अग्निजा - 69 Praful Shah द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अग्निजा - 69

प्रकरण-69

अब जीतू ने रोज ही केतकी से शाला में आकर मिलना शुरू कर दिया था। उसके पास समय है क्या, यह पूछ कर शाम को घूमने का कार्यक्रम तय करने लगा। केतकी को लगता था कि ये दिन वापस नहीं लौटने वाले। इसलिए उसने अपने टयूशन, बच्चों को निःशुल्क मार्गदर्सन आदि के समय में बदलाव कर लिया। जीतू के साथ समय बिताना उसे भी अच्छा लगने लगा था। ये वही आदमी है क्या? ये कोई सपना तो नहीं, या जो पहले देखा वह कोई बुरा सपना था?

जीतू ने केतकी को एक अच्छा सा गॉगल भेंट किया। एक शनिवार को कसम दिलाई कि कल साड़ी के साथ स्लीवलेस ब्लाउज पहन कर आए। केतकी की पसंद का सिनेमा देखा गया। बिना किसी ढोंग के बिना समोसे, गुटका खाए चुपचाप सिनेमा का आनंद लिया गया। उसकी वजह से इतना अच्छा सिनेमा देख पाया, इसके लिए उसने केतकी को धन्यवाद भी दिया। उसका एक दोस्त मुंबई से आने वाला था। उसके हाथों केतकी के लिए एक अच्छा ड्रेस मटेरियल मंगवाया। सगाई को एक महीना होने पर केतकी को कुछ अच्छी किताबें भेंट कीं। केतकी की खुशी आसमान में नहीं समा रही थीं।

यशोदा के मन को इस बात का संतोष था कि केतकी के नसीब में उसकी तरह दुःख नहीं हैं। दामाद बहुत अच्छा, समझदार और स्नेही है। यशोदा को लगा कि जिन बातों के लिए मैं तरसती रह गई, वे बातें केतकी को अंजुरी भर-भर के मिल रही हैं। प्रेम, साथ, ऊष्मा, विश्वास। एक बार जीतू केतकी के साथ तारिका को भी अपने साथ आग्रहपूर्वक ले गया। तीनों जब जगह पर साथ खा-पी रहे थे तब उसने जीतू ने खुले मन से तारिका से कहा कि उसने शुरु में बड़ी गलतियां की हैं जिसके कारण केतकी को बड़ी परेशानी भी हुई लेकिन उस समय आपने ही उसे साथ दिया। इसके लिए आपको किन शब्दों में धन्यवाद दूं समझ में नहीं आता।

केतकी को अब पूरा भरोसा हो गया था कि उसका बुरा वक्त अब खत्म हो गया है। मायके की परेशानियों से मुक्ति के लिए उसने जो अंधा फैसला लिया था, उसमें उसके हाथ तीन-तीन एक्के लगेंगे, उसने सपने में भी विचार नहीं किया था। जीतू जैसा अच्छासाथी मिला। भगवान शंकर ने भले ही केतकी के फूल को शाप दिया हो कि साल में एक बार ही उसे महत्व दिया जाएगा, लेकिन उसके तिरस्कार के दिन अब समाप्त होने को हैं। अब कम से कम एक व्यक्ति को तो मेरी रोज याद आती है। मेरी जरूरत महसूस होती है। जीतू ने मेरे अस्तित्व को सार्थकता प्रदान की है। उसका प्रेम, उसका साथ जल्दी ही मेरे पुराने जख्मों को भर देगा। जल्दी ही अब तक के अपने जीवन को एक दुःस्वप्न समझ कर भूल जाऊंगी।

केतकी के लिए जीवन अब वेदना, अत्याचार, अन्याय या अपमान नहीं रह गया था, बल्कि एक प्रेम कथा बन गया था। सपना पूरा हो गया था। उसे लग रहा था कि यदि ये सपना होगा तो मुझे इसमें से कभी भी बाहर नहीं निकलना है। इतना मधुर, सुखद स्वप्न हो तो नींद में ही ये जीवन समाप्त हो जाए तो भी कोई एतराज नहीं।

तारिका को लगा कि केतकी किसी फूल की भांति दिनोंदिन खिलती जा रही है। कीर्ति चंदाराणा ने भी महसूस किया कि एक अच्छी शिक्षिका ने अपने जीवन के लिए एक अच्छा जीवनसाथी चुना है। प्रसन्न शर्मा को भी अच्छा लगा, लेकिन इच्छा होकर भी वह खुश नहीं हो पाए। उनके दिल पर मानो सुई चुभो दी गई हो। इसके कारण उनका मन रक्तरंजित हो रहा था। तारिका और प्रसन्न ने तय किया कि वे दोनों मिल कर केतकी और जीतू को कहीं अच्छी सी पार्टी देंगे।

प्रिंसिपल मेहता को लग रहा था कि उनकी उम्र और अनुभव अधिक है इस लिए ठीक है, वरना इस होशियार लड़की ने तो उनकी कुर्सी पर ही कब्जा जमा लिया होता। जीवन में पहली बार उन्हें किसी के काम की प्रति निष्ठा, सफलता, क्षमता और होशियारी से असुरक्षा महसूस हुई और ईर्ष्या भी।

