढ़े
अग्निजा - 51
प्रकरण-51 उस रात केतकी को न जाने कितनी देर तक नींद ही नहीं आई। क्या परिवार के लोग मुझे देने के लिए मेरी मां को सताते हैं? क्या मेरा अस्तित्व ही इन लोगों को इतना परेशान कर करता है कि वे मुझे देखते साथ इतना अमानवीय बर्ताव करने लगते हैं? यदि मैंने घर छोड़ दिया तो शायद मां को मिलने वाली तकलीफ कम हो जाएगी। और फिर मुझे भी यहां रह कर कौन-सा सुख मिल रहा है? रोज-रोज की इस परेशानी से छुटकारा पाने का एक ही उपाय है, और वह है घर छोड़ कर निकल जाना। शादी कर ...और पढ़े
अग्निजा - 52
प्रकरण-52 भिखाभा चुनाव में हुए ख्रर्च पर नजर दौड़ा रहे थे, “ये पोस्टर और पुस्तक छापने वाले को आधे ही देने हैं...छपाई अच्छी नहीं थी, इस बात का रोना रोना है। झूठ बोलना है कि जितना माल कहा था, उतना मिला नहीं।” इसी बीच एक फोन बजा। रणछोड़ ने उठाया। “हैलो...” फिर रिसीवर हाथ में रख कर उसने धीरे से बताया, “मीना बहन से कह दूं कि आप निकल गए हैं...?” भिखाभा ने एक पल विचार किया और फिर हंस कर बोले, “अरे पगले, उसके पास शायद तुम्हारी समस्या का इलाज होगा...लाओ फोन दो, मैं बात करता हूं उससे...” ...और पढ़े
अग्निजा - 53
प्रकरण-53 डॉक्टर ने दवा और इंजेक्शन देने के बाद यशोदा को कुछ ठीक लगने लगा था। दो-चार दिन पूरा करने की सलाह दी गई थी, क्योंकि यशोदा को बहुत कमजोरी आ गई थी। केतकी ने भावना को आदेश दिया, “चार दिन मां के पास रहना है। जब तक पूरी तरह ठीक न हो जाए, उसे अकेला नहीं छोड़ना है, समझी?। ” भावना में हामी भरी। डाक्टर को घर पर बुलाना, भावना को छुट्टी लेकर घर पर रहना और यशोदा को पूरा आराम करने देना घर वालों को बिलकुल भी अच्छा नहीं लगा था। शांति बहन तो बड़बड़ाने लगीं, “मैं ...और पढ़े
अग्निजा - 54
प्रकरण-54 अपनी-अपनी थालियां और यशोदा के लिए खिचड़ी लेकर केतकी और भावना यशोदा पास गईं। उधर, शांति बहन और रणछोड़ की तरफ गुस्से से देख रही थीं। “क्यों रे बेटा, अचानक उस अभागिन पर तेरा प्यार कैसे उमड़ पड़ा? ” शांति बहन ने उपहास किया। जयश्री ने भी मुंह बनाया, “मुझे उससे क्या-क्या सीखना है, अब उसकी एक सूची बना कर दे दें।” रणछोड़ दास जोर-जोर से हंसने लगा। “अरे, थोड़ा समझने की कोशिश करो। यदि उस लड़की से मीठा बोलूंगा तो वह सीधी तरह से रहेगी..और उस जीतू से शादी के लिए हां कर देगी...इसीलिए उसकी तारीफ की। ...और पढ़े
अग्निजा - 55
प्रकरण-55 शादी की बातचीत आगे बढ़ जाने से रणछोड़ और शांति बहन को बिलकुल अच्छा नहीं लगा। लेकिन उनके कोई उपाय भी नहीं था इस लिए मीना बहन की बातों को उन्होंने हंस कर मान लिया। जब सब लोग उठने लगे तो जीतू ने गॉगल निकालकर माथे पर बिखरे हुए अपने बालों को फूंक मार कर पीछे उड़ाया। बाल पीछे गए तो, उसने क्या स्टाइल मारी है, इस बात का संतोष उसके चेहरे पर उमड़ आया। केतकी की तरफ पागलों की तरह देखते-देखते वह सब लोगों के साथ निकल गया। जाते-जाते भिखाभा, रणछोड़ दास के कानों में बुदबुदाया, “सब ...और पढ़े
अग्निजा - 56
प्रकरण-56 केतकी के मन में हलचल हुई। उसके मन में एक संवेदना जागृत हुई। खुद को नापसंद डिश दूसरे खिलाने के लिए आग्रहपूर्वक ले जाना और उसे उन डिश को खाते हुए देख कर प्रसन्न होना? ऐसा कहीं होता है क्या? एक तो केतकी को इतनी अच्छाई का अनुभव नहीं था और उस पर अच्छा पुरुष ये शब्द तो जैसे उसके शब्दकोश में था ही नहीं। लेकिन इस प्रसन्न के मन में वास्तव में है क्या? ये कहीं मेरे...मेरे प्रेम में तो नहीं पड़ गया है? नहीं...नहीं...मैं उसके लायक नहीं हूं। बिलकुल भी नहीं। दूसरी बात, ये कोई प्रेम ...और पढ़े
अग्निजा - 57
प्रकरण 57 एक दिन अचानक शाला के ट्रस्टी कीर्ति चंदाराणा ने शिक्षकों की एक मीटिंग बुलाई। स्टाफ में तुरंत चालू हो गई कि आज या तो किसी की धुलाई होगी या नई जिम्मेदारियां थोपी जाएंगी। प्राचार्या मेहता को भी इस मीटिंग की जानकारी नहीं थी। आदेश मिला कि सभी शिक्षक अपनी कक्षाओं की जवाबदारी मॉनिटर्स को सौंप कर मीटिंग में उपस्थित हों।शाला में ऐसा पहली बार ही हो रहा था। लगभग सभी शिक्षक उपस्थित हो गए। केतकी की ध्यान में आया कि केतकी जानी अभी तक पहुंची नहीं है। मेहता मैडम ने कीर्ति चंदाराणा जी से धीरे से पूछा, ...और पढ़े
अग्निजा - 58
प्रकरण-58 भिखाभा आवेश में आ गए और कुर्सी के ऊपर दोनों पैर रख कर बैठ गए, “चलो, इसका मतलब बड़े लोगों की रजामंदी है...यशोदा बहन, आपको कुछ कहना है?” यशोदा कुछ कहती इसके पहले ही रणछोड़ बोल पड़ा, “वो क्या कहेगी? आप हैं और मेरी मां ने रजामंदी दे दी है...उसके बाद बाकी किसी का कोई प्रश्न ही नहीं...आप हमारी हां ही समझें।” “तो अब लड़के और लड़की की राय जान लेते हैं। तुम दोनों बाजू के कमरे में जाकर एकदूसरे से बात कर लो, तब तक हम लोग यहां बातें करते हैं। भावना, केतकी को लेकर अंदर के ...और पढ़े
अग्निजा - 59
प्रकरण-59 घर वापसी के रास्ते पर भावना ने गुस्से से, प्रेम से, बिनती करके अनेक प्रश्न केतकी से पूछे। प्रश्नों का मतलब एक ही था, “तुम्हें जीतू से शादी क्यों करनी है?” केतकी का एक ही उत्तर था-मौन। घर पहुंच केतकी कितनी ही देर यशोदा की गोद में सिर रखकर पड़ी रही। यशोदा ने भावना से इशारों में ही पूछा, क्या हुआ। भावना ने चिढ़ कर कहा, “उससे ही पूछो।” भावना तेजी से कमरे में जा पहुंची जहां रणछोड़ और शांति बहन बैठे थे। उसे देखते ही रणछोड़ गुस्सा हुआ, “हो तुम छोटी ही, लेकिन उस अभागिन को कुछ ...और पढ़े
अग्निजा - 60
प्रकरण-60 अगले दिन शाम को केतकी शाला से बाहर निकली, तो वहां पर जीतू पहले से ही गुटका चबाते उसकी प्रतीक्षा करते हुए खड़ा था। मां ने दी गई सलाह उसके दिमाग में थी, “भाग्य से तुझे इतनी कमाऊ लड़की मिली है, लेकिन वह तुमको ही गुलाम बना कर न रख दे, इसका ध्यान रखना। यदि तुम उसकी मुट्ठी में आ गए तो, हमारा इस घर में रहना मुश्किल हो जाएगा। शादी जमने के बाद तुम्हें शुरु में उसके साथ घूमने-फिरने की तुम्हारी इच्छा होना तो स्वाभाविक ही है, उसमें कुछ बुराई भी नहीं। मुझे भी खुशी है लेकिन ...और पढ़े
अग्निजा - 61
प्रकरण-61 बहुत समय बीत गया, पर जीतू कहीं दिखाई ही नहीं दिया। तभी केतकी के कंधे पर पीछे से का प्रेम भरा स्पर्श महसूस किया। उसने पीछे मुड़ कर देखा और खुश हो गई, “उपाध्याय मैडम, आप?” “हां, एक छात्रा से मुलाकात करनी थी, इस लिए यहां आई थी। लेकिन तुम यहां कैसे?” तभी जीतू आ पहुंचा। केतकी ने पहचान कराई, “ये मेरे होने वाले पति...आज ही सगाई हुई है हमारी।” “ऐसा क्या....अरे वाह...बहुत अच्छा...बहुत बधाई और शुभकामनाएं..” “थैंक यू...और ये उपाध्याय मैडम...इन्होंने मेरी बड़ी मदद की है।” “ह्म्म...अच्छा...अच्छा....बहुत अच्छा...चलो अब चलें...नहीं तो बहुत देर हो जाएगी।” केतकी कुछ ...और पढ़े
अग्निजा - 62
प्रकरण-62 केतकी का विवाह तय हो गया है यह बात शाला में खासतौर पर सभी शिक्षकों के बीच हवा गति से पसर गई। तारिका झूठमूठ गुस्सा होते हुई बोली, “वाह...छुपी रुस्तम...मालूम ही नहीं पड़ने दिया...बहुत बहुत शुभकामनाएं...”प्रसन्न शर्मा ने भी बधाई दी, लेकिन केतकी को महसूस हुआ कि उसका मूड ठीक नहीं था। केतकी ने पूछा भी, तो “कल दिन भर सहगल, मुकेश रफी के दर्द भरे नगमे सुनता रहा, उसी का परिणाम है। मुझे कुछ नहीं हुआ। आई एम टोटली फाइन।” इतना कह कर प्रसन्न वहां से निकल गया। लेकिन केतकी के मन में भी एक हूक उठी, ...और पढ़े
अग्निजा - 63
प्रकरण-63 वह अब कैंची में फंस चुके हैं, भिखाभा को यह बात समझते देर नहीं लगी। चार लाख दे जब तक कल्पु की शादी नहीं होती, तब तक किसी भी स्थिति में मीना बहन जीतू की शादी करने को तैयार नहीं होंगी। ये कांटा तो गले में फंस गया। न निगलते बन रहा न उलगते। ये कांटा अब ऐसे ही चुभते रहेगा और मेरे अहंकार को मिट्टी में मिलाता रहेगा। वास्तव में इस समय उनका बुरा वक्त चल रहा है। इससे अच्छा तो नगर सेवक के तौर पर कुछ काम किए होते तो न जाने आज कितना फायदा हो ...और पढ़े
अग्निजा - 64
प्रकरण-64 केतकी जीतू के पीछे भागी, “अरे, पर आपका कोई खास काम था न? ऐसी छोटी सी बात के उसे भूलने से कैसे चलेगा? प्लीज...कहिए न ....क्या काम था?” जीतू रुका। उसने गहरी सांस ली और छोड़ी। दो पल के लिए आंखें बंद कर लीं, “तुम ठीक कहती हो। खास काम को भूल कर कैसे चलेगा? चलो...” इतना कह कर उसने रिक्शा रुकवाया और उसे गार्डन की ओर चलने के लिए कहा। लॉ गार्डन में जोड़ों की भीड़ देख कर केतकी को ऐसा लगा कि बेकार ही यहां आए। लेकिन जीतू पूरे उत्साह के साथ आगे-आगे चल रहा था, ...और पढ़े
