अग्निजा - 136 Praful Shah द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अग्निजा - 136

लेखक: प्रफुल शाह

प्रकरण-136

शाम को स्कूल की छुट्टी होने के बाद प्रसन्न से मुलाकात हुई, ‘सिर में बहुत तेज दर्द हो रहा है, थोड़ा अस्वस्थ भी हूं। घर की चाय पिलाओगी?बाद में नहीं रुकूंगा...रात के खाने लिए।’ केतकी धीरे से हंसी।

प्रसन्न उसकी स्कूटी के पीछे बैठ गया। रास्ते में स्पीड ब्रेकर या फिर कोई गड्ढा आ जाए तो स्कूटी थोड़ा उछलती थी और प्रसन्न का हाथ अनजाने ही केतकी की बायीं कमर को छू जाता ...तब उसे ऐसा लगता मानो शऱीर में बिजली दौड़ गयी हो। केतकी ने घर पहुंचते ही पहले पुकु-निकी से बात की। उसके बाद भावना को पास बुलाकर कहा, ‘सिर में बहुत तेज दर्द हो रहा है, थोड़ा अस्वस्थ भी हूं। घर की चाय पिलाओगी? ऐसा प्रसन्न ने कहा है। यही कहना तय हुआ था न तुम दोनों का?’ भावना ने थोड़ा आश्चर्य और गुस्से से प्रसन्न की तरफ देखा और पूछा, ‘ये क्या है प्रसन्न भाई?’

वास्तव में, केतकी भावना को डांटने वाली थी लेकिन उसे हंसी आ गयी., ‘जाओ....चाय बनाओ जल्दी...खाना खाने के लिए रुककर वो परेशऩा नहीं करेंगे, ऐसा भी कहा है इन साहब ने।’

भावना चिढ़ गयी, ‘प्रसन्न भाई किसी को भी कष्ट देने वालों में से नहीं हैं। मैं भी देखती हूं कि आज रात वे बिना खाना खाए यहां से कैसे जाते हैं तो? और बाइ द वे, वे मेरी बातों से सहमत होते हैं और वह मेरी बातें मानते हैं, समझी न? भले ही कोई और माने न माने....’ भावना नाराज होने नाटक करते हुए वहां से चली गयी। केतकी हंसी और प्रसन्न केतकी की तरफ देखते रहा।

‘सॉरी, पर भावना को तुम्हारी चिंता सताती है। तुमने अपने भविष्य के लिए कोई लक्ष्य तय किया है और उसके लिए तुम सौंदर्य प्रतियोगिता में भाग नहीं लोगी वगैरह बातें सुनकर वह चकरा गयी। इस लिए उसने मुझे फोन किया...’

‘...और तुमने सिर दर्द का बहाना बनाया...ठीक है न?’

भावना अंदर से कप-प्लेट लेकर बाहर आयी। उसकी तरफ देखते हुए केतकी बोली, ‘आप लोगों को जो कुछ जानना है उसके बारे में बताना शुरू करूं? या अभी उपाध्याय मैडम या कोई और आने वाला है, मिस भावना जानी?’

प्रसन्न हंसने लगा. ‘नहीं, कोई नहीं आने वाला। तुम कहो।क्या है तुम्हारा मिशन?’

‘देखो प्रसन्न, अब तक जीवन में मेरे सामने जो आता गया, उसे जीती गयी। दृष्टि में कोई लक्ष्य नहीं था। लेकिन गुजरात में गंजेपन की बीमारी की वजह से एक अट्ठाइस बरस किसी गोठे में गुजारने वाली औरत, सीतामढ़ी के पास रहने वाली सुंदरी और खंडवा की...’

‘निकिता लाड न...?’

‘तुम्हें कैसे मालूम?’

‘केतकी, एलोपेशिया के बारे में मैं लगातार पढ़ते रहता हूं। इंटरनेट पर खोजते रहता हूं। निकिता के बारे में पढ़कर मुझे भी बहुत बुरा लगा। ’

‘लगेगा ही। इन तीन खबरों के बारे में हमें पता चला। ऐसी तो अनेक घटनाएं होंगी जो हम तक पहुंच ही नहीं रही हैं। इसलिए मैं इस बीमारी के बारे में समाज में जागृति लाने की कोशिश करने की ठानी ही। अब ये ही मेरा अभियान और ये ही मेरे जीवन का एकमात्र लक्ष्य है। ’

‘बधाई, ये तो बहुत अच्छा है...सुनकर खुशी हुई और तुम पर गर्व भी होता है।’प्रसन्न ने खुश होते हुए कहा और हाथ मिलाने के लिए केतकी की तरफ बढ़ाया। उसके चेहरे पर वास्तव में खुशी और गर्व की भावना दिख रही थी।

‘थैंक्यू। इस कारण अब अपने लक्ष्य के अलावा मैं किसी भी फालतू काम में शामिल होने वाली नहीं हूं, जैसे कि सौंदर्य प्रतियोगिता....’

