लेखक: प्रफुल शाह
प्रकरण-130
मुंबई पहुंचकर केतकी चकरा गयी थी। मुंबई की भीड़भाड़ से घबरा गयी थी। लोग लगातार भागते हुए ही दिखायी दे रहे थे। इधर से उधर, उधर से इधर। आखिर इतनी भीड़ कहां जा रही होगी? और आ कहां से रही होगी? कोई किसी की तरफ देखता नहीं, हंसता-मुस्कुराता नहीं। इतने साल साथ रहने के बाद भी क्या कोई किसी को पहचानता नहीं होगा? ये तो जैसे यंत्रवत रोबोट ही है। इस मुंबई से तुरंत निकलना होगा बाबा।
ले...फाइव स्टार होटल। ये होटल है कि कोई राजमहल? सबकुछ भव्य। एक महंगी लंबी-चौड़ी गाड़ी से एक साहब उतरे। होटल के दरबान ने उनको एक कड़क सैल्यूट मारा। रिक्शे से उतर कर आने वाली केतकी और भावना को लेकिन उन्होंने कोई भाव नहीं दिया। लेकिन वे दोनों गार्ड की तरफ गर्व से देखते हुए अंदर गयीं। केतकी और भावना, दोनों की आंखें वहां की चकाचौंध देखकर आश्चर्य से विस्फारित थीं। अंदर एक जगह पर सौंदर्य प्रतियोगिता का डेस्क था। केतकी और भावना वहां पहुंचीं तब वहां और कोई नहीं था। केतकी ने उसे प्राप्त हुआ मेल का प्रिंट दिखाया। उस लड़की ने केतकी की तरफ देखे बिना ही उस प्रिंट की जानकारी अपने पास रखी एक सूची में नोट कर ली। प्रिंट वापस देते समय ही उसका ध्यान केतकी की तरफ गया और वह उसे देखती रह गयी।केतकी और भावना जब दूर निकल गयीं तब उसने अपने बाजू में बैठी लड़की को अपने कोहनी से धक्का देते हुए इशारा किया, ‘ उसे देखा? कमाल करते हैं न लोग?’
ट्रॉली खींचते हुए केतकी-भावना होटल के बैंक्वेट हॉल की तरफ पहुंचीं। वहां अभी प्रवेश शुरू नहीं हुआ था। ‘प्लीज, वेट फॉर समटाइम।’ भावना बाजू में रखे हुए एक सोफे पर जाकर बैठ गयी। लेकिन केतकी को लगा कि वह बैठ नहीं पाएगी। उपाध्याय मैडम और भावना ने उसको कसम देकर लाल रंग का वनपीस पहनने के लिए कहा था। इसमें उसे परेशानी हो रही थी। ले-देकर घुटनों तक पहुंच रहे छोटा-से उस वनपीस में बैठा कैसे जाए? उसे ऐसे कपड़ों की आदत नहीं थी। उसके मन में विचार आया कि यदि इन कपड़ों में उसे रणछोड़ दास, जयश्री, शांतिबहन और यशोदा ने देख लिया तो? जीतू और उसकी मां तो देखकर बेहोश ही जाएंगे। इस बेचैन मनःस्थिति में उसे प्रभुदास नाना, नानी और जिन्हें कभी देखा न था ऐसे अपने पिता याद आए। उनकी याद से उसके मन को दिलासा मिला मानो उनका आशीर्वाद उसे मिल गया था।
दस मिनट के बाद बैंक्वेट हॉल का दरवाजा खुला। केतकी ने अंदर कदम रखे, लेकिन भावना को वहीं रुकने के लिए कहा गया। ‘सॉरी, यू हैव टू वेट आउटसाइड।’ केतकी को लगा वह अकेले सब कुछ कैसे कर पाएगी? वह कुछ कहने ही जा रही थी कि भावना ने उसे हाथ के इशारे से रोक दिया। अंगूठा दिखाकर उसे शुभकामनाएं दीं। और फिर, उसने सोचा, यहां बैठ कर इंतजार करने से अच्छा होटल को ही देख लिया जाए। कौन जाने फिर ऐसा मौका मिले न मिले?
