अग्निजा - 68 Praful Shah द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अग्निजा - 68

प्रकरण-68

ठीक अठारहवें दिन जीतू केतकी की शाला के गेट के पास दिखाई दिया। आवाज में बड़ी विनम्रता लाते हुए बोला, “कैसी हो? एक काम था। शाम को मिलोगी?” केतकी ने हां कहा। तभी शाला की घंटी बज गयी। केतकी दुविधा में पड़ गयी, लेकिन जीतू ने ही कहा, “तुम जाओ। मैं शाम को यहीं मिलूंगा।”

केतकी दिन भर विचार करती रही कि जीतू इतना नरम कैसे हो गया? ये तूफान के पहले की शांति तो नहीं? क्या काम होगा? सगाई तो नहीं तोड़नी? कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था। बीच में इतने दिनों तक जीतू ने मुझसे बात नहीं की थी, तो क्या इतने दिनों तक ये बातें घर में नहीं बताई होंगी, या फिर उसकी मां ने भिखाभा और रणछोड़ दास को ये बातें नहीं बताई होंगी? शाम को जीतू समय पर शाला के पास पहुंच गया। उसके मुंह में गुटका नहीं था। कपड़े भी ठीक ठाक पहन कर आया था। क्या वास्तव में वह बदल गया, या उसे भ्रम हो रहा है?

जीतू ने केतकी को स्कूटी शाला में रखने के लिए कहा और उसने रिक्शे को हाथ दिया। रिक्शा दक्खन सेंटर की ओर मोड़ने के लिए कहा। भावना ने एक बार जीतू को बताया था कि केतकी दीदी को साउथ इंडियन डिशेज बहुत पसंद हैं और दक्खन सेंटर उसकी पसंदीदा जगह है। केतकी को सुखद आश्चर्य हुआ, “आप यहां बैठेंगे?”

“मैं नहीं, हम दोनों...तुमको यह होटल बहुत पसंद है न...? दोनों अंदर जाकर बैठ गए। जीतू ने मसाला दोसा का ऑर्डर दिया। एक बार इसी जीतू ने कहा था कि दोसा वोसा मुझे पसंद नहीं है...” वेटर के जाने के बाद केतकी जीतू की तरफ देखती रही। जीतू ने धीरे से अपना हाथ उसके हाथ पर रख दिया। “देखो, मुझमें बहुत समझ नहीं है, और मैं अधिक पढ़ा-लिखा भी नहीं हूं। पढ़ाई छोड़ने के बाद आज तक किसी भी किताब को हाथ नहीं लगाया है। मेरे सारे यार-दोस्त भी मेरे जैसे ही हैं। मैं जानता हूं कि मैं मूर्ख हूं, तुम्हारे लायक नहीं।”

केतकी ने प्रेम भरे शब्दों में कहा, “नहीं, नहीं...ऐसी बात नही है..”

“देखो, मैं समझ रहा हूं कि मैंने तुम्हारे साथ ठीक व्यवहार नहीं किया है। सच कहूं तो तुमको अपना मुंह कैसे दिखाऊं, इसी विचार से मैं इतने दिनों तक तुमसे मिलने नहीं आया...हिम्मत ही नहीं हो रही थी...आई ने मुझे समझाया कि केतकी बहुत अच्छी लड़की है, समझदार है। तुम उसके साथ खुले मन से बात करो। अभी भी कोई देर नहीं हुई है। यदि तुम माफ कर दोगी तो...” जीतू ने उसके सामने हाथ जोड़ लिये।

“अरे, इसमें माफी मांगने की कोई आवश्यकता नहीं। हम दोनों के लालन-पालन और पढ़ाई-लिखाई में फर्क है। ये फर्क तो रहने ही वाला है। इनमें से मतभेद भी निकलेंगे। सच कहूं तो मुझे ही समझ में नहीं आ रहा था कि हर मुलाकात में हमारे बीच वादविवाद क्यों होता है? मैं जो हूं, ऐसी ही हूं। मैं अपने भीतर थोड़ा-बहुत परिवर्तन कर पाऊंगी लेकिन अपना पूरा व्यक्तित्व कैसे बदल पाऊंगी?”

“नहीं, नहीं..तुम्हें बदलने की जरूरत नहीं। तुम जैसी हो, वैसी ही अच्छी हो। बदलने की आवश्यकता तो मुझे है। तुम मेरे साथ रहोगी तो मैं कर पाऊंगा।” दोसा खत्म होने के बाद जीतू ने इडली मंगवाई।

“ये देखो, पहली शुरुआत। आज से तुम्हारी पसंद की डिशेज खाना शुरू। अब पंजाबी डिशेज को हाथ भी नहीं लगाऊंगा।”

“अरे, ऐसा थोड़े ही होता है कहीं। मैं भी पंजाबी डिशेज खाती हूं लेकिन उस दिन उसमें कुछ ज्यादा ही मिर्च थी। हो सकता है उस दिन मेरा समय अच्छा नहीं होगा। सब कुछ उल्टापुल्टा हो रहा था।”

“अब पुरानी बातें नहीं करनी हैं। अब मेरी लगाम तुम्हारे हाथों में है, तुम जिधर कहोगी मैं उस तरफ जाऊंगा।”

“ऐसा नहीं होता। आपका  अपना स्वतंत्र व्यक्तित्व है। आपको मेरी तरह बनने की कोई जरूरत नहीं। ”

बाहर निकलने के बाद जीतू ने बिनती की, “मैं तुमको एक बढ़िया पान खिलाना चाहता हूं, खाओगी?” केतकी मना नहीं कर पाई। जीतू ने दो बढ़िया मघई पान बनवाये।

केतकी ने पूछा, “आपका तो गुटके वाला होगा न?”