अग्निजा - 65
प्रकरण-65 छुट्टी के दिन जीतू घर आया। सभी को प्रणाम किया। फिर केतकी को किनारे ले जाकर बोला, “चलो कहीं घूमने चलें। भावना को भी साथ ले लो...”केतकी को खुशी हुई। वह बोली, “आप ही उससे कहें, उसको अच्छा लगेगा।” जीतू ने भावना को बुला कर हंसते हुए कहा, “छोटी साली साहिबा, आज हमारे साथ घूमने चलेंगी क्या? सच कहा जाए तो भावना की बिलकुल इच्छा नहीं थी, लेकिन जीजाजी और केतकी के चेहरे का आनंद देख कर वह राजी हो गई। केतकी ने भावना के कान में कहा, “इनका जन्मदिन पास आ रहा है, हम लोग उनके लिए ...और पढ़े
अग्निजा - 66
प्रकरण-66 केतकी अपने आंसुओं को रोकती हुई घर में घुसी और अपने कमरे में जाकर उसने दरवाजा बंद कर यशोदा को लगा कि यह अभी तो गई थी और तुरंत वापस लौट आई? वह रुंआई होकर। जैसे तैसे सब ठीक होने को आया है, फिर कहीं कोई गड़बड़ न हो जाए। उसे आनंद हो रहा था कि उसकी बेटी के अब सुख के दिन शुरू हो रहे हैं। लेकिन मानो उसकी ही नजर लग गई उसको। यशोदा ने केतकी के कमरे का दरवाजा धीरे से बजाया, “केतकी बेटा...दरवाजा खोलो न...” यशोदा ने जब बहुत प्रयास किया तो भीतर से ...और पढ़े
अग्निजा - 67
प्रकरण-67 ऐसे ही करीब एक सप्ताह गुजर गया। न तो जीतू मिलने के लिए आया, न ही उसका कोई ही आया। इस बात से खुश हो या दुःखी, केतकी को समझ में नहीं आ रहा था। जीतू से मुलाकात हो तो कोई न कोई वादविवाद तो होता ही था, बेहतर है कि उससे मिला ही न जाये। लेकिन इसका अर्थ तो यह भी होता है कि उसको मुझमें कोई रुचि नहीं। अभी से? उसकी तथाकथित सामाजिक विचारों के फ्रेम में मैं कहीं फिट नहीं बैठती हूं, उसने कहीं ऐसा तो मान नहीं लिया है? और कभी भी उसमें फिट ...और पढ़े
अग्निजा - 68
प्रकरण-68 ठीक अठारहवें दिन जीतू केतकी की शाला के गेट के पास दिखाई दिया। आवाज में बड़ी विनम्रता लाते बोला, “कैसी हो? एक काम था। शाम को मिलोगी?” केतकी ने हां कहा। तभी शाला की घंटी बज गयी। केतकी दुविधा में पड़ गयी, लेकिन जीतू ने ही कहा, “तुम जाओ। मैं शाम को यहीं मिलूंगा।” केतकी दिन भर विचार करती रही कि जीतू इतना नरम कैसे हो गया? ये तूफान के पहले की शांति तो नहीं? क्या काम होगा? सगाई तो नहीं तोड़नी? कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था। बीच में इतने दिनों तक जीतू ने मुझसे ...और पढ़े
अग्निजा - 69
प्रकरण-69 अब जीतू ने रोज ही केतकी से शाला में आकर मिलना शुरू कर दिया था। उसके पास समय क्या, यह पूछ कर शाम को घूमने का कार्यक्रम तय करने लगा। केतकी को लगता था कि ये दिन वापस नहीं लौटने वाले। इसलिए उसने अपने टयूशन, बच्चों को निःशुल्क मार्गदर्सन आदि के समय में बदलाव कर लिया। जीतू के साथ समय बिताना उसे भी अच्छा लगने लगा था। ये वही आदमी है क्या? ये कोई सपना तो नहीं, या जो पहले देखा वह कोई बुरा सपना था? जीतू ने केतकी को एक अच्छा सा गॉगल भेंट किया। एक शनिवार ...और पढ़े
अग्निजा - 70
प्रकरण-70 देर रात तक केतकी विचारों में खोई रही। “जीतू को मेरी कितनी चिंता है...अब उसे मुझे किराये के में नहीं रखना है...मध्यमवर्गीय लोगों के लिए घर पहला और आखिरी सपना होता है। वह मरने के बाद ही खत्म होता है। लेकिन जीतू कितना संवेदनशील है...ये अवसर न आया होता तो सके व्यक्तित्व का यह अच्छा पहलू उसके सामने कभी आया ही नहीं होता। लेकिन भावनाएं अपनी जगह ठीक हैं लेकिन इसमें एक पेंच तो पड़ा ही है कि चार लाख रुपए की रकम आएगी कहां से? पिताजी के पास हों, या न हों..होंगे भी तो क्या वे देंगे?क्यों ...और पढ़े
अग्निजा - 71
प्रकरण-71 उस दिन न जाने क्यों, केतकी को अपने पिता जनार्दन की बहुत याद आ रही थी, जिन्हें उसने भी नहीं था। उसने अपने पिता को तो देखा ही नहीं था, लेकिन आज तक उनका फोटो भी नहीं देखा था। आई जो बातें बताती थीं, उनका वर्णन करती थी और अपनी कल्पनाशक्ति का उपयोग करके वह अपने सामने एक व्यक्तित्व खड़ा करती थी। वह व्यक्तित्व उसके लिए बहुत स्नेही, प्रिय और पूज्य था। मेरी जीतू के साथ शादी और उसके साथ सुखी गृहस्थी की कल्पना से ही उनको कितनी खुशी और संतोष मिला होता? पिता के ख्यालों में और ...और पढ़े
अग्निजा - 72
प्रकरण-72 और फिर जीतू ने चढ़ाया हुआ मुखौटा निकाल फेंका। केतकी के प्रेमरहित, तपते रेगिस्तान सरीखे जीवन में अकस्मात प्रेम की बारिश मानो भाप बनकर उड़ गई। जीतू अपने पुराने रूप में आ गया, वही उपेक्षा, अपमान, गुटका और अविश्वास। अब तो ये दूना हो गया था। बढ़ता ही जा रहा था। उसको लग रहा था कि केतकी चालाक है और उसने यह सब जानबूझ कर किया है। अब निर्णय लेने का समय आ पहुंचा था। एक दिन दोपहर को वह भिखाभा के घर पहुंचा। वह चाहता था कि रणछोड़ दास हों तभी वह वहां पहुंचे। उसकी यह इच्छा ...और पढ़े
अग्निजा - 73
प्रकरण-73 केतकी दीदी ने घर खरीद लिया यह खबर सुन कर भावना की खुशी सातवें आसमान पर थी। अपनी और अपनी हिम्मत के भरोसे अपने नाम पर घर लिया था उसने। अब उसको यह देखने की जल्दी मची थी। लेकिन केतकी ने उसे जैसे-तैसे समझाया, उसी समय फोन बजा। भावना ने फोन उठाया, “हैलो...” “मैं जीतू। अपनी दीदी से कहना कि कल शाम को छह बजे मैं स्कूल के पास पहुंचूंगा...” वह कुछ उत्तर देती इसके पहले ही जीतू ने फोन रख दिया। भावना ने केतकी से पूछा, “अब ये क्या नाटक है? कल तो महीने का आखिरी दिन ...और पढ़े
अग्निजा - 74
प्रकरण-74 “मुझे नहीं लगता कि यह लड़की तुम्हारे काबू में रहेगी। कितने दिन राह देखोगे?” भिखाभा ने थोड़ा नाराज हुए रणछोड़ से पूछा, “देखो, पुणे के पास एक बड़ी जमीन की खरीद करना है। तुम जाकर देख आओ। उस इलाके का भाव क्या है, पता लगाकर आओ। वकील से सारे कागजात बनवा लिये हैं, आते समय वो ले आऩा। अपनी जमीन के चारों ओर बाड़ लगानी है। उसकी व्यवस्था कर आओ। दो चौकीदार भी ऱखवा दो। वहां जाने के बाद मुझसे रोज फोन पर संपर्क में रहना।” “ठीक है साहेब, चिंता न करें, मैं सब काम ठीक से निपटा ...और पढ़े
अग्निजा - 75
प्रकरण-75 ............................... केतकी अपना सिर को खुजला रही थी, तभी वहां सारिका आकर खड़ी हो गई। केतकी ने उसे सिर देखने के लिए कहा। “नहीं, बाल तो साफ दिखाई दे रहे हैं तुम्हारे...रूसी भी नहीं दिखती...जुएं और लीख की तो क्या बिसात की वे इस वाइस प्रिंसिपल की तरफ बुरी नजर डालें, लेकिन...एक मिनट...जरा ... ” उसने अपने दोनों हाथों से बालों को थोड़ा किनारे किया और देखा, “ यहां चमड़ी दिखाई पड़ रही है। एक गोल चट्टा दिख रहा है छोटा सा। उसी से खुजली हो रही होगी मैडम...और कुछ नहीं है। ” केतकी को अपने लंबे, घने, ...और पढ़े
अग्निजा - 76
प्रकरण-76 तरह-तरह मलहम, दवाइयां, मेडिकेटेड शैंपू और धूप में बैठने जैसे प्रयोग करने के बाद भी बीमारी पर कोई नहीं हो रहा था। उल्टा, बढ़ती ही जा रही थी। दो की जगह तीसरी जगह पर भी चट्टा दिखाई देने लगा था। कुछ दिन बाद चौथा भी...केतकी को सिर्फ डॉक्टर का ही सहारा था। वह उसे ठीक हो जाने का आश्वासन दे रहे थे। इस बार उन्होंने एक नया इलाज बताया। “स्टेरॉइड के इंजेक्शन लेने से कुछ फायदा होगा।” लेकिन स्टेरॉइड के दुष्परिणामों के बारे में केतकी को थोड़ी-बहुत जानकारी होने के कारण वह उसके लिए राजी नहीं हुई। केतकी ...और पढ़े
अग्निजा - 77
प्रकरण-77 कुछ देर बाद थोड़ी शांत होने के बाद केतकीने भावना की तरफ देखा। अपने दोनों हाथ उसके गालों रखकर याचना के स्वरों में कहा, “भावना, मुजे अकेला मत छोड़ना...हमेशा मेरे साथ रहना वरना शायद मैं...” केतकी बहन ऐसे खराब विचार अपने दिमाग से निकाल डालो। मैं सांस लेना छोड़ सकती हूं, अपनी जान छोड़ सकती हूं, पर तुमको कैसे छोड़ सकती हूं भला ? “मुझे कुछ भी हो जाये, तो भी नहीं छोड़ोगी न?” “अरे होना क्या है तुमको? और यदि कुछ हो भी जाये तो तुम मेरी बड़ी बहन हो, यह सच तो रहने वाला ही है ...और पढ़े
अग्निजा - 78
प्रकरण-78 इस प्रसिद्ध हेयरस्पेशलिस्ट का दवाखाना बहुत आलीशान था। केतकी और भावना जैसे ही वहां जाकर बैठीं, वॉर्डबॉय उनके पानी लेकर हाजिर हो गया। पानी पीने के बाद खाली गिलास वापस ले जाने के समय उसने पूछा, “चाय लेंगी या कॉफी?” दोनों को आश्चर्य हुआ। रोगी की इतनी चिंता? डॉक्टर से पहले ही उनकी एक खूबसूरत असिस्टेंटने केतकी से तरह-तरह के कई प्रश्न पूछे और कंप्यूटर पर कुछ दर्ज कर लिया। यह सब आधा-पौन घंटा चला। उसी समय एक जाने-माने खिलाड़ी को डॉक्टर के केबिन से बाहर निकलता देखकर भावना खुश हो गई। कुछ देर में केतकी को अंदर ...और पढ़े