केतकी ने जब अंदर प्रवेश किया तो उसे लगा कि वह एक नयी ही दुनिया में आ गयी है। न जाने कितने ही युवक-युवतियां सौंदर्य प्रतियोगिता के काम में जुटे हुए थे। जवान और होशियार कर्मचारी लड़कियों को देखकर केतकी को लगा कि उससे अधिक सुंदर तो ये ही दिख रही हैं। उसके बाद एक के बाद एक प्रतियोगी आने लगे। दिल्ली, मनाली, इंदौर, भोपाल, नाडियाद, कोलकाता, लखनऊ, मुजफ्फरपुर, पुणे, नागपुर, इचलकरंजी, गुवाहाटी, चंडीगढ़...अलग-अलग शहरों के नाम केतकी के कानों पर पड़ रहे थे। केतकी को लगा कि ये लोगों की भीड़ नहीं सपनों का मेला है। महत्वाकांक्षाओं के मेघ इकट्ठा हो गये हैं। सभी को अपनी किसी न किसी बात पर गर्व था। किसी को अपनी त्वचा के रंग पर, किसी को अपनी ऊंचाई पर, फिटनेस पर, मेकअप पर, हेयरस्टाइल पर, धारदार नाक पर, सुंदर बोलती आंखों पर, मोती जैसे दांतों पर, मोहक ओठों पर...इंपोर्टेड कपड़ों पर, ब्रांडेड आभूषणों पर, धाराप्रवाह अंग्रेजी पर...लेकिन ये सब तो ऊपरी दिखावा था। हरेक का दिल वास्तव में धड़क रहा था, डर लग रहा था... पिताजी जान गये तो? बॉयफ्रेंड को क्या बताया जाए? होने वाले पति को पसंद आयेगा? इतने सारे लोगों के बीच मेरा नंबर आएगा? जिद करके आ तो गये हैं, लेकिन नंबर नहीं लगा तो मुंह उतार कर वापस जाना पड़ेगा? कुछ जगहों पर लेकिन अति आत्मविश्वास भी झलक रहा था। बस इस प्रतियोगिता को जीत लूं, फिर दो-चार विज्ञापनों में बतौर मॉडल काम मिल ही जाएगा, फिर तुरंत फिल्म लाइन में जाया जा सकेगा। एकदम बढ़िया बैनर तले। ये रूप, ये सौंदर्य, अभिनय का शौक और स्कूल-कॉलेज के नाटकों के दौरान किये गये का का अनुभव। और क्या चाहिए? हरेक के चेहरे की चमक, मेकअप, उत्साह और हंसी के पीछे एक मिली-जुली भावना छिपी हुई थी। वह थी आशा-निराशा की। लेकिन केतकी का मन इन सबसे दूर था। उसके मन में उलटे ही विचार आ रहे थे। आजू-बाजू की प्रतियोगी लड़कियों के कपड़े, मेकअप, तैयारी, उत्साह और जोश देधकर उसे लग रहा था कि उसने यहां आकर गलती कर दी। ये उसके बस का काम नहीं। वह ठीक और उसकी स्कूल ठीक। लेकिन ये भावना और प्रसन्न को कोई काम नहीं हैं। दोनों ने मिलकर मुझे बेकार ही जोर देकर यहां भेज दिया। तिस पर कीर्ति सर और उपाध्याय मैडम को भी अपने साथ शामिल कर लिया था, इस लिए आना पड़ा। उपाध्याय मैडम को याद करते ही पुकु-निकी की भी याद आ गयी। कैसे होंगे वे दोनों? हमारे बिना उन दोनों का मन लग रहा होगा वहां?
इस बीच केतकी के ध्यान में आया कि बाजू के सोफे पर बैठी लड़कियां उसके सिर की ओर देखकर आपस में चर्चा कर रही हैं...चर्चा नहीं, शायद मजाक...। केतकी ने गुस्से से अपनी मुट्ठियां भींच लीं। उसे लग रहा था कि यहां से भाग जाये। वे लड़कियां जानबूझकर बालों की चर्चा करने लगीं। शैंपू, हेयरस्टाइल और हेयर स्टाइलिस्ट आदि की इस तरह से चर्चा करने लगीं कि वे सारी बातें केतकी के कानों पर पड़ें। केतकी की गर्दन झुक गयी। वह रुंआसी हो गयी। ट्रॉली हैंडल की पकड़ उसने कस ली। एक लड़की ने केतकी की ओर देखकर जोर से कहा, ‘चलो जी, एक तो कॉम्पीटिशन शुरू होने से पहले ही आउट हो गयी।’ सभी जोर-जोर से हंसने लगीं। एकदूसरे को ताली देने लगीं। केतकी को लगा कि धरती फट जाए और वह उसमें समा जाये। बहुत प्रयास करने के बाद भी वह अपने आंसू नहीं रोक पायी। उसने पर्स से अपना रुमाल निकाला और आंखें पोंछ लीं और उसी समय उसका ध्यान दरवाजे की तरफ गया। उसे अपनी आंखों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था। आंखों में पानी होने के कारण कहीं दृष्टिभ्रम तो नहीं था? नहीं...नहीं...भ्रम नहीं, वह व्यक्ति वास्तव में करीब आ रहा था।
अनुवादक: यामिनी रामपल्लीवार
© प्रफुल शाह
===