अग्निजा - 121 Praful Shah द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अग्निजा - 121

लेखक: प्रफुल शाह

प्रकरण-121

केतकी को समझ में आ गया कि वह भावना और निकी-पुकु को छोड़कर कहीं जाने वाली नहीं इसलिए भावना, प्रसन्न और कीर्ति चंदाराणा ने मिलकर यह प्लान बनाया था।

अब केतकी का नाटक शुरू हो गया, ‘अच्छा..अच्छा...आपने लोगों ने तय किया है कि मैं ट्रिप पर जाऊं...दस दिनों के लिए? वेरी गुड...गोआ? नॉट बैड...लेकिन अब कृपा करके बताएंगे कि मैं किसके साथ जाऊंगी...?’

भावना ने बाजू में रखे हुए एक फोल्डर में से टिकिट की एक फोटोकॉरी निकालकर उसके हाथ में रख दी। वह लक्जरी बस की एक टिकट की फोटोकॉपी थी। उसमें केतकी, चंद्रिका, गायत्री, अलका और मालती का नाम था। केतकी ने टिकट देखा, ‘अच्छा, कल शाम की बस है...नौ दिन वहां रहना है....दसवें दिन वापसी...ग्यारहवें दिन आराम....गुड प्लानिंग...लेकिन मैं अपनी भावना और निकी-पुकु को छोड़कर नहीं जाने वाली...’

भावना हंसी, ‘इसका भी रास्ता है...’ उसने प्रसन्न की ओर देखकर आंखें मिचकायीं और कहा, ‘वन..टू एंड थ्री...’

भावना और प्रसन्न ने साथ-साथ कहा, ‘मेरी कसम है यदि नहीं कहा तो..’ निकी और पुकु भोंकने लगे मानो वे भी उनका साथ दे रहे हों। केतकी का मन दुविधा में पड़ गया। गोवा जाने का अवसर मिल रहा है इस बात की खुशी मनायी जाए या भावना और निकी-पुकु को अकेले रखकर जाने का दुःख? उसको चिंता भी हो रही थी।

केतकी ने यशोदा को फोन लगाकर उसकी अनुपस्थिति में इन तीनों के पास आकर रखने की प्रार्थना की। यशोदा आना चाहती थी लेकिन उसके मुंह से मनाही ही निकली, ‘तुम्हारे पिता की सख्त ताकीद है कि दोनों बेटियों से बात नहीं करनी है। उनसे संबंध नहीं रखना है। यदि भावना उनके पैरों पर गिरकर माफी मांगेगी तो वह उसे घर में आने देंगे लेकिन तुम्हारे लिये...’

‘लेकिन मां,  तुम्हारा हमारे साथ भी कोई संबंध है न? हमारे प्रति भी कोई कर्तव्य हैं कि नहीं?’

‘हां, लेकिन इस घर को मैं जीते जी नहीं छोड़ सकती। अब यहां से मेरी अर्थी ही निकलेगी।’

केतकी फोन की तरफ देखती रह गयी। बिना कुछ कहे उसने फोन काट दिया. ‘वे लोग इंसान नहीं शैतान हैं, फिर भी मां उनको छोड़ना क्यों नहीं चाहती पता नहीं।’ केतकी का ध्यान नहीं था लेकिन भावना ने उनकी बातचीत सुन ली थी। भावना ने कुछ दूर जाकर एक फोन लगाया। उस पर धीरे से कुछ बात की। जब उसने फोन काटा उस वक्त उसके चेहरे पर मुस्कान थी।

भावना खुशी खुशी केतकी की बैग भर रही थी। उसकी एक-एक चीज याद से रखती जा रही थी। बैग भरते समय केतकी ने देखा कि इस पगली लड़की ने उसके लिए न जाने कितनी खरीदी कर ली थी। ढेर सारे कपड़े,स्वीमिंग कॉस्ट्यूम, अलग-अलग तरह की चप्पलें, बूट। थोड़ा सा मेकअप का सामान, फर्स्ट एड बॉक्स, ड्रायफ्रूट, खाने-पीने का सामान...इतनी शॉपिंग? लॉटरी लग गयी है क्या इसकी?

भावना ने गंभीर होकर कहा, ‘पिगी बैंक में बहुत दिनों से पैसे जमा कर रही थी, उन्हें खर्च कर दिया।’

केतकी कुछ बोलती इसके पहले ही भावना उसे समझाऩे लगी, ‘पैसों को दो-तीन जगहों पर अलग-अलग बचाकर कैसे रखा जाए...’ यह सब देखकर केतकी को लगा, ‘ये मेरी छोटी बहन है नानी? लेकिन मैं भाग्यवान हूं...बहुत भाग्यवान...’ उसने भावना को अपनी ओर खींच लिया और गले से लगा लिया। भावना ने दूर जाने की कोशिश की लेकिन केतकी ने उसे कसकर पकड़ रखा था। दरवाजे पर घंटी बजी इसलिए केतकी ने पकड़ ढीली की,लेकिन भावना ने आंखों के इशारे से ही पूछा, ‘दरवाजा खोलने जाऊं या नहीं?’

