अग्निजा - 57 Praful Shah द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अग्निजा - 57

प्रकरण  57

एक दिन अचानक शाला के ट्रस्टी कीर्ति चंदाराणा ने शिक्षकों की एक मीटिंग बुलाई। स्टाफ में तुरंत चर्चा चालू हो गई कि आज या तो किसी की धुलाई होगी या नई जिम्मेदारियां थोपी जाएंगी। प्राचार्या मेहता को भी इस मीटिंग की जानकारी नहीं थी। आदेश मिला कि सभी शिक्षक अपनी कक्षाओं की जवाबदारी मॉनिटर्स को सौंप कर मीटिंग में उपस्थित हों।शाला में ऐसा पहली बार ही हो रहा था। लगभग सभी शिक्षक उपस्थित हो गए। केतकी की ध्यान में आया कि केतकी जानी अभी तक पहुंची नहीं है। मेहता मैडम ने कीर्ति चंदाराणा जी से धीरे से पूछा, “सभी आ गए हैं, शुरू करें?”  चंदाराणा का ध्यान दरवाजे की तरफ था। उन्होंने हाथ के इशारे से ठहरने के लिए कहा। थोड़ी ही देर में केतकी आ गई और सबसे पीछे रखी हुई एक खाली कुर्सी पर बैठ गई। कीर्ति चंदाराणा उठे, “सभी लोगों को जल्दबाजी में बुलाना पड़ा। कारण भी वैसा ही है। इससे पहले हमारी शाला में ऐसा कभी नहीं हुआ। कहीं हुआ हो, ऐसा भी सुनने में नहीं आया। सच कहूं तो ऐसा विचार या कल्पना भी इसके पहले कभी की नहीं गई। फिर भी ऐसा हुआ तो है अपनी शाला में।” सभी लोगों की उत्सुकता का पारावार नहीं था। ऐसा क्या हो गया शाला में, जिसकी जानकारी हमें नहीं है? कुछ गलत-सलत घटना तो नहीं हो गई? चंदाराणा आगे बोलने लगे, “मैं केतकी जानी से प्रार्थना करता हूं कि वह सामने आएं। ” सभी को आश्चर्य हुआ। केतकी को सबसे ज्यादा। वह सामने आकर पहली कतार में खाली पड़ी कुर्सी पर बैठने लगी तो चंदाराणा ने उसे प्रेम से आदेश दिया, “वहां नहीं, कृपया मेरी बाजू में रखी हुई कुर्सी पर आकर बैठें।” केतकी को संकोच हुआ लेकिन कोई रास्ता भी नहीं था। वह जब बैठ गई तो चंदाराणा ने अर्दली को इशारा किया। उसने गुलदस्ता और एक गिफ्ट बॉक्स उनके सामने लाकर रख दिया। चंदाराणा ने केतकी के हाथों में गुलदस्ता देते हुए कहा, “बहुत बहुत बधाई। मैं अपनी शाला की तरफ से आपका आभार मानता हूं।” केतकी हक्का-बक्का रह गई। उसने गुलदस्ता स्वीकार किया और झुककर प्रणाम किया। इसके बाद चंदाराणा ने केतकी के हाथ में गिफ्ट बॉक्स देते हुए कहा, “ये छोटी सी भेंट मेरी तरफ से। आपने शाला की प्रतिष्ठा और गौरव बढ़ाया है इस हेतु।” केतकी को कुछ समझ में नहीं आ रहा था। उसने हिम्मत जुटा कर पूछा, “सर, मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि मेरा यह सम्मान किस लिए? और शाला के लिए मैं जो कुछ भी करती हूं, वह मेरा कर्तव्य है।”