“गुटका छोड़ दिया मैंने...और पान की लत भी नहीं लगानी है मुझे...” लेकिन केतकी ने सुना नहीं और एक पान उसके मुंह में रख दिया।

उसके बाद उसने रिक्शा रुकवाया और उसको उपाध्याय मैडम के घर लेकर गया। “मुझे उनसे नजरें मिलाने में शर्म आएगी, और मेरा काम भी इसी तरफ है। एक उधारी वसूलना है। मैं आधे घंटे में यहीं लौट कर आता हूं। तब तक तुम अपनी मैडम से मिल लो...तुमको ठीक लगता हो तो उनसे मेरी तरफ से माफी भी मांग लेना।” जीतू निकल गया और केतकी बड़ी देर तक उसके जाने की दिशा की तरफ देखती रही।

केतकी को अचानक देख कर उपाध्याय मैडम को पहले तो चिंता हुई, लेकिन कारण जानने के बाद खुशी हुई, “अरे, मुझसे माफी मांगने की कोई जरूरत नहीं। तुम तो मेरी बेटी की तरह हो, वह भी मेरा बेटा ही हुआ न।” दोनों ने इधर-उधर की खूब बातें कीं। बीस-पच्चीस मिनट बाद केतकी को ध्यान में आया कि उसे अब निकलना चाहिए। वह खुशी से उठी और उपाध्याय मैडम की अनुमति लेकर बाहर निकल आई। उपाध्याय मैडम सोच में पड़ गईं कि किसी भी व्यक्ति में अचानक इतना बदलाव कैसे आ सकता है? वह भी इतने कम समय में? खैर, इसमें यदि केतकी का भला हो रहा हो, तो हमें अधिक दिमाग लगाने की जरूरत नहीं।

केतकी वहां से बाहर निकली तो जीतू हाथ में एक बड़ा सा पैकेट लिये खड़ा दिखाई दिया। रिक्शा केतकी के घर की तरफ मुड़ गया। जीतू रास्ते भर अपनी गलतियों की माफी मांगता रहा। केतकी को पूरी आजादी का आश्वासन देता रहा। रिक्शा जैसे ही घर के पास पहुंचा उसने घर में आने की इच्छा जताई। यही आदमी कुछ दिन पहले कह रहा था, “लड़की को घुमाने-फिराने ले जाना मौज मस्ती करना और फिर उसके घर जाकर घरवालों को परेशान करना मुझे पसंद नहीं।”

भीतर आकर जीतू ने रणछोड़, शांति बहन को प्रणाम किया। केतकी से कह कर यशोदा को बाहर बुलवाया और उसे भी प्रणाम किया। भावना को देखते ही हंस कर बोला, “साली साहिबा...ये आपके लिए...आइसक्रीम रह गई थी न...? अब साथ आएंगी तो खूब मौज करेंगे, ठीक है न...?”

भावना ने सबके सामने ही खुद को चिकोटी काटी। जीतू हंसा... “नहीं, सपना नहीं है...”जीतू वापस जाने को निकला, तो भावना ने उसका हाथ पकड़कर उसे बिठाया, “रुकिए, पांच मिनट...मैं आती हूं...” आइसक्रीम का पैकेट लेकर वह अंदर भागी। मौका देख कर शांति बहन ने पूछ लिया, “मीना बहन कैसी हैं? मैं और रणछोड़ उनसे मिलने के लिए आना चाहते हैं। आगे क्या करना है ये पूछना है।”

“आप अपनी सुविधा से कभी भी आ जाएं। लेकिन कोई चिंता न करें। मैं खुद ही इन आठ-दस दिनों के भीतर मां से पूछ कर आप सभी लोगों को भोजन का निमंत्रण देता हूं।” रणछोड़ को ऐसा लगा कि उसके सिर से एक बड़ा बोझ उतर गया हो। वह बोला, “हां, वैसे कोई जल्दी नहीं है। जो कुछ भी है आप आठ-दस दिनों में तय कर लें। ”

केतकी दो बाउल में आइसक्रीम लेकर आ गई। केतकी को जीतू के पास बिठाकर उसने दोनों के हाथों में बाउल दे दिए। जीतू आइसक्रीम का चम्मच अपने मुंह में डालने ही वाला था कि भावना ने उसका हाथ पकड़ कर रोक लिया। उसने वह चम्मच अपने हाथों से जीतू के मुंह में रखा। जीतू ने हंस कर चम्मच मुंह में रख लिया। उसके बाद केतकी के बाउल में से चम्मच में आइसक्रीम लेकर उसने भावना को खिलाया। यह सब दूर खड़े होकर देख रही यशोदा की आंखों में खुशी के आंसू छलक उठे। जीतू ने सबसे विदा ली तो सभी खुश थे। एक ही मौके पर परिवार के सभी लोग खुश हों, शायद यह पहला ही मौका होगा। सभी खुश थे, सबके कारण अलग-अलग थे।

केतकी के घर के सामने के पब्लिक बूथ से जीतू ने फोन घुमाया, “पव्या, मेरा पक्का समझ...हां हां हां, उसको पटा लिया है...साथ ही उसके घर वालों को भी...फोन रखो...मिलकर बाकी बातें करेंगे। ”

 

अनुवादक: यामिनी रामपल्लीवार

© प्रफुल शाह

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