दोनों उठीं। दरवाजे पर लंच बॉक्स लेकर लड़का खड़ा था। उसने दो लंच बॉक्स दिये। केतकी ने कहा, ‘एक ही चाहिए, दो नहीं।’

‘नहीं, नहीं...दोनों रहने दो...मैंने दो मंगवाये थे।’

भावना ने दोनों बॉक्स टीपॉय पर रख दे। केतकी कुछ पूछती तब तक दोबारा घंटी बज गयी। भावना के दरवाजा खोलते साथ उपाध्याय मैडम अंदर आयीं। सोफे पर बैठते ही बोलीं, ‘ऐ लड़की...तू कौन है मेरी...मां, सास, जेठानी या ननद...?’ भावना ने मुंह बिचकाया और बोली, ‘दो विकल्प देती हूं...जो पसंद आये सो रख लें...सखी या बेटी...’

उपाध्याय ने उसे प्रेमपूर्वक अपने पास खींचा, ‘तुम कुछ भी रहो। तुम्हारी शिकायत तो मैं करूंगी ही। केतकी इसे जरा समझाओ। मुझे घंटे भर पहले फोन करके आदेश देती है कि मेरे घर में रहने के लिए तुरंत आ जाओ। बारह दिनों के लिए। अब इतने कम समय में क्या तो अपना घर ठीकठाक करके बंद कैसे करूं? तो मुझसे कहती है रोज-रोज जाकर थोड़ा-थोड़ा ठीक कर लिया करना।’

भावना ने केतकी की ओर देखकर कहा, ‘अब तो तुम्हारी भावना, निकी और पुकु को लेकर चिंता दूर हो गयी न? मुझे भी कोई ऐसा मिल गया जिसका मैं बारह दिनों तक सिर खाती रहूंगी।’

केतकी दोनों की तरफ देखती रह गयीं। ‘ईश्वर ने मुझे सगे संबंधी नहीं दिए, लेकिन सोने के समान अनमोल रिश्ते अवश्य दिये हैं...मुझको भला और क्या चाहिए?’

भावना ने केतकी का हाथ पकड़कर कहा, ‘अब वहां खूब मजा करना...सब कुछ भूल जाना...मुझसे झूठ बोल नहीं पाओगी...मुझे प्रत्येक मिनट की खबर मिलती रहेगी। हमारे जासूस चारों ओर फैले हैं...हाहाहा...’

रात को बस आंखों से ओझल होते तक उपाध्याय मैडम, भावना और निकी-पुकु वहां खड़े रहे। केतकी भी उन्हें पीछे मुड़कर देखती रही। सभी एकदूसरे की ओझल होने के बाद केतकी ने अपनी आंखों का पानी पोंछा। तब चंद्रिका, मालती, अलका और गायत्री...सबका ध्यान केतकी की तरफ ही लगा हुआ था। उनके दिमाग में भी केतकी ही थी। चारों को लग रहा था कि केतकी मौज-मस्ती करती है या नहीं, यह देखने की जिम्मेदारी उन पर है। ‘भावना ने कितने प्रेम से यह जिम्मेदारी उन्हें सौंपी है। और वह एन्जॉय कर रही है या नहीं यह बताने और उसके वीडियो बना कर भेजने की जिम्मेदारी सौंपी गयी है न?’ भावना ने चारों से अलग-अलग मुलाकात करके केतकी की चिंता करने की बात कही थी, ये उन चारों को मालूम नहीं था। हरेक को लग रहा था कि भावना ने यह बात केवल उसी से कही है।

रात को बस में अजय देवगन की कोई फिल्म चल रही थी। जीतू का पसंदीदा अभिनेता। केतकी को लगा कि इतने अच्छे कार्यक्रम में जीतू की याद भला क्यों की जाए? ठंड लग रही थी इसलिए उसने स्कार्फ बांध लिया और उसके ऊपर से ऊनी टोपी पहन ली। स्वेटर निकाल लिया। चारों को गुडनाइट कहा और फिर मोबाइल से उपाध्याय मैडम और भावना को गुडनाइट मैसेज भेजा। मोबाइल को पर्स में रखते समय फिर कुछ याद आया। ‘थैंक्यू वेरी मच...टेक केयर..मिसिंग यू...गुडनाइट...’ इतना लिखकर उसने कुछ सोचा और फिर यह मैसेज प्रसन्न को भेज दिया। मैसेज पाते ही प्रसन्न खुशी से उछल पड़ा और फिर वह एक के बाद एक मैसेज भेजने लगा। केतकी ने हल्की सी मुस्कान बिखेरी और गुडनाइट...बाय ...का मैसेज दिया और फिर मोबाइल स्विच ऑफ करके पर्स में रख लिया। आंखों पर पट्टी चढ़ाकर वह सोने की तैयारी करने लगी।

 

अनुवादक: यामिनी रामपल्लीवार

© प्रफुल शाह

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