अग्निजा - 21 Praful Shah द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अग्निजा - 21

प्रकरण 21

डॉक्टर अपनी धीमी गति से आगे आ रहे थे। रणछोड़ दास को लगा वैसे तो डॉक्टर पैसे वसूलने के लिए जल्दबाजी करतेहैं लेकिन इस समय जल्दी से कुछ बताना उनकी जान पर आ रहा है। शांति बहन से रहा नहीं गया, वह दौड़ते हुए डॉक्टर के पास गईं, उनके पीछे-पीछे रणछोड़ दास भी दौड़ पड़ा। जैसे ही दोनों डॉक्टर के पास आकर रुके, डॉक्टर ने उन्हें बताया, “पांच मिनट के बाद केबिन में आइए।”

रणछोड़ दास को डॉक्टर पर बहुत गुस्सा आया, इतना कि लगा उसका पैर ही तोड़ डालें। परंतु लाचारीवश दोनों बाहर ठहर गए। सामने दीवार पर लगी घड़ी के कांटे स्लो मोशन में चल रहे हों, रणछोड़ दास को ऐसा महसूस हो रहा था। थोड़ी ही देर में यशोदा को भी ऑपरेशन थिएटर से बाहर निकाला गया। उसके सिर के पास तक सफेद चादर ओढ़ाई गई थी। चेहरा शांत था, मानो जीवन के कई कष्टों से उसकी मुक्ति हो गई हो। स्ट्रेचर दूर चला गया।  शांति बहन के मन में विचार आया, “कहीं मर तो नहीं गई ये? एक ही को बचा पाएंगे-ऐसा डॉक्टर कह रहे थे। इसका मतलब है मेरा बालकृष्ण सुरक्षित है।” शांति बहन ने हाथ जोड़े। वह ईश्वर का धन्यवाद करने लगीं। रणछोड़ दास को चिंता हो रही थी, “यशोदा को बाहर लाया गया...उसका जो हुआ सो हुआ...लेकिन लड़के के रोने की आवाज क्यों नहीं सुनाई दे रही है?”

अचानक रणछोड़ का ध्यान घड़ी की ओर गया। पांच मिनट हो चले थे। वह उठकर केबिन के दरवाजे तक गया। तभी एक नर्स ने उसे आकर रोक दिया। उसने रणछोड़ दास की ओर करुणा, दया और सहानुभूति भरी नजरों से देखा और बोली, “आप बैठिए, डॉक्टर आपको स्वयं बुलाएंगे।”

नर्स भीतर चली गई। रणछोड़ दास की चिंता, नाराजगी और सहनशीलता चरम पर पहुंच गई थी। भीतर डॉक्टर कोई जानकारी दे रहे थे या बातचीत कर रहे थे, लेकिन इधर मां-बेटे को धीरज कहां था?

दस मिनट के बाद नर्स बाहर निकली। वह जरा दूर जाकर खड़ी हो गई और मुड़कर उसने रणछोड़ दास से कहा, “आप दोनों भीतर जा सकते हैं।” इतना सुनते ही दोनों अंदर भागे। डॉक्टर फोन पर बात कर रहे थे। इन दोनों को उसमें से कुछ समझ में नहीं आ रहा था...लेकिन रणछोड़ दास को, “लॉट ऑफ कॉम्प्लीकेशन्स”,“वेरी डिफिकल्ट केस”,“मेडिकल साइंस होपलेस”, “प्रीमैच्योर डिलिवरी” और “ओन्ली गॉड कैन सेव” जैसे शब्द कानों पर पड़े। उनमें से कुछ समझ में आया।

लेकिन शांति बहन कुर्सी के पीछे दीवार पर टंगे कैलेंडर के मुस्कुराते सुंदर बच्चे के चित्र को देखती रहीं और अपने विचारों में खो गईं।

डॉक्टर ने फोन नीचे रखा। दोनों की तरफ देखा। निर्विकार भाव से अपनी दोनों हथेलियों को रगड़ा। दोनों हाथ मुंह पर फेरे। रणछोड़ दास ने बड़ी मुश्किल से अपने आप पर नियंत्रण रखा था, वरना उसकी इच्छा तो हो रही थी कि वहां पर रखा हुआ पेपरवेट उठाकर डॉक्टर को फेंक के मार दे।

एकदम थकी हुई आवाज में डॉक्टर बोले, “हम बातचीत शुरू करें इसके पहले आप दोनों अपना कलेजा मजबूत कर लें...” एक क्षण रुक कर वह फिर बोले, “देखिए ये केस बहुत जटिल था। मैंने अपने बीस साल के कार्यकाल में ऐसा केस नहीं देखा। आप पिछले आठ-दस दिनों से पेशेंट को दस-दस घंटे भूखा-प्यासा रख कर होम-हवन करने के लिए बिठाते थे। इसका मतलब आपको समझ में आता भी है?”

“पर हुआ क्या डॉक्टर साहब?” रणछोड़ दास से रहा नहीं गया। डॉक्टर ने उसकी ओर देखा। “आप तो थोड़ा पढ़े-लिखे दिखाई देते हैं...अपनी बुद्धि न चलती हो तो कम से कम किसी की सलाह ही ले लेनी चाहिए...। ”

शांति बहन ने व्यथित होकर पूछा, “कम से कम ये तो बताएं सुरक्षित....”

