अग्निजा - 98 Praful Shah द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अग्निजा - 98

लेखक: प्रफुल शाह

प्रकरण-98

सुबह उठने के बाद केतकी बाथरूम में मुंह धो रही थी तब चार्जर खोजने भावना उसके कमरे में आयी। उसे बहुत जम्हाइयां आ रही थीं। अंबाजी जाने के लिए शांति बहन, रणछोड़ और जयश्री बहुत सुबह उठ गये थे। हल्ला मचा कर उन्होंने सभी की नींद उड़ा दी थी। चार्जर कहीं दिखाई नहीं दे रहा था इसलिए भावना ने केतकी के टेबल के नीचे की दराज खोली। वहां रखी हुई दवाइयां देख कर भावना स्तब्ध रह गयी। उसने दवाइयों की थैली उठाई और जल्दी से कमरे से बाहर निकल गयी।

दूसरे कमरे तक पहुंचते-पहुंचते भावना को पसीना आ गया। कमरे में पहुंचने के बाद वह धड़ाम से नीचे बैठ गयी। उसने थैली में हाथ डाला। फिर थैली को बिस्तर पर उलट दिया। उसमें चूहे मारने के जहर की दो बोतलें और खटमल मारने की दवा की दो बोतलें थीं। लेकिन घर में चूहे या खटमल हैं कहां? भावना को रोना आ गया। बाहर से यशोदा की आवाज सुनते ही उसने चारों बोतलें थैली के अंदर रख दीं और बाहर निकल कर आयी। उसका उतरा हुआ चेहरा देख कर यशोदा को आश्चर्य हुआ कि सुबह-सुबह इस लड़की को क्या हो गया। उसने भावना के पास जाकर उसके गले, माथे पर हाथ रख कर देखा, बुखार नहीं है जान कर उसे अच्छा लगा।

‘मां, तुम हम दोनों का चाय-नाश्ता निकालो, मैं दीदी को लेकर आती हूं।’

भावना जब अंदर गयी तो केतकी तैयार हो चुकी थी। भावना उसके गले से लग गयी। केतकी हंसी। ‘हां, हां...इडली मस्त बनी थी...रात को खाते समय तारीफ करना भूल गयी थी। रात भर पेट में दर्द होता रहा। मेरा आशीर्वाद हमेशा तुम्हारे साथ है। वो हिंदी में क्या कहते हैं...तुमको हमारी उमर लग जाए...’

‘ये सब छोड़ो...एक सरप्राइज प्लान किया है, तुम्हारी मदद चाहिए।’

जाहिर है, केतकी को उसके प्लान में कोई रुचि नहीं थी। ‘नहीं, नहीं...मैं किसी गाने वाने के कार्यक्रम में नहीं जाने वाली और डिनर में भी नहीं जाने वाली।’

‘अरे, कहीं नहीं जाना है। कल मां का जन्म दिन है। घर में हम तीनों ही हैं। तुम मां की पसंद का खाना बनाना या फिर हम लोग बाहर जाएंगे। मैं रात को नौ बजे केक ले आऊंगी। मैं बाहर से तुमको मिस कॉल दूंगी तब तुम किसी बहाने से घर के सारे लाइट बंद कर देना। फिर मैं केक और गिफ्ट लेकर अंदर आऊंगी। गिफ्ट देख कर तुम दोनों को बहुत आश्चर्य होगा। ऐसा गिफ्ट कभी किसी ने किसी को नहीं दिया होगा। ’

‘वाह...ऐसा क्या गिफ्ट लाने वाली हो?’

‘देख कर मजा आयेगा। तुम्हारे मुंह आश्चर्य से खुले रह जाएंगे, इसकी एक हजार प्रतिशत गारंटी है।’

‘अरे वाह...क्या कॉन्फिडेंस है बाबा तेरा...’

‘होगा ही न...आखिर बहन किसकी है...?’

‘ठीक है, ठीक है...तुम सरप्राइज दो...उसके बाद मैं भी ऐसा सरप्राइज दूंगी कि....’

‘...कि क्या..?’

‘कुछ नहीं....’