चंदाराणा ने भावुक होकर कहा, “आपसे मुझे ऐसी ही प्रतिक्रिया की उम्मीद थी। दोस्तो, हम अपना काम करते रहते हैं, अपना कर्तव्य पूरा करते रहते हैं। कभी उत्साह के साथ, कभी लाचारी में। लेकिन सौंपे गए काम से अधिक कभी करते हैं क्या?  नहीं करते। कभी लीक से हटकर कुछ विचार करते हैं क्या? नहीं करते। हम सिर्फ उपस्थिति रजिस्टर से लेकर वेतन रजिस्टर की सीमा में और अपना स्वार्थ पूरा हो, उतना ही काम करते हैं। लेकिन कल शाम को एक विद्यार्थी के पिता ने आकर मुझे धन्यवाद दिया। उन्होंने गर्व के साथ कहा कि केतकी जानी जैसी शिक्षिका जिस शाला में पढ़ाती हैं, मेरा बेटा उस शाला में पढ़ता है। मैंने जब उनसे पूछा तो उन्होंने विस्तार से सारी बात बताई।”

उसके बाद चंदाराणा ने सभी लोगों को केतकी जानी ने विद्यार्थी किशोर वडगामा की पढ़ाई के लिए जो व्यवस्था की, उसकी जानकारी दी। “मुझे बताइए हममें से किसी ने भी इस तरह की व्यवस्था के बारे में विचार किया होता क्या? नहीं किया होता। केतकी ने एक होशियार लेकिन बीमार विद्यार्थी की रोज पढ़ने की इच्छा को पूरा किया। इनकी जगह कोई और होता तो उसने अपनी प्रायवेट ट्यूशन लगवा ली होती। लेकिन केतकी ने इस व्यवस्था में अपने ही अन्य विद्यार्थियों को शामिल कर लिया। वह भी एक अभिनव योजना ‘टाइम बैंक’ के माध्यम से।”

प्रत्येक विषय़ का एक होशियार विद्यार्थी सुबह-शाम बारी-बारी से किशोर को पढ़ाने के लिए अस्पताल जाता था। रविवार के दिन केतकी चार घंटे किशोर को पढ़ाती थी। विद्यार्थियों द्वारा दिए गए समय के बदले में केतकी उन विद्यार्थियों को जब जरूरत होगी, तब पढ़ाएगी। केतकी की उम्र मेरी बेटी से कम है, इस लिए मैं उनके पैर छूकर उन्हें शर्मिंदा नहीं करना चाहता, लेकिन बेटा तुमने इस विद्यामंदिर को नया अर्थ दिया है। एक नई ऊंचाई दी है, तुम्हें बहुत बधाई और आभार।

तालियों की गड़गड़ाहट हुई और केतकी गदगद हो गई। चंदाराणा ने अपने दोनों हाथ उठा कर सभी को शांत रहने का इशारा किया, “और हां, यह बात मुझ तक पहुंचाने के लिए किशोर के माता-पिता को समझाने के लिए प्रसन्न शर्मा का भी धन्यवाद। उन्होंने यह काम न किया होता तो इतने ऊंचे काम की जानकारी हम लोगों को मिल ही नहीं पाती। हम अंधेरे में ही रह गए होते।” प्रसन्न शर्मा ने उठ कर सभी का अभिवादन किया और तिरछी नजरों से केतकी की तरफ देखा। चंदाराणा ने खड़े होकर तालियां बजाना शुरू किया और फिर सभी उठ खड़े हुए।

सभी ने केतकी का अभिवादन किया। जीवन का यह सबसे सुखद और गौरवपूर्ण क्षण था, लेकिन इस क्षण भी केतकी मन ही मन यह विचार कर रही थी कि घर के नर्क से छुटकारा पाने के लिए क्या किया जाए, शादी या आत्महत्या ?

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अगले दिन सभी भिखाभा के घर में इकट्ठा हुए। यह विचार भिखाभा का ही था। उन्हें लगा कि दूसरे के घर में पहुंचकर उस लड़की का आत्मविश्वास डगमागाएगा और वह बेधड़क कुछ बोल नहीं पाएगी। संकोच के मारे चुप रह जाएगी। रणछोड़ दास को भी यह विचार जंच गया। उसने मीना बहन को  इस बात के लिए मना लिया कि उन लोगों उसका घऱ तो देख ही लिया है इस लिए अब यदि इस बैठक में बात कुछ आगे बढ़ी तो फिर अगली बैठक उनके घर में होगी।