अग्निजा - 79
प्रकरण-79 “मेरी समस्या मुझे सुलझाने दें... इसे स्वावलंबन कहा जाए या घमंड? कुछ दिनों पहले वह लड़का हॉस्पिटल में था और उसकी पढ़ाई का नुकसान हो रहा था, तब तो उसकी समस्या उसे ही सुलझाने देनी चाहिए थी... आपने क्यों उस पर अपना प्रेम दिखाया..? मैंने बताया है इस लिए नहीं जाना हो, तो वैसा कहें। ” “नहीं, वैसा कुछ नहीं है...” “आप जाएं या न जाएं। लेकिन मैं इस एलोपेशिया, केशनाग, इंद्रमुख या गंजापन होना, जो कुछ भी है उससे हारने या निराश होने वाला आदमी नहीं हूं।” “एक मिनट, ये नागकेश, इंद्रमुख...ये सब क्या है, समझ में ...और पढ़े
अग्निजा - 80
प्रकरण-80 केतकी को देर रात तक नींद ही नहीं आई। बालों का विचार उसका पीछा ही नहीं छोड़ रहा इन्हीं विचारों के बीच उसे नींद आ गई। सुबह उठ कर केतकी ने अपनी मुट्ठियां जोर से भींचीं और अपने आप से ही कहा, “मुझे कुछ नहीं होने वाला। मेरे बाल वापस आएंगे।” ऐसा करने से उसे मन ही मन अच्छा लगा। उसने हमेशा की तरह गुनगुने पानी से बड़ी देर तक शांति से स्नान किया। स्पेशल शैंपू से बाल धोए। नहाते समय कोई गाना गुनगुनाती रही। साबुन मलते हुए शरीर से मैल छुड़ाने के साथ निराशा, चिंता और नकारात्मक ...और पढ़े
अग्निजा - 81
प्रकरण-81 डॉक्टर ने वही रेशमी डोर फिर से खींची, और वही लड़का दोबारा अंदर आ गया। एक प्लेट में और साथ में पानी के तीन गिलास लेकर आया था। “मन हल्का हो गया। अब पानी पीकर शरीर को शांत करें। मुंह मीठा करें फिर हम शुभ कार्य की शुरुआत करेंगे।” तीनों ने पानी पीया। पानी फ्रिज का नहीं था, फिर भी उसे पीने के बाद तीनों को ठंडा महसूस हुआ। गुड़ भी स्वादिष्ट और अलग ही था। “केमिकल फ्री शुद्ध गुड़ है यह। काली मिट्टी के मटके का पानी है। केतकी बहन पसंद आया कि नहीं?” केतकी कुछ उत्तर ...और पढ़े
अग्निजा - 82
प्रकरण-82 केतकी का सिर ध्यानपूर्वक देखने पर भावना अंचभित रह गई। वह चुपचाप देखती ही रही। केतकी को डर “फिर से वही न...मेरा ही नसीब खोटा...और क्या?” उसने अपने सिर पर रखा हुआ भावना का हाथ दूर किया। भावना की ओर देखा, तो उसकी आंखों में पानी झलक रहा था। “अरी पगली, अब उसकी आदत कर लेनी चाहिए...बाल गए तो गए...” “केतकी बहन, बाल गए नहीं, आए..हां उस गोल चकत्ते का आकार भी छोटा हो गया है अब। उसके आजू-बाजू में छोटे-छोटे बाल दिखाई दे रहे हैं।” इतना कह कर उसने केतकी को गले से लगा लिया। शाम को ...और पढ़े
अग्निजा - 83
प्रकरण-83 “क्या? गर्भपात?” केतकी चिल्लाई। उसे अपने कानों पर भरोसा ही नहीं हुआ। लेकिन जीतू पर उसका कोई असर हुआ। “देखो, मुझे तुम्हारे त्रियाचरित्र की पूरी जानकारी है...लंबे बाल खुले रखना, गॉगल्स पहनना, चलते समय इधर-उधर लोगों को देखना, उस उपाध्याय मैडम जैसी औरतों से दोस्ती रखना....और बिना बाहों के ब्लाउज पहनना...और कल तुमको इतने फोन लगाये, एक भी नहीं उठाया। उसके बाद भी मिस कॉल देख कर तुमने मुझे फोन नहीं लगाया...आज मुझे लंगड़ाता हुआ देख कर भी छुट्टी ली? नहीं? अरे, कम से कम शाम को समय पर आई क्या? नहीं।” बोलते-बोलते ही जीतू ने गुस्से में ...और पढ़े
अग्निजा - 84
प्रकरण-84 जीतू को केतकी के प्रति मन से रुचि नहीं थी। जो कुछ था, बस उसका स्वार्थ था। अब केतकी पर संदेह करना प्रारंभ कर दिया और केतकी से दूरी भी बनाने लगा था। फिर भी कई बार केतकी की शाला के पास आकर उसके आने-जाने के समय और उसके साथ कौन रहता है-इस पर छुप कर नजर रखने लगा था। कभी दिमाग में संदेह का कीड़ा अधिक कुलबुलाये तो डॉ. मंगल के दवाखाने का चक्कर मार कर आ जाता था। लेकिन संयोग ऐसा बना कि एक बार भावना ही सुबह जाकर उनकी दवा ले आयी थी तो दूसरी ...और पढ़े
अग्निजा - 85
प्रकरण-85 और फिर भावना ने प्रसन्न द्वारा बताया काम उसी दिन कर दिया। डॉ. मंगल ने केतकी को दवाइयों जो पुड़िया दी थीं, उनमें से दो उसने प्रसन्न को लाकर दीं। प्रसन्न के मन में एक डर था। उसको विश्वास तो नहीं था, पर शंका थी। उसने यह जानने की कोशिश की कि यह दवा वास्तव में है क्या? और दो दिनों बाद उसे जो निष्कर्ष मिला उसे सुन कर तो उसके पैरों तले जमीन ही खिसक गयी। यह बात किसी को कैसे बतायी जाये, उसे समझ में नहीं आ रहा था। बहुत सोच-विचार करने के बाद उसने तीन-चार ...और पढ़े
अग्निजा - 86
प्रकरण-86 भावना बड़ी देर से चुपचाप बैठी थी। शांति बहन, जयश्री और यशोदा को भी आश्चर्य हो रहा था ये लड़की इतनी देर से चुप कैसे बैठी है? यशोदा ने पूछा तो भावना ने ठीक से उत्तर नहीं दिया। वह उत्तर भी क्या देती बेचारी ? उसे रह-रह कर प्रसन्न का घर, वहां पर हुआ वार्तालाप और रास्ते भर एक भी शब्द न बोलने वाली केतकी की याद आ रही थी। केतकी ने घर में घुसते साथ भावना की तरफ देख कर बोली, “मुझे अकेले रहना है सुबह तक। मुझे बिलकुल परेशान मत करना। कोई नाटक मत करना। प्लीज. ...और पढ़े
अग्निजा - 87
लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण-87 केतकी तो पहले दिन से ही समझ चुकी थी कि जीतू एकदम जड़बुद्धि और मट्ठ अशिक्षित है। संवेदना तो उसमें है ही नहीं। उसे उसकी ओर से किसी भी सहानुभूति या अपनापन की उम्मीद नहीं थी। इस लिए जीतू के जीवन में उसका कितना और क्या स्थान होगा, इस पर विचार करने में समय खर्च करने का कोई मतलब ही नहीं रह गया था। केतकी को अपने भविष्य में मां का भूतकाल और वर्तमान की पुनरावृत्ति दिखायी देने लगी थी। और वह कांप उठी। नहीं, नहीं...मुझे दूसरी यशोदा नहीं बनना है। लेकिन कोई विकल्प भी ...और पढ़े
अग्निजा - 88
लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण-88 केतकी से रहा नहीं गया। वह चुंबक भी तरह उस ओर खिंचती चली गयी। उनके जाकर उसने उनके कंधे पर हाथ रखा, “कल्पना बहन?” उन्होंने पीछे मुड़ कर केतकी की तरफ देखा। पहले तो पहचान ही नहीं पायीं लेकिन जब ध्यान से देखा तो उनको आश्चर्य हुआ, “केतकी बहन आप?” दोनों ने बड़ी प्रसन्नता के साथ एकदूसरे का हाथ थामा। दोनों के चेहरे पर इस मुलाकात का आनंद झलक रहा था। “हां, आपकी केतकी बहन। चलिए कहीं आराम से बैठ कर बातें करें?” एक होटल के फैमिली रूम में दोनों जाकर बैठ गयीं। उनसे मिल ...और पढ़े
अग्निजा - 89
लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण-89 केतकी के जीवन में परेशानियां थीं। कष्ट थे। बाल झड़ रहे थे। उस दवा की से बढ़ा हुआ वजन, थकान, अन्यमनस्कता और अस्वस्थता की सौगात भी मिली हुई थी। जीतू पूर्ववत उपहास करने के मूड में रहता था। रणछोड़ दास के ताने बढ़ते जा रहे थे। इन सबके बीच में जो एक बात केतकी के हाथ में थी वह थी वजन कम करना। और ठीक उसी समय कल्पना बहन ने उसे बड़े प्रेम से यह ‘आहार की नयी पद्धति और निरोगी जीवन’ किताब दी थी। केतकी बड़ी उत्सुकता के साथ वह किताब पढ़ने लगी। प्रारंभ ...और पढ़े
अग्निजा - 90
लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण-90 रेस्टोरेंट से बाहर निकलने के बाद केतकी के चले जाने के बाद प्रसन्न ने तुरंत को फोन लगाया। नयी आहार पद्धति की किताब के बारे में पूछ लिया। भावना ने कहा, “मैंने आधे से अधिक किताब पढ़ ली है, पर मुझे कुछ ज्यादा समझ में आया नहीं। और जो कुछ समझ में आया उसका पालन करना बहुत कठिन है।” प्रसन्न ने उससे कहा कि वह तुरंत यह किताब उसे लाकर दे। संभव हो तो कल ही। अगले दिन भोजन का समय गुजर जाने के बाद केतकी का सिर दुखने लगा। इसके कारण उसका चेहरा भी ...और पढ़े
अग्निजा - 91
लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण-91 प्रसन्न की कहानी सुन कर सब उसे देखते ही रह गये। उपाध्याय मैडम ने तो मुश्किल से अपनी हंसी रोकी। भावना ने मुंह पर हाथ रख। केतकी एकटक उसकी ओर देखती रही। अचानक वह उठ खड़ी हुई। “आपका मित्र आपसे अच्छा तैराक है इससे आपके अहम् को ठेस पहुंची। छोटे-छोटे बच्चे भी बड़ी ऊंचाई से छलांग लगा रहे थे, यह देख कर आपको अपने भीतर कमी महसूस हुई। दो लड़कों ने ताना मारा तो आप जोश में आकर सिकंदर की तरह छह फुट ऊंचे चढ़ गये? कमाल है। मिस्टर प्रसन्न शर्मा आप एक परिवक्व, विचारवान, ...और पढ़े
