अग्निजा - 145 Praful Shah द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अग्निजा - 145

लेखक: प्रफुल शाह

प्रकरण-145

सुबह अहमदाबाद में उतरते साथ प्रसन्न स्टेशन से सीधे केतकी के घर पहुंचा। ट्रेन लेट होने के कारण जब वह पहुंचा तो साढ़े आठ बज चुके थे। भावना जाग रही थी। प्रसन्न ने दरवाजे की घंटी बजाने के बजाय भावना को फोन करके दरवाजा खोलने के लिए कहा। प्रसन्न को देखते साथ भावना उसके गले लगकर रोने लगी, ‘थैंक्यू...आप न होते तक केतकी ने क्या कर लिया होता कौन जाने...’ प्रसन्न ने भावना को पकड़कर सोफे पर बिठाया। ‘अब टेंशन छोड़ो...वह बड़बड़ा रही थी कारण बताओ नोटिस के बारे में...क्या बात है?’

भावना ने आलमारी से एक लिफाफा निकालकर उसके हाथ में दिया। ‘केतकी बहन की हालत देखकर मैं परेशान थी। कारण खोजने के लिए घर भर में खोजबीन की। तब उसकी पर्ससे ये लिफाफा मुझे मिला। उसका मोबाइल चेक किया...तब मालूम हुआ प्रसन्न भाई कि आप उससे चार घंटे तक बोलते रहे...थैंक्यू प्रसन्न भाई...’

‘पगली..उसमें थैंक्यू कैसा? तुमसे संपर्क न हुआ होता तो बैटरी खत्म होते तक मैं उससे बात करते रहता। लेकिन पोर्टेबल चार्जर मिल गया था इस लिए मुंबई से अहमदाबाद तक बात करते रहता। ’

‘यू आर वंडरफुल पर्सन...प्लीज...केतकी बहन का हमेशा इसी तरह ध्यान रखिएगा...थैंक्यू वेरी मच...’

‘धन्यवाद का कार्यक्रम बाद में...केतकी अब कैसी है?’

‘मैं लौट कर आयी और कुछ ही समय में वह मेरी गोद में सिर रखकर सो गयी। मैं उसे उठाकर बेड रूम में ले गयी, वह भी उसे पता नहीं था। रात को उसने खाना खाया होगा, ऐसा लगता तो नहीं है..लेकिन नोटिस का क्या किया जाए.. ?’

‘वह मैं देख लूंगा। चंदाराणा साहब से बात करके उसका कोई रास्ता निकाला जा सकता है। मैं निकलूं अब?’

‘केतकी बहन से बिना मिले ही?’

‘हां...रात की कोई बात उसे याद आई तो मुझे देख कर शायद वह शर्मिंदगी महसू करे। तुम भी उससे हमेशा की तरह ही बात करना। रात में कुछ हुआ है, ऐसा दिखाना मत। कोशिश करो कि कोई कारण खोज कर उसे आज स्कूल जाने से रोक लो। हो सकेगा तुमसे?’

‘हां...लेकिन आप शाम को आइएगा, प्लीज।’

‘वो तो तुम न भी कहती तो मैं आने ही वाला था। और कुछ जरूरत पड़े तो मुझे बताना...चलो.. अब निकलता हूं।’

प्रसन्न के जाने के बाद भावना को ध्यान में आया कि वह स्टेशन से सीधे वहीं आया था,. और उसने चाय के लिए भी नहीं पूछा। ‘कितना अच्छा आदमी है...केतकी बहन...यू आर वेरी लकी। प्रसन्न भाई जैसे आदमी बनाना शायद भगवान ने भी बंद कर दिया है। तुम्हारी तो लॉटरी लग गयी है..लॉटरी...चलो अब प्रसन्न सर के काम से लगा जाए...’ केतकी ने फ्रिज से सोड़े की बोतल निकाली, थोड़ी पी और बाकी उलटा दी। एक नीबू काट कर फ्रिज में रख दिया बाकी चख कर सिंक में निचोड़ दिया। एक छोटी कटोरी में नमक, जीरा पाउडर काला खट्टा का पैकेट निकाल कर रखा। ये सब ट्रे में रख वह केतकी की ओर जाने के लिए निकली। जाते-जाते चेहरे पर ऐसे भाव लाए मानो बहुत दर्द हो रहा है। फिर हंस कर खुद से ही बोली, ‘भावना, यू आर नॉट ए बैड एक्टर...’ और फिर जोर से हंस कर बेडरूम में दाखिल हुई। टीपॉय पर सारा सामान रख दिया। बिस्तर पर लेटकर उसने मुंह पर चादर खींच ली। बाल खोलकर बिखेर लिये। आंखें मसल कर लाल कर लीं। फिर कराहते हुए केतकी को पुकारने लगी। केतकी बहुत कोशिश करने के बाद उठ कर खड़ी हुई। उसे देख कर केतकी और जोर से कराहने लगी। केतकी का सिर बहुत दुःख रहा था और पेट में आग भड़क रही थी। लेकिन भावना को कराहते हुए देखकर वह अपना दर्द भूल गयी। ‘क्यों, क्या हो रहा है तुम्हें? ’ ‘रात से पेट में बहुत दर्द हो रहा है...बहुत...सब कुछ करके देख लिया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ..इस लिए तुमको उठाना पड़ा...’