‘प्लीज बताओ न केतकी दीदी....’

‘तुमने ही कहा न कि देखने में ही मजा है....तुम्हारे मुंह आश्चर्य से खुले रह जाएंगे इसकी पांच हजार प्रतिशत गारंटी है।’

भावना ने अचानक केतकी को गले से लगा लिया। ‘तुम मेरे साथ हमेशा रहो यही मेरे लिए सबसे बड़ा गिफ्ट है। गारंटी की जरूरत नहीं। प्लीज, ये कभी मत भूलना...कभी भी नहीं।’

केतकी को भावना का और भावना को केतकी का व्यवहार अजीब लग रहा था। भावना को भले ही उसके पीछे का कारण मालूम था लेकिन केतकी अनभिज्ञ थी।

यशोदा को लग रहा था कि आज घर में कोई नहीं है तो केतकी की पसंद का खाना बनाया जाए। वो खुशी खुशी पेट भर खाए, ऐसा कुछ बनाना चाहिए। लेकिन क्या बनाया जाए? इधर तो वह ये नहीं खाना...वो नहीं खाना...यह नहीं चलेगा...वह नहीं चलेगा....चलता रहता है, तो फिर बनाया क्या जाए? उसे ही पूछा जाए,इस विचार से यशोदा उठी लेकिन तभी केतकी वहां आ गयी। पहुंचते ही वह मां के गले से लग गयी। बड़ी देर तक वैसे ही खड़ी रही। क्या हुआ बेटा, सब कुछ ठीकठाक चल रहा है न? तुम्हारी तबीयत तो ठीक है न?

‘मुझे कुछ नहीं हुआ है।’

‘ठीक ठीक...तो बताओ शाम को क्या बनाऊं?’

‘मैं जितना कहूं, उतना करोगी?’

‘हां...हां...तुम कहो तो सही...तुम्हारी मां को ऐसा मौका ही कहां मिलता है कि वह अपनी और तुम्हारी मर्जी के हिसाब से कुछ कर सके?’

‘तो फिर सुनो, हम दोनों के जाने के बाद आराम करो। टीवी देखो, या फिर सो जाओ। जो मन हो सो करो। लेकिन, खबरदार, जो किसी काम को हाथ लगाया तो...’

‘अरे, लेकिन मुझे तुम्हारी पसंद का खाना बनाकर खिलाना है तुम्हे..?’

‘वैसा ही होगा, लेकिन मैं बाहर से लेकर आऊंगी। तुम आज कुछ मत बनाओ। ’

‘अरे...पर सुनो तो सही...’

‘नहीं...मुझे कुछ नहीं सुनना। मेरे लिए तुम आराम करोगी, यह कल्पना ही संतोष देती है। मेरे मन को आनंद देने वाली है।’

यशोदा कुछ कहने ही वाली थी लेकिन केतकी ने उसे अपनी कसम दे दी। ‘शाम को मेरे घर वापस आने तक तुम घर की रानी...महारानी बन कर रहो...तुमको जो अच्छा लगे करो...पर काम मत करना...न मानी तो मेरी कसम है तुमको...’

और, वास्तव में उस दिन यशोदा ने आराम ही किया। दोपहर को दो घंटे आराम से नींद ली। न जाने कितने जन्मों का जागरण था, इस तरह आराम से सोई। इसके बाद फ्रिज से फल निकाल कर खाए। उसे लगा कि इतने सालों में पहली बार उसने अपने मन का कुछ किया है। उसने खुद को चिकोटी काट कर देखा कि सच है या सपना? यह सपना नहीं था। न जाने वह कितनी ही देर गुनगुनाती रही। चाय का कप हाथ में लेकर आराम से चाय पीती रही। जीवन का यह अनुभव कितना सुखद था। उसकी आंखों में आंसू छलकने को ही थे कि दरवाजे पर घंटी बजी। दरवाजा खोला तो सामने केतकी खड़ी थी। यशोदा उसकी तरफ देखती ही रह गयी।

अनुवादक: यामिनी रामपल्लीवार

© प्रफुल शाह

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