अग्निजा - 92
लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण-92 केतकी ने अब सचमुच अपनी आहारपद्धति में थोड़ा परिवर्तन करना दिया था। शुरु के पांच उसने पौन कप चाय ली, उसके बाद पांच दिन आधा और फिर पाव और आखिर में पूरी तरह बंद। उसके शरीर को अब चाय के बिना रहने की आदत हो गयी थी। चाय बंद करने के बाद दो-तीन दिन सिर में दर्द हुआ, लेकिन वह कुछ ज्यादा नहीं था। सहने लायक था। इसी तरह उसने शाम की चाय बंद करने का भी ठान लिया। शाला में केतकी की डायटिंग की खूब तारीफ हो रही थी। उसकी दृढ़निश्चयी स्वभाव और अपने ...और पढ़े
अग्निजा - 93
लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण-93 वजन तो कम हो ही रहा था, परंतु उससे दुगुनी गति से बाल भी कम रहे थे। मानो उन्हें चरबी का विरह सहन नहीं हो रहा था और वे भी चरबी के साथ निकलते जा रहे थे। डायटिंग और वजन कम करने के लिए केतकी का अभिनंदन करने वाले तो कम ही थी, उससे दूरी बढ़ाने वाले लोग अधिक होते जा रहे थे। उससे नजरें चुराने लगे थे। मन ही मन वह कुढ़ रही थी। बालों का झड़ना क्या उसका गुनाह था? क्या बाल ही किसी व्यक्ति की पहचान होते हैं? बालों के लिए आदमी ...और पढ़े
अग्निजा - 94
लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण-94 भावना गुस्से में कहा, “यानी मेरी बहन का अपमान करने के लिए ही यह खेल किया गया था। मुझे पूरा भरोसा है कि यहां मौजूद सभी लड़कियों को इतने पुराने गाने याद हों. ऐसा संभव ही नहीं। वह एक लड़की के सामने जाकर खड़ी हो गयी। “बालों पर कोई और गाना याद है क्या..बताओ? ” वह रुंआसी हो गयी। “हम सभी लोगों को तारिका ने एक-एक काना मैसेज करके बताया था। कार्यक्रम में यही गाना गाना है, उसने यह भी बताया था। मजा आएगा, ऐसा भी उसने कहा था।” भावना सभी लड़कियों के सामने जा ...और पढ़े
अग्निजा - 95
लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण-95 घर लौटकर भावना केतकी से गले लगकर रोने लगी। बहुत देर तक वह रोती रही। पूछती रही, लेकिन भावना कोई जवाब देने को तैयार नहीं थी। तो केतकी ने उसे अपनी कसम दी। तब भावना ने रोते-रोते कहा कि लोग कहते हैं कि तुम अब ज्यादा समय तक जीने वाली नहीं हो। केतकी को हंसी आ गयी, ‘पगली...इतनी सी बात पर कोई रोता है क्या? वो भी इतना? मेरी या किसी के भी जाने का अभी समय आने पर कोई रोक नहीं सकता। और किसी के कहने भर से कोई मरने लग जाता तो लादेन ...और पढ़े
अग्निजा - 96
लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण—96 बाबा ने हाथ ऊपर करके दोनों को आशीर्वाद दिया। ‘फिकर मत कर माते। मुझे मालूम कि यह होने वाला है। टोटका करने वाले बहुत करीब के लोग हैं। लड़की को यज्ञ के लिए तैयार नहीं होने देगा यह टोटका। लेकिन हम चुपचाप ही अपना काम करेंगे। आप एक-दो दिनों में चेले से आकर मिल लेना। मैं इक्कीस संतों को कहला भेजूंगा...जरा भी फिक्र मत करना, हम हैं न...?’ दोनों हाथ जोड़कर निकल गयीं। शिष्य वहां पर खड़ा ही था। उसने बिना पूछे सलाह दी।‘बाबा किसी भी क्षण काशी के लिए निकल सकते हैं। इस लिए ...और पढ़े
अग्निजा - 97
लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण-97 केतकी मंदिर के चबूतरे पर बैठ कर विचारों में खो गयी। मंदिर में चल रही की गूंज उसके कानों से टकराकर वापस जा रही थी।‘ हे महादेव, मैं कभी भी तुम्हारे मंदिर के भीतर नहीं आयी। या यह कहूं कि तुमने मुझे कभी अंदर आने ही नहीं दिया। मैं गंजी होने वाली हूं, ये तुम जानते थे इसलिए मुझे अपने से दूर रखा क्या हमेशा? नाना ने मेरा नाम जब केतकी रखा तब मुझे समझाया था कि साल में एक समय ऐसा आता है कि जब तुमको केतकी के फूलों की जरूरत पड़ती है। उस ...और पढ़े
अग्निजा - 98
लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण-98 सुबह उठने के बाद केतकी बाथरूम में मुंह धो रही थी तब चार्जर खोजने भावना कमरे में आयी। उसे बहुत जम्हाइयां आ रही थीं। अंबाजी जाने के लिए शांति बहन, रणछोड़ और जयश्री बहुत सुबह उठ गये थे। हल्ला मचा कर उन्होंने सभी की नींद उड़ा दी थी। चार्जर कहीं दिखाई नहीं दे रहा था इसलिए भावना ने केतकी के टेबल के नीचे की दराज खोली। वहां रखी हुई दवाइयां देख कर भावना स्तब्ध रह गयी। उसने दवाइयों की थैली उठाई और जल्दी से कमरे से बाहर निकल गयी। दूसरे कमरे तक पहुंचते-पहुंचते भावना को ...और पढ़े
अग्निजा - 99
लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण-99 केतकी के हाथों में भरी हुई चार शॉपिंग बैग्स थीं। देखकर यशोदा को आश्चर्य हुआ, पीछे पीछे रिक्शे वाला तीन और बैग लेकर आया। यशोदा कुछ कहती इससे पहले केतकी उसका हाथ पकड़कर गोल-गोल घूमने लगी। मानो किसी सहेली के साथ फुगड़ी खेल रही हो। तीन-चार फेरियां लगाने के बाद उसने यशोदा को गले से लगा लिया। यशोदा ने उसे किनारे करके चेहरा देखने लगी। केतकी बहुत खुश थी। इतनी खुश? लेकिन यशोदा को डर लगा, ये लड़की वास्तव में खुश है या दिखावा कर रही है? लेकिन केतकी अपने ही विचारों में गुम थी। ...और पढ़े
अग्निजा - 100
लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण-100 मोबाइल में भावना का मिस कॉल आया और केतकी को होश आया। ‘अब अपने जीवन ये कुछ आखरी घंटे अपने प्रिय लोगों के साथ हंसते-खेलते बिता लेती हूं। इन पलों को अपनी सांसों में बसा लूंगी। ये मेरे आखरी सफर में साथ होंगे। जन्म जन्मांतर तक मेरे साथ रहेंगे, ये आखरी चार घंटे...उनका मैं भरपूर उपयोग कर लूंगी....’ केतकी भविष्य का अधिक विचार नहीं कर पायी। आंखों की किनारी पर आए आंसुओं को उसने अपनी उंगली से हटा दिया। वह बाहर निकली तो यशोदा उसकी तरफ देखती ही रह गयी। केतकी भी अपनी मां नयी ...और पढ़े
अग्निजा - 101
लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण-101 ‘जाओ...मरो....जल्दी....तुम दोनों....इतना बड़ा काम कर रही हो तो मां के नाते मेरा भी तो कुछ है न? लाओ मैं ही बोतलें खोल देती हूं...दोनों के छुटकारे में मुझे भी थोड़ा सा पुण्य पाने दो...’ यशोदा उन दोनों के पास आकर बैठ गयी। दोनों की तरफ न देखते हुए एक बोतल का ढक्कन खोलकर उसने आराम से नीचे रखा। ‘धीरे से....दो-चार बूंद भी गिरने न पाए...मेरी बेटियों को कम न पड़ने पाये...’ जोश में दूसरी बोतल का ढक्कन खोलने की कोशिश करते हुए यशोदा बड़बड़ाती भी जा रही थी, ‘मैं भी कितनी मूर्ख हूं? केतकी को ...और पढ़े
अग्निजा - 102
लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण-102 आदत के अनुसार यशोदा की नींद सुबह जल्दी खुल गयी। जैसे-तैसे तीन-चार घंटे की नींद होगी, लेकिन रात के जागरण का असर उसके चेहरे पर दिखायी नहीं पड़ रहा था। उल्टा, उसके चेहरे पर प्रसन्नता झलक रही थी और दुनिया जीत लेने का भाव था। यशोदा उठ कर चादर की तह लगाने लगी तभी केतकी ने उसे अपने पास खींच लिया। ‘कम से काम आज तो आराम से सोओ।’ ‘अरे, पर बज कितने गये, ये तो देखो।’ ‘देखने की जरूरत नहीं है। सो जाओ...’ यशोदा का हाथ पकड़ कर केतकी ने अपने पास खींच लिया। ...और पढ़े
अग्निजा - 103
लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण-103 होटल से मंगवाया हुआ नाश्ता खत्म होने पर यशोदा उठी, ‘तुम दोनों खाने में क्या बताओ तो उस हिसाब से मैं तैयारी करूं...’ केतकी यशोदा की ओर देखते हुए बोली, ‘देखो मां, तुम्हारा पति और सास घर में नहीं हैं। मुझे खूब पता है कि तुम्हें ऑर्डर लेने की आदत हो गयी है। उन दोनों के घर वापस लौटते तक हम दोनों तुम्हें ऑर्डर दिया करेंगे, ठीक है...?’ यशोदा को हंसी आ गयी। ‘ठीक है...बोलो...तुम्हारा ऑर्डर क्या है...?’ ‘ऑर्डर नंबर एक, तुम कोई भी काम मत करो। ऑर्डर नंबर दो, हम जो कुछ कहेंगी वो ...और पढ़े
अग्निजा - 104
लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण-104 दरवाजे पर घंटी बजी और तीनों की नींद खुल गयी। यशोदा और केतकी उठ ही थीं कि भावना ने दोनों को रोक दिया और आंखें मसलते हुए दरवाजा खोला। रणछोड़, शांतिबहन और जयश्री भीतर आना भूलकर दरवाजे पर ही खड़े रह गये। भावना के सर पर बाल न देखकर तीनों अवाक थे, उन्हें अपनी आंखों पर भरोसा ही नहीं हो रहा था। रणछोड़ की आंखों में गुस्से की ज्वाला भड़क रही थी। उसने हाथों के इशारे से ही भावना को रास्ते से हटने का आदेश दिया। रणछोड़ तेजी से भीतर घुसा। शांति बहन और जयश्री ...और पढ़े