सगाई को करीब-करीब दो महीने हो चुके थे। एक दिन जीतू सुबह शाला में नहीं आया। ये कोई बहुत बड़ी बात नहीं थी लेकिन फिर भी केतकी उदास हो गई। दिन भर उसको कुछ कमी महसूस होती रही। शाम को शाला छूटते ही वह अनजाने ही जल्दी जल्दी शाला के गेट के पास आई तो जीतू सामने खड़ा था। उसको देख कर केतकी को लगा कि वे लोग न जाने कितने समय बाद मिल रहे हैं। दोनों रिक्शे में बैठे। केतकी को जीतू का मूड आज कुछ अलग ही लग रहा था। कुछ बोल नहीं रहा था, हंस नहीं रहा था..प्रेम की बातें भी नहीं कर रहा था। केतकी को डर लगा कि ऐसा क्या हो गया कि आज मेरा जीतू इतना बेचैन दिख रहा है।

“आपकी तबीयत तो ठीक है न?”

“हां।”

“घर पर सब ठीक हैं न?”

“हां।”

“कोई टेंशन है क्या?”

“तुम कितनी समझदार हो, मुझे देखते ही समझ गयी कि कुछ तो गड़बड़ है।”

“वो तो स्वाभाविक ही है..हुआ क्या है, जल्दी बताइए। ”

“कहीं शांति से बैठ कर बातें करते हैं।”

दोनों दक्खन सेंटर में दाखिल हुए। जीतू ने एक मसाला दोसा मंगवाया। केतकी को आश्चर्य हुआ। जीतू ने कहा उसे भूख नहीं है। इसे देख कर केतकी को बुरा लगा, “टेंशन यदि इतना भारी है कि आपके खाने की इच्छा ही मर गई है तो मुझे भी नहीं खाना...ऑर्डर कैंसल करें...हम कहीं और जाकर बैठेंगे।”

जीतू ने वेटर को बुला कर कहा, “भाई, दो मसाला दोसा लेकर आओ।”

केतकी को अच्छा लगा, “चलिए, अब कृपा करके जल्दी से बताइए, हुआ क्या है?”

“मेरे मित्र पव्या से तुम मिली थीं न, याद है?”

“थिएटर के बाहर मिला था, वही न?”

“हां, वही...ब्लैक मार्केट करने वाला...उसका मामा इस्टेट एजेंट है। उनकी अपनी बहुत बड़ी जमीन है। उस जमीन पर वह निर्माण काम करने वाला है। उसको जमीन के बदले में दस फ्लैट मिलने वाले हैं।”

“बड़ी अच्छी बात है ये तो...लेकिन आपको इसमें टेंशन आने जैसी क्या बात है?”

“सुनो तो सही...फ्लैट रेडी हैं लेकिन बिल्डर के सारे फ्लैट बिक गए, और मामा ने किसी से बेचने की बात की नहीं। अब मामा के बेटी की शादी तय हो गई है। अब उनको फ्लैट बेचने की जल्दी है। छह लाख के फ्लैट वह चार लाख में बेच रहा है...”

“समझ लिया, पर अब इसमें आपको क्यों टेंशन है...?”

“देखो केतकी, पव्या उसमें से एक फ्लैट खरीद रहा है। वह मेरे पीछे पड़ा है कि एक मैं भी खरीदूं। वैसे भी हम लोग अभी किराये के मकान में रह रहे हैं। वहां की बस्ती भी बहुत अच्छी नहीं है। शादी के बाद तुम उस जगह पर रहने के लिए आओ, मेरी इच्छा नहीं है। पर कोई उपाय नहीं था, लेकिन अब मौका मिला है, लेकिन... ”

“लेकिन क्या...? समस्या क्या है?”

“मां के नाम का एक फिक्स्ड डिपॉजिट है, लेकिन दस-ग्यारह महीने बाद उसमें से पैसे मिलेंगे। उसके दो लाख मिलेंगे..”

“तो आपने क्या विचार किया है?”

“देखो, यदि तुम गलत न समझो तो बताता हूं...”

“नहीं, बिलकुल नहीं...आप बिना संकोच बोलें...”

“ यदि तुम अभी अपने पिता से कह कर चार लाख रुपए दिलवा दो तो यह घर से हाथ से नहीं निकलेगा। मां के दो लाख आते साथ मैं वह दे दूंगा। बाकी थोड़े-थोड़े करके चुका दूंगा। ऐसा घर फिर नहीं मिल पाएगा। वह भी इतने कम रेट पर। मेरे जैसे इतनी कम कमाई वालों ने अपने घर का सपना देखना ही नहीं चाहिए...लेकिन शायद तुम्हारे अच्छे कदमों से यह मौका हाथ में आ रहा है। वरना मेरे जैसे लोग तो जिस जगह जन्म लेते हैं, वहीं मर जाते हैं। दो वक्त के खाने की चिंता में ही सारा जीवन बीत जाता है।”

इतना कह कर जीतू एकदम निराश हो गया। किसी मर्द का यह रूप केतकी के लिए बिल्कुल अनोखा था। उसने प्रेम से जीतू का हाथ पकड़ा और कहा, “हिम्मत मत हारिए...मैं अवश्य प्रयास करूंगी।

अनुवादक: यामिनी रामपल्लीवार

© प्रफुल शाह

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