प्रकरण 20
डॉक्टरों की बात सुनकर रणछोड़ दास, शांति बहन और जयश्री-तीनों ही स्तब्ध रह गए। शांति बहन का चेहरा उतर गया। आंखों से आंसू बहते इसके पहले ही वह किनारे पड़े हुए पलंग पर जाकर बैठ गईं। जयश्री खिड़की के पास जाकर खड़ी हो गई। रणछोड़ दास डॉक्टरों के पीछे-पीछे गया। “डॉक्टर साहब, मेरे बेटे को बचाइए। खर्च की चिंता मत कीजिए। तुरंत पैसे देता हूं।” डॉक्टर सोच में पड़ गए, “लड़का है या लड़की ये तो ऊपर वाला ही जानता है लेकिन इसको अपने बेटे को बचाना है। पत्नी की जान की इसको कोई चिंता भी नहीं और कीमत भी नहीं दिखती।”
डॉक्टर कुछ न कहते हुए ऑपरेशन थिएटर की ओर निकल गए।
ऑपरेशन थिएटर के दरवाजे पर लगी लाल लाइट देखकर शांति बहन ने दोनों हाथ जोड़े, “मेरे कृष्ण को बचाना भगवान...51 कुमारिकाओं को भोजन करवाऊंगी। मेरे कृष्ण को बचाना। ”
खिड़की के पास खड़ी जयश्री ने अपने हाथ में रखा चॉकलेट खाकर खत्म किया और चॉकलेट का कागज खिड़की के बाहर खड़े पेड़ पर फेंक दिया। उसकी आवाज से दो पक्षी उड़ गए। जयश्री मन ही मन में बड़बड़ाई, “ऐसा ही होना चाहिए, न रहेगी नई मां, न उसका कृष्ण...इस घर में केवल मेरा ही राज रहेगा..सारा लाड़-दुलार मेरा ही होगा...मेरी अकेली का...”
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“अकेली कुछ नहीं खाऊंगी, अकेली कहीं नहीं जाऊंगी...अब सभी चीजों में दो हिस्से करूंगी...बड़ा भाग मेरी गुड़िया का..और छोटा मेरा।” केतकी अपने खिलौने की गुड़िया से बात कर रही थी। लखीमां उसके पीछे खड़ी होकर उसके संवाद को न जाने कब से सुन रही थीं। “और यदि गुड़िया जिद कर बैठी कि उसे आधा नहीं, पूरा हिस्सा चाहिए तो क्या करेंगे केतकी?”
“तो पूरा दे देंगे...वो खुश, तो मैं खुश।”
लखीमा ने दोनों हाथ जोड़ लिये। “भोलेनाथ तुम्हारा यह प्रसाद भी तुम्हारी ही तरह भोला है...एकदम अपनी मां पर गई है...भगवान, मेरी यशोदा की रक्षा करना..उसके बच्चे का ख्याल रखना...”
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“भोलेनाथ पर विश्वास रखें।” गांव के एक नौजवान और होशियार शिक्षक आशुतोष रामपरिया का हाथ देखते-देखते प्रभुदास बापू बोले।
आशुतोष एक बहुत अच्छा विज्ञान शिक्षक था। उसने उदास होकर प्रश्न किया, “बापू, पत्नी गर्भवती है लेकिन केस उलझ गया है। डॉक्टरों ने कहा है कि वह इसके बाद मां नहीं बन सकेगी। जिद से अगर मां बनने गई तो मुश्किल में पड़ जाएगी। ”
प्रभुदास बापू ने भोलेनाथ की तरफ देखा। आंखें बंद कीं, “बेटा आशु, बहू को कुछ नहीं होगा। और हां, तुम्हारे भाग्य में एक बेटा और एक बेटी है...”
“पर बापू, ऐसा कैसे संभव है, दूसरा प्रसव तो संभव ही नहीं?”
“वो तो मेरे भोलेनाथ ही जानें। आप दुःखी मत होइए। वह कैलाश पर्वत से आपको आशीर्वाद देता रहेगा।”
आशुतोष ने जेब से पचास रुपए का नोट निकाला, “न मत कहिएगा बापू, ये केतकी की मिठाई के लिए दे रहा हूं।”
“उसको मिठाई देने के लिए भोलेनाथ बैठा है न...जाओ, गाय को चारा या फिर पक्षियों को दाना खिला देना इन पैसों से।”
“ठीक है, वह भी करूंगा...लेकिन आप ये पैसे ले लें तो मुझे अच्छा लगेगा।”
“बेटा, यह विद्या सिखाने से पहले ही मेरे गुरु ने मुझ पर दो शर्तें लगाई थीं...पैसे लेकर भविष्य मत बताना...और अपने परिवार के लोगों का भविष्य उनको मत बताना।”
“कमाल है बापू...यशोदा बहन बहुत तकलीफ में हैं, ऐसा सुना है...आप तो सब जानते होंगे, घर वालों को कितनी चिंता...”