अग्निजा - 105
लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण-105 केतकी और यशोदा दरवाजे तक पहुंची ही थीं कि भावना उनके पीछे दौड़ी। ये देख शांति बहन बोलीं, ‘ए लड़की, तू मेरे पास आ। तेरा पीछा छूटा उनसे...’ यशोदा भी भावना को घर के भीतर ठेलने लगी, लेकिन भावना दृढ़ थी। ‘मैं भी मां और केतकी बहन के साथ जाऊंगी...’ शांति बहन ने अपने गुस्से पर काबू करते हुए उसे समझाने की कोशिश की, ‘अरे पगली, ये तेरा घर है, तेरा अपना...’ ‘घर? घर ऐसा होता है क्या? और इस घर में तो प्रेम, दया, माया, सहानुभूति रहनी चाहिए न....मुझे तो ये सब कभी दिखा ...और पढ़े
अग्निजा - 106
लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण-106 ‘केतकी बन, जाओ...मैं तुम्हें आज से एक वर देती हूं...’ भावना की बातें सुनकर यशोदा केतकी, दोनों को आश्चर्य हुआ। यशोदा बोली, ‘क्या बोल रही हो तुम? वर तो भगवा देते हैं...कोई महान व्यक्ति दे सकता है...’ ‘मां, तुम नहीं समझ पाओगी...केतकी बहन, आज से तुम मेरी आकी और मैं तुम्हारी जिन्न..’ यशोदा ने अपना सिर खुजाने लगी। केतकी हंसकर बोली, ‘अरे मां, आका मतलब मालिक। इसने आका को आकी बना दिया...’ ‘देखा...कितनी होशियार आकी मिली है मुझे...तो आकी, मेरी एक बात सुनो...आज से तुम इस घर की मालिक और मैं तुम्हारी नौकर।’ केतकी ने ...और पढ़े
अग्निजा - 107
लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण-107 केतकी अपनी डायरी में कुछ लिख रही थी, तभी दरवाजे पर घंटी बजी। ‘दोनों इतनी वापस आ गयीं?’ केतकी ने उठकर दरवाजा खोला, ‘अच्छा हुआ, तुम लोग आ गये...’ लेकिन दरवाजे पर जीतू को देखकर उसका वाक्य अधूरा ही रह गया। ‘वाह, पहली बार मुझे यहां देखकर तुम्हें अच्छा लगा होगा...चलो शुरुआत तो अच्छी हुई।’ ‘लेकिन, आप अचानक? यहां?’ ‘मेरी तारीफ खत्म हुई नहीं कि तुमने अपनी जात दिखा दी...क्यों? यहां आकर मैंने कोई गुनाह किया है? और, मैं यहां क्यों नहीं आ सकता? तुम किसी और की राह देख रही थी क्या, ये भी ...और पढ़े
अग्निजा - 108
लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण-108 केतकी भागते-भागते सीधे पुलिस चौकी में ही रुकी। वहां पर मौजूद दशरथ पटेल हवलदार ने पहचान लिया, ‘दीदी, आप यहां?’ दशरथ का बेटा केतकी का विद्यार्थी था। स्कूल के कार्यक्रम में उसने केतकी को देखा था, अपने बेटे के मुंह से उसके बारे में बहुत कुछ सुना था। उसकी तारीफ सुनी थी। ‘शिकायत दर्ज करवाने आयी हूं...’ ‘पहले बैठिए...पानी पीजिए...उसके बाद आराम से साहब को सब बताइए...’केतकी वहां रखी बेंच पर बैठ गयी। उसने पानी लिया। तब तक हवलदार दशरथ ने अपने साहब इंस्पेक्टर विजय चावड़ा से बात कर ली। केतकी ने साहब को घटना ...और पढ़े
अग्निजा - 109
लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण-109 उपाध्याय मैडम ने घर के बारे में भावनायुक्त विचार व्यक्त किये। ‘एक स्त्री के लिए अधिकार का घर पाना कितना दुर्लभ होता है, और उसकी कितना महत्ता है, यह बात उन्होंने अच्छे से समझायी। बहुत कम स्त्रियां ऐसी होती हैं जो अपना घर खरीद पाती हैं, उस पर केतकी जैसी इतनी कम उम्र में घर खरीदने वाली तो और भी कम होती हैं। इस लिए केतकी का जितना अभिनंदन किया जाए, कम ही है।’ इतनी तारीफ सुनकर केतकी शरमा गयी। उसने धीरे से कहा, ‘मैडम, मैंने कुछ नहीं किया। हालात ही ऐसे बन गये कि ...और पढ़े
अग्निजा - 110
लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण-110 जयश्री ने दादी की ओर देखा, ‘उसकी जगह मैं होती तो कभी वापस न आती, क्यों वापस आए?’ शांति बहन ने जयश्री को आंखें दिखाईं, ‘क्यों मतलब? अपनी होशियारी बाजू में रखो। वो लौटकर नहीं आयी तो घर के काम कौन करेगा, तुम की तुम्हारा बाप? मुझसे अब कोई कामधाम नहीं होगा, कहे देती हूं...इतने साल हो गये...अब नहीं होगा..फिर सारी जिम्मेदारी तुम्हारे सिर पर आएगी... ’ ‘हटो...मेरे पास समय नहीं और इच्छा भी नहीं है घर के काम करने की...’ ‘तो अब तेरे बाप को तीसरी औरत नहीं मिलने वाली...समझ गयी न...एक तो इन ...और पढ़े
अग्निजा - 111
लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण-111 वह अंदर जा ही रही थी कि फोन बजा, ‘हैलो...बोलिए भिखाभा...क्या कह रहे हैं? अरे उसके पैर पकड़ कर माफी मांगूंगा...वह आखिर मेरी ही लड़की है न..ठीक ठीक...आपकी मेहरबानी है साहब...’ ‘कल ही मीना बहन से मिलना है....’ फिर यशोदा को देखते हुए हाथ जोड़कर बोला, ‘केतकी को बुला लो...क्या होगा कौन जाने...’ शांति बहन उदास स्वरों में बोलीं, ‘अब और क्या होना बाकी है? शादी तोड़ने की बात कर रह होगी...सभी लोगों के सामने यह बात कहनी होगी...यह दिन देखने से अच्छा तो मर जाना...’ यशोदा ने शांतिबहन के सामने बिनतीपूर्वक कहा, ‘ऐसा मत ...और पढ़े
अग्निजा - 112
लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण-112 मानो केतकी ने बम विस्फोट कर दिया हो, ऐसी स्थिति हो गयी थी सभी की। को समझने में लोगों को कुछ क्षण लगे। क्या कहें, किस तरह से प्रतिक्रिया व्यक्त करें, किसी को भी समझ में नहीं आ रहा था। कौन, किसे समझाए ऐसी स्थिति निर्मित हो गयी थी। जैसे तैसे संभलते हुए भिखाभा बोले, ‘लड़की नादान है, जिद्दी है, बड़बोली है...रणछोड़ चाय-नाश्ते की व्यवस्था देखो तो जरा...बाद में आराम से विचार करेंगे कि इस पर क्या रास्ता निकाला जाए...’ मीना बहन उठ गयीं, ‘अब चाय-पानी की आवश्यकता नहीं.... सबके सामने नाक काट कर चली ...और पढ़े
अग्निजा - 113
लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण-113 केतकी को समझाने-बुझाने, पटाने का कोई भी उपाय सफल नहीं हुआ। उसे जीतू नाम का जल्द से जल्द भूलना था। उसे यह नाम ही अपने जीवन से हमेशा के लिए मिटा देना था। केतकी विचारों में खोयी हुई थी। ‘प्रेम सतत बहते हुए पानी की तरह होना चाहिए....निर्मलता के साथ...उसमे सच्चाई होनी चाहिए...चौबीस कैरेट सोने की तरह...जो ह्रदय को स्पर्श करे, वह प्रेम होता है...मन को प्रफुल्लित करे, वह होता है प्रेम....जीवन को रससिक्त करता है प्रेम...फिर भी कई लोग प्रेम को समझ क्यों नहीं पाते भला? प्रेम को इतना भी क्षणभंगुर नहीं होना चाहिए ...और पढ़े
अग्निजा - 114
लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण-114 भावना को कुछ समझ में नहीं आ रहा था। सुबह केतकी ने कुछ नहीं कहा। अपनी तैयारी की और स्कूल जाते समय आवश्यक हिदायतें दे दीं। भावना कोई जवाब देती, इससे पहले ही केतकी बाहर निकल गयी। भावना लगातार मैसेज देख रही थी, लेकिन उसे जिस मैसेज का इंतजार था, वह दिखाई नहीं दे रहा था। न प्रसन्न का, न उपाध्याय मैडम का। भावना का मन खिन्न हो गया। किसी से उम्मीद रखना ही बेकार है, निराशा ही हाथ लगती है। अचानक मोबाइल में एसएमएस अलर्ट रिंग बजी। ‘वाह, केतकी बहन का मैसेज।’कुछ भूल गयी ...और पढ़े
अग्निजा - 115
लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण-115 उस दिन शाम को पाव भाजी, केक, पिज्जा, बाजरे की रोटी और बैंगन का भरता, और आइसक्रीम जैसे अलग-अलग आइटम्स के साथ तरह-तरह के गिफ्ट और बहुत सारी शुभकामनाओं के साथ भावना का जन्मदिन जोरदार तरीके से मनाया गया। इतना सब होने के बाद आखिर में प्रसन्न द्वारा ऑर्डर किये हुए मघई पान के बीड़े भी आए। प्रसन्न ने बीड़ा मुंह में रखते हुए भावना से पूछा, ‘तुमको इस कार्यक्रम केबारे में जरा भी भनक नहीं लगी? ’ ‘नहीं न...मैं एकदम मूर्ख हूं। सुबह केतकी बहन बिना कुछ कहे ही स्कूल निकल गयी। आप दोनों ...और पढ़े
अग्निजा - 116
लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण-116 चंद्रिका ने सबकुछ विस्तारपूर्वक उसे बताया और वहां से चली गयी। लेकिन भावना के मन उसके शब्द निकल नहीं रहे थे। भावना को याद आया कि केतकी मंदिर के चबूतरे पर बैठकर किस तरह वहां पर कुत्तों को बिस्किट खिलाती थी...उसे देखते साथ कुत्ते भागकर उसके पास आ जाते थे। उसके आसपास घूमते रहते थे। उससे प्रेम जताते थे। इतना कि उसके दिए हुए बिस्किट खाना भी भूल जाते थे। केतकी जान भी नहीं पायी और वे उसके मित्र बन गये। मेरा अकेलापन दूर करने के लिए मुझे भी एक कुत्ता भेंट किया। लेकिन मेरी ...और पढ़े
अग्निजा - 117
लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण-117 इलाज, अच्छा खाना-पीना और खासतौर पर प्रेम, दया पाकर इस कुत्ते में बहुत फर्क पड़ भावना, यदि काम हो तो ही घर के बाहर निकलती थी। केतकी फोन करके उसका हालचाल पूछती रहती थी। लेकिन दोनों कुत्तों को संभालते समय कभी कभी गड़बड़ हो जाती थी। भावना समझ नहीं पा रही थी कि क्या किया जाए। उस दिन शाम को केतकी भी इसी तरह के विचारों में खोयी हुई थी। स्कूल के गेट के पास जीतू आकर खड़ा था। उसकी ओर देखे बिना ही केतकी ने स्कूटर स्टार्ट कर दिया। उसका ध्यान नहीं था, लेकिन ...और पढ़े
अग्निजा - 118
लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण-118 भावना सबकुछ जान लेने के लिए अधीर हो रही थी। केतकी उसे बताते हुए मानो भी फ्लैशबैक में चली गयी। --- भावना को पिकनिक जाने की अनुमति दी उसी दिन वॉशबेसिन के पास मुंह धोते समय आईने में अपना मुंह धोते हुए केतकी के मन में एक विचार आया। उसके मन में अपने शरीर पर टैटू बनवाने की इच्छा बड़े दिनों से दबी हुई थी। लेकिन उसे किस हिस्से में बनवाया जाए? औरोंसे हटकर, अलग जगह पर। आईने में देखते समय उसका ध्यान अपनी चमकते हुए सिर पर गया और वह खुश हो गयी। अरे, ...और पढ़े
अग्निजा - 119
लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण-119 कोई मर्मस्पर्शी फिल्म या फिर कोई दिल को छूने वाला नाटक देख रही हो, भावना ऐसा महसूस हुआ। वह कुछ नहीं बोली। उठकर केतकी के पास गयी। उसके सिर को देखती रही। चारों तरफ से घूम-फिरकर देखा। माथे से लेकर गर्दन तक और दोनों कानो के बीच की जो चित्र थे वे टैटू नहीं थे, केतकी का भावना संसार था। उसकी दुनिया थी। उसकी पहचान थी। उसका स्वाभिमान था। इसके कारण केतकी के भीतर अब अदम्य विश्वास आ गया था। उसकी चाल बदल गयी थी। उसके चेहरे पर तेज आ गया था। यदा-कदा आने वाली ...और पढ़े
अग्निजा - 120
लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण-120 कुछ दिनों से भावना यह महसूस कर रही थी कि केतकी कभी-कभी अपने ही विचारों घंटों मग्न रहती थी। उसे अकेलापन खाता होगा क्या? मां की याद सताती होगी क्या? या फिर जीतू याद आता होगा? वह तमाम परीक्षाओं से गुजर चुकी है, लेकिन इन सबका बोझ उसके मन पर सदा के लिए रहेगा। उसका पूरा जीवन संघर्ष में ही गुजरा। उसने कभी आराम किया ही नहीं। उसे अपने जीवन में कभी निश्चिंतता मिली ही नहीं। उसके जीवन में कुछ थ्रिलिंग अवश्य होना चाहिए ताकि वह दोबारा ताजादम हो सके। कुछ रोमांटिक होना चाहिए, वह ...और पढ़े
अग्निजा - 121
लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण-121 केतकी को समझ में आ गया कि वह भावना और निकी-पुकु को छोड़कर कहीं जाने नहीं इसलिए भावना, प्रसन्न और कीर्ति चंदाराणा ने मिलकर यह प्लान बनाया था। अब केतकी का नाटक शुरू हो गया, ‘अच्छा..अच्छा...आपने लोगों ने तय किया है कि मैं ट्रिप पर जाऊं...दस दिनों के लिए? वेरी गुड...गोआ? नॉट बैड...लेकिन अब कृपा करके बताएंगे कि मैं किसके साथ जाऊंगी...?’ भावना ने बाजू में रखे हुए एक फोल्डर में से टिकिट की एक फोटोकॉरी निकालकर उसके हाथ में रख दी। वह लक्जरी बस की एक टिकट की फोटोकॉपी थी। उसमें केतकी, चंद्रिका, गायत्री, ...और पढ़े
अग्निजा - 122
लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण-122 सोने से पहले केतकी ने खुद से कहा, ‘गोआ में खूब मौज मस्ती करनी है...ये अपने लिए और केवल अपने लिए जीना है। अपने लिए और अपने ऊपर प्रेम करने वालों की इच्छा का सम्मान करने के लिए।’ और फिर वह सपने में तुरंत गोआ पहुंच गयी। अस्पष्ट...धुंधले...अचानक पानी की एक बड़ी लहर आयी और उसे खींचने लगी। केतकी चौंककर जाग गयी। आंखों पर बंधी पट्टी खोलकर देखा तो सभी लोग गहरी नींद में सो रहे थे। लेकिन उसके साथ वाली लाइन में बैठी लड़की मोबाइल पर चैटिंग करती बैठी हुई थी। उस समय रात ...और पढ़े
अग्निजा - 123
लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण-123 गोआ में तीसरे दिन, चंद्रिका, गायत्री और मालती ने घोषणा कर दी कि आज हम बीअर पीने वाली हैं, वाइन पीएंगी और खूब नाचेंगी भी। केतकी तुम आना पसंद करोगी? केतकी ने जबाव दिया, ‘देखूंगी। सच कहूं तो मुझे इनमें से किसी की भी आदत नहीं है, और मुझे अच्छा भी नहीं लगेगा। और मेरी इच्छा भी नहीं है। मैं समुद्र किनारे जाकर बैठूंगी या फिर तुम लोगों को मौज-मस्ती करते हुए देखूंगी यहीं पर। ’ उस दिन भी अलका कहीं दिखाई नहीं दी। वह किसी न किसी बहाने से बाहर निकल जाती थी। किसी ...और पढ़े
अग्निजा - 124
लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण-124 दूसरे दिन सुबह केतकी जल्दी ही जाग गयी। सभी खर्राटे लेकर सो रही थीं उस वह समुद्र के किनारे जाकर बैठ गयी। कल के नारियल पानी वाले की बेंच आज खाली थी। किनारे पर गिने-चुने लोग ही थे। कोई घूम रहा था को व्यायाम कर रहा था। वह कुछ देर उस बेंच पर बैठ गयी, फिर उठकर चलने लगी। समुद्र की तरफ देखते हुए चलती रही। एक जगह सीमेंट का चबूतरा बना हुआ था। वहां पर कुछ धूप थी फिर भी केतकी को वहां जाने की इच्छा हुई। वह उस चबूतरे पर जाकर बैठ गयी। ...और पढ़े
अग्निजा - 127
लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण-127 उस मेल को देखकर भावना पागलों की तरह उछलने लगी। ‘वॉव...व्हाट ए न्यूज...कॉन्ग्रेचुलेशन्स..’ केतकी ने भाव से कहा, ‘इतनी उछलकूद करने की जरूरत नहीं है। या तो ये मजाक है या फिर गलती से भेजा गया मेल...’ ‘इतनी बड़ी सौंदर्य प्रतियोगिता के आयोजक न तो गलती कर सकते हैं न ही मजाक...चलो तैयारी में जुट जाओ अब...’ ‘पागल हो क्या तुम? चलो उन्होंने भले ही मजाक न किया हो लेकिन वहां जाकर तो मेरी हंसी ही उड़ेगी न सबके सामने?’ ‘नहीं...यदि सौंदर्य प्रतियोगिता के प्रथम पात्रता राउंड के ऑडिशन के लिए तुम्हें बुलाया गया है ...और पढ़े
अग्निजा -- 125
लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण-125 आखरी दिन शाम को छह बजे केतकी ने भावना को फोन लगाया। भावना नींद से केतकी का नंबर देखकर डर गयी, ‘क्या हुआ केतकी बहन?’ ‘होना क्या है? खूब मजा आयी। तुमको थैंक्स कहने के लिए फोन किया। लौटने के बाद विस्तार से बताऊंगी। ओके? ’ उसके बाद केतकी ने उपाध्याय मैडम, कीर्ति चंदाराणा और प्रसन्न शर्मा को भी मैसेज भेजकर धन्यवाद दिया। उपाध्याय मैडम और भावना सोच रही थीं कि केतकी जब लौटकर आयेगी तो बहुत थकी हुई होगी। लेकिन वह एकदम ताजादम होकर लौटी। खुश थी। उसने पहुंचते साथ भावना को गले से ...और पढ़े
अग्निजा -- 126
लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण-126 केतकी का आत्मविश्वास दिनों-दिन बढ़ता ही जा रहा था। टैटू बनवाने के बाद सभी लोगों अलग दिखाई पड़ने लगी थी। तिस पर गोआ का पानी चढ़ने के कारण उसका व्यक्तित्व और अधिक निखर गया था। काम करने का साहस तो उसमें पहले से ही था। सभी की सहायता करने की आदत भी थी। उसके दिमाग में नयी-नयी कल्पनाएं जन्म लेती रहती थीं। उन पर वह अमल भी करती थी। इनमें से यदि किसी के भीतर एक भी गुण हो, तो लोग उससे ईर्ष्या करने लगते हैं। फिर केतकी तो गुणों की खान ही थी...फिर उससे ...और पढ़े
अग्निजा - 128
लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण-128 सभी बैठ गये। उपाध्याय मैडम, कीर्ति चंदाराणा, भावना और केतकी। उसके बाजू में पुकु और प्रसन्न ने उठकर सोफे के सामने रखी सुपारी की डिबिया, रिमोट कंट्रोल, पुस्तकें वगैरह उठाकर किनारे रख दिए। पानी के खाली ग्लास रसोई घर में रखे। उसकी इस हलचल का अर्थ किसी को भी समझ में नहीं आ रहा था। ‘मैं चांस नहीं लेना चाहता...किसी ने कुछ फेंक के मार दिया तो?’फिर हंसते हुए उसने एक झटका और दिया। ‘प्लीज सभी अपने अपने मोबाइल मेरे हाथों में दे दें। मैं अपनी कविताओं की रेकॉर्डिंग नहीं करने देना चाहता...नाराज मत होइएगा...लेकिन ...और पढ़े
अग्निजा - 129
लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण-129 पांच मिनट तक किसी ने कुछ नहीं कहा। बोल ही नहीं पा रहा था कोई सबकी नजरों में सवाल थे, पर उत्तर किसी के पास नहीं थे। तो कुछ लोग उत्तर देने की स्थिति में ही नहीं थे। ऐसे ही पांच-सात मिनट गुजर गये और केतकी नैपकिन से अपना चेहरा पोंछते हुए बाहर आयी। भावना भागकर उसके लिए पानी का ग्लास ले आयी। उसने केतकी के सामने रख दिया। केतकी ने उसकी तरफ देखा लेकिन हाथ नहीं बढ़ाया। भावना ने ग्लास टेबल पर रख दिया और वह केतकी के पैरों के पास बैठ गयी। प्रसन्न ...और पढ़े