यह सुनकर भावना का चेहरा उतर गया। ‘अर्जुन की तरह केवल चिड़िया की आंख पर ध्यान केंद्रित करने का तुम्हारा निश्चय मुझे पसंद आया। लेकिन ये जनजागृति तुम करोगी कैसे, इसके लिए कोई योजना तैयार की है? ’

‘नहीं, एक तो हमारे देश में इस बीमारी से ग्रस्त लोग सामने नहीं आते। बाल गंवाने के बाद अधिकांश लोग या तो विग पहनकर या फिर स्कार्फ बांधकर बाहर निकलते हैं और घर की चारदीवारी के भीतर कैद करके जीवन व्यतीत करते हैं। यही एक बड़ी समस्या है।’

‘सच है। यानी इसके लिए वास्तव में किससे संपर्क करना है, ये अभी तुम्हें मालूम नहीं है। और इस लक्ष्य के लिए तुम्हें अचानक प्राप्त हुआ मंच का भी इस्तेमाल नहीं करना है।’

‘बड़ा मंच? वो कौन सा है जो मुझे नहीं पता?’

‘क्यों? सौंदर्य प्रतियोगिता इसके लिए बड़ा मंच नहीं है?’

‘वो कैसे?’

‘देखो....तुम इस तरह बिना बालों के प्रतियोगिता में हिस्सा लोगी, तुम्हारी हिम्मत देखकर सभी लोग अचंभित होंगे, सम्मान देने लगेंगे। तुम्हारी तारीफ करेंगे। इस तरह समाज की सैकड़ों साल पुरानी गलत धारणाएं और अंधश्रद्धा में कुछ तो परिवर्तन होगा? इसके अलावा इस बीमारी से ग्रस्त लोग जब तुम्हें देखेंगे तो तुमसे प्रेरणा लेंगे? उनका आत्मविश्वास वापस आएगा, आखिर तुम्हारा अंतिम उद्देश्य भी तो यही है न तो उसकी शुरुआत करने के लिए इससे अच्छा दूसरा और कौन सा मंच हो सकात है भला? मान लो तुम्हें कोई पुरस्कार न मिला या तुम जीत नहीं पायीं तब भी अपने उद्देश्य को तो तुम साध ही सकती हो। ठीक से विचार करोगी तो समझ में आएगा कि पांच-दस साल काम करके भी जो सफलता तुम प्राप्त नहीं कर पाओगी, वह तुम केवल एक प्रतियोगिता में भाग लेकर पा जाओगी। और मुझे भरोसा है कि तुम इस प्रतियोगिता में कम से कम एक पुरस्कार तो अवश्य लेकर आओगी। ऐसा न हुआ तो मैं अपना संगीत हमेशा के लिए छोड़ दूंगा।’

केतकी सोच में पड़ गयी। भावना मंत्रमुग्ध होकर प्रसन्न की तरफ देख रही थी। प्रसन्न केतकी की तरफ ही देख रहा था। उसके हाथों पर हल्की सी चपत मारते हुए भावना बोली, ‘आपकी ही तरह एकाध अफलातून वन पीस थोड़ी छोटी साइज का और कम उम्र का कहीं मिल जाए तो मेरे लिए ध्यान में रखिएगा।’ केतकी ने भावना की तरफ देखा। और कड़े  शब्दों में कहा, ‘जल्दी से उठो...गप्पें मारने में ही हमेशा वक्त गंवाती रहती हो...जाओ तीन-चार कप चाय बनाकर लाओ।’ भावना उठी। केतकी ने उसे टोका, ‘ठीक से सुन लो..चाय पीकर दोबारा अपने प्रसन्न भाई के साथ गप्पें मारते न बैठ जाना। बहुत सारे काम निपटाने हैं। सबसे पहले सौंदर्य प्रतियोगिता के लिए साठ हजार रुपए ऑन लाइन ट्रांसफर करने हैं।’

भावना खुशी से चीख पड़ी, ‘क्या?’ बाद में गंभीर होते हुए बोली, ‘ऐसे आलतू फालतू कामों के लिए वक्त है कहां तुम्हारे पास?’ बाद में हंसते-हंसते वहां से निकल गयी। केतकी ने प्रसन्न की तरफ देखते हुए हाथ जोड़े, ‘थैंक्यू...मेरी जिंदगी में आने के लिए...तुम्हारी वजह से मुझे क्या-क्या मिला है, मैं बता नहीं सकती। थैंक्यू सो मच।’

प्रसन्न ने केतकी की ओर देखकर कहा, ‘एक बात मांगू?’

‘हां...कहें...’

‘सुनने से पहले ही हां कर दी?’

‘तुम पर विश्वास है। अपने से भी अधिक। कहो प्रसन्न क्या चाहिए?’

‘केतकी तुम्हारे भीतर आत्मविश्वास जबरदस्त है। इसी के साथ तुम्हारे विचार भी सकारात्मक हैं। तुम्हारे सान्निध्य में दूसरों के भीतर भी उत्साह का संचार होता है, इतनी उत्साही हो लेकिन....’

‘लेकिन क्या?’

‘शब्द नहीं मिल रहे हैं, कैसे कहूं?’

‘शब्दों की चिंता मत करो। शब्द तो अभिव्यक्ति का साधन मात्र हैं। उन शब्दों के पीछे छिपी हुई भावना अधिक महत्त्वपूर्ण होती है। तुम्हें जो कहना है बिंदास तरीके से कह डालो।’

‘मुझे ऐसा लगता है कि तुम्हारे इस लगातार उफन रहे उत्साह के भीतर कहीं एक लावा उबल रहा है।’

 

अनुवादक: यामिनी रामपल्लीवार

© प्रफुल शाह

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