“कैलाश पर्वत पर बैठा भोलेनाथ यदि खुद ही ध्यान रख रहा हो तो हम क्यों चिंता करें...?”
“सुना है कि परिवार में दो बेटियां हैं...केतकी और जयश्री। इसलिए अब सबको लड़के की इच्छा होना स्वाभाविक है। हे भोलेनाथ, यशोदाबहन को सुखी रखना और उसको स्वस्थ बेटा होने देना।”
यह सुनकर प्रभुदास धीमे से मुस्कुराए. “भोलेनाथ के पास सिफारिश नहीं चलती बेटा। बहूरानी को बताना कि दर्द शुरू होते ही भोलेनाथ का स्मरण चालू कर दे।” आशुतोष उनको प्रणाम करके उठ गया। स्वयं को सबकुछ पता होते हुए भी जो व्यक्ति अपने ही लोगों को बता नहीं सकता, यह कितना पीड़ादायी है। खुशी हो तो उसे भी मन में रखना है..लेकिन मेरी पत्नी को तो एक ही प्रसूति संभव है, ये तो कह रहे हैं कि मेरे भाग्य में बेटा और बेटी दोनों हैं...कुछ समझ में नहीं आता...
तभी आशुतोष का भाई नलिन दौड़ते हुए आता दिखाई दिया। उसको ऐसे भागते हुए देखा तो आशुतोष के तो पैर में बल ही नहीं रहा। क्या हो हुआ होगा?
नलिन ने पास आते ही आशुतोष के दोनों हाथ पकड़ लिए। सांस फूल गई थी, उन पर जैसे-तैसे नियंत्रण रखते हुए बोला, “खुशखबरी है भाई...भाभी को जुड़वा बच्चे होने वाले हैं। लेकिन...”
“लेकिन क्या?”
“डॉक्टर कहते हैं भीतर उलझन के कारण जुड़वां होंगे तो समस्या बढ़ सकती है।”
“जुड़वां हैं? जुड़वां?”
“हां पर, उलझन है...”
“कुछ नहीं होगा...जाओ, तुम तैयारी में लग जाओ...तुरंत।”
“काहे की तैयारी भाई?”
“अपने भतीजे-भतीजी को खिलाने की...”इतना कहकर आशुतोष फिर से पीछे मुड़ा।
“भाई कहां जा रहे हो?”
“मंदिर में जाकर भगवान भोलेनाथ का धन्यवाद देकर और एक सच्चे पंडित को साष्टांग दंडवत करके आता हूं। ”
ये विज्ञान पढ़ाने वाला ही भाई है न? हमेशा विज्ञान और तर्कशास्त्र की बात करना वाला भाई ? वह एकटक उसको देखता ही रहा...
शांति बहन बार-बार दोहरा रही थीं, बिनती कर रह थीं। “मेरे कृष्ण को बचाओ..मेरे कृष्ण की रक्षा करो...बालकृष्ण का मुंह देखने के बाद ही पानी पीऊंगी...बालकृष्ण एक महीने का हो जाए तो 21 ब्राह्मणों को भोजन कराऊंगी। मेरे बालकृष्ण को....” रणछोड़ दास के दिमाग में ही विचार चल रहे थे। “बेटे का मुंह देखते ही दस हजार रुपए उसके नाम से बैंक में डाल दिए जाएं। हर साल उसके लिए एक-दो तोला सोना और जैसी स्थिति हो वैसी जमीन खरीद करके रखनी होगी। बड़ा होने पर उसके पास इतनी संपत्ति होनी चाहिए कि पढ़ाई वढ़ाई न करे तो भी मजे में रह सके। उसे जिंदगी भर सुख में रखना है। आखिर उसी के लिए तो ये गधे की तरह मेहनत कर रहा हूं न? उसको इस तरह बड़ा करूंगा कि जो देखेगा वही कहेगा वो देखो रणछोड़ दास का राजकुमार जा रहा है।” अचानक रणछोड़ दास के ध्यान में आया कि ऑपरेशन थिएटर के दरवाजे पर लगी लाल बत्ती बुझ गई है। वह एकदम से उठ खड़ा हुआ। भगवान को रिश्वत दे रही मां को हिलाया। शांति बहन ने देखा कि ऑपरेशन थिएटर का दरवाजा खुल तो गया है लेकिन उसमें से कोई भी बाहर नहीं आया। हर पल की प्रतीक्षा मन के डर को बढ़ा रही थी। तभी डॉक्टर बाहर आए। उनके चेहरे पर कोई भाव नहीं था। मां-बेटे दोनों की एक ही चिंता थी-बेटे को कहीं कुछ हुआ तो नहीं होगा?
अनुवादक: यामिनी रामपल्लीवार
© प्रफुल शाह