अग्निजा - 130
लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण-130 मुंबई पहुंचकर केतकी चकरा गयी थी। मुंबई की भीड़भाड़ से घबरा गयी थी। लोग लगातार हुए ही दिखायी दे रहे थे। इधर से उधर, उधर से इधर। आखिर इतनी भीड़ कहां जा रही होगी? और आ कहां से रही होगी? कोई किसी की तरफ देखता नहीं, हंसता-मुस्कुराता नहीं। इतने साल साथ रहने के बाद भी क्या कोई किसी को पहचानता नहीं होगा? ये तो जैसे यंत्रवत रोबोट ही है। इस मुंबई से तुरंत निकलना होगा बाबा। ले...फाइव स्टार होटल। ये होटल है कि कोई राजमहल? सबकुछ भव्य। एक महंगी लंबी-चौड़ी गाड़ी से एक साहब उतरे। ...और पढ़े
अग्निजा - 131
लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण-131 केतकी को विश्वास ही नहीं हो रहा था। सामने से ट्रॉली खींचते हुए मालती आ थी। केतकी अपनी ट्रॉली भूलकर मालती की ओर दौड़ी। मानो कई सालों से बिछड़ी हुई सगी बहन उसे मिल गयी हो, ऐसा आनंद उसके चेहरे पर दिख रहा था। उसने मालती का हाथ पकड़ लिया। उससे गले मिलने की इच्छा हो रही थी। उसके कंधे पर अपना सिर रखकर रोने का मन कर रहा था। केतकी को बहुत खुशी हो रही थी लेकिन मालती के चेहरे पर कोई भाव नहीं था। ऐसा नहीं लग रहा था कि उसे केतकी से ...और पढ़े
अग्निजा - 132
लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण-132 ‘कम इन..’ केतकी ने दरवाजे पर हल्की सी थाप दी तो भीतर से आवाज आयी। धीमे से दरवाजा बंद किया और अंदर गयी। प्रतिभागियों को निर्देश देने के लिए दरवाजे के पास खड़ी लड़की उसकी तरफ देखती ही रही, फिर एकदम सुध लेते हुए कहा, ‘प्लीज, डू रैम्प वॉक अप टू जजेस एंड कम बैक इन सेम स्टाइल.’ केतकी को भावना याद आ गयी। पिछले कई दिनों से उसने इंटरनेट पर कई तरह के वीडियो दिखाकर रैम्प वॉक की प्रैक्टिस करवा ली थी। केतकी सबकुछ भूलकर, भावना की मेहनत का मान रखने के सतर्क हो ...और पढ़े
अग्निजा - 133
लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण-133 बाहर निकलने के बाद केतकी के मन में आया कि भागकर भावना को गले से लिया जाए। पर उसने मन में कोई विचार आया और फिर उसने जानबूझकर अपने चेहरे पर गंभीरता का मुखौटा ओढ़ लिया। भावना उसकी तरफ देख रही थी, लेकिन वह उससे कुछ नहीं बोली। उल्टा जरा तीखे शब्दों में बोली, ‘चलो, जल्दी से यहां से निकलते हैं।’ होटल के बाहर आकर थोड़ दूर आगे बढ़कर केतकी बोली, ‘उपाध्याय मैडम को फोन लगाओ। कॉन्फरेंस कॉल करके चंदाराणा सर और प्रसन्न को बुलाओ..आज उन्हें साफ साफ शब्दों में बता देना है...सभी मुझे समझते ...और पढ़े
अग्निजा - 134
लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण-134 बार-बार पूछन पर अगले दिन अहमदाबाद पहुंचने पर प्रसन्न ने बताया कि केतकी के ऑडिशन पास होने की खबर मिलने के बाद कीर्ति सर ने उसकी मुंबई दर्शन टिकट रद्दर करके गाड़ी बुक करवा दी थी। यह सुनकर भावना केतकी की तरफ देख रही थी। उसे अपनी दीदी पर गर्व हुआ। उसकी दीदी मन की साफ, निर्मल होने कारण उसे अच्छे लोगों का साथ मिलता है। नहीं तो भला ऐसे कोई किसी की बिना कहे मदद कहां करता है? उस दिन शाम को केतकी और भावना ने उपाध्याय मैडम, कीर्ति चंदाराणा और प्रसन्न को डिनर ...और पढ़े
अग्निजा - 135
लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण-135 वॉचमैन निशांत ने उसे जो बताया उसे सुनकर केतकी को झटका लगा। वह बेचैन हो उसने कहा, ‘मैडम, आप बड़ी भाग्यवान हैं। बालों के बिना भी लोगों के बीच उठ-बैठ सकती हैं। बाहर निकल पाती हैं। आप नसीबवान हैं, हिम्मती भी...हमारे छोटे से गांव में एक सत्रह-अठारह साल की लड़की को ऐसी ही बीमारी हो गयी और उसके बाल झड़ने लगे, तब वह जब भी घर से बाहर निकलती, लोग उसे पत्थर मारने लगते ...अपने पास नहीं आने देते...अपने घर के पास से भी गुजरने नहीं देते.. कहते हैं वह टोटका करती है.. परिवार के ...और पढ़े
अग्निजा - 136
लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण-136 शाम को स्कूल की छुट्टी होने के बाद प्रसन्न से मुलाकात हुई, ‘सिर में बहुत दर्द हो रहा है, थोड़ा अस्वस्थ भी हूं। घर की चाय पिलाओगी?बाद में नहीं रुकूंगा...रात के खाने लिए।’ केतकी धीरे से हंसी। प्रसन्न उसकी स्कूटी के पीछे बैठ गया। रास्ते में स्पीड ब्रेकर या फिर कोई गड्ढा आ जाए तो स्कूटी थोड़ा उछलती थी और प्रसन्न का हाथ अनजाने ही केतकी की बायीं कमर को छू जाता ...तब उसे ऐसा लगता मानो शऱीर में बिजली दौड़ गयी हो। केतकी ने घर पहुंचते ही पहले पुकु-निकी से बात की। उसके बाद ...और पढ़े
अग्निजा - 137
लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण-137 ‘क्या? वाकई तुम्हें ऐसा लगता है?’ ‘नहीं, मुझे केवल ऐसा लगता ही नहीं है तो में वैसा है भी। इसी लिए तुम निश्चिंत होकर घूमती-फिरती नहीं हो। कभी-कभी कहीं खो जाती हो...तुम अपनी वेदनाओं को किसी के साथ बांटो। तुम्हारी वेदनाओं में कोई सहभागी नहीं हो सकता, ये सच है फिर भी अपने मन की बातें कहने के बाद तुम्हारा जी हल्का हो जाएगा। मैडम उपाध्याय उम्र में काफी बड़ी हैं, और भावना बहुत छोटी, इस लिए शायद इन दोनों से तुम अपने मन की बात न कह पाओ, लेकिन मुझ पर विश्वास रखो, तुमने ...और पढ़े
अग्निजा - 138
लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण-138 उस रात को प्रसन्न सो नहीं पाया। उसका तकिया गीला हो रहा था। उसे पश्चाताप रहा था कि उसने बेकार ही केतकी को उसके भूतकाल की याद दिला दी। क्या उससे उसका मन हल्का हुआ होगा? या फिर से और तकलीफ हुई होगी? प्रसन्न ने कम से कम पांच बार उन कागजों को पढ़ा। उसका एक-एक शब्द उसे दिल-दिमाग पर आघात कर रहा था। रातभर के जागरण के बाद भी वह स्कूल जाने के लिए तैयार हो गया। आज घंटा भर पहले ही स्कूल पहुंचकर वह केतकी की राह देखने लगा। केतकी सामने आयी तो ...और पढ़े
अग्निजा - 139
लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण-139 ‘नहीं, मेरे अस्तित्व के साथ एकरूप हो चुकी, मुझमें समा चुकी केतकी सिर्फ मेरी है...मेरे की...पूरी तरह से... ’ ये शब्द केतकी के कानों से बार-बार टकरा रहे थे। इन्हें सुनकर उसके भीतर मीठी सी संवेदनाएं जाग रही थी। इतना प्रेम? एक तरफ तो उसे खुशी हो रही थी कि प्रसन्न जैसा व्यक्ति उसे पसंद करता है, लेकिन क्या वास्तव में उस पर प्रेम है? या केवल सहानुभूति? दया? जो होगा सो होगा...लेकिन मैं उसके लायक नहीं, ये बात तो सही है। और, मेरे नसीब में प्रेम भी नहीं है। इसी लिए तो मेरे जन्म ...और पढ़े
अग्निजा - 140
लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण-140 केतकी को भले ही समझ में नहीं आ रहा था, पर प्रसन्न ने ध्यान दिया केतकी की चाल बदल गयी है। उसकी चाल में एक खास तरह की लचक, नजाकत, स्टाइल आ गयी थी। उसकी चाल में आत्मविश्वास था। वैसे भी, भावना जो ग्रूमिंग प्रैक्टिस करवा रही थी, उसकी जानकारी प्रसन्न को थी ही। शायद, प्रसन्न के कहने पर ही ये योजना बनायी गयी हो। उसकी प्रैक्टिस का वीडियो देखते हुए वह खुश हो रहा था और भावना को कुछ निर्देश भी देता जा रहा था। केतकी को लग रहा था कि उसमें बहुत परिवर्तन ...और पढ़े
अग्निजा - 141
लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण-141 अगले दिन सुबह साढ़े पांच बजे अलार्म बजा और केतकी की नींद खुल गयी। उसने को धीरे से हिलाया ‘उठो...जल्दी से ...आधे घंटे में तैयार हो जाओ...’ ‘अरे, ग्रूमिंग तो खत्म हो गयी न...सोने दो...’ केतकी ने भावना की चादर खींच ली, लाइट जलाए और पंखा चालू करके वह बोली, ‘योर टाइम स्टार्ट्स नाउ...’ भावना उठ बैठी, लेकिन उसे कुछ समझ में नहीं आया। पैंतीस मिनट में तैयार होकर आयी तो डायनिंग टेबल पर उसकी चाय का कप तैयार था और केतकी अपने सिर पर नोटबुक रखकर हाईहील्स पहनकर चल रही थी। वह सब कुछ ...और पढ़े
अग्निजा - 142
लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण-142 केतकी के लिए दिल्ली बिलकुल ही अनजान थी। हवाई अड्डे से होटल तक पहुंचने में दिल्ली ने उसे ठेंगा दिखा दिया। ऑटो वाले ने सात सौ रुपए मांगे। केतकी विचार में पड़ गयी तो उसने कहा, ‘बिटिया चलो छह सौ ही दे देना।’ उसने वहीं पास के एक काउंटर से, जहां पर टैक्सी स्टैंड लिखा हुआ था, वहां जाकर बुकिंग करवाई। केवल दो सौ सत्तर रुपए में उसे टैक्सी मिल गयी। होटल का दरबान दौड़ता हुआ आया और उसने सलाम बजाया। बाकी लोग भी उसकी तरफ देखते रह गये। केतकी असमंजस में पड़ गयी थी। ...और पढ़े