डॉक्टर ने व्यंग्य और क्रोध भरे स्वर में कहा, “सुरक्षित? हम कैसे सुरक्षित रखें? आप लोग ऐसी हालत में पेशेंट को हमारे पास लेकर आएं और सबकुछ हमारे ऊपर सौंप देंगे...बड़ी कोशिशों के बाद मैंने पेशेंट को मौत के जबड़े से खींचकर बाहर निकाला है। इसको मेरी सफलता नहीं ईश्वर का आशीर्वाद समझें।”

डॉक्टर के इस वाक्य से दोनों को जरा भी खुशी नहीं हुई, बल्कि दोनों मन ही मन चिंतित होने लगे। “यशोदा बच गई...मतलब..बच्चा...? ”

डॉक्टर लगभग चिल्लाते हुए बोले, “मां के बचने की आपको जरा भी खुशी नहीं है? मैंने आपको पहले ही बता दिया था कि दोनों में से एक को ही बचाया जा सकेगा।” रणछोड़ दास के तो शरीर से मानो सारी शक्ति ही निकल गई। शांति बहन ने माथे पर हाथ मारा।

डॉक्टर ने टेबल पर रखा हुआ पानी का गिलास उठाकर एक घूंट पानी लिया। गला साफ किया। बाद में रणछोड़ दास का हाथ पकड़कर बोले, “इसे चाहें तो चमत्कार ही समझें...लेकिन बच्चा भी बच गया है...जरा जल्दी जन्म हो गया इसलिए थोड़ा कमजोर है...कुछ दिन इन्क्यूबेटर में रखना होगा...” दोनों को ही अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था। रणछोड़ दास जैसे-जैसे इतना ही बोल पाया, “ बच्चा भी बच गया है, आपने ऐसा ही कहा न?”

शांति बहन तो उठकर डॉक्टर के पैरों के पास ही जा बैठी। “आप ही हमारे भगवान हैं...” दो कदम पीछे सरकते हुए डॉक्टर अवाक खड़े हो गए। “हे भगवान, मां के बचने का जरा भी आनंद नहीं है इन दोनों मां-बेटे को...लेकिन बच्चे के बचने की इतनी खुशी?”

रणछोड़ दास उठा, “डॉक्टर साहब, मैं मिठाई लेकर आता हूं। पूरे अस्पताल का मुंह मीठा करवाना है मुझको...”

डॉक्टर ने उनको रोका, “जरूर करवाइएगा। लेकिन पहले मैं जो बता रहा हूं उसे ध्यान देकर सुनिए। पेशेंट को अभी बहुत कमजोरी है। उसे जरा भी शारीरिक या फिर मानसिक कष्ट न होने पाए, इसकी खास चिंता करनी होगी। दवाइयों के साथ-साथ उसे फल, दूध भी नियमित रूप से देने की आवश्यकता है।” शांति बहन ने हाथ जोड़कर आश्वासन दिया, “आप चिंता न करें। मैं अपनी बहू को फूल की तरह संभालूंगी। ये तो मेरी बेटी है ...बेटी।”

डॉक्टर बुदबुदाए, “वो तो मुझे दिख ही गया...” और फिर वह आगे बोले, “सिजेरियन ऑपरेशन किया गया है। बहुत मुश्किल था। बहुत कमजोर मां और विचित्र स्थिति में फंसा हुआ बच्चा....इसके कारण उलझन हो गई थी। पेशेंट को रक्तस्राव भी बहुत हुआ है। उसे महीना भर पूरे आराम की जरूरत है। उसके बाद भी यदि उसे ठीक लगा तो ही घूमने-फिरने दें। और हां, तबीयत में जरा भी कम-ज्यादा हो तो किसी बाबा-वाबा को मत बुलाइएगा। आपका वो होम उसकी चिता में बदलते-बदलते बचा। सीधे यहां आइएगा। और हां, पेशेंट बच गया ये तो ईश्वर की ही कृपा है। उसने सच्चे मन से भगवान को याद किया होगा...नहीं तो इतनी मुश्किल स्थिति में मां और बच्चा-दोनों का बचना असंभव ही था। आप लोग भाग्यवान हैं कि आपके घर में खुशियां देने वाली इतनी स्वस्थ बेटी का जन्म हुआ है... बिलकुल लक्ष्मी जैसी है....लक्ष्मी जैसी... ”

“लक्ष्मी...मतलब बेटी हुई है क्या...?” शांति बहन जैसे-जैसे बोल पाईं।

“हां...बेटी...एकदम सुंदर और स्वस्थ...कुछ ही दिनों बाद वह अपनी आवाज से पूरे घर भर को सिर पर उठा लेगी, देखते रहिए...।”

रणछोड़ दास मशीनवत वहां से निकल गया। डॉक्टर बोले,“अस्पताल के सामने की ही गली में मिठाई की दुकान है।” लेकिन ये वाक्य रणछोड़ दास के कान पर पड़ा ही नहीं।

हवा निकल चुके फुग्गे जैसी स्थिति हो चुकी शांति बहन की ओर देखकर डॉक्टर ने कहा, “और हां, पेशेंट अब दोबारा कभी मां नहीं बन सकेगी।”

अनुवादक: यामिनी रामपल्लीवार

© प्रफुल शाह