‘हे भगवान...डॉक्टर के पास जाएं या फिर यहीं बुला लें?’

‘उनको फोन किया था मैंने आधा घंटा पहले। वो बोले पिज्जा, बर्गर और पाव भाजी खूब खा ली होगी इस लिए गैस बन रही होगी। सोड़ा, नीबू, जीरा पाउडर लो...मैंने सब ले लिया लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ा। मां जैसा काढ़ा बनाकर देती थी, तुम वैसा बना कर दो न प्लीज।’

केतकी जैसे-तैसे उठी। रात की बातें उसे थोड़ी-थोड़ी याद आ रही थीं लेकिन वाइन के ग्लास तो कहीं दिखाई नहीं दे रहे थे। बोतल कहां गयी? बोतल तो फ्रिज में दिखाई दी। ग्लास जगह पर धुले हुए रखे थे। ये भावना कब आयी ? उसे कुछ याद आया कि उसने प्रसन्न से बातें की थीं। क्या कहा था? उसे कुछ समझ में तो नहीं आया होगा?

अचानक उसे कारण बताओ नोटिस याद आयी। इसी नोटिस ने तो उसे टेंशन दिया था। जैसे-जैसे काढ़ा बनाकर वह बेडरुम में लेकर गयी, तो भावना मोबाइल में व्यस्त थी। कुछ पढ़कर मुस्कुरा रही थी। केतकी को लगा कि इसका पेट सही में दर्द कर रहा है या ये...?

भावना के पास जाकर उसने उसके हाथ से मोबाइल ले लिया। उसे उठा कर बिठाया ‘लो, मेरे हाथ का काढ़ा पियो...अच्छा लगेगा तुमको...’

‘टीपॉय पर रख दो वहां...थोड़ा ठंडा हो जाए तो लेती हूं...तब तक तुम फ्रेश हो लो।’

‘नहीं, मेरी इकलौती बहन को इतनी परेशानी हो रही है तो मैं फ्रेश होने के लिए कैसे जा सकती हूं भला? चलो जल्दी से पी लो अब...’

‘नहीं...केतकी बहन प्लीज..रख दो न वहां...मैं पी लूंगी न...अभी नहीं...’

‘नहीं, अभी लो...और फिर तुम आराम करो..आज कॉलेज नहीं जाना है। ’

‘मैं अकेली घर में क्या करूंगी, तुम भी छुट्टी ले रही हो तो बोलो...’

केतकी को तो वैसे भी स्कूल जाने का मन नहीं हो रहा था। सिर में बहुत तेज दर्द हो रहा था, उसका मूड भी नहीं था। उसने प्रिंसिपल मेहता को मेसेज देकर छुट्टी मांग ली। फिर देखा तो भावना मोबाइल में ही लगी हुई थी। उसे शंका हुई कि इसके पेट में वाकई दर्द है? देख ली लेती हूं... ‘भावना ....पहले ये काढ़ा पी लो या फिर साफ-साफ बता दो कि तुम्हें कुछ नहीं हुआ है।’

‘क्या केतकी बहन तुम भी?तुमको मुझ पर भरोसा नहीं है?’

‘है न...पूरा है...या तो मेरी कसम खाओ, या फिर ये काढ़ा पी लो...’केतकी ने काढ़े का ग्लास रुमाल से पकड़कर उसके मुंह से लगाया। भावना उठ खड़ी हुई। ‘मुझे कुछ नहीं हुआ है। लेकिन आज तुम स्कूल न जाओ, इस लिए मैंने ये नाटक किया।’

‘क्यों?’

और भावना ने उसे कल रात की घटना सुना दी। प्रसन्न ने ट्रेन से किए फोन से लेकर आज सुबह उसके घर आने तक सब।

‘ओह, उस कारण बताओ नोटिस के कारण ये महाभारत हुआ।’

उसी समय प्रसन्न उधर चंदाराणा सर से बात कर रहा था। वह कह रहे थे, ‘इस कारण बताओ नोटिस ने बहुत बड़ा महाभारत रच दिया है...कोई रास्ता निकालना ही पड़ेगा।  ’\

 

अनुवादक: यामिनी रामपल्लीवार

© प्रफुल शाह

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