शांति बहन और रणछोड़ दास यह चाहते थे कि उनके साथ यशोदा और भावना उनके साथ न चलें। वह दोनों और केतकी-बस ऐसे तीन लोग ही वहां जाएंगे। लेकिन केतकी ने जिद की कि उसके साथ मां और भावना तो होनी ही चाहिए। ऱणछोड़ दास ने उठापटक मचा दी। “रस्सी जल गई,पर बल नहीं गया...” जयश्री बोली, “मैं भी घर में अकेली नहीं रहूंगी।” रणछोड़ दास को गुस्सा आ गया, “चलो, सब लोग चलो। अड़ोस-पड़ोस के लोगों को भी साथ ले लो। तुम्हारे बाप की शादी है न वहां...खबरदार, जयश्री....यदि तुम वहां गई तो...”

शाम को रणछोड़, यशोदा, भावना और शांति बहन ये चारों आगे निकल गए। केतकी शाला से सीधे वहां पहुंची। पहुंचने के बाद भीतर के कमरे में जाकर हाथ-मुंह धोकर तरोताजा हो गई। तभी मीना बहन और कल्पु भी पहुंच गई। भिखाभा ने कहा, “अरे बारात तो दूल्हे के बिना ही आ पहुंची?”

“भाई, आजकल के बच्चे सुनते कहां हैं? जीतू ने कहा कि आपके यहां नाके के पान वाले के गुटके की बड़ी चर्चा है इस लिए वही बंधवा कर लाता हूं..”

भिखाभा अपने गंदे दांत दिखाते हुए हंसने लगे, “ये सही है...कोई लत न हो तो वह मर्द कैसा..पुरुषों को घर से बाहर निकल कर कामकाज करते समय कई तरह के टेंशन होते हैं। कुछ तो उपाय करना ही पड़ता है उन पर।”

सबके लिए चाय-नाश्ता आ गया। उसी बीच जीतू भी आ गया। आज तो वह कुछ ज्यादा ही विचित्र नजर आ रहा था। गहरे कॉफी रंग के बेलबॉटम पर टाइट टीशर्ट, आंखों पर गॉगल और मुंह में ठूंस कर भरा हुआ गुटका। आते साथ किसी की ओर देखे बिना, किसी से कुछ कहे बिना ही सोफे पर बैठ गया। थोड़ी देर मुंह में गुटका चबाता रहा। उसके बाद उठ के बेसिन के पास गया। गुटका थूका और जोर-जोर से आवाज करते हुए गरारे करने लगा और फिर मुंह धोकर, गीले मुंह से ही फिर से कुर्सी पर आ कर बैठ गया। “ आहाहा...कमाल का है ये गुटका... इस आदमी के हाथों में तो जादू है...जादू...कितने भी पैसे दे दो पर किमाम और तंबाकू का ऐसा स्वाद और कहीं नहीं मिल सकता...आहाहा...मजा आ गया ...मजा। ”

भिखाभा ने बैठक का सूत्र अपने हाथों में लेते हुए कहा, “मैं तो दोनों पक्षों की तरफ से हूं। पहले रणछोड़ की तरफ से बात करता हूं। जीतू कुमार...अब काम की बातें करते हैं। आप दोनों परिवारों ने कुछ तय किया है? यहां पर आए हैं तो इसका मतलब है कुछ तय तो किया ही होगा। लेकिन जो कुछ भी है, साफ-साफ बताएं। मीना बहन, आप कहिए, आपका क्या विचार है?”

मीना बहन ने जीतू की ओर देखा। “इकलौता बेटा है मेरा। उसकी हामी होगी तो, मेरी भी हां समझिए। बाकी बातें हम बड़े लोग तय कर लेंगे। ”

अब भिखाभा ने यशोदा की तरफ देखा और यशोदा ने केतकी की तरफ। शांति बहन बोलीं, “भिखाभा, आप मध्यस्थ हैं तो हमें अधिक विचार करने की आवश्यकता नहीं है। आज तक आपने हमारा भला ही सोचा है। ”

 

अनुवादक: यामिनी रामपल्लीवार

© प्रफुल शाह

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