अग्निजा - 143
लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण-143 ‘देखो केतकी, उम्र के साथ व्यक्ति में परिपक्वता आए, ये जरूरी नहीं होता। परीक्षा में वाले अंकों के आधार पर व्यक्ति की होशियारी का आकलन नहीं किया जा सकता और अफवाहों के आधार पर किसी के चरित्र का मूल्यांकन नहीं हो सकता।’ प्रसन्न समझा रहा था। केतकी की कक्षा के एक दो विद्यार्थियों के अभिभावकों ने शिकायत की, ‘हमें गुमनाम फोन आते हैं कि केतकी जानी के प्रोजेक्ट के विरोध में शिकायत करें। उनके विरोध पत्र पर हस्ताक्षर करें।’ यह जानकर केतकी का मन खिन्न हो गया। उसकी व्यथा सुनकर प्रसन्न उसको समझा रहा था। ...और पढ़े
अग्निजा - 144
लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण-154 प्रसन्न की ट्रेन मुंबई से अहमदाबाद की तरफ दौड़ रही थी। प्रसन्न केतकी को फोन का लगातार प्रयास कर रहा था...उसकी हैलो...हैलो सुनकर आजू बाजू के यात्री उसकी तरफ देखने लगे तो वह उठकर दरवाजे के पास पैसेज में आकर खड़ा हो गया...प्रेम से बोलने लगा... ‘हैलो केतकी...प्लीज टॉक टू मी...हैलो केतकी... ’ अचानक उसे लगा कि केतकी ने फोन उठा लिया है। ‘प्रसन्न तुमने जो वाइन दी थी मैं उसके सहारे अपना दुःख दूर करने की कोशिश कर रही हूं। लेकिन वह जाता है और फिर आ जाता है। आते समय पुरानी यादें लेकर ...और पढ़े
अग्निजा - 145
लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण-145 सुबह अहमदाबाद में उतरते साथ प्रसन्न स्टेशन से सीधे केतकी के घर पहुंचा। ट्रेन लेट के कारण जब वह पहुंचा तो साढ़े आठ बज चुके थे। भावना जाग रही थी। प्रसन्न ने दरवाजे की घंटी बजाने के बजाय भावना को फोन करके दरवाजा खोलने के लिए कहा। प्रसन्न को देखते साथ भावना उसके गले लगकर रोने लगी, ‘थैंक्यू...आप न होते तक केतकी ने क्या कर लिया होता कौन जाने...’ प्रसन्न ने भावना को पकड़कर सोफे पर बिठाया। ‘अब टेंशन छोड़ो...वह बड़बड़ा रही थी कारण बताओ नोटिस के बारे में...क्या बात है?’ भावना ने आलमारी से ...और पढ़े
अग्निजा - 146
लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण-146 अगले दिन कीर्ति सर अपने केबिन में बैठ कर किसी से फोन पर बात कर थे। तब प्रिंसिपल मैडम भी वहां आकर बैठ गयीं। उन्हें बुलाया गया था। चंदाराणा सर बोल रहे थे, ‘हां सर, केतकी हमारे स्कूल की शान है। मेरे इतने दिनों के अनुभव में मैंने उस जैसी तेजस्वी, निष्ठावान और प्रयोगधर्मी शिक्षिका नहीं देखी। ठीक है, यदि आप कह रहे हैं तो झूठी शिकायत भेजने वाले के विरुद्ध मैं पुलिस में कंप्लेंट डाल देता हूं और स्कूल की तरफ से एक पत्र आपको भेज देता हूं। ’ कीर्ति सर के फोन रखते ...और पढ़े
अग्निजा - 147
लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण-147 दुबई में सौंदर्य प्रतियोगिता का दूसरा और महत्त्वपूर्ण राउंड था। शाम को दुबई के लिए थी। उससे पहले रविवार को सभी दोपहर को बारह बजे एक अच्छे होटल में लंच के लिए इकट्टा हुए। केतकी, भावना, प्रसन्न, उपाध्याय मैडम और कीर्ति सर। सभी का एकमत था कि इस प्रतियोगिता में केतकी का स्थान अनोखा है। सबसे अलग। प्रसन्न बोला, ‘पेजेन्ट का नतीजा चाहे जो निकले, केतकी को चिंता करने की जरूरत नहीं। इस प्रतियोगिता में यहां तक पहुंचना, वह भी एक एलोपेशियन व्यक्ति का, अपने आप में बहुत बड़ी बात है। यही जीत है। अन्य ...और पढ़े
अग्निजा - 148
लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण-148 केतकी दुबई जाने वाले प्लेन में बैठी थी, उसे लग रहा था कि वह सपनो है...ऊंचे आकाश में उड़ रही है। लगभग सभी यात्री लैपटॉप पर सिनेमा देखने में, खाने-पीने में, पढ़ने और संगीत सुनने या फिर बातें करने में व्यस्त थे। केतकी इनमें से कुछ भी नहीं कर रही थी। ये सब तो वह फिर कभी कर सकती थी। प्लेन बादलों को चीरते हुए आगे बढ़ रहा था। वह उन बादलों को देख रही थी। उसे वे अपने इतने पास आने दे रहे हैं, इसके लिए उसने उन बादलों को धन्यवाद दिया। बादलों के ...और पढ़े
अग्निजा - 149
लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण-149 दुबई का अनुभव केतकी के लिए एकदम अलग था। वहां की व्यवस्था, साफ-सफाई, भव्यता...सबकुछ अद्भुत वह कोई सपना देख रही है और उस सपने के महानगर में वह खो गयी है, ऐसा उसे लग रहा था। उस पर हवाई अड्डे के अनुभव, पिता के फोटो में दर्शन और बादलों के साथ हुआ मन ही मन संवाद।केतकी मानो हवा में उड़ रही थी। उसका मन एकदम हल्का हो गया था। अब उसे न तो प्रतियोगिता की चिंता थी न ही वहां के प्रतिभागियों की। न ही जीतने की लालसा थी। उसके मन से सारा बोझ उतर ...और पढ़े
अग्निजा - 150
लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण-150 सुबह साढे नौ के आसपास केतकी अखबार पढ़ रही थी, उसी समय एक बार फिर अननोन नंबर से फोन बजने लगा। केतकी ने फोन उठाया, पर वह कुछ बोली नहीं। सामने से एक गंभीर आवाज सुनाई दी, ‘नाराज हो गयी माई लव...आई वॉन्ट टू मीट यू...कब मिलोगी?’ केतकी ने गुस्से में जवाब दिया, ‘मैं ऐसे अनजान और डरपोक लोगों से नहीं मिलती।’ ‘अनजान?, अरे मैं तो सुबह-शाम तुम्हारे साथ रहता हूं। तुम मेरे खयालों से जाती कहां हो...एक बार मिलो तो सही...सब गिले-शिकवे दूर हो जाएंगे। आज शाम को? जब भी मिलो तो चार-पांच घंटे ...और पढ़े
अग्निजा - 151
लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण-151 भावना केतकी को समझाने का भरपूर प्रयास कर रही थी। ‘केतकी बहन मेरा मन कहता कि तुम फाइनल राउंड में अवश्य जाओगी।’ ‘पागल...ये तुम्हारा प्रेम बोल रहा है। तुम्हारी शुभकामनाएं बोल रही हैं, लेकिन तर्कसम्मत बात करोगी तो पता चलेगा कि अब यह संभव नहीं। इट्स ऑल ओवर नाऊ...’ तभी केतकी का फोन बज उठा। उसी अननोन नंबर से। केतकी ने गुस्से में फोन काट दिया। भावना ने पूछा, ‘फोन क्यों नहीं उठाया, कौन था वह।’ ‘है कोई गुंडा। फालतू बातें करता रहता है।’ ‘नाम क्या है उसका?’ ‘नाम, नंबर कुछ नहीं बताता। अननोन नंबर ...और पढ़े
अग्निजा - 152
लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण-152 वैसे देखा जाए तो केतकी मुंबई को फाइनल राउंड की बहुत अधिक चिंता नहीं थी। सुबह दस बजे रिपोर्टिंग टाइम था और रिहर्सल शुरू हो चुकी थी। केतकी को बची हुई 29 प्रतिभागियों की बहुत फिक्र नहीं थी लेकिन उसे यह नहीं मालूम था कि उनके अलावा छह और लोग भी थे, जो उसकी हार-जीत का फैसला करने वाले थे। वे छह माने फाइनल राउंड के जज थे। ये सभी अपने-अपने क्षेत्र के जाने-माने लोग थे। सोनल गोदरेज प्रसिद्ध समाज सेविका थी और उच्च वर्ग में उनका बड़ा नाम था। अनिता वालुचा देश की प्रमुख ...और पढ़े
अग्निजा - 153
लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण-153 सौंदर्य प्रतियोगिता के आयोजक जोश में थे। मीडिया की तरफ से उन्हें उम्मीद से अधिक मिल रहा था। बड़े प्रयासों के बाद प्रतिष्ठित निर्णायक मिले थे। उस पर भी ठाकुर रविशंकर प्रभु तो गोल्ड मैडल थे। ठाकुर साहब की किसी सौंदर्य प्रतियोगिता में शायद यह पहली और आखरी हाजिरी थी। सभी निर्णायक हरेक प्रतिभागी की अच्छे तरीके से परख कर सकें इसके लिए एक अनोखी व्यवस्था की गयी थी। ड्रॉ निकाल कर प्रत्येक जज को पांच-पांच प्रतिभागी सौंप दिए गये थे। जज अपने-अपने प्रतिभागी को नंबर देंगे उन नंबरों का महत्व अधिक होगा, वे पूरे ...और पढ़े
अग्निजा - 154 - अंतिम भाग
लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण-154 इस इनर राउंड में क्या होगा, दर्शकों के बीच उत्सुकता थी। सोनल गोदरेज, अनिता वालचा, कसबेकर, यतीन कपूर और प्रकाश डिसूजा के प्रतिभागी आए और आपस में उन्होंने बात की इससे मालूम हुआ कि यह राउंड रैपिड फायर राउंड जैसा था। अधिकांश जज और प्रतिभागियों ने इस राउंड को फुलझड़ी की तरह हंसी-मजाक में परिवर्तित कर दिया था। सबको विश्वास था कि असली रैपिड फायर तो ठाकुर और केतकी जब आमने-सामने होंगे तब देखने के मिलेगा। ठाकुर रविशंकर ने पहले ही प्रश्न पर स्पिन बॉल डाली, ‘खुद से प्रेम करती हो?’ ‘सीख रही हूं, क्योंकि ...और पढ़े